हिन्दी लोकप्रिय साहित्य के क्षेत्र में जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा का नाम ध्रुव तारे के समान टिमटिमाता है। वह ऐसे लेखक रहे हैं जिन्होंने हर तरह का लेखन (जासूसी, सामाजिक और गंभीर) किया है और अपने लेखन में उन्होंने मानवता को सबसे ऊपर रखा। आज उनकी 24 वीं पुण्यतिथि है। उन्हें याद करते हुए लेखक राम ‘पुजारी‘ ने यह लेख लिखा है। इस लेख में संक्षिप्त में उनके जीवन को समेटा है। आप भी पढ़िये।
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जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा, तस्वीर स्रोत: omprakashsharma.com |
जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को रात दस बजे श्री गोविंद प्रसाद रईस की हवेली में मेरठ में हुआ। दादा जी के अचानक गुजर जाने के बाद उनके पिता खुशहाल जीवन के सपने संजोए जब मेरठ से दिल्ली पहुँचे तब शर्मा जी डेढ़ वर्ष के थे।
उनके पिता जी ने कपड़ा मिल में क्लर्की की। फिर नौकरी छोड़कर बरेली अपने मित्र के पास कुछ काम किया और लौटकर फिर से कपड़ा मिल में नौकरी की। पहाड़ी धीरज की गलियों में शर्मा जी का बचपन बीता। बचपन में घरवालों के कहने पर, मेरठ जाकर कुछ दिन संस्कृत भी पढ़ी, मगर जब किन्हीं कारणों की वजह से रास न आई तो दिल्ली लौट आए।
पढ़ना-लिखना
अपने पिताजी से उन्हें दो आदतें (खुद शर्मा जी के अनुसार—व्यसन) मिलीं। पहली आदत थी पुस्तकें, जोकि मिल की लाइब्रेरी से मिल जातीं थीं और दूसरी थी चाय।
पढ़ने की भूख—जैन सार्वजनिक पुस्कालय, पहाड़ी धीरज की पुस्तकों से शांत हो रही थी। हिंदी के प्रेमचंद, सुदर्शन तो बंगला के रवि बाबू व शरत बाबू से यहीं उनका पहला परिचय हुआ। टॉलस्टाय, मोंपासा व ओ’ हेनरी के अलावा अधिकतर अनुदित पुस्तकें यहीं से लेकर पढ़ी। दिल्ली में, गुजर-बसर के संघर्षमय दिनों में ये लाइब्रेरी एक सुकून भरी जगह थी।
शुरू-शुरू में उन्होंने कुछ कहानियाँ लिखीं जिनमें से ग्यारह कहानियाँ ‘आदर्श’ नामक मासिक पत्रिका में तो कुछ ‘कल्पना’ और ‘माया’ में प्रकाशित हुईं।
जीवनयापन
उन्होंने जीवनयापन के लिए दिल्ली क्लॉथ मिल (DCM) में नौकरी की। यहाँ पर उन्होंने मजदूरों की परेशानियों को देखा-समझा तो उन्हीं के साथ हो लिए और मजदूर संघ के सजग सदस्य बने।
अब तक रतन एन्ड कंपनी, खारी बावली से भी उनकी कुछ कहानियाँ प्रकाशित हो चुकीं थीं। फिर ‘अँधेरे के दीप’ व ‘साँझ का सूरज ‘जैसा ऐतिहासिक उपन्यास भी लिखा। किन्तु तब जासूसी उपन्यासों की माँग अधिक थी, इसीलिए वक्त की माँग को समझकर उन्होंने जासूसी लेखन आरंभ किया और इस तरह से पाठकों को आदर्श जासूस राजेश मिला। इसके बाद फिर शर्मा जी ने पीछे मुड़कर न देखा।
ओमप्रकाश शर्मा जी के पात्र व लेखन
राजेश-तारा, जयंत, जगत, जगन-बंदूक सिंह, गोपाली, चक्रम और विलियम कृष्ण आदि एक से बड़ कर एक पात्रों की रचना करने वाले जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी ने अपनी जादुई लेखनी के बल पर हिंदी जासूसी एवं अपराध साहित्य जगत में न केवल अपना विशिष्ट स्थान बनाया बल्कि हिंदी भाषा को समृद्ध भी किया। उनके उपन्यासों को घर-घर पढ़ा जाने लगा। परिवार का हर सदस्य छोटा हो या बड़ा शर्मा जी के उपन्यासों को बिना किसी रोकटोक और पर्दे के सबके सामने पढ़ सकता था।
दिल्ली से मेरठ
दिल्ली मिल के धूल भरे वातावरण से उन्हें खाँसी की शिकायत रहने लगी थी। किंतु ये साधारण खाँसी नहीं ब्रोंकाइटिस थी। अतः डॉक्टर की सलाह पर वे 9 मई 1966 को स्वच्छ हवा-पानी के लिए मेरठ चले गए। उनके जाने के बाद मेरठ के उपन्यास जगत में हलचल मची और जैन परिवार के विभिन्न प्रकाशन संस्थानों से इनके उपन्यास प्रकाशित हुए। इस बीच दिल्ली के अन्य प्रकाशनों से भी उनके उपन्यास आ रहे थे।
उनके कई उपन्यास बहुत प्रसिद्ध हुए, जिनमें ‘साँझ का सूरज’, ‘साँझ हुई घर आए’, ‘धड़कने’, ‘अँधेरे के दीप’, ‘एक रात का मेहमान’, ‘अपने देश का अजनबी’ और ‘इमरजेंसी’ आदि प्रमुख हैं।
कुछ विद्वानों का मानना है कि मनुष्य जैसा सोचता है, समझता है और जैसा अपने आसपास देखता है, अपने लेखन में भी उसी का ही समावेश करता है। अगर देखा जाए तो आसपास अच्छा और बुरा, सच और झूठ, अपराध और नियम-कानून साथ-साथ उठते-बैठते दिखाई पड़ते हैं। यह दृष्टा के ऊपर निर्भर करता है कि वह अपने आसपास के माहौल से क्या ग्रहण करें। यदि इस कथन को सत्य माने तो शर्मा जी का दृष्टिकोण मानवीय तथा सामाजिक था।
उनके पात्र साधारण मानव थे किंतु उनका आचार-व्यवहार, उनका सोचना-समझना ही उन्हें आम से खास बनाता था। राजेश उनका एक ऐसा ही पात्र है। राजेश का व्यक्तित्व इतना असल लगता है कि कुछ पाठक ‘उन्हें’ सचमुच का जीता-जागता इंसान समझने लगे थे।
सामाजिक व ऐतिहासिक उपन्यास
उनके जासूसी उपन्यास भी सामाजिक मूल्यों को प्रभावशाली तरीके से स्थापित करते हुए पाठकों का मनोरंजन करते हैं। और, उनके सामाजिक व ऐतिहासिक उपन्यास तो बेजोड़ हैं ही। हिंदी जासूसी उपन्यास जगत में उनके जैसा लेखक मिलना दुर्लभ है जिसकी भाषा शैली साधारण होते हुए भी असाधारण रूप से भावपूर्ण और मनमोहक हो! जिसके पात्र साधारण होते हुए भी अपने आचार-व्यवहार और विचारों से विशिष्ट बन जाते हैं। उन्होंने अपने सामाजिक उपन्यासों में रूढ़ीवादी सोच पर चोट करते हुए भारतीय संस्कारों और मूल्यों का प्रभावशाली ढंग से चित्रण किया।
उनके पात्र चाहे वह ग्रामीण हो या शहरी, आधुनिक हो या परम्परागत वे कहीं ना कहीं, किसी ना किसी रूप में भारतीय है। उनके उपन्यासों में महिला पात्र कहीं बहुत ही सशक्त, धैर्यवान तो कहीं संस्कारी होने के साथ साथ नवीन विचारों वाली हैं। उनके महिला पात्र इतने मानवीय हैं कि पाठकों को पढ़ते हुए माँ, भाभी, बुआ, बेटी और बहन का ध्यान स्वत: ही आ जाता है। ‘भाभी’, ‘कांता’, ‘रुक जाओ निशा’, ‘एक जिद्दी लड़की’ आदि उपन्यासों में छोटे किंतु भावपूर्ण संवाद बरबस ही मनमोह लेते हैं। धड़कने, अँधेरे के दीप, जगत की पाकिस्तान यात्रा आदि उपन्यास आपको हँसाते हैं, गुदगुदाते हैं।
उस दौर के कई प्रसिद्ध लेखकों ने उन्हें अपना गुरु, मार्गदर्शक और मेंटर माना है।
14 अक्टूबर 1998 की ब्रह्म-बेला में हिन्दी के मूर्धन्य जनप्रिय लेखक श्री ओमप्रकाश शर्मा जी की दिव्यात्मा इस नश्वर शरीर को त्याग कर परम ज्योति में विलीन हो गई। और इस तरह एक उपन्यासकार अपनी रचनाओं के बल पर सदा के लिए अमर हो गए। आपके राजेश-तारा व जगत, गोपाली आदि पात्र आज भी हमें प्रिय हैं!
मैं राम पुजारी सभी मित्रों व लेखकों की ओर से कलम के इस महान जादूगर को श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ।
नमन
॥बारम्बार नमन।।
राम पुजारी
लेखक राम पुजारी दिल्ली के निवासी हैं। वह पेशे से मैकेनिकल इंजिनियर हैं। समसामयिक विषयों को केंद्र में रखकर वह अपनी रचनाये लिखते हैं। हाल ही में उनके द्वारा लोकप्रिय लेखक वेद प्रकाश काम्बोज के लेखकीय जीवन को केंद्र में रख लिखी किताब काम्बोजनामा नीलम जासूस कार्यालय से प्रकाशित हुई है। इसके अतिरिक्त उनके चार उपन्यास अब तक प्रकाशित हो चुके हैं।
बहुत अच्छा लेख। जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी को विनम्र श्रद्धांजलि। उनकी लेखनी चमत्कारी थी। उन्होंने हिंदी जासूसी साहित्य में वो कर दिखाया, जो कोई नहीं कर सका।
शुक्रिया
जी सही कहा। आभार।
जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी के व्यक्तित्व और कृतित्व से संबंधित बहुत सुन्दर लेख । ओमप्रकाश शर्मा को विनम्र श्रद्धांजलि ।
शुक्रिया
जी आभार।
शर्माजी जैसा हरफनमौला और जनप्रिय लेखक शायद ही कोई पैदा हो।
जी सही कहा।