चलते फिरते बम | तुलसी कॉमिक्स | कंचन

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: ईबुक | प्रकाशक: तुलसी कॉमिक्स | प्लैटफॉर्म: प्रतिलिपि | चित्रांकन: विकास कुमार | लेखिका: कंचन 

कॉमिक बुक लिंक: प्रतिलिपि

समीक्षा: चलते फिरते बम | तुलसी कॉमिक्स | कंचन

कहानी 

शहर में जीती जागती मौत का आतंक फैल चुका था। वह अपराध करते जा रहे थे और वहाँ की पुलिस उनका कुछ नहीं बिगाड़ पा रही थी। 
ऐसे में जब इस गैंग ने मंत्री के बेटे का अपहरण भी कर दिया तो इंस्पेकटर टाइगर पर इन्हें पकड़ने का दबाव बन गया। 
आखिर कौन थी ये जीती जागती मौत? 
पुलिस इनके सामने क्यों असहाय पड़ जा रही थी? 
क्या इंस्पेकटर टाइगर इस गिरोह से लड़ पाया?

किरदार

सेठ प्रताप चंद – नगर के एक जाने माने रईस 
मंजु – सेठ की पत्नी 
बबलू – सेठ का बेटा 
टाइगर – पुलिस इंस्पेकटर 
परेश – नेता का बेटा 
डॉक्टर डिप्लो और डॉक्टर स्टोन – दो डॉक्टर 

मेरे विचार

चलते फिरते बम तुलसी कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित कॉमिक बुक है। कॉमिक बुक कंचन नाम की लेखिका ने लिखा है और इसका आर्ट वर्क विकास कुमार नामक चित्रकार ने किया है। यह दोनों ही नाम अब कॉमिक इंडस्ट्री में सुनने में नहीं आते हैं। अगर इन कलाकारों के विषय में कोई जानकारी आपके पास है तो मुझसे साझा अवश्य कीजिए। 

कॉमिक्स की बात करें तो जैसा शीर्षक से जाहिर है कॉमिक बुक चलते फिरते बम के बारे में हैं। यह कहानी एक नगर की है जहाँ अचानक से एक आपराधिक गैंग ‘जीती जागती मौत’ सक्रिय हो जाता है। इस गैंग की खास बात यह है कि यह अपराध करने के लिए आत्मघाती मानव बमों का सहारा लेता है। शहर के एक अमीर व्यक्ति के बेटे के अपहरण से शुरू हुए अपराध अचानक से पूरे शहर को अपने कब्जे में ले लेते हैं और नगर में एक डर का माहौल स्थापित कर देते हैं। इस गैंग से निपटने की जिम्मेदारी इंस्पेक्टर टाइगर की है। वह किस तरह से इस गैंग से निपटता है यही कथानक बनता है। 

कथानक तेज रफ्तार है लेकिन चूँकि कॉमिक कम पृष्ठों का है तो कथानक ज्यादा पेचीदा नहीं है। कुछ पृष्ठ अपराध होते हुए दिखाने में इस्तेमाल किये हैं और फिर एक ऐसी घटना हो जाती है कि टाइगर को मुख्य खलनायक के अड्डे पर पहुँचने का रास्ता मिल जाता है। उसके बाद क्या होगा इस अंदाजा आसानी से लग जाता है। बीच में एक हल्का सा ट्विस्ट रखने की कोशिश भी की है लेकिन चूँकि शायद पृष्ठ कम रखने थे तो उसे लंबा नहीं खींचा गया है। इस चीज के चलते कथानक में रोमांच की कमी महसूस होती है। मुझे लगता है कि अगर थोड़ा सा पृष्ठ संख्या बढ़ाकर कथानक में कुछ पेचीदगियाँ डाली जाती तो बेहतर रहता। 

कॉमिक के आर्टवर्क की बात की जाए तो विकास कुमार का चित्रांकन बड़ी हद औसत ही कहा जाएगा। यह कहानी को बयान तो कर देता है लेकिन ऐसा नहीं है कि आप इस पर ठहर कर कुछ वक्त व्यतीत करें। ऐसा लगता है प्रकाशक ने कहानी देखकर ही आर्टिस्ट चुना है या आर्टिस्ट ने कहानी के स्तर के हिसाब से चित्रांकन किया है। 

कॉमिक की एक कमी यह भी है कि इसके कुछ पैनल धुंधले हैं। इस धुंधलेपन को लेकर एक और बात मैंने नोटिस की है। जब मैंने यह कॉमिक प्रतिलिपि एप्प में पढ़ी तो ये धुंधले पैनल ज्यादा थे। वहीं जब लैपटॉप पर पढ़ी तो धुंधले पैनलों की संख्या काफी घट गयी थी। फिर भी कुछ पैनल वेबसाईट में भी धुंधले थे जो पढ़ने में दिक्कत पैदा करते हैं। यह चीज नोट करने के बाद यह तो तय है कि मैं फोन में कॉमिक कम पढ़ूँगा और अगर कोई पैनल धुंधला दिखा तो वेबसाईट में उसे पढ़ने की कोशिश करूँगा। लेकिन फिर भी प्रकाशक को इसे ठीक करना चाहिए।

 

एक स्कैन

अंत में यही कहूँगा कि यह एक साधारण कॉमिक बुक है जिसे एक बार पढ़ा जा सकता है। अगर आपको जटिल कथानक पढ़ने का शौक है तो शायद आप इससे निराश हो सकते हैं। 

कॉमिक बुक लिंक: प्रतिलिपि

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर उन्हें लिखना पसंद है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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4 Comments on “चलते फिरते बम | तुलसी कॉमिक्स | कंचन”

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (27-10-2021) को चर्चा मंच         "कलम ! न तू, उनकी जय बोल"     (चर्चा अंक4229)       पर भी होगी!

    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    — 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

    1. चर्चा अंक में मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार..

  2. कमियों और दोषों पर सीधा दृष्टि ।
    सटीक समालोचना।

    1. जी लेख आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा।

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