डंकी गैंग | मनोज कॉमिक्स | विनय प्रभाकर

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 61 | प्रकाशक: मनोज कॉमिक्स | शृंखला: हवलदार बहादुर
टीम:
चित्रांकन: बेदी | कहानी: विनय प्रभाकर
डंकी गैंग | मनोज कॉमिक्स | विनय प्रभाकर | समीक्षा | Review | Donkey Gang | Manoj Comics | Vinay Prabhakar

कहानी 

रूपनगर इन दिनों डंकी गैंग से त्रस्त था। डंकी गैंग का बॉस गधेड़ी प्रसाद और उसके साथी अपने गधों के साथ शहर में आते और फिर लूट पाट करके रूपनगर के जंगल में गायब हो जाते।
पुलिस भी उसकी गैंग के सामने पानी भरती नजर आ रही थी। 
अब सारा दारोमदार हवलदार बहादुर पर था।
क्या वो डंकी गैंग का मुकाबला कर पाया?
इस दौरान उसके साथ क्या क्या हुआ?

मेरे विचार

‘डंकी गैंग’ मनोज कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित हवलदार बहादुर का एक विशेषांक  है। 61 पृष्ठों की इस कथा को लिखा विनय प्रभाकर ने है और इसको चित्रित बेदी जी ने किया है। 
‘डंकी गैंग’ जैसे नाम से जाहिर है एक गैंग को केंद्र में रखकर लिखा गया है। गधेड़ी प्रसाद इस गैंग का लीडर है और चूँकि ये लोग गधों पर सवार होते हैं तो इसलिए इन्हें डंकी गैंग कहा जाता है। इस गैंग में गधेड़ी को मिलाकर छः लोग जिनमें से पाँच के ही नाम सांडा, पांडा,टांडा, डांडा, भांडा कॉमिक्स में दिए गए हैं। इनमें से सांडा अंडे फेंकने की मशीन लेकर चलता है और उससे सड़े अंडे अपने शिकार पर फेंकता है, डांडा के पास तोप है जिससे वो छींक वाला पाउडर फेंकता है, पांडा के पास रॉकेट लॉन्चर है और भांडा के पास तीर कमान है। इसके अलावा इनके गधे भी ऐसी तैसी फेरने में माहिर हैं और इनके बलबूते ये रूपनगर में डर फैलाने में कामयाब हो जाते हैं। 
यह जिस तरह रूपनगर को लूटते हैं, इस लूट में पुलिस की जो गति होती, पुलिस इन्हें पकड़ने के लिए जो-जो  करती है और हवलदार बहादुर आखिरकार इन्हें जिस तरह  पकड़ पाते हैं यही सब कॉमिक बुक का कथानक बनता है। इस सब के बीच हवलदार बहादुर की हरकतें, उसके साथ होने वाली हरकतें और किरदारों द्वारा किए गए मजाकिया काम हँसी लाने का कार्य करते हैं। 
 
कॉमिक में हवलदार और खड़गसिंह के बीच का समीकरण भी हास्य पैदा करता है। वहीं लाठी किसान, अकड़ू दादा जैसे किरदार भी कहानी को रोचक बनाते हैं। इनके अलावा कॉमिक में हवलदार का ‘याड़ी’ भूतनाथ है। भूतनाथ एक प्रेत है जिसे हवलदार के साथ मज़ाक करने में मज़ा आता है और इसी मज़ाक के चलते वह उसकी ऐसी तैसी फेरता है। सबसे ज्यादा हास्य प्रसंग भूतनाथ वाले हैं। हवलदार के गाने वाला प्रसंग अच्छा बना हुआ है। 
इस कॉमिक बुक में हास्य और एक्शन दोनों मौजूद है लेकिन एक तरह का दोहराव भी है। इससे पहले मैं हवलदार बहादुर के हवलदार बहादुर और नौ अजूबे और इच्छाधारी हवलदार और पंगानाथ पढ़ चुका हूँ और इनकी थीम से डंकी गैंग जैसी ही थी।  कुछ ऐसे कि एक गैंग रूप नगर आती है जो पुलिस की नाक में दम करती है। पुलिस और हवलदार इनसे पिटपिटाते हैं और हास्य पैदा किया जाता है। वहीं कॉमिक में  हवलदार बहादुर को अक्सर एक जादुई ताकत मिली होती (इच्छाधारी हवलदार में इच्छाधारी शक्ति और नौ अजूबे में जिन्न से मिली शक्ति) जिस ताकत से शुरुआत में तो उनकी फजीहत होती है, हास्य पैदा करने के लिए, लेकिन बाद में इसी ताकत के बल पर वह दुश्मनों पर काबू पाकर अपना नाम कर जाते हैं। 
तीनों कॉमिक्स की मुख्य कहानी यही है। बस बदले हैं तो खलनायक, पुलिस और हवलदार के फजीहत होने के तरीके और वो जादुई शक्ति जिसकी मदद से हवलदार आखिर में दुश्मनों पर काबू पाता है। 
ऐसा नहीं है कि इससे पहले हवलदार के कॉमिक में थीम नहीं दिखे हैं। मसलन अक्सर जब जादू नहीं होता था (नेपाली ठग, कमिश्नर का कुत्ता) वहाँ पर हवलदार किस्मत के चलते अपराधी को पकड़ लेता था और वाहवाही लूट ले जाता था। पर उनमें जादुई शक्ति का न होना कॉमिक को थोड़ा रोमांचक बना देता था। इसमें जादुई शक्ति होने से हवलदार के पास एक अतिरिक्त फायदा  रहता है जिससे पता होता है कि वह किसी न किसी तरह खलनायकों पर भारी पड़ेगा। यह चीज थोड़ा रोमांच कम कर देता है। हाँ, हास्य पर इसका कोई असर नहीं पड़ता है। चूँकि हवलदार बहादुर प्राथमिक तौर पर हास्य कॉमिक है और जो पाठक हास्य के लिए इसे पढ़ते हैं उन्हें इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ना चाहिए। 
इसके अतिरिक्त हवलदार बहादुर के इस कॉमिक में रखे गए नाम भी अटपटे लगते हैं। मैं समझ सकता हूँ कि लेखक ने शायद हास्य पैदा करने के लिए लेखक ने ये रखे हों लेकिन इनसे हास्य पैदा नहीं ही होता है। हाँ, गधेड़ी प्रसाद अच्छा नाम था। बाकी सदस्यों के नाम इसी प्रकार होते तो मज़ा आता। वहीं आम ज़िंदगी में अगर कोई व्यक्ति गधेड़ी प्रसाद नाम सुनेगा तो उसे हँसी आ जाएगी। हवलदार बहादुर, जो कि ऐसे मज़ाक करने का आदि है, वह इस नाम का मज़ाक उड़ाते हुए नहीं दिखता है जो कि मुझे अटपटा लगा। एक बार पिटने से पहले ऐसा करते तो दिखना चाहिए था।  
आर्ट वर्क की बात करूँ तो आर्ट बेदी जी का है और अच्छा है। बेदी जी किरदारों से लेकर जानवरों के भाव अच्छे से दर्शाते हैं और इधर भी वो उसमें सफल हुए हैं। गधों और गधी वाले प्रसंग में यह भाव बेहतर तरीके से देखने को मिलते हैं।  
हाँ, एक छोटी सी कमी मुझे लगी । कई जगह पर बेदी जी किरदारों के कपड़े पिटाई के बाद घुचमुच होते दिखाते है लेकिन थोड़ी देर बाद वो फिर स्त्री किए हुए  दिखने लगते है। यह थोड़ी सी अंसगति है लेकिन इस छोड़ दें तो आर्ट वर्क अच्छा है।
अंत में यही कहूँगा कि कॉमिक बुक हास्य पैदा करने में सफल होता है। पढ़ते हुए हवलदार बहादुर और अन्य किरदारों की हरकतें और उनके साथ होने वाली चीजें  आपके चेहरे पर मुस्कान ले आते हैं। इनके गड़बड़झाले देखकर बस यही आप सोचते हो कि अच्छा हुआ आप रूप नगर में नहीं रहते। कॉमिक बुक की मुख्य कहानी पढ़ी हुई लगती तो है लेकिन हास्य के मामले में  ये मनोरंजन भी करता है इसलिए एक बार इस कॉमिक को पढ़ सकते हैं। 

FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

View all posts by विकास नैनवाल 'अंजान' →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *