संस्करण विवरण:
प्रकाशक: फेनिल कॉमिक्स | लेखक/केलिग्राफी/सम्पादन : फेनिल शेरडीवाला | पेंसिलिंग: गौरव श्रीवास्तव
कहानी
सितारापुर न्यूक्लियर प्लांट में मारी गई सेंध का नतीजा था कि भारतीय परमाणु अनुसंधान से जुड़े दो वैज्ञानिकों की मृत्यु हो गई थी।
जासूस बलराम ने जब मृत्यु की खबर सुनी थी तो उसे दो और दो चार जोड़ने में ज्यादा वक्त नहीं लगा था। अब कमिश्नर के कहने पर वो अपने साथी सलीम के साथ मिलकर इस मामले की जाँच कर रहा था।
वहीं दूसरी तरफ ब्लैक नामक उस अपराधिक संस्था ने एक और डील दुश्मन देश के साथ कर ली थी।
आखिर क्या थी यह डील जिसे सबसे बड़ी डील कहा जा रहा था?
क्या बुद्धिबल और उसके साथी इस डील को पूरा कर पाए?
जासूस बलराम की तहकीकात का क्या नतीजा निकला?
मेरे विचार
‘सबसे बड़ी डील’ (Sabse Badi Deal) जासूस बलराम शृंखला (Jasoos Balram Series) की दूसरी कॉमिक बुक है। कॉमिक बुक की शुरुआत उसी जगह से होती है जहाँ पर पहली कॉमिक ‘ब्लैक’ (Black) खत्म हुई थी और यह कॉमिक कहानी को आगे बढ़ाने का कार्य करती है।
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पिछली कॉमिक में हमें बताया गया था कि अपना पहला मिशन कामयाबी से पूरा करने के बाद ‘ब्लैक’ टीम (बुद्धिबल, लॉकविन, ऑलविन, सी पी यू, क्रेटा ) चीनी जासूसों के लिए एक और डील करने की हामी भर्ती है। यह डील क्या है और ब्लैक टीम इसे कैसे पूरा करती है ये इसी कॉमिक में पता चलता है। वहीं इस कॉमिक में हम जासूस बलराम (Jasoos Balram) और उसके साथी सलीम (Salim) को तहकीकात करते हुए देखते हैं और यह जानते हैं कि सितारापुर न्यूक्लियर प्लांट के उन वैज्ञानिकों को क्यों मारा गया था। इन सबके अलावा पाठकों को जासूस बलराम के इतिहास और ब्लैक टीम के विषय में भी कुछ जानकारियाँ इस कॉमिक बुक में प्राप्त होती हैं। यह जानकारियाँ अगले भाग को पढ़ने की उत्सुकता मन में जगा देती हैं।
कॉमिक बुक की कहानी तेज रफ्तार और एक्शन से भरपूर है पर फिर भी कई बातें कहानी में ऐसी हैं जिन्हें पढ़कर लगता है कि कहानी पर कुछ और काम किया जाना था।
शृंखला की सबसे बड़ी कमी ये है कि दो भाग गुजरने के बाद भी खलनायक टीम और नायक टीम टकराते नहीं हैं। नायक खलनायक से एक कदम पीछे ही दिखाई देता है। अगर कॉमिक में उनका टकराव दर्शा पाते तो शायद कॉमिक बुक थोड़ा और अधिक रोमांचक बन पाती। कॉमिक बुक के अंत होने तक भी पाठक के रूप में हम ये अंदाजा नहीं लगा पाते हैं कि इनका टकराव कैसे होगा। हाँ, आखिर में कॉमिक बुक के आखिरी भाग चुनौती का पोस्टर दिखता है जिसमें कुछ चीनी लोग ब्लैक टीम को बलराम और सलीम की फोटो देते हुए दिखते हैं। वैसे तो एक ऐसा ही पोस्टर ‘सबसे बड़ी डील’ के लिए भी प्रकाशक द्वारा पहले कॉमिक ‘ब्लैक’ में बनाया गया था और यहाँ पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। लेकिन फिर भी चूँकि तीसरा पार्ट आखिरी होने वाला है और उसमें उन्होंने ये पोस्टर दर्शाया है तो यह चीज सोचने पर मजबूर करती है कि क्या आखिरी में भाग चीनी जासूसों के चलते ब्लैक टीम और बलराम में भिड़ंत होगी या बलराम अपनी जासूसी के चलते ब्लैक टीम के ठिकाने का पता लगाएगा? यह देखना रोचक होगा। व्यक्तिगत तौर पर मुझे उम्मीद रहेगी कि वह उनके ठिकाने का पता लगाए क्योंकि वह उनके सभी सदस्यों से तो अब वाकिफ हो ही चुका है।
कहानी की कमियों पर वापिस लौटें तो कहानी में अपनी डील को पूरा करने के लिए ब्लैक टीम के सदस्य एक जगह लूटते हैं। यहाँ पर वो काफी गार्ड्स को जान से मार देते हैं लेकिन जाते हुए अपने पीछे सबूत के तौर पर एक गवाह छोड़ जाते हैं। न केवल वो गवाह छोड़ते बल्कि उसके सामने न मास्क पहन शक्ल छिपाने की कोशिश करते हैं और न ही फर्जी नाम लेते हैं। मैं ये सोच रहा था कि कौन सा ऐसा गामड़ अपराधी होगा जो ये दो काम करेगा और फिर गवाह भी छोड़ जायेगा। मतलब गलती से पहचान पता चलना अलग बात है लेकिन ये तो बलराम की मदद करना ही हुआ क्योंकि इसी के चलते बलराम को ब्लैक टीम के दो सदस्यों के नाम पता लगते हैं और उसके दिमाग में काफी चीजें साफ होती हैं। बेहतर ये होता कि वो दर्शाते कि किसी चीज के चलते वो आदमी को मार नहीं पाए। वहीं उनकी पहचान पाने में भी थोड़ी जटिलता दर्शाई होती तो बेहतर होता। यही चीज तब भी होती है जब ये अपराधी अपनी इस कॉमिक की दूसरी डील पूरी करने जाते है। वहाँ भी ये बिना मास्क के पहुँच जाते हैं और सी सी टी वी कैमरा में अपनी पहचान दर्ज करा देते हैं। ऐसा लगता है जैसे उन्होंने भारतीय पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों को एकदम नाकारा ही समझ लिया है।
कहानी में एक कमी मुझे ये भी लगी कि इस बार ‘ब्लैक’ टीम की चौथी सदस्या क्रेटा के करने के लिए ज्यादा कुछ रखा नहीं गया था। बाकी सभी सदस्य यानी बुद्धिबल, सी पी यू, लॉकविन और ऑलविन कुछ न कुछ जरूरी काम करते दिखते हैं लेकिन वो इस बार आराम करती या सी पी यू के साथ रहती दिखती है। हाँ, कॉमिक में मौजूद पहली डील के लिए वो आखिर में लूटा हुआ समान लेकर जाती जरूर है लेकिन उसके हिस्से में भी कुछ एक्शन आता तो बढ़िया होता।
वहीं कहानी की एक और बड़ी कमी यह है कि कॉमिक की दूसरी डील इसमें बस ऐसे दर्शा दी गई है जैसे खाना पूर्ति की गई हो। हमें बस उस मिशन के बारे में ये बता दिया गया है कि वो पूरा किया जा चुका है लेकिन उसे करते हुए दर्शाया नहीं जाता है। शायद पृष्ठ की कमी के कारण ये किया गया हो पर ये कहानी से रोमांच का तत्व कम कर देता है। अगर ये दर्शाया जाता कि ब्लैक टीम इस कॉमिक के अपने दूसरे मिशन (कॉमिक बुक में दूसरे मिशन और पूरी शृंखला के तीसरे मिशन) में किस तरह कामयाब हुई तो ज्यादा बेहतर होता। कहानी थोड़ा और अधिक रोमांचक बन सकती थी।
कॉमिक में एक हुसैन खान नाम का रोचक किरदार लेखक लेकर आए थे लेकिन शुरुआती उम्मीद जगाने के बाद उसे ऐसे ही जाया कर दिया है। अगर प्रकाशक ब्लैक टीम द्वारा इस कॉमिक के आखिरी मिशन को अंजाम देते दर्शाते तो हुसैन खान की मौजूदगी जरूर उसमें रहती क्योंकि वही उस जगह की सुरक्षा व्यवस्था देख रहा था जहाँ से ब्लैक टीम को कुछ उड़ाना था। ऐसे में उस मिशन को चलती चाल में निपटाकर हुसैन का एक अच्छा खासा रोल काट दिया गया सा लगता है। उम्मीद है अगले भाग में उसे लाया जाएगा।
कॉमिक बुक के आर्ट की बात की जाए तो आर्टवर्क मुझे ठीक ठाक लगा। हाँ, अगर आप ऐसे आर्टवर्क देखने के शौकीन हैं जो कि आपको ठहरे के लिए मजबूर करे तो ऐसा आर्टवर्क शायद आपको इधर न मिले। कॉमिक में मौजूद एकलौता स्प्लैश पेज भी इस मापदंड को पूरा नहीं कर पाएगा। पर आर्टवर्क बुरा भी नहीं है।
हाँ, एक बात मुझे समझ नहीं आई कि जहाँ एक तरफ ब्लैक टीम के चेहरे अच्छे से बने हैं वहीं बलराम और उसके साथी के चेहरे ऐसे बने हैं जैसे मिट्टी के लौंदे को किसी अकुशल कारिगर ने चेहरे का रूप दे दिया हो। उन बेचारों के साथ थोड़ा न्याय करना चाहिए था।
ब्लैक टीम के कुछ पैनल |
अपने बलराम और सलीम; नीचे वाले पैनल मे तो फिर भी ठीक बने हैं दोनों |
अंत में यही कहूँगा कि ऊपर लिखी कमियों पर अगर लेखक और प्रकाशक काम करते तो कॉमिक अभी जितना अच्छा है उससे काफी बेहतर बन सकता था। अगर कहानी थोड़े से पेज बढ़ाकर अच्छी बन रही है तो उन्हें उसे बढ़ाने में कोई गुरेज नहीं करना चाहिए। यह कॉमिक आगे आने वाले भाग के प्रति उत्सुकता जगाता है। उम्मीद है प्रकाशक इस तीसरे भाग को जल्द लाकर कहानी को समाप्त करेंगे।
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