‘कालजयी’ उपन्यास ‘the नियोजित शिक्षक’

‘द नियोजित शिक्षक’ लेखक तत्सम्यक् मनु का दूसरा उपन्यास है। यह उपन्यास नायक के माध्यम से शिक्षकों विशेषकर नियोजित शिक्षकों के जीवन से जुड़े कई पहलुओं से पाठक को वाकिफ करवाता है। इस उपन्यास के ऊपर अर्चना कुमारी ने टिप्पणी लिखी है। अर्चना कुमारी कटिहार बिहार की रहने वाली हैं और विज्ञान की शिक्षिका हैं। आप भी यह टिप्पणी पढ़िये।

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'कालजयी' उपन्यास 'the नियोजित शिक्षक'

हालाँकि मैं विज्ञान शिक्षिका हूँ, परंतु हिंदी उपन्यास ‘the नियोजित शिक्षक’ पढ़ने से लगा कि प्रत्येक व्यक्ति का साहित्यिक रुचि से सरोकार रहना ही चाहिए। यह उपन्यास पढ़ने के लिए मैंने ‘विद्यालय’ से दो दिनों की छुट्टी ली थी और इस छुट्टी का सदुपयोग कर इसे मैंने पढ़ भी लिया।  शिक्षिका होने के बावजूद मैं शिक्षा जगत की कई बातों से अनभिज्ञ थी जिससे परिचय करवाकर उपन्यास ने मेरी आँखें खोल दी। इसलिए मैं उपन्यासकार श्री तत्सम्यक मनु को साधुवाद देना चाहूँगी। 

मैंने ‘the नियोजित शिक्षक’ पढ़कर यह महसूस किया कि अध्यापन कार्य के दौरान हमें बहुत सारी ऐसी घटनाओं से रूबरू होना पड़ता है, जिसे बता पाना मुश्किल होता है! लेकिन यह बातें यहाँ पर मौजूद हैं तो ऐसा लगता है जैसे हमारे ही जीवन को यहाँ पर उकेरा किया गया है। कैसे विद्यार्थियों द्वारा यदा-कदा ही हमारे साथ बुरा बर्ताव किया जाता है जिससे कि अब तक कमाई इज्जत दाँव पर लग जाती है? कैसे अभिभावक छात्रों की छात्रवृत्ति के पैसों से अपनी इच्छा की बीड़ी सुलगाते हैं? कैसे MDM के वक़्त पत्रकार पैसे खाने आ जाते हैं? कैसे पत्रकारों द्वारा शिक्षकों को धमकाया जाता है? कैसे बड़े से बड़े ऑफिसर भ्रष्टाचार फैलाते हुए ‘विद्यालय’ यानी शिक्षा के मंदिर को दूषित करते हैं…इत्यादि-इत्यादि?

जहाँ एक तरफ विद्यालय से जुड़े कई पहलुओं को इधर दर्शाया गया वहीं विद्यालय से इतर मौजूद मसलों को भी इधर जगह मिली है। उदाहरण के लिए प्रतियोगिता आदि में आखिर क्यों BPSC में सही कैंडिडेट पहुँच नहीं पाते हैं? आखिर क्यों लोग अपने बच्चों को शिक्षक बनाना नहीं चाहते हैं? आखिर क्यों मातृत्व अवकाश में 9-10 माह गर्भवती रहनेवाली महिला कर्मियों के हिस्से सिर्फ 6 माह अवकाश और पुरुष कर्मियों को बच्चों के देखभाल के लिए सिर्फ 15 दिनों की छुट्टी ही मिलती है? ऐसे ही कई सवाल यहाँ पर लेखक ने उठाए हैं। 

उपन्यास रोमांचक दुनिया में तो ले ही गया है, साथ-साथ प्रेम के स्वरूपों की सैर भी करा गया है।  उपन्यास में ऐतिहासिक जानकारी को लेकर यही कहना है कि आप जानेंगे ‘कोसी’ क्या है, तो वहीं उपन्यास पढ़कर ही मैं जान पायी कि कथा सम्राट प्रेमचंद ‘कवि’ भी थे।  मैं यह भी जान पायी कि बिहार नाम क्यों और कैसे हैं ? यही नहीं, ‘बिहार दिवस’ 22 मार्च को तो है ही नहीं!

ज्यों-ज्यों उपन्यास के पात्रों से यारी हुई, त्यों-त्यों कथानायक का चरित्र-चित्रण विस्मित करते चला गया। उपन्यासकार ने स्थानीय आँचलिक भाषा का बेजोड़ तरीके से इस्तेमाल किया है,  जिसे पढ़कर लगता है कि इस भाषा पर उनका ‘विशेषाधिकार’ प्राप्त हैं।  इस आँचलिक भाषा ‘अंगिका’ का लेखक ने हिंदी रूपान्तर भी प्रस्तुत किया है। 

ग्रामीण परिवेश का सुखद वर्णन लेखक द्वारा किया गया है, जिसे पढ़ते-पढ़ते ऐसा लगता है जैसे पाठक के तौर पर मैं भी ग्रामीण समाज में प्रवेश कर गयी हूँ।  उपन्यास को सटीकता प्रदान करने के लिए लेखक ने कई न्यूज़पेपर कटिंग्स का भी इस्तेमाल किया है। इसके अलावा उपन्यास में लेखक ने भाँति-भाँति के मुद्दे उठाए हैं, जिसे पढ़कर यही लगता है कि उपन्यास लेखन में काफी शोध हुआ है और यही शोधपरक जानकारी उपन्यास को ‘कालजयी’ बनाता है। 

उपन्यास खत्म होते-होते आँखों से आँसू बह ही जायेंगे और जबाँ पर यही सवाल रह जाएंगे कि काश ‘नियोजित शिक्षकों’ के दर्द को सभी सरकारें समझ पाती!

अर्चना कुमारी, कटिहार बिहार

किताब: the नियोजित शिक्षक | लेखक: तत्सम्यक् मनु | पुस्तक लिंक: अमेज़न | शॉपक्लूज

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