लघु-कथा: दरिंदे – योगेश मित्तल

लघु-कथा: दरिंदे - योगेश मित्तल

“च च च।” अख़बार में न्यूज़ पढ़ते ही मिसेज मल्होत्रा के होंठों से अजीब-सी दुख प्रकट करती सिसकारी निकली थी।

“क्या हुआ मम्मी?” उनके सामने ही दूसरी सोफाचेयर पर बैठी मीनाक्षी ने चौंक कर अपनी माँ की और देखा।

“मत पूछ बेटी! लोग-बाग भी कैसे दरिंदे हो गये हैं – जरा भी दया ममता नहीं रह गयी दिल में – कल शाम एक मारुति कार में बैठे दो युवकों ने पंखा रोड पर ट्यूशन पढ़कर घर लौटती एक पंद्रह-सोलह साल की लड़की को जबरन अपनी कार में खींच लिया। बाद में बुद्धा गार्डन के पास उस लड़की की लाश मिली – लाश की हालत बड़ी ख़राब थी – देखने से ही पता चलता था कि मर्डर करने से पहले लड़की के साथ बलात्कार किया गया है।”

“उफ़!” मीनाक्षी भय से सिहर-सी गयी। वह स्वयं भी तो मात्र पंद्रह साल की ही थी।

“मेरा बस चले तो इन दरिंदों को गोली से उड़ा दूँ – उन्हें कुत्तों की मौत मारूँ। पंद्रह-सोलह साल की उम्र ही क्या है…? बेचारी बच्ची ने देखा ही क्या था अपनी ज़िंदगी में – ज़ालिमों ने उसके साथ ऐसा कुकर्म किया – और जान से भी मार दिया।” मिसेज मल्होत्रा फुँफकार उठीं। उन्हें सचमुच दुष्ट बलात्कारियों पर बेहद क्रोध आ रहा था।

“हाँ! और ऐसा उन्होंने इसीलिए किया होगा – जिससे लड़की उनकी शिनाख्त ना कर सके – उन्हें बलात्कार के जुर्म में गिरफ्तार नहीं किया जा सके।” तभी उनके पड़ोस में रहने वाला – पास ही के थाने का इंस्पेक्टर बीर सिंह मुख्यद्वार से भीतर प्रवेश करता हुआ बोला।

मिसेज मल्होत्रा व उनकी बेटी मीनाक्षी दोनों ने चौंककर इंस्पेक्टर बीर सिंह की और देखा। बीर सिंह उनका पड़ोसी था और अक्सर उनके यहाँ आता-जाता रहता था। पर फिर भी इस समय उसका आना और उनकी बातों में शामिल होना, चौंका गया मिसेज मल्होत्रा को, बोलीं, “तुम बुद्धा गार्डन के पास जिस लड़की की लाश मिली है – उसी के बारे में कह रहे हो?”
“हाँ आंटी।”

” कातिलों का पता चला …?”

” हाँ, और बहुत जल्दी ही वो पकड़े जाएँगे?”

“छोड़ना नहीं उन दरिंदों को।” मिसेज मल्होत्रा दाँत पीसते हुए बोली, “फाँसी पर लटकवाने से पहले – ऐसा कुकर्म करने की सजा में – उनकी हड्डिया तोड़ देना।”
“काश! मैं ऐसा कर सकूँ?” इंस्पेक्टर बीर सिंह गहरी साँस लेते हुए बोला।

“वैसे कब तक गिरफ्तार कर लोगे तुम उन दरिंदों को?”

“कह नहीं सकता… शायद अभी हो जाएँ… या फिर कई दिनों… महीनों तक गिरफ्तार ना होंये।” इंस्पेक्टर बीर सिंह ने कहा। फिर एकाएक गहरी साँस ले – मानों कुछ याद करते हुए बोला, “अरे हाँ, वो अपने मदन और मोहन नहीं दिखाई पड़ रहे – कहाँ हैं वो…?”

मदन मल्होत्रा व मोहन मल्होत्रा – मिसेज मल्होत्रा के – दोनों बेटों का नाम था – जो कि पंद्रह साल की मीनाक्षी से बड़े थे।

“ऊपर के कमरे में हैं… खेल रहे होंगे शतरंज।” मिसेज मल्होत्रा ने लापरवाही से कहा, “तुम्हें तो पता ही है, शतरंज के आगे खाना-पीना सब भूल जाते हैं दोनों। एक शतरंज… दूसरा फ़ास्ट ड्राइविंग… बस दो ही शौक हैं दोनों के।”

“फिर तो इस समय उन्हें अपनी बाजी ख़राब करनी ही पड़ेगी।” बीर सिंह अफ़सोस जताते हुए बोला, “आप उन्हें नीचे बुला रही है आंटी या मैं ऊपर जाऊँ?”

“क्यों? कोई खास बात?”

“हाँ! मैं उन्हें गिरफ्तार करने आया हूँ – बाहर पुलिस फाॅर्स भी मौजूद है – जिसने चारों ओर से आपकी कोठी को घेर रखा है।”

“पर क्यों?” मिसेज मल्होत्रा आशंकित और आतंकित-सी होते हुए बोलीं।

“बुद्धा गार्डेन के पास… जिस नन्ही बच्ची की लाश मिली थी, उसके साथ बलात्कार करने वाले और फिर उसकी हत्या कर देने वालों की पहचान हो गयी है आंटी। अब उन दरिंदों को सजा दिलवाने के लिए गिरफ्तार तो करना ही पड़ेगा।” इंस्पेक्टर बीर सिंह ने बर्फ से ठंडे लहजे में कहा।

“नहीं!” मिसेज मल्होत्रा के मुँह से आतंक से भरी चीख निकली। और उन्हें एकदम गश-सा आ गया था।


लघु-कथा ‘दरिंदे’ ‘अपराध कथाएँ‘ नामक पत्रिका के विशेषांक में प्रकाशित हुई थी।


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