-संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 32 | प्रकाशक: मनोज कॉमिक्स | कहानी: विनय प्रभाकर | चित्रांकन: बेदी | श्रृंखला: हवलदार बाहदुर #10
कहानी:
भारत में जब एक नेपाली नागरिक कत्ल करके नेपाल भागा तो उसे पकड़ने केलिए खड़कसिंह और हवलदार बहादुर को नेपाल भेजा गया।
नेपाल पहुँचने पर खड़गसिंह और हवलदार बहादुर को वहाँ के पुलिस अधिकारी से पता चला कि नेपाल उन दिनों एक अलग मुसीबत से जूझ रहा था। वहाँ एक ठगों का गिरोह सक्रिय था जो कि जुएघर में पैसे जीतने वाले व्यक्ति को लूट लेता था। नेपाली पुलिस इस गिरोह का पता लगाना चाहते थे लेकिन अब तक वे कामयाब नहीं हुए थे।
क्या खड़गसिंह और हवलदार बहादुर अपने मिशन में कामयाब हो पाए?
क्या वे कातिल को पकड़ पाए?
नेपाल में हो रही ठगी के पीछे कौन सा गिरोह था?
क्या हवलदार बहादुर इस मामले में कुछ कर पाए?
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मेरे विचार:
वैसे तो हिन्दी कॉमिक बुक्स में मैंने ज्यादतर राज कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित कॉमिक्स ही पढ़ी हैं। बचपन की बात करूँ तो राज के किरदारों से इतर जो कॉमिक्स मैंने पढ़ी हैं उनमें जम्बू के कुछ, क्रूकबांड के इक्के दुक्के, सिकन्दर नाम के किरदार के कुछ और हवलदार बहादुर के कुछ कॉमिक बुक पढ़ने की धुंधली सी ही याद है। यह कॉमिक बुक्स भी मैंने रजनीश मामा के घर में दिल्ली आकर ही पढ़ी थीं। मुझे तो यह याद भी नहीं है कि मेरे कस्बे में राज कॉमिक्स से इतर कोई कॉमिक बुक्स आती भी थी। हाल ही में जब मनोज कॉमिक्स ने हवलदार बाहदुर के शुरूआती कॉमिक्स को पुनः प्रकाशित किया तो हवलदार बहादुर पढ़ने का ख्याल मन में आया। हवलदार बहादुर के विषय में मुझे बस यही याद था कि दिखने में ये बाँकेलाल जैसा ही है और उसी की तरह ये भी हास्य किरदार है। खैर, मन कर रहा था तो इस बार जब रजनीश मामा के घर गया तो उनसे पूछ लिया कि क्या उनके संग्रह में अभी भी हवलदार बहादुर के कुछ नगीने हैं। उन्होंने हामी भरी तो एक दो पढ़ने के लिए मैं ले आया।
हवलदार बहादुर जैसा कि नाम से जाहिर है पुलिस महकमे में एक हवलदार है। यह एक सीखड़ी से व्यक्तिव का स्वामी है जो कि अपनी हरकतों से कम बुद्धिमान नजर आता है लेकिन इसकी किस्मत इतनी अच्छी है कि गलतियाँ करते हुए जाने अनजाने में यह काफी बड़े मामले सुलझा देता है। उसकी यही गलतियाँ हास्य पैदा करती हैं और कहानी को मनोरंजक बनाती है।
प्रस्तुत कॉमिक बुक में भी ऐसा ही एक मामला देखने को मिलता है। सर्दियों में नाईट ड्यूटी करते हुए हवलदार बहादुर एक मुजरिम को देख लेता है जिसके पीछे उन्हें नेपाल पहुँचना पड़ता है। नेपाल में उसकी बेवकूफियों से परेशान होकर उसका अफसर खड़गसिंह उसे तफरी करने का आदेश देता है जहाँ वह एक ऐसा मामला सुलझा देता है जिसने नेपाल पुलिस की नाक में दम किया रहता है। इस पूरे घटनाक्रम के दौरान हवलदार बहादुर की बेवकूफियाँ पाठकों को हँसाने का कार्य करती हैं। फिर वह नाईट ड्यूटी के दौरान हुई घटनाएं हों या फिर हवलदार की पहली उड़ान के दौरान हुई घटनाएं या फिर नेपाल में पहुँचने के बाद हवलदार की हरकतें। यह सब घटनाएं भरपूर हास्य पैदा करती हैं। यह हास्य घटनाएं ही हैं जो कि कहानी को पठनीय भी बनाती है। अगर इन्हें हटाकर कहानी देखे तो यह एक कमजोर कहानी कही जाएगी।
हवलदार बहादुर का किरदार मुझे पसंद आया। इसे आम पुलिसियों जैसे बनाया गया है। यह हमेशा अकड़ में रहता है और भाषा भी वैसे ही इस्तेमाल करता है। हाँ, इसका मजाकिया अंदाज आपको गुदगुदाता है। हवलदार बहादुर के अपने अफसर और अपनी पत्नी के साथ के समीकरण देखना भी रोचक रहता है।
कॉमिक बुक में आर्टवर्क बेदी जी का है जो कि ठीक है। वह चेहरे के भाव बनाने में माहिर हैं और अगर पाठक गौर करें तो हवलदार बहादुर के चेहरे के भाव देखकर भी हँसी छूट जाती है।
अंत, में यही कहूँगा कि अगर आप हास्य के लिए कॉमिक्स पढ़ते हैं तो यह कॉमिक बुक एक बार पढ़ा जा सकता है। हवलदार बहादुर के अन्य कॉमिक बुक भी पढ़ने की मेरी कोशिश रहेगी। उम्मीद है उसमें थोड़ा जासूसी भी देखने को मिलेगी जो कि यहाँ नदारद थी।
हाल ही में हवलदार बहादुर के पहले चार कॉमिक बुक्स मनोज कॉमिक्स ने पुनः प्रकाशित किये हैं। आप इन्हें निम्न लिंक पर जाकर खरीद सकते हैं:
पेपरबैक | संग्राहक संस्करण
© विकास नैनवाल ‘अंजान’
बहुत सुन्दर।
शिव त्रयोदशी की बहुत-बहुत बधाई हो।
जी आभार….आपको भी बधाई….