कहानी: ग्राम – जयशंकर प्रसाद
‘ग्राम’ जयशंकर प्रसाद की वह पहली कहानी है जो कि प्रकाशित हुई थी। यह कहानी ‘इंदु’ पत्रिका में सन् 1912 में प्रकाशित हुई थी। आप भी पढ़ें:
कहानी: ग्राम – जयशंकर प्रसाद Read Moreसाहित्य की बात, साहित्य से मुलाकात
‘ग्राम’ जयशंकर प्रसाद की वह पहली कहानी है जो कि प्रकाशित हुई थी। यह कहानी ‘इंदु’ पत्रिका में सन् 1912 में प्रकाशित हुई थी। आप भी पढ़ें:
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होली का त्यौहार आ चुका था और गोपाल होली मनाने के लिए उत्कंठित था। उसने मनोहरदास जी को सितार बजाने का अनुरोध किया तो उन्होंने बताया कि होली के दो दिनों में वो न सितार बजाते थे और न होली ही खेलते थे। वह ऐसा क्यों करते थे? जानने के लिए पढ़ें जयशंकर प्रसाद की यह कहानी ‘अमिट छाप’।
कहानी: अमिट छाप – जयशंकर प्रसाद Read More
कमल का सब कुछ लुट चुका था। अब उसके पास बचा था तो केवल एक रुपया। उसने इस एक रूपये का क्या किया? पढ़ें जयशंकर प्रसाद की लिखी यह लघु-कथा ‘विजया’।
लघु-कथा: विजया – जयशंकर प्रसाद Read More
विलासिनी नगर की प्रसिद्ध नर्तकी की कन्या थी। आजकल वो रोज बाबू विजयकृष्ण, जिन्हें लोग सरकार कहते थे, की अट्टालिका पहुँच जाया करती थी। वह चूड़ीवाली बनकर उनके यहाँ जाती और सरकार की पत्नी को चूड़ियाँ पहनाया करती। वह आख़िरकार ऐसा क्यों कर रही थी? जानने के लिए पढ़ें जयशंकर प्रसाद की कहानी ‘चूड़ीवाली’।
कहानी: चूड़ीवाली – जयशंकर प्रसाद Read More
देवनिवास और अमरनाथ साइकल पर निकले थे कि देवनिवास एक बूढ़े से टकरा गया। बूढ़े के साथ उसकी बेटी नीरा भी थी। फिर परिस्थिति कुछ ऐसी बन पड़ी कि देवनिवास और अमरनाथ बूढ़े की कुटिया पर पहुँच गए। आगे जानने के लिए पढ़ें जयशंकर प्रसाद की कहानी ‘नीरा’।
कहानी: नीरा – जयशंकर प्रसाद Read More
वनस्थली के रंगीन संसार में अरुण किरणों ने इठलाते हुए पदार्पण किया और वे चमक उठीं, देखा तो कोमल किसलय और कुसुमों की पंखुरियाँ, बसंत-पवन के पैरों के समान हिल रही थीं। पीले पराग का अंगराग लगने से किरणें पीली पड़ गयी। बसंत का प्रभात था।
कहानी: अपराधी – जयशंकर प्रसाद Read More
चंदा का विवाह रामू से तय हुआ था लेकिन चंदा हीरा को पसंद करती थी। हीरा भी चंदा को पसंद करता था। और रामू को यह बात पसंद नहीं थी। इस प्रेम त्रिकोण का क्या नतीजा निकला? पढ़ें जयशंकर प्रसाद की कहानी ‘चंदा’।
कहानी: चंदा – जयशंकर प्रसाद Read More
जयशंकर प्रसाद की कहानी ‘इंद्रजाल’ प्रथम बार इसी नाम से प्रकाशित उनके कहानी संग्रह में 1961 में प्रकाशित हुई थी। अब एक बुक जर्नल पर पढ़ें गोली और बेला की यह प्रेमकथा।
कहानी: इंद्रजाल – जयशंकर प्रसाद Read More
राधे की बूढ़ी माँ मंदिर के बाहर ही अपनी दुकान लगाती थी और राधे ताड़ी पीने में ही अपना समय बिता देता था। वृद्धा ने सोचा भी नहीं था मंदिर में राधे के कारण कुछ होगा। फिर कुछ हुआ। क्या हुआ? जानने के लिए पढ़ें जयशंकर प्रसाद की लघु-कथा ‘विराम चिन्ह’।
लघु-कथा: विराम चिन्ह – जयशंकर प्रसाद Read More
रामनिहाल अपना बिखरा हुआ सामान बाँधने में लगा था। जँगले से धूप आकर उसके छोटे-से शीशे पर तड़प रही थी। अपना उज्ज्वल आलोक-खंड, वह छोटा-सा दर्पण बुद्ध की सुंदर प्रतिमा …
कहानी: संदेह – जयशंकर प्रसाद Read More