ये दो कॉमिक्स थे कलियुग का धर्मराज, जो कि क्रुकबांड का कॉमिक है और खिलाड़ी जो कि इंद्र का कॉमिक है।
इंद्र के मैंने इससे पहले कोई कॉमिक नहीं पढ़े थे। इस पोस्ट में मैं इन्ही दोनों कॉमिक्स की बात करूँगा।
कलियुग का धर्मराज, खिलाड़ी |
कलियुग का धर्मराज
कॉमिक 26th जुलाई 2019 को पढ़ा गया
संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 64 (कलियुग का धर्मराज और मौत का फरिश्ता का संयुक्त संस्करण) | प्रकाशक: मनोज कॉमिक्स | लेखक: विमल चटर्जी : श्रृंखला: क्रूकबांड
कहानी
क्रुकबांड और मोटू एक दिन शहर से बाहर चित्तोड़ की तरफ किसी केस के सिलसिले में जा रहे थे जब उनकी नज़र वीरान इलाके में मौजूद गिद्धों और कुत्तों पर पड़ी। जनवरों का जमघट उधर देखकर उनका माथा ठनका और फिर जब एक कुत्ते को एक इनसानी हाथ ले जाते उन्होंने देखा तो उन्हें बीच में कूदना ही पड़ा।
पुलिस बुलाई गयी और लाश की जेब से मिली चिट्टी से पता चला कि लाश एक मशहूर गुंडे कल्लू दादा की थी और किसी कलियुग के धर्मराज ने उसे मौत की सजा दी थी।
इसके बाद तो श्यामनगर में लाशों का सिलसिला चल पड़ा। फिर चाहे वो शहर के नामी गुंडे हों या सफेदपोश बेईमान किसी को भी नहीं बक्शा जा रहा था। कईयों को मार दिया गया था और छोटे अपराधियों को अपंग बनाया जा रहा था। जहाँ आम जनता इससे खुश थी वहीं अपराधियों की डर के मारे घिग्घी बंधी हुई थी।
आखिर कौन था ये कलियुग का धर्मराज?
क्यों वो हत्याएं कर रहा था?
इन हत्याओं के पीछे उसका क्या मकसद था?
जब पुलिस इन सवालों का जवाब देने में असफल रही तो श्याम नगर के इंस्पेक्टर पटाकासिंह ने क्रुक बांड को इस काम पर लगाया। वहीं शहर के नामी गिरामी जरायमपेशा के लोगों ने भी क्रुकबांड के ऑफिस में आकर उसे अपना केस सौंपा।
क्या क्रुकबांड कलियुग के धर्मराज का पता लगा पाया? अगर हाँ, तो उसने इस काम को अंजाम कैसे दिया?
मेरे विचार
बहुत सालों बाद मैंने क्रुक बांड का कोई कॉमिक पढ़ा। इससे पहले शायद तब ही पढ़ा था जब मैं सातवी या आठवी में रहा होऊंगा और मामा के घर सर्दियों की छुट्टियों में आया करता था।
इतने सालों बाद इस कॉमिक को पढने का अनुभव अलग ही था। क्रुकबांड के विषय में अगर आप नहीं जानते हैं तो उसका संक्षिप्त परिचय यह है कि वह इंस्पेक्टर धमाकासिंह का बेटा है। श्याम नगर में रहकर वो अपनी एक जासूसी संस्था चलाता है। उसके साथ उसकी मदद उसका ममेरा भाई मोटू करता है। क्रुकबांड जवान है और इस कारण उसके और मोटू के बीच में जबानी चुहुलबाजी होती रहती है जो कि कॉमिक्स में हास्य उत्पन्न करती हैं। इसका अलावा उनका एक पालतू कुत्ता मौजिला भी है जो उनके काफी काम आता है।
वैसे तो कलियुग का धर्मराज दो कॉमिक्स में प्रकाशित हुई थी। इसका पहला भाग कलियुग का धर्मराज था और दूसरा भाग मौत का फरिश्ता था परन्तु मेरे पास जो संस्करण है उसमें दोनों भाग एक साथ प्रकाशित हैं तो मैं उनके विषय में एक ही साथ ही लिख रहा हूँ।
कॉमिक मुझे अच्छा लगा। कॉमिक की शुरुआती हिस्से में यह जानने की इच्छा बनी रहती है कि आखिर इन हत्याओं के पीछे कौन है और वो यह काम क्यों कर रहा है? इन्ही बातों को जानने के लिए पाठक कहानी पढ़ता चला जाता है। मौत के फरिश्ते तक पहुँचकर हमे केवल धर्मराज का खौफ कितना फैल गया है यही ज्ञात होता है। वहीं कलियुग के धर्मराज के अंत में पटाका सिंह आखिरकार क्रुक बांड और मोटू को अपनी मदद करने के लिए बुला ही लेता है। कॉमिक्स रोमांचक है और रोमांच अंत तक बना रहता है। वहीं क्रुकबांड और मोटू के आपसी संवाद हँसाते भी हैं। इन दोनों के अलावा भी कहानी में कई ऐसी जगह हैं जहाँ आपकी हँसी अपने आप निकल जायेगी।
मौत का फरिश्ता इस कहानी का दूसरा एवम अंतिम भाग है। क्रुकबांड धर्मराज को पकड़ने के लिए क्या चाल चलता है? धर्मराज कौन है और वो ये काम क्यों कर रहा है? ये बातें इस कॉमिक्स में उजागर होती हैं।
इस पार्ट में कुछ बातें ऐसी थीं जो मुझे कम पसंद आयीं। जैसे क्रुकबांड धर्मराज तक पहुँचने का जो तरीका सोचता है वो मुझे बचकाना लगा। इससे पहले कॉमिक्स की विषय वस्तु ऐसी थी कि यह कॉमिक परिपक्व पाठकों के लिए भी हो सकता था। जिस वीभत्स तरीके से धर्मराज अपना काम करता है उससे यह एक परिपक्व पाठकों को ही दिया जाना चाहिए था। इस कारण क्रुक बांड के तरीके को देखकर मुझे थोड़ा निराशा हुई। उसमें जासूसी जैसा कुछ नहीं था। अगर क्रुकबांड को थोड़ा जासूसी करते दिखाया जाता तो मज़ा आता।
वहीं धर्मराज ने उस तरीके पर जैसी प्रतिक्रिया दी वो भी मेरी समझ से परे थी। मैं उसकी जगह होता और मेरा मकसद उसके मकसद जैसे होता तो मैं प्रतिक्रिया ही नहीं देता। लेकिन शायद कॉमिक्स खत्म करने की जल्दी थी और इस कारण ये रास्ता चुना गया।
वहीं कहानी का अंत भी मुझे पसंद नहीं आया। धर्मराज के साथ जो हुआ उससे बेहतर अंत लिखा जा सकता था। यहाँ मैं ये कहना चाहूँगा कि मुझे पता है वो अंत क्यों दर्शाया गया। अपराधी को सजा मिलती है यह सीख देने के लिए वो अंत दर्शाया गया लेकिन उसे बेहतर तरीके से किया जा सकता था।
इन सब बातों के अलावा मैं यह कहना चाहूँगा कि कॉमिक्स का लेखन का स्तर मुझे पसंद आया है। नये नये शब्द पढ़ने को मिलते हैं। विमल चटर्जी शायद उपन्यास भी लिखते थे तो वह झलक इधर दिखती है। उनके लिखे दूसरी कॉमिक्स व उपन्यास मैं पढ़ना चाहूँगा।
इस कॉमिक्स के विषय में अंत में यही कहूँगा कि कॉमिक्स पठनीय है, क्रुकबांड और मोटू के बीच की बातें हँसाती हैं लेकिन अंत पर और काम करके उसके और निखारा जा सकता था, उसे बेहतर बनाया जा सकता था।
रेटिंग : 3/5
खिलाड़ी
कॉमिक 27 जुलाई को पढ़ा गया
संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: | प्रकाशक: मनोज कॉमिक्स | लेखक: महेंद्र संदीप | सम्पादक: सावन गुप्ता
कहानी:
अघोरी का दक्षिण भारतीय अंडरवर्ल्ड पर एकछत्र राज था। इसलिए एक अंडरवर्ल्ड के बादशाह का मुंबई की बस्ती में होना किसी को भी आश्चर्य चकित करने के लिए काफी था।
अघोरी मुंबई की उस बस्ती वालों के लिए एक सौदा लेकर आया था। वह उन्हें पाँच करोड़ रूपये देना चाहता था और बदले में उन्हें केवल एक छोटा सा काम करना था। उन्हें भारत के लाडले फौलाद के बेटे इंद्र को बुलाना था।
बस्ती वालों के लिए पाँच करोड़ की रकम काफी बड़ी थी और इसलिए वो इंद्र को बुलाने के लिए तैयार हो गये।
आखिर अंडरवर्ल्ड के बादशाह को इंद्र से क्या काम पड़ा था?
बस्ती वाले किस तरह इंद्र को बुलाने वाले थे?
आखिर कौन सा खेल खेला जा रहा था जिसमें इंद्र को मोहरा बनाया जा रहा था? इस खेल का अंजाम क्या हुआ?
ऐसे कई प्रश्नों का उत्तर आपको इस कॉमिक को पढ़कर मिलेगा।
दूसरे कॉमिक्स के प्रति मेरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
कॉमिक्स
©विकास नैनवाल ‘अंजान’