लेखक सुरेंद्र मोहन पाठक की आत्मकथा के चौथे खंड, पानी केरा बुदबुदा, का हुआ लोकार्पण

लेखक सुरेंद्र मोहन पाठक की आत्मकथा का चौथा खंड, पानी केरा बुदबुदा, का हुआ लोकार्पण
• देश भर से आये एसएमपी के प्रशंसक रहे मौजूद
• शुरू हुई प्री-बुकिंग

नयी दिल्ली. 28 सितंबर. देश के टॉप मिस्ट्री राइटर के रूप में पहचाने जानेवाले सुरेंद्र मोहन पाठक की आत्मकथा के चौथे खंड, पानी केरा बुदबुदा, का प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में भव्य लोकार्पण हुआ। साहित्य विमर्श प्रकाशन की ओर से प्रकाशित पानी केरा बुदबुदा के लोकार्पण के अवसर पर विशिष्ट साहित्यकार ममता कालिया के अलावा देश भर से श्री पाठक के प्रशंसक उपस्थित हुए।

इस मौके पर अपने प्रशंसकों से मुखातिब होते हुए श्री पाठक ने कहा “ मेरे लिखते रहने की प्रेरणा के पीछे मेरे प्रशंसकों का प्यार ही है। 61 साल पहले शुरू हुआ मेरा सफर आज भी अगर जारी है तो इसके पीछे मेरे प्रशंसकों का प्यार ही है। छह दशकों के लंबे सफर में बतौर लेखक मेरे कई खट्ठे-मीठे अनुभव रहे। सफलता का शिखर भी देखा और प्रकाशकों की मनमानी भी। लेकिन इस दौरान जो एक बात थी और जिसमें कभी घट-बढ़ नहीं हुई, वह आपलोगों का प्यार था। “ श्री पाठक ने इस दौरान पूछे गये सवालों के जवाब में कहा कि उनका अन्यतम मुख्य किरदार सुनील कुमार चक्रवर्ती, देश के कई नामचीन पत्रकारों के लिए प्रेरणास्त्रोत भी बना। उन्होंने बताया कि उन्होंने नौकरी करते हुए उपन्यास लिखने का सिलसिला जारी रखा। सफलता के लिए कई कुर्बानियाँ देनी पड़ती हैं, उन्होंने भी अपनी निजी खुशियों को उपन्यास लेखन के लिए बलिदान दिया। अपने लेखन जीवन में कई बड़ी घटनाएँ भी उन्होंने सामने देखी। बांग्लादेश के बनने से छह साल पहले उन्होंने लिख दिया था कि आठ सौ मील दूर, दो पाकिस्तान नहीं रह सकते। आखिरकार वह सच साबित हुआ।

प्रशंसकों से रूबरू होते सुरेंद्र मोहन पाठक
प्रशंसकों से रूबरू होते सुरेंद्र मोहन पाठक

इस अवसर पर उपस्थित साहित्यकार ममता कालिया ने बताया कि वह भी पाठक साहब की मुरीद रही हैं। वह भी उनके लेखन के सफर को जानने के लिए काफी इच्छुक हैं। आत्मकथा के इस चौथे भाग को पढ़ने के लिए वह भी काफी उत्सुक हैं। उन्होंने कहा कि श्री पाठक का बातों का कहने का एक विशिष्ट अंदाज है। उनके लेखन में भी मानव कमजोरी और मजबूती दोनों का आभास मिलता है। सच्चा लेखक जीवन से सटकर चलता है। उनकी आत्मकथा में भी यह भावना ओतप्रोत से जुड़ी हुई है। साहित्य के लोकप्रिय होने की जरूरत पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि साहित्य अगर लोकप्रिय न हो तो वह मर जाता है। उन्होंने खुद को पाठक साहब के लाखों फैन्स में से एक बताया।

लेखक सुरेंद्र मोहन पाठक की आत्मकथा का चौथा खंड, पानी केरा बुदबुदा, का हुआ लोकार्पण
लेखक सुरेंद्र मोहन पाठक की आत्मकथा का चौथा खंड, पानी केरा बुदबुदा, का हुआ लोकार्पण

पानी केरा बुदबुदा में सुरेंद्र मोहन पाठक ने प्रकाशकों के साथ अपने अनुभवों को साझा किया है जो चिरपरिचित एसएमपियन शैली में लिखी गयी है जो एक बार फिर से पाठकों को बांधे रखने के लिए तैयार है। लोकार्पण कार्यक्रम में हिस्सा लेने कानपुर से पहुंचे श्री पाठक के प्रशंसक पुनीत दुबे ने बताया कि श्री पाठक के हम प्रशंसक इतने दीवाने हैं कि हम खुद को एसएमपियंस कहते हैं, यानी वो पाठक जो सुरेंद्र मोहन पाठक, यानी एसएमपी का दीवाना है। हम सब एसएमपियंस साल में एक बार देश के किसी कोने में इकट्ठा होते हैं और पाठक साहब की किताबों पर चर्चा करते हैं। उन्होंने कहा कि एसएमपी के प्रति दीवानगी का यह आलम है कि एक फैन, विशी सिन्हा, जिन्हें इलाहाबाद में अपने कॉलेज के वर्षों बाद हो रहे यूनियन में जाना था, जिसके लिए उन्होंने टिकट भी बुक कर ली थी, लेकिन आत्मकथा के लॉन्च के प्रोग्राम का हिस्सा बनने के लिए उन्होंने अपना टिकट कैंसल कर दिया।

आत्मकथा को प्रकाशित करने वाले साहित्य विमर्श प्रकाशन के राजीव रंजन सिन्हा ने बताया कि अब तक उनकी प्रकाशन संस्था ने करीब 75 किताबें प्रकाशित की हैं, लेकिन आज भी सर्वाधिक माँग सुरेंद्र मोहन पाठक की किताबों की ही रहती है। उन्होंने बताया कि पानी केरा बुदबुदा की प्री-बुकिंग शुरू हो गयी है और उसे साहित्य विमर्श की वेबसाइट, https://www.sahityavimarsh.in/ पर जाकर बुक किया जा सकता है।

सुरेंद्र मोहन पाठक के संबंध में

सुरेंद्र मोहन पाठक का जन्म 19 फरवरी, 1940 को पंजाब के खेमकरण में हुआ था। विज्ञान में स्नातकोत्तर उपा‌धि हासिल करने के बाद उन्होंने भारतीय दूरभाष उद्योग में नौकरी कर ली। युवावस्‍था तक कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय लेखकों को पढ़ने के साथ वह मौलिक लेखन करने लगे। बाजार में उनके कुछ उपन्यासों के आने के बाद उन्होंने मारियो पूजो और जेम्स हेडली चेज़ के उपन्यासों का अनुवाद भी शुरू किया। सन 1959 में, आपकी अपनी कृति, प्रथम कहानी ’57 साल पुराना आदमी’ मनोहर कहानियाँ नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई। आपका पहला उपन्यास ‘पुराने गुनाह नए गुनाहगार’, सन 1963 में ‘नीलम जासूस’ नामक पत्रिका में छपा था। सुरेंद्र मोहन पाठक के प्रसिद्ध उपन्यास असफल अभियान और खाली वार थे, जिन्होंने पाठक जी को प्रसिद्धि के सबसे ऊँचे शिखर पर पहुँचा दिया। इसके पश्‍चात उन्होंने अभी तक पीछे मुड़ कर नहीं देखा। उनका पैंसठ लाख की डकैती नामक उपन्यास अंग्रेज़ी में भी छपा और उसकी लाखों प्रतियाँ बिकने की ख़बर चर्चा में रही। उनकी अब तक 313 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। 

साहित्य विमर्श के संबंध में

देश भर में फैले 11 दोस्तों के साथ 2020 में शुरू हुई प्रकाशन संस्था, साहित्य विमर्श प्रकाशन ने अब तक करीब 75 किताबें प्रकाशित की हैं। स्थापित लेखकों के साथ-साथ नये लेखकों को मंच प्रदान करने वाली प्रकाशन संस्था, गंभीर और लोकप्रिय साहित्य के लिए समर्पित है। उपन्यासों के अलावा कहानी संकलन, बाल उपन्यास के साथ-साथ संस्था अब हिंदी के अलावा अंग्रेजी सहित अन्य भाषाओं में भी पठनीय और समृद्ध सामग्री प्रकाशित कर रही है।

संस्था से https://www.sahityavimarsh.in/contact-us/ पर संपर्क किया जा सकता है।


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