संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: ई बुक | प्रकाशक: डेलीहंट | पहला प्रकाशन: 1981 | श्रृंखला : विकास गुप्ता #1
धोखाधड़ी – सुरेन्द्र मोहन पाठक |
पहला वाक्य:
वह शुक्रवार का दिन था।
विशालगढ़ एक ऐसा क़स्बा था जहाँ हर कोई एक दूसरे को जानता था। यह एक छोटा शहर था जो कि बख्तावर सिंह की मुट्ठी में बताया जाता था। हर अपराधी को उसकी शह थी और पुलिस वाले उसके द्वार पर सलाम बजाते थे। कहते थे जो बख्तावर के क़ानून को नहीं मानता था उसका विशालगढ़ में साँसे लेना नामुमकिन था।
विकास गुप्ता ने विशालगढ़ में जब कदम रखा था तो उसके जेहन में एक योजना का खाका खिंचा हुआ था। वह एक नामी गिरामी ठग था और अब विशालगढ़ उसकी कार्यस्थली होने वाली थी।
लेकिन फिर जिस व्यक्ति को उसका मूँडने का इरादा था उसका कत्ल हो गया। और कत्ल का इल्जाम विकास गुप्ता के ऊपर आया।
फिर कुछ ऐसी घटनाएं हुई कि विशालगढ़ की पुलिस तो विकास के पीछे पड़ी ही लेकिन उधर का बाहुबली बख्तावर सिंह भी उसके जान के पीछे पड़ गया।
अब विकास की गत इसी में थी कि वो असल कातिल का पता लगाये। और यह सब काम उसे छुप कर करना था।
वरना उसका मरना तय था। या तो क़ानून के हाथों वो फाँसी चढ़ता या बख्तावर सिंह के हाथों उसका टेंटुआ दब जाता।
मुख्य किरदार:
विकास गुप्ता – एक नामी गिरामी ठग
योगिता – होटल रिवर व्यू की रिसेप्शनिस्ट
प्रीतम सिंह – अशोका प्रॉपर्टी डीलर्स
मनोहर उर्फ़ जे एन एस चौहान- एक और ठग
जगतपाल – एक उच्चका
कुमारी गिरजा माथुर – एजरा स्ट्रीट में मौजूद एक सेल्फ सर्विस स्टोर की मालकिन
राजनारायण – एजरा स्त्रीट में मौजूद एक ज्वेलरी स्टोर का मालिक
शबनम उर्फ़ मिसेज पूर्णिमा सरीन – मनोहर की साथी ठग
दीवान पुरुषोत्तम दास – विशालगढ़ में मौजूद एक वकील
प्रकाशदेव महाजन – विशालगढ़ का एक कार डीलर
सुनयना – प्रकाशदेव की पत्नी
जी एन मेहतानी : विशालगढ़ का एक कार डीलर
स्वरुप दत्त – नेशनल बैंक का मेनेजर
बख्तावर सिंह – विशाल गढ़ में मौजूद एक बाहुबली
अमीरी लाल – बख्तावर सिंह का दायाँ हाथ
हनुमान और जनक – ब्ख्त्वार सिंह के गुर्गे
मुझे सुरेन्द्र मोहन पाठक जी का उपन्यास पढ़े काफी वक्त हो गया था। दिसम्बर की शुरुआत में बिचौलिया पढ़ा था जो कि सुनील श्रृंखला का उपन्यास था। मेरा काफी दिनों से पाठक साहब का उपन्यास पढ़ने का मन था और इसलिए अब जनवरी के इस आखिरी हफ्ते में यह उपन्यास शुरू किया।
धोखाधड़ी विकास गुप्ता श्रृंखला का पहला उपन्यास है। विकास गुप्ता एक जाना माना ठग है। उसे ठगी के मामले में कई बार गिरफ्तार तो किया गया है लेकिन सबूत न मिलने के कारण वो हमेशा से ही छूट जाता है। वह शक्ल सूरत से एक खूबसूरत व्यक्ति है जो कि एक अमीर घर का वारिस लगता है। युवतियाँ उसकी शक्ल सूरत पर आसानी से फ़िदा हो जाती हैं। और वो अपनी ठगी के लिए अपनी शक्ल सूरत और अपने इस करिज्मा को बखूबी इस्तेमाल करना जानता है।
उपन्यास के कथानक की बात करूं तो उपन्यास शुरुआत से लेकर आखिर तक रोचक है। शुरुआत में विकास किस फिराक में विशालगढ़ आया है यह जानने के लिए पाठक उपन्यास पढ़ता जाता है। उपन्यास में विकास के अलावा मनोहर और शबनम नाम के दो ठग भी हैं और साथ साथ उनकी ठगी के कारनामे भी देखने को मिलते हैं। ये सब कारनामें काफी रोचक हैं और पाठक का मनोरंजन करते हैं। मनोहर के ठगी के एक दो किस्से, जो अक्सर बार में होते हैं, मुझे विशेष रूप से इतने मजेदार लगे कि पढने का आनन्द आ गया। उपन्यास में जब विकास गुप्ता कत्ल के चक्कर में फँसता है तो रोमांच बढ़ जाता है। किस तरह उसकी जान साँसत में फंसती है? किस तरह वो अपनी जान बचाता है और इसके लिए उसे क्या क्या करना होता? यह सब पढ़ना पाठक को रोमांच से भर देता है। उपन्यास के संवाद चुटीले हैं और मनोरंजक हैं।
उपन्यास के कथानक की कमी की बात करूँ तो उपन्यास में प्रूफ की काफी गलतियाँ हैं। क्योंकि यह ई बुक है तो इसमें सुधार होना चाहिए।
विकास गुप्ता एक ठग है। पुलिस की कार्यप्रणाली से वाकिफ है। वो जनता है बन्दूक से मिलान करके ये बताया जा सकता है कि उससे निकली गोली से कत्ल हुआ है या नहीं। यह बात जो व्यक्ति जानता है उसे यह भी पता होना चाहिए कि बंदूक से फिंगर प्रिंट भी उठाये जा सकते हैं। उसे इस बात का ध्यान भी रखना चाहिए कि गन में मौजूद पहले के फिंगर प्रिंट वैसे ही रहे लेकिन वो ऐसा नहीं करता है। यह मुझे अटपटा लगा। वो जो प्रयोग करना चाहता था वो इस तरह कर सकता था कि फिंगर प्रिंट डिस्टर्ब न हो और उसका काम भी हो जाये। जब उसने ऐसा नहीं किया और नंगे हाथों से गन को हैंडल किया तो मुझे थोड़ा अटपटा लगा।
इसके अलावा उपन्यास में कातिल के विषय में मुझे शक तो हो गया था। हाँ,आखिर में लेखक कातिल का शक दूसरे पर डालने की सफल कोशिश करता है और मैं थोड़े देर के लिए मान गया था कि मेरे से शुरुआत में गलती हुई है। पर आखिर में जब कातिल वही निकला जिस पर शक था तो मुझे इतना बुरा नहीं लगा। क्योकि झांसे में मैं एक बार आ गया था। अंत में उन्होंने जिस तरह कथानक घुमाया है उसके लिए लेखक की तारीफ बनती है।
उपन्यास के बाकि किरदारों की बात करूँ तो शबनम, मनोहर के किरदार रोचक हैं । योगिता का किरदार मुझे पसंद आया। उपन्यास में ज्यादातर वह मासूम ही लगती है।आखिर तक भी उसकी मासूमियत में बदलाव नहीं आता है। उसके साथ जो हुआ मुझे एक बार को समझ नहीं आया।ऐसा लगा कि कथानक में फिट करने के लिए वो कार्य उससे करवाया गया है। विकास के इन दोनों युवतियों से केमिस्ट्री अच्छी है और उपन्यास में रोचकता लाती हैं। उपन्यास में एक युवती सुनयना भी है। वह एक ऐसी औरत का स्टीरियोटाइप है जिसने पैसे के लिए अमीर आदमी से शादी की और अब अपनी शारीरिक जरूरतों के लिए यहाँ वहाँ आती जाती रहती है। फिल्मो में ऐसी महिलाओं का काफी उपयोग होता रहा है। यह कथानक भी 81 में लिखा गया था तो मैं समझ सकता हूँ।
उपन्यास के बाकी किरदार उपन्यास के कथानक के हिसाब से रचे गये हैं। बख्तावर सिंह से ज्यादा खतरनाक अमीरीलाल है। उपन्यास में एक्शन सीन्स भी हैं जो कि तगड़े हैं।
पाठक साहब जिन यथार्थवादी किरदारों के लिए जाने जाते हैं वैसे ही सब किरदार हैं। हाँ, ठग असल में बुरे होते हैं लेकिन इन ठगों के विषय में पढ़कर ऐसा नहीं लगता है। ये ठग ऐसे हैं जो सीधे आदमी को नहीं बल्कि टेढ़े आदमी को चूना लगाते हैं। विकास एक बार कहता भी है कि कई ठग ऐसे हैं जो किसी को भी चूना लगा सकते हैं और वो उनमें से नहीं है। इसलिए विकास रात को चैन से सो सकता है। शायद हर अपराधी ऐसे ही खुद को दिलासा देता है।
अंत में यही कहूँगा कि विकास गुप्ता का यह कारनामा मुझे बहुत पसंद आया। इसने शुरुआत से लेकर अंत तक मेरा भरपूर मनोरंजन किया।
मैं विकास गुप्ता श्रृंखला के दूसरे उपन्यासों को जरूर पढ़ना चाहूँगा। और उम्मीद करता हूँ उसमें मनोहर और शबनम भी होंगे।
अगर आपने इस उपन्यास को पढ़ा है तो आपको यह कैसा लगा? अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करवाईयेगा।
मेरी रेटिंग: 4.5/5
अगर आपने इस उपन्यास को नहीं पढ़ा है तो आप डेली हंट में इसको पढ़ सकते हैं। इसके लिए आपको डेली हंट एप्प अपने फोन पर डाउनलोड करना पड़ेगा।
एप्प निम्न लिंक पर मिल जायेगा:
एप्प का लिंक
सुरेन्द्र मोहन पाठक
हिन्दी पल्प के दूसरे उपन्यास आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
इसका प्रथम संस्करण 81 में और बाद में दो रीप्रिंट क्रमशः 87 और 96 में आये थे और उस कमाल कथानक का कमाल रिव्यु इसके आखरी रीप्रिंट के छपने के 23 साल बाद पढ़ना कितना मजेदार एहसास है मेरे लिए बता नहीं सकता बढ़िया रिव्यु बधाई विकास भाई, मनोहर लाल का व्हिस्की के लिए छोटी छोटी शर्तें लगाना विकास और शबनम का लव एंगल और छोटी-मोटी ठगी से कथानक का अचानक से मर्डर मिस्ट्री में तब्दील होना और उस मिस्ट्री को एक ametuar ठग अपनी लव फ्लेम(शबनम) और ठग शिरोमणि मनोहरलाल की मदद से कैसे सॉल्व करता ये सभी तेज़रफ़्तार और रोचक घटनाक्रम इस कथानक के
U S P का दर्जा रखते है, और इस नावेल के बारे में और क्या कहा जाए,इसके तीन रीप्रिंट ही इस नावेल की सफलता की कहानी खुद ही बयां कर रहे।����
आप सही कह रहे हैं। उपन्यास शुरू से लेकर अंत तक रोचकता लिए हुए है। मेरा मानना है कि अभी भी इसे पुनः प्रकाशित किया जाये तो यह अभी भी धूम मचायेगा।
पाठक साहब के बेहतरीन उपन्यासों में से एक।
उतनी ही शानदार रोचक समीक्षा,पढकर मजा आ गया।
जी सही कहा। उपन्यास रोमांच से लबरेज था। उपन्यास के ऊपर यह लेख आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा। हार्दिक आभार।
अच्छी समीक्षा है | नॉवेल की तारीफ सुन रखी है फ़िलहाल ढूँढ रहा हूँ|
जी यह उपन्यास मुझे भी पसंद आया था। अगर मिले तो जरूर पढ़ियेगा।