किताब परिचय:
“सँभल ऐ दिल” की ख़ुशनुमा कहानी में सात किरदार हैं और सात दिनों की यात्रा है यह। जैसे सतरंगी इंद्रधनुष सात सुरों में कोई अतरंगी गीत सुना रहा हो। कहानी में तीन पात्र बड़े ख़ास हैं: सुधा, समीर और मधु।
सुधा का मानना है कि प्यार पर्फ़ेक्ट नहीं अनगढ़ सा होता है। जीवनसाथी आदर्श नहीं सामान्य हाड़-मांस का इंसान होता है, जिससे ग़लतियाँ हो सकती हैं। उसे बड़ी अजीब हालातों में पता चलता है कि उसका पति समीर किसी “मधु” से प्यार करने लगा है। प्यार और परिवार को बहुत अहम मानने वाली औरत है सुधा। एक माँ और पत्नी के द्वंद्व में दोतरफ़ा वार सहती, लेकिन हार ना मानने वाली योद्धा है सुधा।
समीर एक ऐसा किरदार है जो ये बताता है कि तरह-तरह की आदर्श परिभाषाएँ गढ़ कर समाज ने लोगों की सेक्शूऐलिटी को बाँधने की जो कोशिशें की हैं, वो कितनी नाकाम हैं। असल जीवन हम अपने बेसिक नेचर और नैचुरल इन्स्टिंक्ट से ही जीते हैं। कहने को दर्शन शास्त्र चाहे जितने बना लें।
मधु एक ऐसी किरदार है जिसका फ़ेमिनिज़म सुधा के बिलकुल उलट है। वो मर्दों की दुनिया में मर्दों की तरह जीने वाली लड़की है। उसे नैतिकता के बंधन छूते भी नहीं। टिट फ़ोर टैट वाली धारणा उसमें प्रबल है। कोई उसे धक्का दे तो वो धक्का अकेले नहीं सहेगी, बल्कि “हम तो डूबे हैं सनम, तुमको भी ले डूबूँगे” वाली तर्ज़ पर नदी में खूब बड़ी हलचल मचाएगी।
कहानी इन तीनों किरदारों के एक दूसरे से उलझ जाने का ताना बाना है। उलझन सुलझाने के प्रयासों की कथा है।
किताब लिंक: किंडल
किताब का अंश:
सुधा ने फ़ोन उठाया और पूछा- ‘हो गयी वर्जिश?’
समीर ने कहा- ‘हाँ।’ फिर हँसते हुए कहा- ‘सुनो, ये कॉलर ट्यून चेंज कर लो। पान खाने को उकसाती है ये। पान खाने लगा तो कहोगी कि नया ऐब पाल लिया मैंने।’
सुधा हँसी और फिर गाने लगी- ‘ये ऐब इश्क़, ये लाल इश्क़…..क्या ग़ज़ब सेक्सी लगोगे यार! लाल-लाल होंठ। ओह! क़ातिल। एकदम ठाँय वाले।’
इस पर समीर ने हँसते हुए कहा- ‘हाँ, और दाँत भी लाल।’
सुधा ने मुँह बिचकाकर कहा- ‘ईयू! छीः! नहीं। अच्छा, एक काम करूँगी। अपनी लाल रंग की लिप्स्टिक थोड़ी सी तुम्हारे होंठों पर लगा दूँगी। पान का इफ़ेक्ट भी आ जाएगा और नुक़सान भी नहीं होगा। क्या कहते हो?’
समीर ने शैतानी से कहा- ‘नहीं। रहने दो, एकदम बकवास आयडिया है ये। फिर तुम ना किस करने देती हो और ना करती हो। हार्म्फ़ुल केमिकल्स नहीं खाते ये वाला ज्ञान भी फूटेगा तुम्हारा।’
सुधा खिलखिलाने लगी।
‘उफ़्फ़! काम करने दोगी तुम या सब छोड़छाड कर घर बैठ जाऊँ।’- समीर ने शरारती ढंग से शिकायत की।
‘हाय! आ जाओ ना। तुम्हारी बड़ी याद आ रही है। अनन्या भी घर पर नहीं है। तुम वर्क फ़्रौम होम क्यूँ नहीं कर लेते आज?’- सुधा ने मीठा उलाहना दिया।
समीर ने कहा- ‘क्या यार? तुम भी ना। आयडिया देर से देती हो। अब तो कल ही अर्लीयस्ट पॉसिबल है। चलो, कल वर्क फ़्रौम होम कर लूँगा।’
सुधा ने चहकते हुए कहा- ‘आहा! मैं तो अभी से इंतज़ार करने लगी हूँ।’ समीर ने हँसते हुए कहा- ‘अच्छा, अब ब्रेक्फ़ास्ट कर लूँ अगर तुम इजाज़त दो तो?’
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मधु ने फ़ोन उठाते ही अपने एकदम फ्रेश और अल्हड़ अंदाज़ में कहा- ‘आहा! आज याद आयी आपको। जनाब, आप हैं कहाँ आजकल? कॉल का जवाब भी नहीं देते।’
समीर ने बहुत ही संतुलित आवाज़ में जवाब दिया- ‘अरे, वो ऑफिस में बिज़ी था।’
मधु ने टोकते हुए कहा- ‘सैमी, एक मेसेज तो लिख ही सकते थे। ऐसी भी क्या आग लग गयी थी? और तुम्हारे फ़ेसबुक को क्या हुआ?’
समीर ने झेंपते हुए कहा- ‘टाइम ही नहीं निकाल पाया। एक डिलीवरी थी, उसी में उलझा था। कल सिस्टम लाइव हो गया। अब फुर्सत है।’
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किताब के बारे में लेखिका का कथन:
कहते हैं “अन्दाज़-ए-बयाँ बदल देता है बात को, वरना दुनिया में कोई बात नई नहीं।” सदियों पुराने हैं शादी के बाद के प्रेम प्रसंग, लेकिन हर बार प्रसंग का संदर्भ नया होता है। टिंडर, फ़ेसबुक और डेटिंग एप्प ने एक नयापन दे दिया जीवन के हर पहलू को, तो फिर प्रेम उससे अछूता कैसे रह सकता है? असल दुनिया और आभासी दुनिया का दंगल है यह कहानी। बहुत पुरानी है फ़ेमिनिज़म की लड़ाई लेकिन फ़ेमिनिज़म के नए पहलू रोज़ जुड़ते जाते हैं। “जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी” वाला हाल है। हर औरत के लिए फ़ेमिनिज़म उसका अपना कॉन्सेप्ट है, जो इस विषय की रोचकता और नवीनता को बनाए रखता है। एक नया पहलू, एक नए संदर्भ के साथ बयाँ करने की कोशिश है यह कहानी। न्यौता है आपके लिए- “मेरे पास आओ मेरे दोस्तों, एक क़िस्सा सुनो।”
किताब निम्न लिंक पर जाकर खरीदी जा सकती है:
किंडल
लेखिका का परिचय:
हेमा बिष्ट उत्तराखंड में जन्मी, लखनऊ में पली बढ़ी और फ़िलहाल मेल्बर्न में रहने वाली एक साधारण सी गृहणी हैं। लगभग हर मध्यम-वर्गीय इंसान की तरह भटकाव का शिकार भी हैं। शौक़ है लेखन का लेकिन साहित्य पढ़ने की जगह MCA किया है। माँ बनने से पहले TCS में जॉब किया करती थीं। इनकी पहली किताब “तुम तक” एक नाज़ुक सी प्रेम कहानी है। जिसे किसी अलसाई सी दोपहर में ज़रूर पढ़ा जाना चाहिए।
लेखिका से निम्न माध्यमो से सम्पर्क स्थापित किया जा सकता है:
फेसबुक | इंस्टाग्राम | ईमेल: hemwins@gmail.com
किताबें:
तुम तक, सँभल ए दिल
Sounds interesting. I think I saw this book on Kindle. And I really like the cover. I have started writing Hindi short stories recently. 🙂
That's great news…. अब आपकी हिन्दी कहानियाँ पढ़ने का इंतजार रहेगा…