संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक | प्रकाशक: राज कॉमिक्स | पृष्ठ संख्या: 64 | लेखक: तरुण कुमार वाही | पेंसिलर: दिलीप चौबे
श्रृंखला: गमराज, परमाणु, डोगा, शक्ति
कहानी:
यमलोक में आजकल सभी परेशान चल रहे थे। यमदूत आत्मा लेने धरती पर जा तो रहे थे लेकिन उन्हें खाली हाथ वापस लौटना पड़ रहा था।
इस कारण सृष्टि का संतुलन बिगड़ रहा था। आत्माओं के न आने से नवजात शिशुओं के लिए आत्मा प्रबंध करना सबके लिए दूभर हो रहा था। ऐसे में यमराज धरती पर गये और उन्होंने गमराज को उनकी इस परेशानी का हल ढूँढने को कहा।
आखिर यमलोक में आत्मा का अकाल क्यों पड़ रहा था?
क्या गमराज यमराज की इस उलझन को सुलझा पाया?
मेरे विचार:
बाप का राज है लेखक तरुण कुमार वाही द्वारा लिखा हुआ एक हास्य कॉमिक है। गमराज को लेकर लिखा गया यह एक मल्टीस्टारर विशेषांक है जिसमें शक्ति, परमाणु और डोगा भी आते हैं।
हमारी प्राचीन मान्यता है कि हर व्यक्ति का जन्म और मृत्यु पहले से ही निश्चित है। हम धरती पर निर्धारित वक्त पर आते हैं, अपने कर्म करते हैं और निर्धारित वक्त में चले जाते हैं। कौन व्यक्ति किस तरह जायेगा और कौन इसका निमित्त बनेगा यह भी दर्ज रहता है। लेकिन फिर अगर इधर प्रक्रिया में व्यवधान पड़ जाए तो यमलोक में क्या क्या होगा यही इस कॉमिक बुक का विषय है।
चूँकि कॉमिक में गमराज है तो इसमें हास्य होना लाजमी है और यही इधर होता है। कॉमिक के किरदार हास्य पैदा करने में सफल हुए हैं। डायलॉग विशेषकर शुरुआत के आपको गुदगुदाते हैं।
यह एक मल्टीस्टारर विशेषांक है तो लेखक के पास यह अहम जिम्मा था कि वह सभी सुपर हीरोस के साथ न्याय करें। वह ऐसे करने में सफल होते हैं। शक्ति और परमाणु को कहानी में अच्छे ढंग से फिट किया है। वहीं चूँकि गमराज और डोगा मुंबई के हैं तो डोगा एक से अधिक बार कॉमिक में आता है। इससे पहले मैंने डोगा ने मारा कॉमिक बुक पढ़ा था और उसमें भी गमराज और डोगा आपस में भिड़े थे और यहाँ भी ऐसा होता है।
कॉमिक की कमी की बात करूँ तो मुझे कुछ ही बातें इसमें थोड़ा सा खटकी हैं। कॉमिक बुक में यमराज गमराज के पास कॉमिक के 51वें पृष्ठ पर जाते हैं और 59 पृष्ठ पर उनकी समस्या हल हो जाती है। ऐसे में यही लगा की कहानी की भूमिका तो लम्बी रखी है लेकिन अंत जल्द बाजी में दर्शाया गया है। अगर यमराज शुरुआत में ही गमराज के पास पहुँच जाते और बाकी कॉमिक्स में गमराज यमराज की परेशानी हल करता दिखता तो शायद बेहतर होता। इससे रोचकता बड़ भी जाती। इसके अलावा यमलोक की परेशानी का जो हल इधर दर्शाया गया है वह पाठक को अत्यधिक सरल लग सकता है।
अंत में यही कहूँगा कॉमिक मुझे पसंद आया। अगर आपने इसे नहीं पढ़ा है तो एक बार इसे पढ़ा जा सकता है।
© विकास नैनवाल ‘अंजान’
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल रविवार (18-04-2021) को चर्चा मंच "ककड़ी खाने को करता मन" (चर्चा अंक-4040) पर भी होगी!–सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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चर्चा अंक में मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए आभार…..
बहुत सुंदर
आभार….