दतिया के पास एक गाँव की कथा है। एक किसान था । कोई पचास वर्ष आयु का, बलिष्ठ और क्रोधी। उसकी पत्नी का एक दुर्घटना में देहांत हो गया था, बाल बच्चे थे नहीं।
एक रात वह खेत पर गया तो पाया कि पड़ोसी किसान ने उसका पानी काट कर अपने खेत में लगा लिया है।
किसान हत्थे से उखड़ गया, बात गाली गलौज से बढ़ कर मारपीट तक पहुँच गयी। उसकी लाठी के एक प्रचंड प्रहार ने प्रतिद्वंदी का सर खोल दिया। दूसरा आदमी ज़मीन पर गिर गया। दूर दूर तक न कोई इंसान था, न जानवर।
चाँदनी रात थी और एक आदमी जमीन पर पड़ा अपनी आखिरी साँसें ले रहा था।
मरते आदमी ने सारी शक्ति जुटा कर क्षीण स्वर में कहा, “तुमको इसकी सज़ा मिलेगी, देखना।”
किसान हँस दिया, “किसने देखा कि हमने मारा? गवाही कौन देगा?”
मरता आदमी मुस्कराया, उसकी आँखें अब मुँद रही थीं। “गवाही?” वह बोला तो आवाज एक कराह सी बन कर निकली।
“कोई गवाह न हो तो क्या! चाँद तो है न, चाँद बाबा गवाही देंगे।”
और उसकी गर्दन एक ओर लुढक गयी।
अगली सुबह पुलिस आयी लेकिन कोई गवाह या सबूत न मिलने की वजह से लौट गयी।
साढ़े ग्यारह महीने बाद किसान ने दूसरी शादी कर ली।
पंद्रह दिन बीत गये।
अधेड़ किसान नवोढ़ा पत्नी की हर फरमाइश पूरी करने की कोशिश करता था।
उस रात किसान घर की छत पर लेटा हुआ था।
पूरा चाँद निकला हुआ था।
किसान कुछ पल चाँद को देखता रहा फिर ठठा कर हँसने लगा।
नववधू ने अपनी लजीली पलकें उठा कर पति को प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा।
किसान ने हँसना बंद कर दिया, “कुछ नहीं, ऐसे ही।”
लेकिन नई दुल्हन के मन में शंका आ गयी कि पति उसके मायके पर हँस रहा है।
उसने रूठ कर मुँह फुला लिया। पति के लाख मिन्नतें करने के बाद भी वह मानी नहीं।
आखिरकार किसान ने राज़ कहीं न खोलने के लिए सैकड़ों कसमें खिला कर पत्नी को सारी कथा कह सुनायी।
अगले दिन किसान की पत्नी ने घर आयी एक पड़ोसन को (सैकड़ों कसमें खिला कर) कहानी बता, अपना पेट हल्का कर लिया।
पड़ोसन ने अपना कर्तव्य निभाया और आगे किसी को (सैकड़ों कसमें खिला कर) बात सरका दी।
इस मनोरम विधि से अगले दिन दोपहर तक साल भर पहले हुये कत्ल के बारे में आधा गाँव जान गया, गाँव का सरकारी चौकीदार जान गया और जान गया निकटस्थ थाना।
शाम होते न होते कातिल किसान के हाथों में लोहे के कंगन पड़ गये।
पुलिस दल जब मुजरिम किसान को मुश्कें बाँध कर, पैदल ही ले चला तो चाँद निकल आया था।
गिरफ्तार क़ातिल ने एक बार आँख भर कर चाँद को देखा, फिर हँसने लगा, इतना हँसा कि उसकी आँखों में पानी आ गया।
थानेदार ने डपट कर पूछा, “क्या हुआ बे, दीवाना हुआ है क्या?”
उसकी डपट से बेखबर, उसका मुजरिम कहीं दूर किसी बीते लम्हे को देख रहा था।
“उसने कहा था,” वो फुसफुसाया, “उसने कहा था कि चाँद गवाही देगा।”
( गजानन रैना, 16.9.2020)
समाप्त
