हवलदार बहादुर और नौ अजूबे | मनोज कॉमिक्स | विनय प्रभाकर

 संस्करण विवरण

फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 64 | प्रकाशक: मनोज कॉमिक्स | शृंखला: हवलदार बहादुर

टीम 

कहानी: विनय प्रभाकर | चित्रांकन: जितेंद्र बेदी 

हवलदार बहादुर और नौ अजूबे | मनोज कॉमिक्स | विनय प्रभाकर | Havaldar Bahadur Aur Nau Ajoobe | Manoj Comics | Vinay Prabhakar | Review | समीक्षा

कहानी 

रूपनगर आजकल दहशत के साए में जी रहा था।

वहाँ आजकल एक गैंग सक्रिय था जो खुद को नौ अजूबे कहते थे और जो यहाँ-वहाँ डकैती डालने से बाज नहीं आ रहे थे

पुलिस भी उनको पकड़ने में नाकाम हो रही थी और यही कारण था कि कमिश्नर ने हवलदार बहादुर को इस काम पर लगाया था।

आखिर कौन थे ये नौ अजूबे?

क्या हवलदार बहादुर इन्हें पकड़ पाए?

मेरे विचार 

‘हवलदार और नौ अजूबे’ मनोज कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित हवलदार बहादुर का विशेषांक है। कॉमिक बुक की कहानी विनय प्रभाकर द्वारा लिखी हुई है और इसका चित्रांकन जितेंद्र बेदी जी द्वारा किया गया है। 

कॉमिक बुक की कहानी की शुरुआत एक पार्टी से होती है जहाँ पर नौ अजूबे (नचकइया, हाड़तोड़, माकड़ू, पेंटल, हबीब टकला, चिपकू, झाड़िया, रपटुआ, तालातोड़ू) आ जाते हैं और अपना कमाल कर जाते हैं। यह नौ अजूबे नौ अपराधियों का गैंग है जिनकी अपनी अपनी खूबियाँ हैं और इनकी बदौलत यह किसी भी समूह को काबू कर उसे लूट देते हैं। इनका गैंग लीडर हबीब टकला है जो कि लूट के बाद अपने शिकारों को गंजा कर देता है। गैंग इतना खतरनाक रहता है कि पुलिस पर भी ये भारी पड़ता दिखता है। ऐसे में हवलदार बहादुर इनसे कैसे निपटते हैं और इस दौरान उनकी जिंदगी में क्या उठा पटक होती है यही कॉमिक बुक का कथानक बनता है।

हवलदार बहादुर किस्मत के तो धनी हैं और अपनी इसी किस्मत के बलबूते पर उन्हें एक जादुई ताकत इस कॉमिक बुक के बल पर मिल जाती है। इस ताकत के कारण जहाँ शुरुआत में उनकी ऐसी तैसी होती है और कॉमिक में हास्य उत्पन्न होता है वहीं आखिर में यही ताकत उन्हें इस गैंग से लड़ने के काबिल भी बनाता है। यह ताकत क्या है यह तो आप कॉमिक पढ़कर ही जानोगे तो अच्छा रहेगा। कॉमिक बुक के अंत में हवलदार बहादुर के साथ इस जादुई ताकत को लेकर एक और चीज होती है जो कि अगले कॉमिक ‘साठ लाख का बकरा’ को पढ़ने की इच्छा मन में जगा देती है। फिलहाल तो ये कॉमिक मेरे पास है नहीं लेकिन अगर मिलता है तो जल्द ही पढ़ूँगा। 

हवलदार बहादुर के कॉमिक बुक की बात करें तो यह कॉमिक बुक हास्य के लिए जाने जाते हैं। यह हास्य इस शृंखला की कॉमिक बुकों में कई बार परिस्थितजन्य उत्पन्न होता है और कई बार हवलदार बहादुर की हरकतों के कारण उत्पन्न होता है।  इस कॉमिक बुक में भी ऐसा ही है। जहाँ कॉमिक बुक में ऐसी कई स्थितियाँ आती हैं जहाँ पर हवलदार बहादुर की ऐसी तैसी फिर जाती है और वह आपके चेहरे पर मुस्कान ले आती है वहीं हवलदार बहादुर द्वारा खड़ग सिंह के साथ की गई हरकतें भी हास्य पैदा कर देती है। हवलदार बहादुर के अपने पड़ोसी, अपनी बीवी  चंपाकली, भतीजे टुंड और इंस्पेक्टर खड़गसिंह के साथ आने वाले प्रसंग विशेष रूप से रोचक बन पड़े हैं। इसके अलावा छोटी मोटी हास्य पैदा करती बात कॉमिक बुक में होती रहती है। 

कॉमिक बुक के अन्य किरदार कथानक को आगे बढ़ाते हैं। इस कॉमिक में खलनायकों का एक पूरा गैंग है जिसके सदस्यों की  अपनी अलग अलग विशेषता है। गैंग का लीडर हबीब टकला लोगों को लूटकर गंजा करता है। नचकइया संगीत चलाकर नाचता है और नाच नाच कर लोगों की पिटाई करता है। हाड़तोड़ किसी की भी हड्डी तोड़ने का काम आसानी से कर देता है। माकड़ू के मुँह की बदबू से अच्छे खासे आदमी बेहोश हो जाते हैं। झाड़िया की खुजली पाउडर लोगों के शरीर में ऐसी खुजली कर देती है कि वो खुजली कर करके बेदम हो जाते है। चिपकू किसी भी पाइप में चढ़ जाता है। रपटुआ के पास ऐसा तरल पदार्थ रहता है जिसकी मदद से वो किसी को गिरा भी सकता है और मौका लगने पर जिसकी मदद से वह खुद भी फरार हो जाता है। इस गैंग में पेंटल भी है जिसके कोट में इतने हथियार हैं कि वो उसके शिकार को बेबस कर देते हैं और तालतोड़ भी है जो किसी भी ताले को चुटकियों में तोड़ देता है। 

चूँकि इस बार खलनायकों की गैंग में नौ सदस्य हैं और हर किसी की अपनी अलग खूबी है तो लेखक की यह जिम्मेदारी बनती है कि हर किसी को दर्शाए। लेखक ये काम करते भी हैं। नौ अजूबे कहानी में तीन बार आते हैं जहाँ इसके सदस्यों की ताकत देखने को मिलती है। वहीं हवलदार बहादुर को इनसे जूझते देखना में मजेदार रहता है। आखिर में वह कैसे अकेला (अपनी जादुई ताकत के साथ) इनसे पार पाता है ये देखना भी रोचक रहता है।

इस कॉमिक बुक की एक और खूबी है जो कम ही देखने को मिलती है। अक्सर 64 पृष्ठ के कॉमिक बुक में कहानी आपको केवल 60 पृष्ठ में ही मिलती है और चार पृष्ठ विज्ञापन के मिलते हैं लेकिन इसमें ऐसा नहीं है। ‘हवलदार बहादुर और नौ अजूबे’ में आपको पूरे 64 पृष्ठ का कथानक पढ़ने को मिलता है। 

कॉमिक बुक के आर्टवर्क की बात करूँ तो यह अच्छा है। यह ज्यादा फैंसी नहीं है लेकिन बेदी जी किरदारों के चेहरे पर जो भाव बनाते हैं उन्हें देखकर मज़ा आ जाता है। बेदी जी का अपना एक स्टाइल है और उसी स्टाइल में इसे किया गया है। मुझे पसंद आया है।

अंत में यही कहूँगा कि यह एक पठनीय कॉमिक बुक है जिसे एक बार पढ़कर देखा जा सकता है। कॉमिक बुक कई जगह हँसाने में भी सफल होता है। अगर हवलदार बहादुर के कारनामों को पढ़ने के शौकीन हैं तो आपको पढ़ने में मजा आयेगा। हाँ, ज्यादा लॉजिकली सोचते हैं तो हो सकता है आपको यह बात खले कि हवलदार को लेखक ने एक ताकत देकर उसे एक अनुचित लाभ (undue advantage) दिया है लेकिन लेखक उसकी भरपाई भी कर देते हैं जिससे कुछ हास्य भी पैदा हो जाता है। ऐसे में वह लाभ इतना खलता नहीं है। 

क्या आपने इस कॉमिक बुक को पढ़ा है? अगर हाँ तो आप अपनी राय कमेंट बॉक्स में लिख सकते हैं। 

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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