कहानी: अमिट छाप - जयशंकर प्रसाद

कहानी: अमिट छाप – जयशंकर प्रसाद

होली का त्यौहार आ चुका था और गोपाल होली मनाने के लिए उत्कंठित था। उसने मनोहरदास जी को सितार बजाने का अनुरोध किया तो उन्होंने बताया कि होली के दो दिनों में वो न सितार बजाते थे और न होली ही खेलते थे। वह ऐसा क्यों करते थे? जानने के लिए पढ़ें जयशंकर प्रसाद की यह कहानी ‘अमिट छाप’।

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लघु-कथा: विजया - जयशंकर प्रसाद

लघु-कथा: विजया – जयशंकर प्रसाद

कमल का सब कुछ लुट चुका था। अब उसके पास बचा था तो केवल एक रुपया। उसने इस एक रूपये का क्या किया? पढ़ें जयशंकर प्रसाद की लिखी यह लघु-कथा ‘विजया’।

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कहानी: चूड़ीवाली - जयशंकर प्रसाद

कहानी: चूड़ीवाली – जयशंकर प्रसाद

विलासिनी नगर की प्रसिद्ध नर्तकी की कन्या थी। आजकल वो रोज बाबू विजयकृष्ण, जिन्हें लोग सरकार कहते थे, की अट्टालिका पहुँच जाया करती थी। वह चूड़ीवाली बनकर उनके यहाँ जाती और सरकार की पत्नी को चूड़ियाँ पहनाया करती। वह आख़िरकार ऐसा क्यों कर रही थी? जानने के लिए पढ़ें जयशंकर प्रसाद की कहानी ‘चूड़ीवाली’।

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जयशंकर प्रसाद की कहानी 'अपराधी'

कहानी: अपराधी – जयशंकर प्रसाद

वनस्थली के रंगीन संसार में अरुण किरणों ने इठलाते हुए पदार्पण किया और वे चमक उठीं, देखा तो कोमल किसलय और कुसुमों की पंखुरियाँ, बसंत-पवन के पैरों के समान हिल रही थीं। पीले पराग का अंगराग लगने से किरणें पीली पड़ गयी। बसंत का प्रभात था।

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चंदा - जयशंकर प्रसाद | कहानी

कहानी: चंदा – जयशंकर प्रसाद

चंदा का विवाह रामू से तय हुआ था लेकिन चंदा हीरा को पसंद करती थी। हीरा भी चंदा को पसंद करता था। और रामू को यह बात पसंद नहीं थी। इस प्रेम त्रिकोण का क्या नतीजा निकला? पढ़ें जयशंकर प्रसाद की कहानी ‘चंदा’।

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इंद्रजाल - जयशंकर प्रसाद | कहानी

कहानी: इंद्रजाल – जयशंकर प्रसाद

जयशंकर प्रसाद की कहानी ‘इंद्रजाल’ प्रथम बार इसी नाम से प्रकाशित उनके कहानी संग्रह में 1961 में प्रकाशित हुई थी। अब एक बुक जर्नल पर पढ़ें गोली और बेला की यह प्रेमकथा।

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लघु-कथा: विराम चिन्ह - जयशंकर प्रसाद

लघु-कथा: विराम चिन्ह – जयशंकर प्रसाद

राधे की बूढ़ी माँ मंदिर के बाहर ही अपनी दुकान लगाती थी और राधे ताड़ी पीने में ही अपना समय बिता देता था। वृद्धा ने सोचा भी नहीं था मंदिर में राधे के कारण कुछ होगा। फिर कुछ हुआ। क्या हुआ? जानने के लिए पढ़ें जयशंकर प्रसाद की लघु-कथा ‘विराम चिन्ह’।

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संदेह - जयशंकर प्रसाद

कहानी: संदेह – जयशंकर प्रसाद

रामनिहाल अपना बिखरा हुआ सामान बाँधने में लगा था। जँगले से धूप आकर उसके छोटे-से शीशे पर तड़प रही थी। अपना उज्ज्वल आलोक-खंड, वह छोटा-सा दर्पण बुद्ध की सुंदर प्रतिमा …

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