संस्करण विवरण
फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 64 | प्रकाशक: मनोज कॉमिक्स | शृंखला: हवलदार बहादुर
टीम
लेखक: विनय प्रभाकर | चित्र: बेदी
कहानी
काला सपेरा अपने साथियों चेचक और टेटक के साथ हिमालय की दुर्गम गुफाओं में पहुँच चुका था।
उसका वहां पहुँचने का केवल एक ही मकसद था। गुफाओं में मौजूद मायावी पंगानाथ को प्रसन्न करना और उससे कुछ शक्तियाँ प्राप्त करना।
क्या काला सपेरा का यह मकसद सफल हुआ?
वह मायावी शक्तियाँ क्यों पाना चाहता था?
मेरे विचार
‘इच्छाधारी हवलदार और पंगानाथ’ मनोज कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित हवलदार बहादुर का विशेषांक है। इसका लेखन विनय प्रभाकर द्वारा किया गया है और चित्रांकन बेदी का है।
भारतीय कॉमिक बुक की दुनिया में हवलदार बहादुर उन चुनिंदे हास्य किरदारों में से एक रहे हैं जिन्होंने अपने पाठकों के बीच अपनी एक खास जगह बनायी है। उनके डायलॉग ‘हवालात में सड़ा दूँगा’ पाठकों के बीच में काफी प्रसिद्ध रहा है। ऐसें में मेरी भी इच्छा रहती है कि गाहे बगाहे मैं भी हवलदार बहादुर की कहानियाँ पढ़ता रहा हूँ। इससे पूर्व कुछ कहानियाँ मैंने मार्च 2022 में (‘हवलदार बहादुर और नेपाली ठग’, ‘हवलदार बहादुर और कमिश्नर का कुत्ता’) पढ़ी थीं और अब दोबारा मामा जी से हवलदार बहादुर की कुछ कॉमिक बुक ले आया हूँ।
प्रस्तुत कॉमिक ‘इच्छाधारी हवलदार और पंगानाथ’ बुक की शुरुआत काला सपेरा के अपराधी से होती है जो कि अपने गुर्गों के साथ हिमालय की दुर्गम पहाड़ी में मौजूद पंगानाथ की गुफा में उनसे शक्ति हासिल करने पहुँचता है। शक्ति हासिल करने के पश्चात वह राजनगर जाकर क्या करते हैं और हवलदार इनसे कैसे भिड़ता है यही कॉमिक का कथानक बनता है।
अगर आप हवलदार बहादुर के कॉमिक पढ़ते आए हैं तो यह जानते होंगे कि उनका एक पैटर्न होता है। हवलदार जब किसी अपराधिक मामले से जुड़ जाते हैं तो फिर किसी न किसी तरह से तुक्के से इसे सुलझा भी लेते हैं। इस दौरान उनके साथ जो चीजें होती हैं वही हास्य पैदा करती है। इस कॉमिक में भी ऐसा ही होता है। उन्हें एक मामले से जोड़ने के लिए बुलाया तो जाता है लेकिन वो पहुँचते नहीं हैं। लेकिन फिर हालात ऐसे बनते हैं कि वह उस मामले से जुड़ ही जाते हैं। चूँकि अब हवलदार के बहादुर के पास इच्छाधारी शक्ति भी है तो वो कोई भी रूप धर लेते हैं। इस शक्ति की मदद से वह क्या क्या मुसीबतें झेलते हैं और कैसी कैसी खुरफाते करते हैं और आखिरकार अपराधी पर विजय पाते हैं यह कथानक का हिस्सा बनता है।
हवलदार के साथ होती हरकतें तो हास्य पैदा करती ही हैं साथ में काला सपेरा, जो इस कहानी का मुख्य विलेन है, और उसके साथ चेचक और टेटक भी हास्य पैदा करने में सफल होते हैं। फिर वह शुरुआत में पंगानाथ की गुफा में जाना हो या शक्ति पाना हो या बाद में राजनगर जाकर अपराध को अंजाम देना हो। इस सबके बीच में यह लोग भी कुछ न कुछ हरकतें ऐसी करते हैं जिससे चेहरे पर मुस्कान आ ही जाती है।
इधर यह साफ करना चाहूँगा कि ज्यादातर चीजें इधर वयस्क पाठकों को बचकानी लग सकती हैं लेकिन जिस उम्र के पाठकों के लिए यह लिखी गयी हैं उनके लिए मुझे लगता है यह ठीक हैं। ज्यादा दिमाग लगाने पर शायद इसका उतना अच्छे तरह से लुत्फ आप नहीं ले पाएँगे।
कॉमिक बुक के शीर्षक की बात करूँ तो मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगता है यह शीर्षक इस कॉमिक पर फिट नहीं बैठता है। कॉमिक का नाम ‘इच्छाधारी हवलदार और पंगानाथ’ है लेकिन इसका नाम ‘इच्छाधारी हवलदार और काला सपेरा’ होना चाहिए था। ऐसा इसलिए क्योंकि मुख्य रूप से जो भी पंगा होता है हवलदार बहादुर और काला सपेरा के बीच में ही होता है। पंगानाथ तो शुरुआत के कुछ पृष्ठों में ही मौजूद रहता है।
कॉमिक का आर्टवर्क बेदी जी का है और यह कथानक के साथ न्याय करता है। कॉमिक में चार स्प्लैश पेज हैं जो कि ठीक बने हुए हैं। आर्टवर्क फ़ैन्सी नहीं है लेकिन बुरा भी नहीं है।
कॉमिक एक बार पढ़ा जा सकता है।
यह भी पढ़ें
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- मनोज कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित ‘सारे जहाँ से ऊँचा’ पर पाठकीय टिप्पणी
- फिक्शन कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित ‘अमावस अनटोल्ड’ पर पाठकीय टिप्पणी
- फेनिल कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित ‘ब्लैक’ पर पाठकीय टिप्पणी
- तुलसी कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित ‘काँच के कातिल’ पर पाठकीय टिप्पणी
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (25-12-2022) को "अटल होते आज अगर" (चर्चा अंक-4630) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
चर्चा अंक में पोस्ट को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार।
हवलदार बहादुर के विषय में तो आपकी इस पोस्ट से ही जाना किन्तु लगभग चार दशक पूर्व इंद्रजाल कॉमिक्स से 'बहादुर' नामक नायक के साहसिक कारनामे प्रकाशित हुआ करते थे जो वेताल या फैंटम के कारनामों सरीखे ही होते थे. हिन्दी के कॉमिक प्रेमियों में बहादुर विदेशी नायकों से कम लोकप्रिय नहीं था. आपकी प्रत्येक पोस्ट ज्ञानवर्धक तथा पाठक-वर्ग हेतु अत्यंत उपयोगी होती है. यह पोस्ट भी अपवाद नहीं.
आपके लेखों से भी काफी कुछ सीखने को मिलता है, सर। उदाहरण के लिए बहादुर नाम के किरदार के विषय में मुझे कुछ ज्ञात ही नहीं था। उम्मीद है आप अपने पसंदीदा कॉमिक बुक किरदारों के विषय में कभी कुछ लिखेंगे। लेख आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा। आभार।