उपन्यास १६ नवम्बर से २० नवम्बर के बीच पढ़ा गया
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फॉर्मेट : ई-बुक
प्रकाशक : न्यूज़ हंट
पहला वाक्य :
मैंने वॉल क्लॉक पर निगाह डाली।
जवाहर वाटकर धारावी के ट्रांजिट कैंप नामक इलाके के एक बार में बारमैन था। दिखाने को तो बार का मालिक और एक लौता कर्मचारी वो था लेकिन वो केवल दिखाने का दाँत था। असल में बार कम्पनी की मिलकियत थी जिसकी आड़ में कम्पनी के गैरकानूनी धंधों को अंजाम दिया जाता था। क्योंकि कंपनी में जवाहर के मामा एक ओहदेदार थे तो जवाहर, जो कि खुद को एकदम नाकारा समझता था, को रिज्क कमाने का ये अवसर मिल गया था। क्योंकि वो जानता था कि ये नौकरी छूट जाती तो उसके खाने के लाले पड़ जाते इसलिए वो इस काम को बड़ी ईमानदारी से करता था।
इसलिए जब कम्पनी दो मवालियों ने उसके बार में कदम रखकर उसे मारने की तमन्ना जाहिर की तो उसके पाँव तले जमीन खिसक गयी। वो लोग उसे पुलिस का खबरी समझ रहे थे और जवाहर को पता था कि ये बात सरासर झूठ है। कंपनी ने अपने गुर्गे उसके पीछे लगा दिए थे और जवाहर का बचना मुश्किल था।
क्या ये ग़लतफ़हमी थी कि जवाहर कम्पनी में पुलिस का भेदिया था? ये बात कंपनी तक कैसे पहुँची?और क्या जवाहर वाटकर अपनी ज़िन्दगी बचाने में कामयाब हुआ? उसने इसके लिए कौन से कदम उठाये?
इन सब सवालों के जवाब तो आपको इस बेहतरीन उपन्यास को पढने के बाद में ही ज्ञात होंगे।
‘तीसरा कौन’ उपन्यास पाठक जी के लिखे थ्रिलर उपन्यासों में से एक है। उपन्यास की कहानी काफी रोचक और रोमांचक है। आखिर माजरा क्या है ? क्यों जवाहर वाटकर, जो कि खुद को निर्दोष बताता है, के विषय में कंपनी को ग़लतफ़हमी हुई? यही सवाल पाठक के मन में कौंधता है और पाठक को उपन्यास के पन्ने पलटने के लिए मजबूर कर देता है। जैसे जैसे कथानक बढ़ता है रोमांच का स्तर बढ़ता जाता है। मैंने भी दो तीन अंदाजे लगाये थे कि आखिर जवाहर को किसने फंसाया या कि आखिर में जवाहर को फँसाया भी गया या नहीं। क्या मेरे अंदाजे सही थे इसी का पता लगाने के लिए मैं उपन्यास पढता गया। यकीन जानिये आप भी एक बार उपन्यास शुरू करेंगे तो उपन्यास का अंत जाने बिना उठ नहीं पायेंगे।
आपने इस उपन्यास को उन उपन्यासों की सूची में डालकर ठीक ही किया विकास जी जिन्हें आप दोबारा पढ़ना चाहते हैं । मैं इस अत्यंत प्रेरणास्पद उपन्यास को पचास से अधिक बार पढ़ चुका हूँ । मेरी दृष्टि में यह सुरेन्द्र मोहन पाठक की सर्वोकृष्ट रचनाओं में से एक है । आपकी समीक्षा वस्तुपरक और निष्पक्ष है ।
टिपण्णी के लिए आभार,जितेंद्र जी। वाह!! पचास का आंकड़ा तो मैं पार न कर पाऊँ लेकिन ये प्रेरणा देता है।