आज की दुनिया एआईमय हो चुकी है। एक दौड़ सी लगी है जिसमें मनुष्य ए आई के साथ साथ दौड़ रहा है। इस दौड़ का क्या नतीजा निकलेगा ये तो भविष्य ही तय करेगा। लेकिन ये बात भी सच है कि तकनीक कोई बुरी नहीं होती लेकिन उसका प्रयोग किस तरह किया जा रहा है वह उसे बुरा या अच्छा बनाता है। इसी प्रसांगिक विषय को शोभित गुप्ता ने अपनी इस लघु-कथा में बुना है। आशा है ये लघु-कथा आपको पसंद आएगी। – मॉडरेटर
“हमारे आंतरिक मूल्यांकन ने पाया है कि आपके कार्य निष्पादन का स्तर औसत से बहुत कम है। कृपया कारण बताएँ कि क्यों न आपको इस नौकरी से निकाला जाए?”
मैं इस नोटिस को बार-बार पढ़ रहा था। हर बार पढ़ने पर यह वाक्य और गहरा चुभता था।
इस बार कम्पनी ने कर्मचारियों का मूल्यांकन मेरे ही बनाए गए सॉफ़्टवेयर ‘जीपीटी’ से करवाया था। और विडम्बना देखिए—इसी सॉफ़्टवेयर ने मुझे अयोग्य घोषित कर दिया था। अब मेरी नौकरी खतरे में थी।
मुझे अचानक वे दिन याद आ गए जब इस जीपीटी के निर्माण की टीम का मैं प्रमुख था। कितनी रातें नींद से दूर रहकर, कितनी कॉफ़ी की प्यालियाँ खाली कर, हमने इस सॉफ़्टवेयर को विकसित किया था। मुझे ‘कम्प्यूटर रत्न’ का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था और उस सम्मान ने मुझे एक नयी ऊँचाई पर पहुँचा दिया था। अख़बारों में मेरी तस्वीरें छपती थीं, टीवी चैनलों पर मेरे इंटरव्यू चलते थे। धीरे-धीरे मैं ‘पेज थ्री’ की दुनिया में भी शामिल हो गया था। मैं सफलता की उड़ान में था और मुझे लगा था कि मैं अजेय हूँ।
परंतु आज, उसी सॉफ़्टवेयर की बेरहम रिपोर्ट ने मेरी जड़ें हिला दी थीं।
मुझे उन चेहरों की याद आ रही थी, जिनकी नौकरी इसी सॉफ़्टवेयर ने छीन ली थी। वे लोग जिन्हें मैंने कभी देखा नहीं, पर जिनकी आँखों के आँसू मेरे इस निर्माण की कीमत थे। किसी की 20 साल पुरानी नौकरी चली गयी थी, कोई अधेड़ उम्र में बेरोज़गार हो गया था। उनके बच्चे, उनके माता-पिता — न जाने कितने जीवन मेरी बनाई इस एक तकनीक से प्रभावित हुए थे। तब मुझे लगता था कि मैं एक निष्पक्ष, शक्तिशाली, दक्ष तकनीक का निर्माता हूँ जो भावनाओं से परे केवल योग्यता देखती है।
पर आज… आज मैं खुद उसी तराज़ू में तौला गया था, और परिणाम—अयोग्य!
कौन सोच सकता था कि अपने ही बनाए औज़ार से मैं हार जाऊँगा?
अब मुझे समझ आया कि कितनी असंवेदनशील हो सकती है वह तकनीक जो मनुष्य की पीड़ा नहीं समझती। मैं जानता था कि बीते कुछ वर्षों में मैंने कोई नया सॉफ़्टवेयर नहीं बनाया था, मेरा कौशल धीरे-धीरे समय के साथ बासी हो चला था, और मैं उस उड़ान के बाद कभी ज़मीन पर वापस नहीं आया।
अब मेरे चारों ओर वे लोग थे जो मुझे सिर्फ एक कुर्सी मानते थे — एक खाली की जाने वाली कुर्सी। सच्चे दोस्त पहले ही पीछे छूट गए थे, और अब मैं खुद भी अपने ही बनाए भँवर में डूबता जा रहा था।
लेकिन इस नोटिस ने मुझे तोड़ने की बजाय, मुझे जगा दिया। इसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया — क्या तकनीक का मतलब सिर्फ प्रतिस्पर्धा है? क्या हर बार मापदंड वही होने चाहिए जो मशीन तय करे?
नहीं। अब मैं एक नया सॉफ़्टवेयर बनाऊँगा — एक ऐसा तकनीकी सहायक जो मनुष्य से काम नहीं छीनेगा, बल्कि उसे सशक्त बनाएगा। जो मशीन के साथ-साथ मानवीय मूल्यों को भी समझेगा। जो आँकड़ों के पीछे छिपे दर्द को भी महसूस कर सकेगा।
यह नोटिस मेरे लिए सज़ा नहीं, एक सीख है। और शायद मेरी नयी शुरुआत।
लेखक परिचय

शोभित गुप्ता अशोशीला समूह का संचालन करते हैं जिसके अंतर्गत वो सॉफ्टवेयर डेवेलपमेंट करते हैं। प्रोग्रामिंग और सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट की कक्षाएँ भी वो इस समूह के अंतर्गत लोगों और बच्चों को प्रदान करते हैं। इसके अतिरिक्त अशोशीला प्रकाशन के अंतर्गत वो प्रकाशन का कार्य भी करते हैं। भावांकुर और द स्प्राउट्स ऑफ़ इमोशन नामक दो ई-पत्रिकाओं का वो सम्पादन भी करते हैं।
साहित्य में उनकी विशेष रूचि है। कई साहित्यिक संस्थाओं जैसे संस्कार भारती रामपुर, साहित्य संवेद समूह, साहित्य अर्पण उत्तर प्रदेश, मेघदूत साहित्य संस्था से वह जुड़े हुए हैं। अखबारों, पत्रिकाओं, और रेडिओ में उनकी रचनाओं का प्रसारण होता रहा है।
पुस्तकें:
- इट्स नॉट ओवर येट (अंग्रेजी)
- अनसंग स्टोरीज़ (अंग्रेजी)
- बोलते शब्द (हिंदी कविता संग्रह)
- इश्कबाजियाँ (हिंदी कथा संग्रह)
- पेन इज़ माइटीयर दैन द स्वॉर्ड (अंग्रेजी कविता संग्रह)
- स्पोकन शब्द (हिंदी और अंग्रेजी में एक द्विभाषी कविता संग्रह)
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