किताब परिचय: देवकी – अनघा जोगलेकर

 ‘देवकी’ (Devki) अनघा जोगलेकर (Angha Joglekar) का नवीनतम उपन्यास है। साहित्य विमर्श प्रकाशन (Sahitya Vimarsh Prakshan) द्वारा प्रकाशित इस उपन्यास में लेखिका द्वारा देवकी (Devki) की कहानी कही गई है। 

किताब परिचय: देवकी - अनघा जोगलेकर | Kitab Parichay: Devki - Angha Joglekar

किताब परिचय

देवकी: कंस की लाडली बहन देवकी, वसुदेव की प्रिय पत्नी देवकी, श्री कृष्ण की माँ देवकी! तो क्या देवकी मात्र रिश्तों से ही जानी जाएँगी? क्या उनका अपना कोई वजूद नहीं?

क्या सत्य ही वटवृक्ष की छाया में अन्य पौधे पनप नहीं पाते? जिस स्त्री के गर्भ से साक्षात विष्णु के अवतार ने जन्म लिया, उस स्त्री का उल्लेख मात्र दो पंक्तियों में समेटना क्या न्यायोचित होगा? देवकी का बचपन चचेरे भाई कंस की छाया में बीता, फिर कारावास की मुश्किलों ने उन्हें एक सशक्त माँ और निर्भय स्त्री के रूप में उभारा। लेकिन फिर भी देवकी का जीवन अपने पुत्र की प्रतीक्षा में ही रीतता रहा। कान्हा को समय ही न मिला अपनी जन्मदात्री माँ के पास लंबे समय तक रुकने का। ऐसी प्रतीक्षारत माँ के दुखों की गाथा है ‘देवकी’, जो अंततः कृष्ण और बलराम की मृत्यु का दुख न सह सकी और अपने पति के शव के साथ खुद भी सती हो गई। यह पुस्तक आपको देवकी के जन्म से लेकर अंत तक की यात्रा में साथ ले चलेगी।

पुस्तक लिंक: अमेज़न | साहित्य विमर्श

पुस्तक अंश

किताब परिचय: देवकी - अनघा जोगलेकर | Kitab parichay: Devki - Angha Joglekar
मेरे कक्ष के बाहर से कुछ ध्वनियाँ आने लगीं। सम्मिलित ध्वनियाँ…परंतु धीमे स्वर में। जैसे कई लोग आपस में हँस-बोल रहे हों। शनैः शनैः वे ध्वनियाँ समीप आती-सी प्रतीत होने लगीं। मैं उत्सुकतावश द्वार तक जा पहुँची।
बाहर एक छोटा-सा जनसमूह खड़ा था, जिसमें अधिकांश स्त्रियाँ थीं और उनके साथ उनके बाल गोपाल। वे स्त्रियाँ मुझे देखते ही अनुशासित हो गईं और अपने बच्चों को भी शांत रहने का संकेत करने लगीं। वे मेरे सम्मुख शांत खड़ी थीं। उनके मुख उज्ज्वल थे और मुख पर असीम आनंद की शांति थी।
मैंने आश्चर्यचकित हो पूछा, “तुम सब! यहाँ! इस समय मेरे पास! वह भी बच्चों के संग!”
“राजकुमारी…” उनमें से एक बोली, “हम सब आपके पास महाराज कंस की मृत्यु पर दुख प्रकट करने…” इसके आगे वह कुछ न बोली जबकि उनमें से किसी के भी मुख पर कंस की मृत्यु का दुख नहीं था, अपितु वे सभी प्रसन्न दिखाई दे रही थीं।
मैंने कुछ न कहा। यह समय ही कुछ ऐसा था। मैं स्वयं के ही मनोभाव समझ नहीं पा रही थी तो इन स्त्रियों के क्या समझ पाती जिन्होंने कंस के अंतःपुर में न जाने कितनी पीड़ा सही थी। कहने को तो वह कंस का अंतःपुर था परंतु आश्चर्य इस बात का था कि उसके प्रियजन उस अंतःपुर में यथा आवश्यकता कभी-भी, किसी-भी समय आ जा सकते थे। इनमें से न जाने कितने ही बच्चों में कंस के चहेते मंत्रियों, सभासदों या…स्वयं कंस का रक्त होगा। आज कंस की मृत्यु के पश्चात ये सब स्वयं को स्वतंत्र मानकर कदाचित मन-ही-मन प्रसन्न थीं और वही भाव उनके मुख पर भी विराजमान था।
उनके सम्मुख मैंने अपने हाथ जोड़ माथे से टिका दिए जैसे उन सब के प्रकट किए जा रहे दुख को मैंने स्वीकार कर लिया हो और पुनः अपने कक्ष में लौट आई। बाहर से आते स्वर पुनः मुख़र हो उठे। मैंने निर्विकार नेत्रों से द्वार की ओर देखा और गवाक्ष पर आ खड़ी हुई।

******

नीचे परिसर का दृश्य भी आज परिवर्तित-सा लग रहा था जैसे किसी नाट्य मंडली ने मंच का दृश्य बदल दिया हो। जिस प्रांगण में सदा एक अमूर्त-सा भय छाया रहता, जहाँ भयावह नीरवता छाई रहती, जहाँ पक्षी भी अपनी इच्छानुसार चहचहा नहीं पाते थे, जहाँ पवन भी परकोटे से अठखेलियाँ करने से भयभीत थी, जहाँ वर्षा भी अपनी बूँदों को मद्धम कर बरसाती थी…आज वही जगह प्रजाजनों की आवाजाही से मुखर हो उठी थी।

प्रांगण के पास लगे वृक्ष आपस में वार्तालाप करते-से प्रतीत हो रहे थे। वृक्ष की टहनियों के झूम-झूमकर नाचने से उस पर बैठे खगवृंद भी झूला झूलते प्रतीत हो रहे थे। आकाश का रंग सुनहरी आभा से दमक उठा था। बिन वर्षा ही उद्यान में मयूर नृत्य कर रहे थे।

“तो…तो क्या मेरे भ्राता की मृत्यु का समारोह मनाया जा रहा है? इतनी घृणा थी कंस के लिए सबके मन में?” मेरा मन एक पल के लिए विचलित हो उठा परंतु अगले ही क्षण मेरी प्रतिछाया बोल पड़ी, “देवकी…यह परिवर्तन तेरे कान्हा के आने से हुआ है। ये प्रजाजन, ये पवन, ये पक्षी, ये लताएँ, ये मयूर… ये सब तेरे कान्हा के आने से मदमस्त हो गए हैं। सुन…सुन रही है न वह बाँसुरी की धुन…देख…वहाँ बैठा है तेरा कान्हा…बाँसुरी बजाता हुआ और देख कैसे वे खगवृंद, वे गायें, वे नर-नारी…उसके आसपास, उसे घेरकर बैठ गए हैं और वह मनमोहन बाँसुरी की तान छेड़े जा रहा है।”

मेरी प्रतिछाया ने जिस ओर इंगित किया था मैंने भी उस ओर देखा। सच! कान्हा ही तो बैठा बाँसुरी बजा रहा है! मुझे एक पल को सब विस्मृत हो गया। मैं कौन हूँ, कहाँ हूँ, मैं दुखी हूँ अथवा सुखी, मेरे मृत पुत्र, मेरा मृत भ्राता, महारानी पद्मावती, महाराज उग्रसेन, मेरे पति वसुदेव…सब…सब कुछ मुझे विस्मृत-सा हो गया। अब मात्र मैं थी और मेरे कान्हा की बाँसुरी। मैं उसकी मधुर तान में डूबती जा रही थी। सब संगीतमय हो चला था। मेरा तन, मन, झूमती-नाचती प्रकृति सब…कि तभी ‘धड़ाक’ के शब्द के साथ कक्ष का द्वार खुला और वसुदेव ने भीतर प्रवेश किया।

मैं ‘धड़ाक’ की ध्वनि से अपने परिवेश में लौटी। गवाक्ष से पलटने से पहले मैंने पुनः एक पल उद्यान की ओर देखा परंतु न तो वहाँ कान्हा था, न ही वह बाँसुरी की धुन, न खगवृन्द, न गायें…हाँ, नीचे प्रजाजनों के छोटे-छोटे समूह अवश्य बने हुए थे। मुझे स्वयं पर ही हँसी आ गई तभी मेरी प्रतिछाया पुनः बोली, “हाँ, हाँ…अब तेरा कान्हा जो आ गया है। बड़ा ही मायावी है वह…”

मैं पुनः मुस्कुरा दी।

तब तक वसुदेव मेरे सम्मुख आ खड़े हुए। बोले, “देवकी! कुछ पल पूर्व कुछ स्त्रियों को मैंने बच्चों सहित यहाँ से जाते देखा। क्या वे सब तुमसे मिलने आई थीं?”

वसुदेव के इस प्रश्न पर मेरे मन के भाव परिवर्तित हो गए। यूँ लगा जैसे वे मेरी प्रवंचना कर रहे हैं। मैंने विश्लेषक दृष्टि से उनकी ओर देखा परंतु उनकी आँखों में मात्र जिज्ञासा ही थी।

मैंने निर्विकार भाव से उन्हें देखा और पुनः गवाक्ष पर आ खड़ी हुई।

“क्या हुआ देवकी!” वसुदेव चिंतित हो उठे।

“आपको तो ज्ञात ही है कि वे सब कंस के अंतःपुर की स्त्रियाँ थीं। वे सब मेरे पास दुख प्रकट करने आई थीं।”

“दुख! किस बात का दुख?” वसुदेव बोले।

“कंस की मृत्यु का दुख…” मैंने धीमे स्वर में कहा।

वसुदेव के मुख पर आश्चर्य का भाव आ टँगा, “कंस की मृत्यु का दुख! कंस की मृत्यु से क्या वे सच में दुखी थीं देवकी?”

मैंने निश्वास छोड़ा और वातायन की ओर मुड़ गई।

वसुदेव किसी आवश्यक कार्य का कहकर कक्ष से बाहर चले गए और मैं पुनः अपनी स्मृतियों में लौट गयी।

*****

पुस्तक लिंक: अमेज़न | साहित्य विमर्श

लेखिका परिचय

अनघा जोगेलकर (Angha Joglekar) पेशे से इंजीनियर हैं। वह उपन्यास, कहानी, लघु-कथाएँ लिखती हैं। इनके प्रथम उपन्यास ‘बाजीराव बल्लाल’ को द्वितीय अंबिका प्रसाद स्मृति पुरस्कार प्राप्त हुआ। श्रीराम पर आधारिक उपन्यास महाराष्ट्र साहित्य सम्मेलन में चर्चा हेतु चयनित हुआ। इनके अश्वत्थामा पर लिखे उपन्यास को मध्य प्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति द्वारा हिंदी सेवी सम्मान समारोह-2019 सैयद अमीर अली मीर पुरस्कार प्रदान किया गया। इनकी लघु-कथाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं वह पुस्तकों में प्रकाशित हो चुकी हैं। कई लघु-कथाएँ पुरस्कृत हो चुकी हैं और लघु-कथाओं का रेडियो प्रसारण भी हो चुका है। इंदौर की क्षितिज नामक संस्था ने 2018 में क्षितिज लघु-कथा सम्मान से इन्हें सम्मानित किया था।

नोट: ‘किताब परिचय’ एक बुक जर्नल की एक पहल है जिसके अंतर्गत हम नव प्रकाशित रोचक पुस्तकों से आपका परिचय करवाने का प्रयास करते हैं। अगर आप चाहते हैं कि आपकी पुस्तक को भी इस पहल के अंतर्गत फीचर किया जाए तो आप निम्न ईमेल आई डी के माध्यम से हमसे सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं:

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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12 Comments on “किताब परिचय: देवकी – अनघा जोगलेकर”

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा मंगलवार (16-05-2023) को   "काहे का अभिमान करें"   (चर्चा-अंक 4663)   पर भी होगी।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।

    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    1. चर्चा अंक में मेरी पोस्ट को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार।

  2. माँ देवकी पर और कोई पुस्तक नहीं पढ़ी. उत्सुकता है पढने की. स्वागत है. अनंत शुभकामनाएं.

    1. पुस्तक के ऊपर आपकी टिप्पणी की प्रतीक्षा रहेगी।

  3. आपको तो ज्ञात ही है कि वे सब कंस के अंतःपुर की स्त्रियाँ थीं। वे सब मेरे पास दुख प्रकट करने आई थीं।”
    “दुख! किस बात का दुख?” वसुदेव बोले।
    “कंस की मृत्यु का दुख…” मैंने धीमे स्वर में कहा।
    वसुदेव के मुख पर आश्चर्य का भाव आ टँगा, “कंस की मृत्यु का दुख! कंस की मृत्यु से क्या वे सच में दुखी थीं देवकी?”
    मैंने निश्वास छोड़ा और वातायन की ओर मुड़ गई।
    वसुदेव किसी आवश्यक कार्य का कहकर कक्ष से बाहर चले गए और मैं पुनः अपनी स्मृतियों में लौट गयी।
    .. कोई कितना भी दुष्ट हो उसके मरने पर भले ही दुनिया के लोग ख़ुशी मनाये लेकिन पारिवारिक सदस्य को थोड़ा दुःख तो होता ही है। .

    बहुत अच्छी समीक्षा। देवकी के चरित के बारे में कभी कोई किताब नहीं पढ़ी, आज यह समीक्षा पढ़कर बहुत अच्छा लगा कि किसी ने तो उनकी सुध ली ,,,,,
    अनघा जोगेलकर जी को पुस्तक प्रकाशन पर हार्दिक शुभकामनाएं

    1. किताब आपको रोचक लगी यह जानकर अच्छा लगा। मकसद यही है कि किताब ज्यादा ज्यादा पाठकों तक पहुँचे। लेखक भी मेहनत करते हैं और किताब पढ़ी न जाए तो हतोत्साहित हो जाते हैं। उन्हें प्रोत्साहन मिलेगा तो यूँ ही वह अनूठे विषयों पर लिखते रहेंगे।

  4. श्री कृष्ण जननी 'देवकी' पर सुन्दर पुस्तक और समीक्षा , लेखिका एवं समीक्षक महोदय दोनों को हार्दिक बधाई ।

    1. यह किताब परिचय आपको पसंद आया यह जानकर प्रसन्नता हुई। हार्दिक आभार।

  5. वास्तव में महाभारत में देवकी रामायण में उर्मिला के त्याग और बलिदान की चर्चा बहुत कम है।

    1. सुंदर समीक्षा। लेखिका एवं समीक्षक महोदय को हार्दिक बधाई ।

    2. जी आभार। उम्मीद है पुस्तक आपको पसंद आएगी। पाठक पुस्तक लेंगे तभी लेखक भी इन विषयों पर कलम चलाएंगे।

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