“किताब एक प्रोडक्ट है, इसे बनाने में किसी की पूंजी लगी होती है” – सुनील कुमार ‘सिंक्रेटिक’

साक्षात्कार: सुनील कुमार सिंक्रेटिक

लेखक सुनील कुमार ‘सिंक्रेटिक’ पशुओं की कहानियों में माध्यम से हमारे समाज और हमारे समाज की परेशानियों पर बात करते हैं। अभिषेक भारत ने उनसे यह बातचीत साहिंद के लिए दिसम्बर 2020 को की थी। बातचीत उनके लेखन और उस समय आयी उनकी पुस्तक बनकिस्सा पर केंद्रित थी। बातचीत अब एक बुक जर्नल में प्रकाशित हो रही है। आप भी पढ़िए।

अभिषेक भारत
अभिषेक भारत, तस्वीर स्रोत: फेसबुक

कृपया अपने बारे में बताइए।

धन्यवाद जी। मेरा नाम सुनील कुमार ‘सिंक्रेटिक’ है। मैं भोजपुर, बिहार से हूँ। जन्म 1980 में हुआ। मेरी शिक्षा अर्थशास्त्र से स्नातक (ऑनर्स) है। सम्प्रति राज्य सरकार में कार्यरत हूँ तथा लेखन से भी जुड़ा हूँ। बनकिस्सा मेरी लिखी पहली किताब है।

अपनी किताब छपने के संघर्ष के बारे में बताइए।

सच कहूँ तो मुझे किताब छपने को लेकर ज्यादा संघर्ष नहीं करना पड़ा। हाँ, लिखने में जरूर खूब मेहनत की। उसी का परिणाम रहा कि अभी प्रकाशन के क्षेत्र में ख्यातिलब्ध हिन्द युग्म प्रकाशन से मेरी किताब आ पायी।

पहली बार आपको कब लगा कि आपको लिखना ही चाहिए और आपको लेखक बनना है ? लेखक के तौर पर आप संतुष्ट हैं?

लिखने को लेकर कोई लक्ष्य नहीं था। बचपन से कहानियाँ पढ़ता आ रहा था। विद्यालय जीवन में जब किसी प्रतियोगिता में हिस्सा लेकर कुछ जीतता तो पुरस्कार में किताबें मिलती थीं। उनको पढ़ने और घर मे कहानियाँ सुनने से मन में एक माहौल सा बना हुआ था। जब बड़ा हुआ और जीवन की विसंगतियाँ देखीं तो खुद को प्रकट करने का सबसे सरल और प्रभावी तरीका लिखना ही लगा और मैंने लिखना शुरू किया।

हाँ, मैं अपने लेखन से संतुष्ट हूँ। बल्कि पहले खुद संतुष्ट होता हूँ तभी वो चीज दूसरों को पढ़ने के लिए प्रस्तुत करता हूँ।

आप सरकारी नौकरी करते हैं, जाहिर है नौकरी के प्रति जवाबदेही है, समय कम मिलता होगा, तो ऐसे में लिखना कैसे हो पाया ? और आप कब लिखते हैं ?

बिलकुल। नौकरी करते हुए किसी और काम के लिए समय निकालना, खास कर लेखन जैसे समय वांछित काम के लिए, काफी मुश्किल होता है। पर जब पैशन हो तो वक्त निकल ही आता है। अपने सोने के समय, घूमने और आराम के समय से चुरा-चुरा कर लेखन का काम पूरा करता हूँ।

मैं ज्यादतर जो लिखना होता है उसपर सोचता रहता हूँ। जब सीन दिमाग में पूरी तरह पक जाता है उसे कागज पर उतार देता हूँ। एक दिन में अधिकतम 2 पन्नों से ज्यादा कभी लिखा नहीं। बहुत सोचता हूँ तो थोड़ा सा लिखता हूँ।

लिखने के लिए मेरा आदर्श समय रात 10 से 02 बजे का वक्त है जब पूर्ण शांति होती है और घड़ी की टिक-टिक की आवाज भी सुनाई देती है। ऐसा जरूरी है क्योंकि मैं लिखते समय पूरी तरह सीन में डूब कर लिखता हूँ।

बनकिस्सा के पात्र पशु-पक्षी हैं। लिखने के लिए आपने इंसानों के बजाय वन्यजीवों को ही क्यों चुना ?

हाँ, बनकिस्सा के पात्र पशु-पक्षी हैं। और यह चुनाव ऐच्छिक नहीं बल्कि अपरिहार्य थी। मुझे मानवों का व्यवहार/चरित्र के सही और सर्वोत्तम प्रतिनिधि बनकिस्सा के ये पशु-पात्र हैं। ये इतने सटीक रूप से चुने गए हैं कि किसी भी कहानी का पात्र किसी दूसरे पशु या पक्षी से बदल देने पर कहानी का कहन निष्प्रभावी हो जाएगा।

बनकिस्सा - सुनील कुमार 'सिंक्रेटिक'| हिंद युग्म

एक लेखक के लिए सामने फैला दृश्य उसकी लेखनी का हिस्सा हो जाता है, सभी उसके पात्र हो जाते हैं। ऐसे में एक लेखक के तौर पर कौन से ऐसे प्राणी हैं जिनमें आपको ज्यादा लेखकीय पात्र नजर आता है ?

यह पूर्व निर्धारित नहीं होता। इंसानों के व्यवहार में जो विसंगतियाँ पाता हूँ उनका जो भी जानवर या पक्षी सही प्रतिचित्रण करता है उसे बन किस्सा का लीड रोल मिल जाता है। इसमें मुझे विकल्प चुनने की कोई छूट नहीं मिलती। हाँ, ऐसे पात्रों में लिखने के दौरान दाढ़ी वाला गीध, मारखोर नामक पहाड़ी बकरा, गौर नामक सबसे बड़ा मवेशी, सुनहरा गरुड़, स्विफ्ट पक्षी और बाघ ने बहुत प्रभावित किया। बाघ में तो इतनी सम्भावनाएँ हैं कि पहले ही वह मेरे 2 कहानियों का हीरो बन चुका है और आगे की कहानियों में भी उसके चारित्रिक पहलू खुलेंगे।

इन दिनों दुनिया में जो उथल-पुथल हो रहा है, हजारों साल की मानवीय सभ्यता कुछ दशकों में प्रदूषित हो गयी है, असंतुलित हो गयी है। प्राणी जगत का हिस्सा यह मानव अपनी बौद्धिकता को हथियार बनाकर इतरा रहा है! उसने समूचे धरती को खतरे में डाल दिया है। बनकिस्सा लिखने वाले लेखक के तौर पर आप इसपर क्या कहेंगे ? यदि इन जीवों के पास इतनी बौद्धिक क्षमता हो कि वह अपने विचारों को संकलित कर सकें! तो वह मनुष्यों के बारे में अपनी डायरी में क्या दर्ज करेंगे ?

मानव जो धरती और पर्यावरण के साथ विकास के नाम पर कर रहा है यह बौद्धिकता नहीं मूर्खता है। किसी चीज का अस्तित्व विकास से ज्यादा संतुलन पर निर्भर है। यदि गाड़ी के लिए एक्सीलेरेटर जरूरी है तो उतना ही ब्रेक भी वरना एक दिन बॉडी कॉलेप्स कर जाएगी। मेरा इशारा बुद्धिमान लोग समझ गए होंगे।

रही बात जानवरों की मनुष्यों के बारे में राय की तो बनकिस्सा की कहानी ‘पशुता अच्छी है’ के मुख्य पात्र ने बड़ी स्पष्टता के साथ दर्ज करा दिया है जिससे नहीं लगता कि कोई असहमत होगा।

आप बनकिस्सा का दूसरा भाग भी लेकर आ रहे हैं। पाठकों में उत्सुकता है। वह आपसे लगातार पूछ भी रहे हैं। ऐसे में सवाल यह है कि बनकिस्सा में क्या वह पात्र पुनः उपस्थित होंगे ? या कुछ नए पात्र भी आएंगे? या सारे पात्र ही नये होंगे ? और उनके सवाल-जवाब कैसे होंगे ? क्या वह समसमायिक समस्याओं को सहजता से सामने रखेंगे, जैसे उन्होंने पहली पुस्तक में रखा। एक लेखक के तौर पर एक ही किताब का दूसरा भाग आना आपके लिए कैसा अनुभव है ?

बनकिस्सा एक सिलसिला है। इसको लिखते रहा जा सकता है। मैं चाहूँगा कि मेरे अलावे अन्य लेखक भी इस विधा में लिखें। अगला पार्ट लिखा जा चुका है। किताब कब आएगी, अभी कहा नहीं जा सकता। पात्र का दुहराव नहीं होगा मतलब यदि दो कहानियों में बाघ आता है तो वे दोनों बाघ मनुष्य के दो अलग-अलग पहलू को दर्शाएँगे और इन पहलुओं का दुहराव कभी नहीं होगा

बनकिस्सा भाग 2 में सूत्रधार मच्छराजा और कहानी सुनने वाले कछुआ और जलकाक, का सवाल-जवाब अब भाव-भंगिमा के ज्यादा वर्णन के साथ होंगे। मतलब संवाद बोलते समय वे किस तरह की मुद्राएँ बना रहे हैं यह भी जुड़ा होगा, जो बनकिस्सा -1 में नहीं था। बनकिस्सा कि किस्से समसामयिक समस्याओं और व्यवहार पर ही आधारित होते हैं। एक लेखक के तौर पर सुखद होगा यदि भाग-2 आता है जिसका आना अभी अनिश्चित है।

एक लेखक की दिली ख्वाहिश होती है कि अधिक से अधिक लोग उसे पढ़ें। पाठकों का भरपूर प्यार मिले। ऐसे में अपने किताब की प्रचार करना क्या गलत है ? वह किन तरीकों को अपनाकर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपनी किताब पहुँचा सकता है ?

विचार प्रोडक्ट नहीं है पर नहीं भूलना चाहिए कि किताब एक प्रोडक्ट भी है। इसे बनने में किसी की पूँजी लगी होती है जिसका प्रतिफल मिलना और उसके लिए प्रचार-प्रसार करना अनुचित नहीं माना जाना चाहिए। प्रकाशक को किताबें पढ़ने के लिए पाठकों को उत्साहित करना चाहिये और लेखक को इसमें पूरा साथ देना चाहिए। आपकी किताब कितनी भी अच्छी हो, लोग जानेंगे नहीं तो पढ़ेंगे नहीं।

सोशल मीडिया और छोटे-छोटे गैदरिंग में भाग लेकर लोगों को किताबें पढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहिए। साथ ही लेखक को पाठक के सम्पर्क हेतु हर वक्त उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए। लेखक को सर्वसुलभ होना चाहिए न कि लेखन के दम्भ में रहना चाहिए।

जिस तरह की विषयवस्तु है आपकी किताब की वैसी किताब अंग्रेजी में ख़ूब लोकप्रिय होती हैं। हॉलीवुड तो फ़िल्म भी बनाता है। किंतु भारत विशेषकर हिन्दी साहित्य में ऐसा बहुत ही कम हो रहा है। आप इस पर क्या कहेंगे ?

आपने ठीक कहा। अभी हिन्दी क्षेत्र में लेखन में विविधता की भारी कमी है। बस एक-दो जॉनर में लिखा-पढ़ा-लिखा जा रहा है। मतलब एक कैच -22 जैसी स्थिति बन गयी है। जो लिखा जा रहा है वही पढ़ा जा रहा है और चूँकि उसी चीज का पाठक वर्ग तैयार किया गया तो अब मजबूरन वही विषय बारम्बार लिखा जा रहा है। यह थोड़ा निराशाजनक है। अगर किसी चीज में विविधता खत्म हो रही है तो समझिए कि वह चीज खत्म हो रही है। तस्वीर बदलेगी यदि नए युवा आगे आएँ, लिखने वाले भी और पढ़ने वाले भी। फिर वो माहौल विकसित होगा जिसमें हिन्दी लेखन भी बहु आयामी होकर उभरेगी।

हिंदी साहित्य की समस्या और उसके भविष्य के बारे में क्या कहेंगे?

अभी इस विषय पर बोलने लायक सोच, समझ और परिपक्वता हासिल कर लूँ, फिर बोलूँगा। हिन्दी का भविष्य आज से एक दशक पीछे जितना धूमिल नजर आता था, वैसा अब नहीं है। बस युवाओं से अनुरोध है कि किसी चीज की ज्यादा सरलता भी अच्छी नहीं होती, एक रसता उतपन्न होती है। हिन्दी हर तरह के भाव अभिव्यक्त कराने में सक्षम हो इसके लिए सरल शब्दों के साथ वैसे शब्दों को भी प्रचलन में लाने की कोशिश हो जो क्लिष्ट कह कर त्यागे जा रहे हैं।

आपके पसंदीदा रचनाकार कौन हैं ? नये रचनाकारों में से आप किसे पढ़ते हैं?

मेरे पसंदीदा रचनाकार कोई एक नहीं। जिसकी जो रचना अच्छी लिखी गयी वहाँ वो रचनाकार पसन्द आते हैं। कहानी ‘आदिम रात्रि की महक‘ और ‘मैला आँचल‘ के कारण फणीश्वरनाथ रेणु पसन्द हैं तो ‘पूस की रात’ और ऐसी दर्जनों कहानियों के कारण प्रेमचंद। मैक्सिम गोर्की की हिन्दी में अनूदित कहानियाँ बहुत ज्यादा पसंद हैं। कहानी में पात्र चित्रण और वातावरण का निर्माण कोई उनसे सीखे। और भी कई लेखक हैं, जिम कॉर्बेट, अर्नेस्ट हेमिंग्वे, पाउलो कोएलो इत्यादि, सभी का नाम लेना सम्भव नहीं।

नये रचनाकारों में हिन्द-युग्म से छपे नवोदित लेखकों को काफी पढ़ा है। वे अच्छा लिख रहे हैं। अन्य प्रकाशन की भी नयी आयी किताबें, कुछ पेपर बैक में, ज्यादतर किंडल पर, पढ़ता हूँ। मेरी पठन चॉइस लेखक से ज्यादा किताब के ऊपर निर्भर करती है। मैं ऐसा नहीं मानता कि सिर्फ पहले के लेखक ही अच्छा लिखते थे। आज के लेखकों में भी अच्छा लिखनेवाले हैं जो शायद भविष्य में खूब ख्याति अर्जित करेंगे।

आपकी पसंदीदा किताब कौन सी है ? जिसे आप बार-बार पढ़ते हों ?

पसन्द एक बदलते रहनेवाली चीज है। हाँ, हेमिंग्वे की ‘द ओल्ड मैन एंड द सी‘, गोर्की की ‘द सांग ऑफ फॉल्कन’ और प्रेमचंद की ‘पूस की रात’ कितनी बार भी बिना बोर हुए पढ़ सकता हूँ।

अपनी आगामी किताब के बारे में बताइए। आपने किसी और विधा में भी लिखा है?

किसी और विधा में नहीं लिखा पर विचार और योजना है। भविष्य में लिखने की कोशिश करूँगा पर निश्चित रूप से कुछ नहीं कह सकता।

नये रचनाकारों और पाठकों से क्या कहेंगे ?

नये रचनाकारों से कहेंगे कि वे लीक पीटने के बजाय कुछ नया लिखने की कोशिश करें और पाठकों से विनम्र अनुरोध रहेगा कि हर जॉनर में पढ़ने की रुचि विकसित करें और लेखक के नाम के बजाय कंटेंट और भाषा को किसी किताब को पढ़ने के लिए चुनते समय ज्यादा तवज्जो दें।


शुक्रिया।


आपने अपना बहुमूल्य समय निकालकर इंटरव्यू दिया इसके लिए आपका हृदय से आभार।

(यह साक्षात्कार साहिन्द में दिसम्बर 7 2020 को प्रकाशित हुआ था।)

अभिषेक भारत द्वारा लिए गए साहित्यकारों के अन्य इंटरव्यू आप उनके ब्लॉग मुक्तिघर में जाकर पढ़ सकते हैं।


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