संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 36 | प्रकाशक: बुल्सऑय प्रेस | श्रृंखला: असुरदेवी यज्ञा #2
लेखक: नितिन मिश्रा | चित्रांकन: जोहेब मोमिन | रंग सज्जा: नवल थानावाला
यज्ञा खंड 2: ब्लड बाथ |
कहानी:
नया साल सामने खड़ा दस्तक दे रहा था। और गोआ में इस बार हर किसी की जुबान में एक ही पार्टी का चर्चा था। ऐसा माना जा रहा था कि 31 दिसम्बर की रात की सबसे बेहतरीन पार्टी ब्लड बाथ नाम के जहाज में होने वाली थी।
वहीं गोआ के पब्स में में होने वाली पार्टियों में ऐसी ड्रग्स भेजी जा रही थी जिसको लेते ही लोग हिंसक होकर एक दूसरे पर हमला करने लगे थे।
कई लोगों को लगता था कि इस जहाज में होने वाली पार्टी में भी कुछ न कुछ तो बड़ा होने वाला था। इसलिए यह जहाज पुलिस ही नहीं बल्कि कई और दूसरे लोगों के नजरों में था।
वहीं बालाशक्ति ने जिस काम के लिए प्रज्ञा को रखा था वह उस काम को करने में मशगूल थी। एक नये भारतीय सुपर हीरोइन की रचना वह करना चाहती थी और इसके लिए उसने अपने सपनों का सहारा लिया था। वह सपने जो दिन प्रति दिन ज्यादा असल और ज्यादा खूँखार होते जा रहे थे।
आखिर ब्लड बाथ नाम के जहाज में क्या होने वाला था?
क्या प्रज्ञा नया कॉमिक बुक बना पायी?
क्या उसके सपने केवल कल्पना की उड़ान थे या उनके तार यथार्थ और सच्ची घटनाओं से जुड़े थे?
इन्हीं सब प्रश्नों को उत्तर आपको इस कॉमिक बुक को पढ़कर मिलेंगे।
मुख्य किरदार:
प्रज्ञा पराशर – एक कॉमिक बुक क्रिएटर
रक्तकुला – एक असुर जो गोआ में अपना सम्राज्य बनाना चाहता था
तिजानिया – रक्तकुला की बेटी
रक्तपुतलियाँ – रक्तकुला की गुलाम जो रक्तकुला के लिए खून का बन्दोबस्त करती थी
यज्ञा – असुर देवी
ए सी पी हर्ष वर्धन – गोआ पुलिस में अफसर
अन्वेषक – एक रहस्यमय किरदार जिसने पहले अंक में प्रज्ञा के पर्स में एक अंगूठी डाली थी
सटका अन्ना – एक गैंगस्टर
गोवानी बॉस – गोआ का एक गैंगस्टर
मेरे विचार:
यज्ञा: ब्लड बाथ यज्ञा श्रृंखला का दूसरा कॉमिक बुक है। इस खंड की कहानी वहीं से शुरू होती है जहां से खंड एक: लाइट कैमरा कॉमिक्स की कहानी खत्म होती है।
कहानी की शुरुआत में ही पाठकों को यज्ञा की रक्तकुला के साथ हुई पहली मुतभेड़ के विषय में पता चलता है। रक्तकुला कौन है इसकी जानकारी भी उन्हें मिल जाती है। इस कहानी को बताने के लिए प्रज्ञा के सपनों का सहारा लिया गया है। पहले अंक की तरह प्रज्ञा के सपने ही इस अंक में कहानी बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किये गये हैं। कहानी शुरू से ही पेस बना लेती है। ब्लड बाथ नाम का जहाँ जिक्र आता है वहाँ आकर आपको पता लग जाता है कि इस कहानी का अंत वहीं पर होगा। और ऐसा होता भी है। कहानी में रोमांच बना रहता है। ब्लड बाथ में क्या होगा यह जानने के लिए पाठक पढ़ता चला जाता है।
कहानी का मुख्य खलनायक एक असुर है जिसका नाम रक्तकुला है। यह नाम क्यों रखा गया ये मुझे नहीं पता लेकिन नाम सुनकर जहन में अपने आप ड्रेकुला आ जाता है। व्यक्तिगत तौर पर मुझे इससे परेशानी नहीं है। हो सकता है ड्राकुला को होमेज देने के लिए किया हो लेकिन अगर नाम कुछ अलग होता तो शायद बेहतर होता। रक्तकुला खतरनाक किरदार है। मेरी नजर में उसको ज्यादा जगह मिलनी चाहिए थी। दूसरी चीज मेरी समझ में नहीं आती जब भी हम असुरों को बनाते हैं उन्हें आड़ा टेढ़ा बेढंगा क्यों बनाते हैं? इधर तिजानिया, यज्ञा भी एक तरह से असुर ही हैं। उनका चित्रांकन ऐसा आड़ा टेढा नहीं है। रक्तकुला को भी ऐसा ही बनाया जा सकता था। उससे ज्यादा प्रभाव पड़ता है।
तिजानिया रक्तकुला की बेटी है जो रक्तकुला के लिए कार्य कर रही है। पहले अंक में भी उसका अच्छा खासा रोल था और इस अंक में भी उसे काफी जगह मिली है। यह एक रोचक किरदार है। इसके विषय में मैं और जानना चाहूँगा।
ए सी पी हर्ष वर्धन का डेविल मेय केयर रवैया इधर भी देखने को मिलता है। कॉमिक्स के अंत होने तक यह बात तो साफ हो जाती है कि उसकी और प्रज्ञा की मुलाक़ात जल्दी होगी। मैं यह देखना चाहूँगा कि यह मुलाक़ात किन परिस्थितियों में होती है।
कहानी में एक रहस्यमय किरदार अन्वेषक भी है। उसे देखकर यह तो लगता है उसका प्रज्ञा से कुछ रिश्ता है। वो रिश्ता क्या है? यह इधर पता नहीं चलता है। वह प्रज्ञा की जिंदगी में क्यों आया ? यह एक ऐसा प्रश्न है जो कहानी खत्म होते होते आपके दिमाग में रह जाता है। मैं इसके विषय में जरूर जानना चाहूँगा।
कहानी के मुख्य किरदार की बात करूँ तो वह एक पौराणिक देवी है। वह क्या है? यह तो इधर पता चल जाता है लेकिन क्यों है और प्रज्ञा से उसका क्या रिश्ता है यह मैं जानना चाहूँगा। इस कारण आने वाले कॉमिक्स का मुझे इन्तजार रहेगा। हाँ, उसकी एक शक्ति ऐसी दिखाई है जो कि ना चाहते हुए भी भोकाल की याद दिलाती है।
कॉमिक की कहानी कसी हुई हैं। एक्शन और रोमांच भरपूर है। हालाँकि ब्लड बाथ में जो खेल शुरू होता है उसमें कुछ और पैनलस में वहाँ के लोगों को भागते हुए और उन्हें शिकार बनते हुए या खुद को बचाने की जद्दोजहद करते हुए दिखाते तो ज्यादा बेहतर होता। कुछ ऐसे किरदारों को उधर जाते दिखाते जिनके विषय में पाठक को पता है कि वो शिकार बनेंगे तो उन सीन्स के साथ पाठक काफी रिलेट कर सकता था। इससे कॉमिक में पाँच छः पृष्ठ तो बढ़ते लेकिन रोमांच और गहरा होता। एक तरह का स्लेशर का फील भी उत्पन्न होता। अभी कहानी में पाठक को पता है जो मुख्य किरदार है उन्हें कुछ होना नहीं है और जिनको कुछ हो रहा है उनके साथ पाठक का कुछ जुड़ाव हो नहीं पाया है। इसलिए खून खराबा दिख तो रहा है लेकिन असर नहीं डाल रहा है। वहीं रक्तकुला मुख्य खलनायक है लेकिन वह आखिरी के दो पृष्ठों में आता है और फिर चार पाँच पृष्ठ तक ही चलता है। कहानी में यह इशारा तो किया है कि सब कुछ खत्म नहीं हुआ है। उम्मीद है आने वाले अंक में रक्तकुला से दोबारा मुलाक़ात होगी।
अंत में यही कहूँगा। ब्लड बाथ पढ़कर मुझे तो मजा आया। कहानी रोमांचक है और अंत तक मनोरंजन करती है। इस श्रृंखला के भविष्य में आने वाले दूसरे कॉमिक्स का इंतजार रहेगा।
रेटिंग: 3.5/5
अब कुछ प्रश्न:
प्रश्न 1: हमारी माइथोलॉजी में जब भी असुरों या दानवों को दर्शाया जाता है तो उन्हें शारीरिक रूप से खूबसूरत क्यों नहीं दिखाया जाता है? जबकि मेरा व्यक्तिगत अनुभव रहा है कई बहुत खूबसूरत दिखने वाले लोग भी असल जिंदगी में बहुत बुरे रहते हैं? हम लोग शारीरिक खूबसूरती को अच्छाई से क्यों जोड़ते हैं? यह सब शुरू हुआ होगा?
प्रश्न 2: भारतीय माइथोलॉजी के अलावा आपको और कौन से देश या सभ्यता की माइथोलॉजी आकर्षित करती है? क्या आप उस माइथोलॉजी से जुड़े अपने कुछ पसंदीदा किरदारों के विषय में बता सकते हैं?
अगर आपने इस कॉमिक को पढ़ा है तो आपको यह कैसी लगी? अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करवाईयेगा। अगर आपने इसे नही पढ़ा है तो आप इसे निम्न लिंक पर जाकर आर्डर कर सकते हैं:
फेनिल कॉमिक्स
बुल्सऑय प्रेस
© विकास नैनवाल ‘अंजान’