यज्ञा 3: मौत का सौदागर | बुल्सआय प्रेस | सुदीप मेनन

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 36 | प्रकाशक: बुल्सआय प्रेस | शृंखला: हिंदी #1 

टीम

लेखक: सुदीप मेनन | चित्रांकन एवं रंग सज्जा: गिएडा बेलवीसो | आवरण चित्रांकन व रंग सज्जा: आदित्य दामले | हिंदी अनुवाद व शब्द सज्जा: मंदार गंगेले | ग्राफिक डिजाइन: गौरव गंगेले | अतिथि संपादक: नताशा सरकार | संपादक एवं प्रकाशक: रवि राज आहूजा | विशेष आभार: लौरा जुकेरी

पुस्तक लिंक: हिंदी संस्करण | अंग्रेजी संस्करण 

कहानी 

मुंबई में लाशों के मिलने का सिलसिला जारी थी। कोई था जो लोगों को मार रहा था और उनकी आँखों को निकाल दे रहा था।

वहीं प्रज्ञा पराशर भी गोवा से मुंबई आ चुकी थी। 

उसे उम्मीद थी कि मुंबई कॉमिक कॉन में कॉमिक बुक के नवीन इशू को लॉन्च कर लेगी। 

आखिर मुंबई में होती इन हत्याओं के पीछे कौन जिम्मेदार था?

क्या प्रज्ञा की कॉमिक बुक लॉन्च हो पाई?

किरदार 

होसी वाडिया – पुलिस इंस्पेक्टर 
विजय होलकर – पुलिस इंस्पेक्टर 
प्रज्ञा पराशर – एक कॉमिक बुक आर्टिस्ट 
शून्य – एक निवातकवाचा योद्धा 

विचार

‘यज्ञा: मौत का सौदागर’ यज्ञा शृंखला का तीसरा कॉमिक बुक है। जहाँ पहले दो कॉमिक बुक्स (यज्ञा: लाइट कैमरा कॉमिक्स, यज्ञा: ब्लड बाथ) की पृष्ठ भूमि गोवा थी वहीं ‘यज्ञा: मौत का सौदागर’ का घटनाक्रम सपनों की नगरी मुंबई में घटित होता दिखता है। प्रस्तुत कॉमिक बुक में तीन दिन और चार रातों की कहानी बताई गई है। 

चूँकि यह यज्ञा का कॉमिक बुक है तो इधर कोई पारलौकिक ताकत का होना लाजमी है और इधर राक्षसों की एक विशेष जाति निवातकवाचा से यज्ञा दो चार होते हुए दिखती है। यह निवातकवाचा कौन है और यज्ञा इनके मामले से कैसे जुड़ती है यह तो कॉमिक बुक पढ़कर जानेंगे तो बेहतर होगा। 

चूँकि प्रज्ञा गोवा से मुंबई आई है तो यहाँ की ज़िंदगी के कुछ पहलू हम प्रज्ञा के माध्यम से देखते हैं। मुंबई की तेज भागती दौड़ती ज़िंदगी, भीड़ भाड़ और लोग कई बार पहली दफा आए व्यक्ति को थोड़ा हैरत में डाल सकते हैं। यह चीज इधर दिखती है। चूँकि मैं खुद मुंबई में तीन साल रहा हूँ तो इन सब अनुभवों से खुद गुजरा हूँ। ऐसे में प्रज्ञा के अनुभवों से जुड़ाव महसूस कर पाया था। 

कॉमिक बुक में प्रज्ञा मुंबई कॉमिक कॉन में जाती है तो कॉमिक कॉन के प्रसंग में लेखक ने बुल्स आय के रचनाकारों और कुछ और कॉमिक बुक आर्टिस्टस को दर्शाया है। साथ में उन्होंने जो उनके लिए जो चुटीली टिप्पणी की है वह पाठक के चेहरे पर मुस्कराहट ले आती है। 

प्रज्ञा एक ऐसी कॉमिक बुक आर्टिस्ट है जिसके कॉमिक बुक बनाने के सपने में कोई न कोई रोड़ा अक्सर आता है। यह चीज इधर भी होती है और पाठक के मन में यह जिज्ञासा छोड़ जाती है कि इस मुसीबत से प्रज्ञा अपनी कॉमिक को कैसे निकालेगी। 

इसके साथ ही कॉमिक बुक में एक हत्या एक पुलिस वाले के रिश्तेदार की भी होती है। प्रस्तुत कॉमिक में इसका केवल जिक्र है। उम्मीद है अगली कॉमिक में पता लगेगा कि इस हत्या के पीछे कौन था?

इसके साथ साथ प्रज्ञा का मुंबई पुलिस से भी पाला पड़ता है। यह प्रसंग रोचक बन पड़ा है। उम्मीद है आगे के कॉमिक बुक्स में इसको और विकसित किया जाएगा। 

कथानक की कमियों पर आएँ तो कथानक की शुरुआत एक हत्या से होती है और इसमें पुलिस इंवेस्टिगेशन भी होती है। पर चूँकि यहाँ चीजें तीन दिन में हो रही हैं तो कहानी को तेज रफ्तार रखा है जिसके लिए लेखक ने संयोग का अत्यधिक सहारा लिया है।  ऐसे में इसमें एक्शन तो है लेकिन रोमांच थोड़ा कम हो जाता है। यह संयोग ही कहानी के कमजोर पक्ष हैं। अगर इन प्रसंगों पर थोड़ा और अधिक कार्य होता तो बेहतर होता। 

मसलन, कॉमिक की शुरुआत में हत्या की भूमिका एक नाइटक्लब में बनती है लेकिन फिर अगली हत्या कॉमिक कॉन में होती है। पाठक के रूप में आप समझते हैं कि यह हत्या इसलिए कारवाई गई है ताकि प्रज्ञा और यज्ञा इस मामले से जुड़ें लेकिन ये लेखक द्वारा आसान रास्ता चुनने जैसा है विशेषकर तब जब आपको पता लगता है कि जिसकी हत्या हुई है वह कौन है और क्या करता है। यहाँ ये बताना चाहूँगा कि कॉमिक कॉन एक टिकटेड ईवेंट होता है जहाँ अक्सर जो लोग आते हैं वह शायद ऐसे नहीं होते होंगे जिन्हें उस व्यक्ति की जरूरत होती होगी जिसकी हत्या होती इधर दर्शाई गई है। अगर ये हत्या नाइट क्लब में होती या किसी प्राइवेट पार्टी के आस पास होती तो भी समझा जा सकता था क्योंकि वहाँ लोग पार्टी करने आते हैं ऐसी चीजें लेते हैं जो कि उनके इस अनुभव को और अधिक बढ़ा सके। पर पुस्तक मेले या कॉमिक कॉन में शायद ऐसा न होता हो।  ऐसे में उस किरदार का वहाँ होना वैसे ही अटपटा है और फिर संयोग से प्रज्ञा का उधर कातिल से दो चार होना भी एक बड़ा संयोग ही रहता है। मुझे लगता है कि यज्ञा इस मामले से जिस प्रकार जुड़ती है वह और बेहतर हो सकता था।  

इसके अतिरिक्त कहानी में एक संयोग तब होता है जब एक किरदार का अपहरण हो रहा है। जब अपहरण हो रहा होता है तभी होसी और विजय वहाँ पहुँच जाते हैं। ऐसा करना भी लेखक द्वारा आसान रास्ता अपनाने जैसे लगता है। हम जानते हैं कि वह इन दो किरदारों का उन शक्तियों से परिचय करवाना चाहते हैं जो शहर में उत्पात मचा रही हैं। पर इसके लिए तोड़ और पैनल खर्च करके उनकी तहकीकात के कौशल को दर्शाया जाता तो बेहतर होता। 

अपहरण वाले प्रसंग की बात चली है तो एक प्रश्न पढ़ते हुए मेरे मन में ये भी आया था कि अपहरण करने वाले ने सीधा प्रज्ञा का ही अपहरण क्यों नहीं किया? क्या वह जानता था कि प्रज्ञा ही यज्ञा है? अगर नहीं तो उसे कैसे पता चला कि किस व्यक्ति को उठाने पर वह उसके पीछे आ जाएगी? अगर हाँ तो फिर उसका ऐसा करना समझ आता है। इस चीज को कॉमिक में साफ किया होता तो बेहतर होता।  

कॉमिक बुक में एक कत्ल होसी की पूर्व पत्नी का भी होता है। उनके बीच अभी तलाक नहीं हुआ था। ऐसे में उसके कत्ल के अगले दिन उसका दफ्तर में मौजूद रहना भी थोड़ा अटपटा लगता है। मतलब कहानी में जिस तरह से उनके बीच का रिश्ता दिखाया था वह ऐसा था कि उसका अपनी पत्नी के प्रति स्नेह अभी भी था। ऐसे में उसका अपनी पत्नी या अपने घर वालों के साथ न होना थोड़ा अजीब सा लगता है। इस बिन्दु को थोड़ा लेखक थोड़ा और यथार्थ के करीब रखते तो बेहतर होता। 

 कहानी के अलावा प्रस्तुत संस्करण में प्रूफरीडिंग की कुछ गलतियाँ देखने को मिल जाती हैं। अक्सर प्रकाशन में अनुनासिक (चंद्रबिंदु) की जगह बिंदु लगाने का चलन है जो कि व्यक्तिगत तौर पर मुझे सही नहीं लगता। क्योंकि हँस को अगर हंस लिखेंगे तो न केवल उच्चारण बदल जाता है बल्कि अर्थ भी बदल जाता है। ऐसे में इस कॉमिक में सराहनीय बात यह है कि यहाँ अनुनासिक का प्रयोग किया गया है लेकिन दिक्कत ये है कि यह प्रयोग कहीं कहीं पर ही हुआ है। जैसे कहीं ‘हूं’ लिखा है तो उसके अगले वाक्य में ‘हूँ’ हो गया है। जहाँ कहाँ के मामले में भी ऐसा ही है। यह अनियमितता खलती है। इसके साथ साथ क्रेडिट पृष्ठ पर ‘अतिथि संपादक’ की जगह ‘अतिथी संपादक’ लिखा होना भी खलता है। बीच बीच में कुछ शब्दों की वर्तनी भी गलत है। कॉमिक बुक में वैसे ही टेक्स्ट कम होता है तो ऐसे में यह गलतियाँ अधिक खलती हैं।  उम्मीद है कॉमिक बुक के नवीन संस्करण में प्रूफ रीडिंग की तरफ विशेष ध्यान दिया जाएगा। 

कॉमिक बुक का आर्टवर्क गिएडा बेलवीसो द्वारा किया गया है। आर्टवर्क अच्छा है और कहानी के अनुरूप हैं। हाँ, असुरों की बात की जाए तो उनका चित्रण एलीयन जैसा किया गया है। अगर शून्य को छोड़ दें तो बाकी सब अजीब से लगते हैं। अगर भारतीय मिथकों के अनुसार ही इन्हें चित्रित करते तो बेहतर होता। 

अंत में यही कहूँगा कि ‘यज्ञा: मौत का सौदागर’ एक रोचक कॉमिक बुक है। अत्यधिक संयोगों के चलते कहानी थोड़ी कमजोर हो गई है लेकिन कहानी में मौजूद एक्शन इस कमी को कुछ हद तक दूर कर देता है। मुझे लगता है कि अगर थोड़े और पृष्ठ लेखक को मिलते तो शायद कॉमिक बूक और अच्छा बन सकता था। कॉमिक बुक एक बार पढ़ा जा सकता है। 

कॉमिक बुक का अंत जिस तरह से हुआ है वह आपको अगला भाग पढ़ने के प्रति प्रेरित अवश्य करेगा। 

पुस्तक लिंक: हिंदी संस्करण | अंग्रेजी संस्करण 

 I’m participating in #BlogchatterA2Z 

ब्लॉगचैटर A 2 Z चैलेंज से जुड़ी अन्य पोस्ट्स आप इस लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं


FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

View all posts by विकास नैनवाल 'अंजान' →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *