संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: ई-बुक | पृष्ठ संख्या: 84 | प्रकाशक: नीलम जासूस कार्यालय | शृंखला: चक्रम
कहानी
दिल्ली से दार्जिलिंग हनीमून मनाने आए सुधा और कमलकांत कहाँ जानते थे कि ऐसी विपदा इस प्रदेश में उन पर आन पड़ेगी।
माया सुधा के मायके में उसकी पड़ोसी थी और कमलकांत की सहपाठिनी थी। वह जब उन्हें इस अंजान जगह पर मिलीं तो उनका खुश होना लाजमी था। उनके दिन खुशी से बीत रहे थे। सुबह शाम सुधा और कमलकांत घूमते और रात का भोजन माया के साथ करते।
पर अब माया का किसी ने कत्ल कर दिया था और पुलिस ने इसके इल्जाम में कमलकांत को पकड़ लिया था।
सुधा को जब पता चला कि प्रसिद्ध प्राइवेट जासूस चक्रम भी उन्हीं के होटल में ठहरा हुआ है तो उसने उनसे मदद माँगने की ठानी।
क्या चक्रम ने उनकी मदद की?
माया का कत्ल किसने किया था?
क्या सुधा का अपने पति के ऊपर विश्वास सही था या वो केवल एक पत्नी की आस्था ही थी?
मुख्य किरदार
माया – एक महिला जिसका डार्जलिंग के होटल में कत्ल हो गया था
कमलकांत – दिल्ली से आया शख्स जो अपनी पत्नी के साथ हनीमून मनाने दार्जलिंग आया था
सुधा – कमलकांत की पत्नी
योगेंद्र – माया का पति
चक्रम – एक प्राइवेट जासूस
हवाबाज – चक्रम का वफादार कुत्ता
खड़गसिंह – नेपाली बेयरा
दिलीप बरुआ – पुलिस जांच एक्सपर्ट
पटनायक – पुलिस इंस्पेक्टर और दिलीप का मातहत
निताई – एक बेयरा जो की माया का ध्यान रखता था
हरिभजन सिंह – दिल्ली पुलिस में इंचार्ज
बदलू – दिल्ली में रहने वाला एक अधेड़
खैरातीलाल – बदलू के पड़ोसी का ड्राइवर
खोकाराय घोषाल – जानवरों का डॉक्टर
मेरे विचार
‘एक तीर दो शिकार’ ( Ek Teer Do Shikaar) जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा (Om Prakash Sharma) का नीलम जासूस (Neelam Jasoos Karyalay) द्वारा प्रकाशित चक्रम शृंखला (Chakram Series) का उपन्यास है। चक्रम (Chakram) एक प्राइवेट जासूस है जो कि अपने कुत्ते हवाबाज (Hawabaaz) के साथ मिलकर वह केस सुलझाता है जो कि उसके पास आते हैं।
प्रस्तुत उपन्यास यानी ‘एक तीर दो शिकार’ ( Ek Teer Do Shikaar) में भी ऐसा ही होता है। दार्जिलिंग घूमने आई सुधा जब अपने पति की बेगुनाही साबित करने के लिए चक्रम के पास आती है तो वह यह केस लेना स्वीकार कर लेता है। इसके बाद वह किस तरह केस सुलझाता है यह कथानक बनता है।
रहस्य के लिहाज से देखा जाए तो उपन्यास में मौजूद रहस्य इतना जटिल नहीं है। कथानक में ज्यादा घुमाव भी नहीं हैं। उपन्यास पढ़ते हुए आपको इतना अंदाजा तो हो जाता है कि कातिल कौन होगा। कातिल निकलता भी वही है। बस देखना ये रहता है कि चक्रम कैसे कातिल तक पहुँचता है और क्या सबूत उसके खिलाफ जुटाता है।
उपन्यास में तहकीकात के पहलू की बात करें तो कई चीजें चक्रम पाठक की नज़रों के सामने करता है और कई चीजें पाठक के नज़रों में आए बिना करता है। ये नज़रों में आए बिना वाली चीजें बाद में खुलती हैं तो कहानी का एक सप्राइज़ एलीमेंट बनती हैं।
उपन्यास की कमी की बात करूँ तो एक बिंदु मुझे थोड़ा सा खटका था। उपन्यास के अंत में चक्रम कहते हैं कि उनका कुत्ता कातिल को पहचान गया था। जिस किरदार के विषय में वो यह कह रहे होते हैं और जिस समय की बात वो कर रहे होते हैं उस समय का जो दृश्य लेखक ने पहले खींचा रहता है उसमें कुत्ते की कोई विशेष प्रतिक्रिया होती नहीं दिखती है। जबकि वह कुत्ता कुछ समय पहले एक पुलिस वाले के पास जाकर गुर्राया होता है क्योंकि वह लाश के पास कुछ समय पहले मौजूद रहा होता है। अब हो सकता है चक्रम ने उसे इशारे से कुछ करने के लिए मना किया हो लेकिन ऐसा भी दिखता नहीं है।
उपन्यास में किरदारों की बात करें तो चक्रम उपन्यास के केंद्र में है। वह एक रूखे स्वभाव वाला अधेड़ व्यक्ति है जो कि सामने वाले से कठोर और कड़े लहजे में ही बात करना पसंद करता है। लेकिन चूँकि वह एक तेज तरार जासूस है जिसने कई मामले सुलझाकर अपना नाम कमाया है तो पुलिस से लेकर उसके ग्राहक भी उसके इस रूखे व्यवहार को नजरअंदाज कर देते हैं। कई बार उपन्यास पढ़ते हुए यह भी लगता है कि यह रूखापन उसने ओढा हुआ है।
“हाँ, तुमने वैसा नहीं कहा। मैं जानता हूँ कि तुम समझदार हो। लेकिन तुम्हें वहाँ पहुँचने से पहले वादा करना होगा कि तुम कोई अशोभनीय व्यवहार नहीं करोगे।”-“निश्चय ही नहीं करूँगा। आप शायद नहीं जानते मिस्टर चक्रम कि मैं _____ से कितना प्यार करता हूँ।”अपनी गंभीरता समाप्त करके चक्रम अपने वास्तविक रूप में आ गए – “यह प्रेम पुराण मुझे सुनाने की जरूरत नहीं। प्रेम और विवाह… मेरी नजर मेंण इं चीजों से बड़ी बकवास दुनिया में ढूँढने से नहीं मिलेगी। मैंने जो कुछ तुमसे कहा वो इसलिए नहीं कि मुझे सब बकवासों में यकीन है। मैंने यह सब इसलिए कहा है कि मैंने फीस ली है और ऊँट की करवट की थोड़ी सी मेरी भी जिम्मेदारी है।”– “आप दिलचस्प आदमी हैं। “– “मैं दिलचस्प आदमियों को लानत के काबिल समझता हूँ, मेरा दिलचस्पी से मामी फूफी का भी रिश्ता नहीं है।” (पृष्ठ 76)
चक्रम के इस रूखे व्यवहार के पीछे क्या कारण है और वह ऐसा क्यों है यह मैं जरूर जानना चाहूँगा। अगर किसी उपन्यास में इसका कारण दिया हो और आपको उस उपन्यास के विषय में पता हो तो मुझे जरूर बताइएगा।
उपन्यास में चक्रम के अतिरिक्त उसके पालतू कुत्ते हवाबाज की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। ज्यादातर काम के सबूत वही तलाश करता है। इसके अतिरिक्त भी उपन्यास में वह कई महत्वपूर्ण कार्य करता है। उसकी समझदारी देखकर बरबस ही चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।
मैं यह भी जानना चाहूँगा कि हवाबाज चक्रम के पास कैसे आया? अगर किसी उपन्यास में इसका जिक्र हो और आपको उस विषय में पता हो तो मुझे जरूर बताइएगा।
उपन्यास के बाकी किरदार जैसे सुधा, कमलकांत और योगेंद्र कथानक के अनुरूप हैं। कई बार जो व्यक्ति जैसा होता है वैसा दिखता नहीं है। ऐसे में अगर कोई आँख मूँद कर उस पर विश्वास कर ले तो उसके साथ क्या होता है यह भी उपन्यास से समझा जा सकता है। वहीं कई बार कई ऐसे लोग जो ज्यादा समझदार नहीं होते हैं वह खुद को अधिक समझदार समझ लेते हैं। ऐसे लोगों को धूर्त लोग कैसे अपना शिकार बनाते हैं और कैसे उनका उपयोग करते हैं यह भी इधर दिखता है।
जनप्रिय लेखक के उपन्यासों में हास्य भी उपन्यास का एक अभिन्न अंग होता है। प्रस्तुत उपन्यास में डॉक्टर खोकाराय घोषाल और उनसे जुड़े प्रसंग यह कार्य करते हैं। इसके अतिरिक्त कई बार हवाबाज की हरकतें और चक्रम की हरकतें भी हास्य पैदा करती हैं।
उपन्यास वैसे तो एक अपराध कथा है लेकिन इसमें एक प्रसंग आता है जिसमें माया की भलमनसाहत लेखक ने दर्शाई है। वह प्रसंग काफी सुंदर बन पड़ा है। व्यक्ति को इतना ही संवेदनशील होना चाहिए। अगर आप समर्थ हैं तो आपकी यह संवेदनशीलता और महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि आप फिर कई लोगों की मदद भी कर सकते हैं।
अंत में यही कहूँगा कि यह एक पठनीय उपन्यास है जो कि चक्रम और हवाबाज के लिए पढ़ा जाना चाहिए। यह दोनों रोचक किरदार हैं जो कि पाठक का मनोरंजन करते हैं। अगर आप एक घुमावदार रहस्यकथा की तलाश में हैं तो शायद इससे निराश हों लेकिन अगर रोचक किरदारों से सजा उपन्यास पढ़ना चाहते हैं तो निराश नहीं होंगे।
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (23-07-2023) को "आशाओं के द्वार" (चर्चा अंक-4673) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
चर्चा अंक में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु हार्दिक आभार।