चुड़ैलों की घाटी – देवेन्द्र प्रसाद

उपन्यासिका 27 अप्रैल को पढ़ी गई 

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक
पृष्ठ संख्या: 50
प्रकाशन: फ्लाई ड्रीम्स पब्लिकेशन

चुड़ैलों की घाटी -  देवेन्द्र प्रसाद
चुड़ैलों की घाटी –  देवेन्द्र प्रसाद

पहला वाक्य:
मेरा मोबाइल काफी देर से घनघना रहा था।

विकास और देव सप्ताहांत में कुछ रोमांचक करना चाहते थे। कई दिनों से वह कहीं गये नहीं थे और अपने रोज मर्रा के जीवन से उकता से गये थे। इस कारण उन्होंने उत्तराखंड में मसूरी के निकट परीटिब्बा और जॉर्ज एवेरेस्ट नाम की जगह जाने की योजना बनाई थी।

आम सी ज़िन्दगी जीने वाले इन युवाओं के लिए यह यात्रा शहरी भाग दौड़ से इतर इनके जीवन में कुछ रोमांच पैदा करने का एक जरिया बनने वाली थी।

पर दोनों ही कहाँ जानते थे कि इस यात्रा में उन्हें कुछ ऐसे अनुभव होंगे जिनके चलते वो फिर कभी किसी यात्रा पर  निकलने से पहले दो तीन बार सोचेंगे।


आखिर क्या हुआ था दोनों के साथ?

मुख्य किरदार :
देव: कथा वाचक और देहरादून में रहने वाला एक व्यक्ति
विकास – देव का मित्र
कनक – रिवर स्टोन कॉटेज का चौकीदार
आनन्द बिष्ट – रिवर स्टोन कॉटेज के सामने इनकी चाय की दुकान थी

चुड़ैलों की घाटी देवेन्द्र प्रसाद जी की पहली रचना है। इसी साल ही उनका कहानियों का संग्रह खौफ भी प्रकाशित हो चुका है।

उपन्यासिका की कहानी दो दोस्तों की हैं जो कुछ रोमांचक यात्रा करने के खातिर उत्तराखंड के मसूरी के नजदीक मौजूद पर्यटक स्थल जाने का विचार बनाते हैं लेकिन फिर इस यात्रा में उन्हें कुछ ऐसे अनुभव होते हैं जो उनकी हालत बिगाड़ देते हैं। डर के कारण वह लोग काँपने लगते हैं।

चूँकि उपन्यासिका को यात्रा के इर्द गिर्द बुना गया है तो इसको पढ़ते हुए कई बार यह भी लगता है कि आप कोई यात्रा वृत्तांत पढ़ रहे हैं। मसूरी और उसके आस पास के पर्यटन स्थलों में ही यह कहानी घटित होती है तो आप भी मुख्य किरदारों के साथ यह सफ़र करते हैं।

कहानी की शरूआत अच्छी होती है लेकिन फिर इसमें कुछ ऐसी बातें हैं जो कि और सुधारी जा सकती थीं। अगर इन पर काम होता तो कहानी और बेहतर बन सकती थी।

यात्रा के पहले हिस्से में हमारे मुख्य किरदार मसूरी में मौजूद जगह परीटिब्बा तक जाते हैं। इस जगह का असली नाम विचेस ट्रेल्स है। टिब्बा अक्सर छोटी पहाड़ियों को कहा जाता है। यानी अगर इसका हिन्दी अनुवाद करना भी हो तो चुड़ैलों की पहाड़ी ही सही बैठेगा। वरना चुड़ैलों की घाटी तो वैली ऑफ़ विचेस हो जायेगा। यह बात लेखक को भी मालूम थी क्योंकि इसी किताब के एक किरदार मुख्य किरदारों को कहता भी है कि ‘तुम्हारा स्वागत है हिल्स ऑफ़ विचेस में।’ यह तो कहानी के शीर्षक की बात हुई। कहानी का शीर्षक इस वजह से थोड़ा अजीब लगता है।

इसके अलावा कहानी के पहले हिस्से में जो खौफनाक किरदार मुख्य किरदारों से टकराता है उससे उनकी भिड़ंत को और रोचक और रौंगटे खड़े कर देने वाला बनाया जा सकता था। अभी वह बहुत ही जल्दबाजी में निपटाया गया लगता है। कहानी के केंद्र में यात्रा लगती है जबकि कहानी के केंद्र में वह किरदार, उसकी कहानी और मुख्य किरदारों का उस किरदार को हराकर बचना होना चाहिए था।

हाँ, कहानी के पहले हिस्से में वर्तनी की गलतियाँ काफी कम है तो यह एक अच्छी बात है।

कहानी के दूसरा भाग में यह दोनों किरदार जॉर्ज एवेरेस्ट तक जाते हैं। परिटिब्बा में जो घटना हुई उसके पश्चात वो लोग क्यों दूसरी यात्रा पर जाते हैं इसका कारण देव जी ने दिया है। यह अच्छी बात है। इस भाग में भी यात्रा का हिस्सा ज्यादा है। जॉर्ज एवेरेस्ट मैं अपने दोस्तों के साथ कॉलेज के वक्त में गया हुआ हूँ। फिर भी उसके विषय में मुझे भी काफी कम जानकारी थी। देव जी ने अपनी कहानी के अनुसार इसमें कुछ गल्प भी जोड़ा है। अपने हिसाब से जॉर्ज की ज़िन्दगी में कुछ चीजें जोड़ी हैं जो कि कोरी कल्पना है। जॉर्ज के विषय में आप इस लिंक पर क्लिक करके जान सकते हैं:

जॉर्ज एवेरेस्ट 

यह बताना जरूरी इसलिए है क्योंकि जॉर्ज एवेरेस्ट एक असल इनसान थे और यह बात सच है कि इधर उनका घर था और उन्ही के नाम पर माउंट एवेरेस्ट का नाम भी पड़ा था। कहानी में इनके जीवन से कुछ बातें जरूर ली गई हैं लेकिन सारी बातें ही सही नहीं हैं। वैसे मेरे ख्याल से बेहतर यह रहता कि कहानी में किसी नये काल्पनिक चरित्र को लेखक ने गढ़ा होता तब यह स्पष्टीकरण देने की जरूरत ही नहीं पड़ती।

कहानी के इस भाग में भी दोनों के साथ कुछ ऐसे वाक्ये होते हैं कि आसमान से गिरे और खजूर में अटके वाली मसल सही साबित होती दिखती है। इधर भी अपने अनुभवों के चलते वो डर जाते हैं। यहाँ भी डराने वाला हिस्सा थोड़ा और विस्तृत हो सकता था।

हाँ, इस हिस्से की एक कमी ये भी है कि इसमें प्रूफ रीडिंग की काफी जरूरत थी। उदाहरण के लिए:

सुनहरे बाल को सुनहरी बाल लिखा गया है

कई जगह लिंग की गलती है। जहाँ पुलिंग का इस्तेमाल होना चाहिए वहाँ स्त्री लिंग का किया है। 

जैसे पृष्ठ ३४ में लिखा है ‘रास्ते बहुत ही संकरी थी’ जो कि रास्ते बहुत ही संकरे थे होना चाहिए था।

ऐसे कई वाक्य बीच में है जो कि शुरू एक तरह से होते हैं लेकिन खत्म अलग ही तरह से होते हैं। उनका अर्थ निकालने में बड़ी मेहनत लगती है।यह पढने का मजा किरकिरा करते हैं। उदाहरण के लिए:

जॉर्ज एवेरेस्ट मसूसी से लगभग 7 की मी की दूरी पर था, जिसका रास्ता मसूरी के लाइब्रेरी के चौक से पश्चिम दिशा वाली सड़क जाती थी।(पृष्ठ 30) 

इधर ‘पश्चिम दिशा से जाने वाली सड़क से होकर जाता था’ होना चाहिए था। 

जॉर्ज एवेरेस्ट वाली यात्रा में यह बात ज्यादा देखने को मिलती है। उम्मीद है दूसरे संस्करण में यह गलतियाँ सुधारी गई होंगी।


उपन्यास के कुछ अंश जो मुझे पसंद आये:

प्रेम के कारण नहीं होते; परिणाम होते हैं मित्र! पर प्रेम में परिणाम  की चिंता तब तक नहीं होती है जब तक देर न हो जाये। पंछी घर के छतों, मेट्रो की सीढ़ियों,कॉलेज के खुले मैदानों में या फिर पार्क के पेड़ों के इर्द गिर्द अपनी ज़िन्दगी के नीड़ बनाने के सपने में खोये रहते हैं और परिणाम अपनी परिणिति की ओर मंद गति से चला जाता है। यह परिणति सुखद होगी या दुखद या फिर दुखद परिणिति का सुखद परिणाम या फिर इसका उलटा होगा यह महज इस बात पर निर्भर करता होता हिया कि प्रेम का परिमाण कितना है? है भी या नहीं?


चलते चलते दिमाग भी एक यात्रा पर निकल पड़ता है। वह यात्रा जो थकान के अहसास को कहीं पार्श्व में  डाल देती है। हमारी जेहन को कई सारे ख्यालों के तलाश में उलझाए रखता है। कई छोटे-बड़े  ख्याल जेहन में यात्राएं करने लगते हैं। ऐसी यात्राएं जिनकी कोई मंजिल नहीं होती। जिनका कोई ठीक-ठाक रास्ता भी नहीं होता है। 

उपन्यासिका एक बार पढ़ी जा सकती है। अगर इसके खौफ वाले हिस्से को और उभारा जाता तो उपन्यासिका और बेहतर बन सकती थी। अभी सब कुछ जल्दी जल्दी ही निपटता दिखता है और चीजों का कोई कारण भी आखिर में पता नहीं लगता है। वो दोनों अलौकिक शक्तियाँ क्यों इनके पीछे थी। इनसे क्या चाहती थी? इसका उत्तर नहीं मिलता है तो एक अधूरापन सा लगता है।  कई बार जीवन में ऐसी चीजें घटित होती है जिनका उत्तर हमे नहीं मिलता। यह मैं जानता हूँ लेकिन तब भी एक अधूरापन तो महसूस होता ही है।
कहानी का मुख्य किरदार भी इस बात को जानता है क्योंकि पाठक की तरह वो भी इस बात को लेकर कंफ्यूजड है। और वह कहता भी है कि वह वक्त के इस कतरे को भुला देना चाहता है।

देवेन्द्र जी आगामी कृतियों का इन्तजार रहेगा।

मेरी रेटिंग: 2/5

अगर आपने यह किताब पढ़ी है तो आपको यह कैसी लगी? अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करवाईयेगा।
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पेपरबैक 

हिन्दी साहित्य की दूसरी किताबों के प्रति मेरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
हिन्दी साहित्य

नोट: यहाँ यह बताना जरूरी है कि देवेन्द्र जी को मैं व्यक्तिगत तौर पर जानता हूँ। वो मेरे मित्र हैं। और हमने एक साथ ही परीटिब्बा की यात्रा की थी। मेरा लिखा उस यात्रा का यात्रा वृत्तांत आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
© विकास नैनवाल ‘अंजान’

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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4 Comments on “चुड़ैलों की घाटी – देवेन्द्र प्रसाद”

  1. वास्तव में अपने भी अच्छा समीक्षा बहुत सटीक की है ,पर फिर भी मै इस लेख को थोडा़ स्पष्ट करुगा कि अपने कमियों की अधिक गिनाया है और उपलब्धियां बहुत कम मै चाहूगा कि मेरी राय आप जाने किताब रोचक है, कुछ रहस्यमय घटनायें भी है , मै कहुगां कि आपने कमियाँ १००% गिना दी पर महोदय मै चाहता हू कि समीक्षा ऐसी होनी चहियें जिसे अन्य लोग भी किताब के प्रति रुति जगाये ।
    आपका बहुत -बहुत आभार ।

    1. जी, किताब आपको पसंद आयी यह जानकर अच्छा लगा। इस ब्लॉग पर मैं किताबों के प्रति अपनी राय ईमानदारी से देने की कोशिश करता हूँ। इस लेख में भी मैंने उपन्यास की अच्छी बात बताई ही है। यह करने का कारण यह होता है कि पूरी जानकारी प्राप्त करके ही पाठक किताब पढ़े। ब्लॉग पर आते रहिएगा।

  2. बहुत बहुत आभार आपका इस सटीक समीक्षा के लिए।।

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