संस्करण विवरण
फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 32 | प्रकाशक: राज कॉमिक्स | शृंखला: बाँकेलाल
टीम
लेखक: राजा | चित्रांकन: बेदी
कहानी
विशालगढ़ राज्य के व्यापारियों में डर व्यापत था। राज्य में ऐसे चोर सक्रिय थे जो कि धनाढ्य लोगों के घर चोरी कर उनका सब धन सफाचट कर दे रहे थे।
वहीं शीतल गढ़ के राजा विजयेन्द्र भी परेशान थे। उनकी बेटी सपनलता को एक दस सिंग वाला राक्षस उठाकर ले गया था।
अब इन दोनों राजाओं की आस बाँकेलाल पर टिकी थी। वो चाहते थे कि ये उनकी समस्या का समाधान करे।
वहीं बाँकेलाल का ऐसा करने का कोई इरादा न था। वह बिना वजह अपनी जान साँसत में फँसाना नहीं चाहता था।
क्या विशालगढ़ और शीतलगढ़ की मुसीबत सुलझ पाई?
क्या बाँकेकाल अपने इरादे में कामयाब हुआ?
विचार
‘मुकद्दर का धनी’ राजा द्वारा लिखा बाँकेलाल का कॉमिक बुक है। यह बाँकेलाल का पाँचवाँ कॉमिक बुक है जो कि राज कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित किया गया है और इसे राज कॉमिक्स के बाँकेलाल डाइजेस्ट 1 में संकलित किया गया था। इस संकलन में छह कॉमिक बुक्स संकलित किए गए हैं जिसमें से चौथा यक्ष कुमार मैंने इस साल जुलाई में पढ़ा था। इसके बाद बाँकेलाल का कोई कॉमिक पढ़ने का मौका नहीं लगा और न ही यक्ष कुमार के बारे में लिख नहीं पाया। कुछ दिनों से कोई कॉमिक बुक नहीं पढ़ा था तो इस संकलन को वापस निकाला और ‘मुकद्दर का धनी’ पढ़ने का मन बना लिया।
‘मुकद्दर का धनी’ का चित्रांकन बेदी जी ने किया है और कहानी राजा द्वारा लिखी गई है। राजा राज कॉमिक्स का ट्रेड नेम था और इसके लिए कई लेखकों ने लिखा है। यह कहानी किसने लिखी यह तो राज कॉमिक्स वाले ही बता पाएँगे। बहरहाल कॉमिक बुक रोचक बन पड़ी है।
प्रस्तुत कॉमिक बुक में दो परेशानियाँ हैं जिनसे बाँकेलाल को जूझना है। एक तो विशालगढ़ में होती चोरियाँ हैं और दूसरा शीतलगढ़ की राजकुमारी सपनलता का दस सिंग वाले राक्षस द्वारा अपहरण। दोनों ही मामलों में बाँकेलाल का मन इन मुसीबतों से बचने का होता है और जिसने उस पर भरोसा किया रहता है उन्हीं का बुरा करने का होता है। पर कैसे किस्मत के चलते वो इन मुसीबतों से घिरता है और फिर किस तरह शाप के कारण वो जिसका बुरा करना चाहता है उसका भला कर बैठता है यह देखना रोचक होता है। बाँकेलाल के मन में जो चलता रहता है वो पढ़ना भी हास्य पैदा करता है।
बाँकेलाल की कहानियों का जो पैटर्न है उसमें यह फिट बैठती है। हाँ, कथानक में जो सपनलता वाला मामला है वो जल्दबाजी में अंत किया हुआ लगता है। एक दो पृष्ठ उसमें अधिक होते तो बेहतर होता।
वैसे तो बाँकेलाल के मन और उसकी कुटिलता अक्सर संबंधित व्यक्तियों को दिखती नहीं है। लेकिन इधर होता दिखता है। हाँ, बाद में जैसे वो लच्छेदार बातों से अपने पक्ष में पूरा मामला कर देता है वो इधर आखिर में होता नहीं दिखता है। संबंधित व्यक्ति खुद ही ये सोच लेता है। अगर बाँकेलाल की वाकपटुआ इधर दिखलाते तो बेहतर होता।
उपन्यास में चित्रांकन बेदी का है। आर्ट अच्छी है।
अंत में यही कहूँगा कि यह कॉमिक बुक रोचक थी। हास्य का तत्व भी इसमें मौजूद हैं। अगर नहीं पढ़ी है तो पढ़कर देख सकते हैं।