यात्रा वृत्तांत: दक्षिणी ध्रुव की यात्रा-दो – महावीर प्रसाद द्विवेदी

यात्रा वृत्तांत: दक्षिणी ध्रुव की यात्रा-दो – महावीर प्रसाद द्विवेदी

पृथ्वी के उत्तरी और दक्षिणी भागों को क्रम से उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव कहते हैं। ये देश बर्फ़ से सदा ढँके रहते हैं। वहाँ बारहों मास अत्यंत शीत रहता है। अतएव वहाँ मनुष्य का निवास प्रायः असम्भव है। सभ्य देशों के निवासी इन दुर्गम देशों का हाल जानने के लिए सदा से उत्सुकता प्रकट करते रहे हैं। केवल यही नहीं, उनमें से कितने ही साहसी पुरुष इन देशों का पूरा हाल जानने के लिए समय-समय पर वहाँ गए भी हैं। परंतु सन् 1911 ई. के पहले ठेठ ध्रुवों तक कोई भी नहीं पहुँच पाया। हाँ, उस साल और उसके बाद दो आदमी तो ख़ास उत्तरी ध्रुव तक और दो आदमी ठेठ दक्षिणी ध्रुव तक पहुँच गए। उनके नाम क्रम से ये हैं—पियरी, कुक, एमंडसन और स्कॉट। इनमें से पहले और तीसरे साहब के विषय में तो लोग निश्चित रुप से कहते हैं कि वे क्रम से उत्तरी और दक्षिमी ध्रुव को अवश्य पहुँचे, पर दूसरे और चौथे महाशय के विषय में किसी-किसी को संदेह है। पर जो लोग इस विषय में विशेष अनुभव रखते हैं, उनका कहना है कि चारों महाशय ध्रुवों तक पहुँच गए थे। इनमें से अंतिम साहब कप्तान स्कॉट के विषय में हाल ही में ख़बर मिली है कि कई साथियों समेत उनका दक्षिणी ध्रुव या देश में देहांत हो गया। इस दुखदायी समाचार ने सारे सभ्य संसार— विशेष कर इंगलैंड में हाहाकार मचा दिया। विलायत के प्रायः सभी प्रसिद्ध पुरुषों और बड़ी-बड़ी सभाओं ने— यहाँ तक कि स्वंय सम्राट जॉर्ज और पार्लियामेंट ने भी कप्तान स्कॉट और उनके साथियों की अकाल-मृत्यु पर शोक प्रकट किया और उनके परिवार वालों के साथ सहानुभूति दिखाई। कितने ही लोग इन पर लोकगत वीरों का स्मारक चिह्न स्थापित करने तथा उनके आश्रितों की सहायता करने के लिए धड़ाधड़ चंदा एकत्र कर रहे हैं। ऐसे समय में कप्तान स्कॉट और उनकी ध्रुवीय यात्रा का हाल जानने के लिए पाठक अवश्य उत्सुक होंगे। अतएव इस विषय में कुछ लिखना हम यहाँ उचित समझते है।

कप्तान स्कॉट के पहले जिन-जिन लोगों ने जब-जब दक्षिणी ध्रुव की यात्रा की, उसका विवरण इस प्रकार है—

यात्री का नामकब यात्रा कीकहाँ तक पहुँचे/क्या खोजा
बवेट1738 ई.बर्फ़ के पहाड़
कप्तान कुक1773 ई.71 डिग्री 10 मिनट
वेडेल1823 ई.74 डिग्री
सर जेम्स रॉस1839 ई.साउथ विक्टोरियालैड, ऐरबस तथा हेरर पहाड़
सर जेम्स1841 ई.कुछ भूमि
कप्तान एमंडसन
1910 ई.
ठेठ ध्रुव तक माड पर्वत

अब कप्तान स्कॉट की बारी आयी। ऊपर की सूची से मालूम होगा कि स्कॉट साहब एक बार पहले भी दक्षिणी ध्रुव की यात्रा कर आए थे। उस समय वे कमांडर स्कॉट के नाम से प्रसिद्ध थे। उनकी दूसरी या अंतिम यात्रा सन् 1910 ई. में प्रारम्भ तथा अँग्रेज़ों ही की सम्पत्ति थी। इसके यात्री भी अँग्रेज़ ही थे। इसलिए इस ध्रुवीय यात्रा का अँग्रेज़ लोग (British National Expedition) अर्थात् अँग्रेज़ों की जातीय चढ़ाई कहते हैं।

इस यात्रा में कप्तान स्कॉट यात्रा के लिए तैयार हो गए। इस यात्रा में उनके मुख्य साथी ये थे— (1) लेफ़्टिनेंट एवेस एटोरानोवा (जहाज़ के सहकारी नायक) (2) डॉक्टर विल्सन (इस यात्रा में जाने वाले वैज्ञानिको के मुखिया), (3) मिस्टर मेकिटासवेल (न्यूजीलैंड के भूगर्भ-विभाग के डाइरेक्टर)।

कप्तान स्कॉट का टेरानोव जहाज़ 29 नवम्बर 1910 ईसवी, को न्यूजीलैंड से रवाना हुआ। 30 दिसम्बर को वह कोज़र अंतरीप के निकट पहुँचा। परंतु वहाँ उतरने का सुभीता न देखकर वह मेकमर्डोसोड नामक स्थान की ओर गया। वहाँ जहाज़ से उतरकर सब लोगों ने एवेंस अंतरीप में जाड़ा बिताया। जनवरी 1911 के अंत मे कुछ साथियों समेत कप्तान स्कॉट ने दक्षिण की यात्रा की तैयारी के लिए खाने-पीने का सामान इकट्ठा करना प्रारम्भ किया।

इस स्थान पर कोई नौ महीने ठहरने के बाद ये लोग 2 नवम्बर 1911 ईसवी को दक्षिणी की ओर रवाना हुए। रास्ते में बर्फ़ के टीलों, गढ़ों और ऊँचे-नीचे दुर्गम स्थानों को पार करते हुए, साथियों समेत कप्तान स्कॉट पंद्रह मील प्रतिदिन की चाल से आगे बढ़ने लगे। मार्ग में बर्फ़ के ख़ास तरह के तूदे बनाते जाते थे, ताकि लौटते वक़्त राह न भूल जाएँ। 4 जनवरी 1912 को यह दल 87 डिग्री 36 मिनट दक्षिणी अक्षांश पर पहुँचा। वहाँ से दक्षिणी ध्रुव केवल डेढ़ सौ मील के फ़ासले पर था और उन लोगों के पास तीस दिन के लिए खाने का सामान था। कहते हैं कि इस जगह से स्कॉट साहब ने अपने कुछ साथियों को लौटा दिया और कहा कि तुम लोग जाकर जहाज़ का प्रबंध करो। ये लोग रास्ते में ध्रुवीय प्रदेश के जीव-जंतुओ तथा जलवायु की परीक्षा करते और कितने ही आविष्कार करते हुए अपने ठहरने के स्थान पर लौट आए। कप्तान स्कॉट अपने चार साथियों के साथ आगे बढ़े और शायद ध्रुव तक पहुँच गए। लौटते वक़्त रास्ते मे पाँचो वीर-पुंगवों का प्राणांत हो गया। अभी तक यह पता नहीं लगा कि किन कारणों से उनकी मृत्यु हुई। हाँ, 5 मार्च 1912 तक सभ्य संसार को उनके समाचार मिलते रहे; उसके बाद नहीं। कोई दस महीने तक टेरानोवा वाले कप्तान स्कॉट के साथी, केवल उनके लौटने की प्रतिक्षा ही नहीं करते रहे, किंतु उनका पता भी लगाते रहे। जब उन्हें यह निश्चय हो गया कि वीरवर कप्तान स्कॉट और उनके साथी अकाल काल-कवलित हो गए तब वे लोग इंगलैंड को लौटे और वहाँ पहुँच कर उन्होंने संसार को यह महा दुखदायी समाचार सुनाया।

उत्तरी ध्रुव की यात्रा में तो ऐसी दुर्घटनाएँ कई बार हो चुकी हैं, पर दक्षिणी ध्रुव की यात्रा में इसके पहले कभी कोई बड़ी दुर्घटना नहीं हुई थी। जो वीर अँग्रेज़ इस भयंकर दुर्घटना के शिकार हुए हैं, उनका परिचय दे देना हम यहाँ पर उचित समझते हैं। सबसे पहले कप्तान स्कॉट का हाल सुनिए।

स्कॉट साहब की पदवियों समेत पूरा नाम था—कप्तान राबर्ट फैकन स्कॉट, आर. एन. सी. बी. ओ., एफ. आर. जी. एस.। आपका जन्म 6 जून सन् 1868 ईसवी को विलायत के डेवन पोर्ट औटलैंड स्थान में हुआ था। आपने बाल्यावस्था में साधारण स्कूली शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद सन् 1882 ईसवी में आप इंगलैंड के नौ-सेना विभाग में भर्ती हुए। बहुत दिनों तक मामूली जहाज़ी काम करने के बाद आप सन् 1898 ईसवी में, इस विभाग के लेफ़्टिनेंट बनाए गए। एक ही दो वर्ष बाद आपको कमांडर का पद मिला। सन् 1904 में कप्तान के उच्च पद पर आप नियत किए गए। 1905 ईसवी में कैंब्रिज और मैंचेस्टर के विश्विद्यालयों ने आपको विज्ञानाचार्य, अर्थात् डी. एस. सी. की प्रतिष्ठित पदवी से विभूषित किया। सन् 1901 ईसवी में कप्तान स्कॉट ने पहली बार दक्षिणी ध्रुव की यात्रा की। उस समय आप ध्रुवीय प्रदेशों मे जितनी दूर तक गए थे, उसके पहले उतनी दूर तक कोई न पहुँच पाया था। अतएव तबसे आपका नाम सारे संसार मे प्रसिद्ध हो गया और आप अच्छे ध्रुवीय यात्री माने जाने लगे। इस उपलक्ष्य में उस समय आपको दुनिया भर की मुख्य-मुख्य भौगोलिक सभाओं ने स्वर्णपदक दिए थे। स्कॉट साहब बड़े ही साहसी, दृढ प्रतिज्ञ और वीर पुरुष थे। प्रबंध करने की शक्ति उनकी बहुत बढ़ी-चढ़ी थी। विज्ञान की प्रायः सभी शाखाओं मे वे थोड़ा बहुत दख़ल रखते थे।

कप्तान स्कॉट के साथ जिन चार वीरों ने ध्रुवीय प्रदेश में अपनी मानवलीला समाप्त की, उनके नाम ये हैं—डॉक्टर विल्सन, कप्तान ओट्स, लेफ़्टिनेंट ओवर्स, पेटी अफ़सर एबेंस। इनमें डॉक्टर विल्सन इंगलैंड के प्रसिद्ध विज्ञानवेत्ता थे। कप्तान स्कॉट साहब उन पर बहुत विश्वास करते थे। लेफ़्टिनेंट ओवर्स को तो कप्तान स्कॉट का दाहिना हाथ कहना चाहिए। कार्य-दक्षता के कारण अपने साथियों के वे बड़े ही प्रिय पात्र बन गए थे। यह बात यहाँ पर विशेष रुप से उल्लेख योग्य हैं कि ये दोनों अफ़सर भारतीय सेना विभाग से सम्बंध रखते थे और इसी देश से जाकर इस विकट यात्रा में सम्मिलित हुए थे। एवेंस साहब भी कप्तान स्कॉट के विश्वासपात्र और साहसी सहायकों में थे।

विलायत वाले स्कॉट साहब और उनके साथियों का स्मारक बनाना चाहते हैं। लार्ड कर्ज़न इस काम के लिए जी तोड़ परिश्रम कर रहे हैं। इस चढ़ाई में कोई साढ़े चार लाख रुपया खर्च पड़ा है। वह सब चंदे से भुगताया जाएगा, जो लोग इस यात्रा में मरे हैं, उनके कुटुम्बियों को पेंशन भी दी जाएगी। कर्मवीरों का आदर करना कर्मवीर ही जानते हैं।


FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *