संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 32 | प्रकाशक: फेनिल कॉमिक्स | लेखक/केलिग्राफी: फेनिल शेरडीवाला | पेंसिलिंग: गौरव श्रीवास्तव | संपादक: बिपिनचंद्र शेरडीवाला
कहानी
सितारापुर न्यूक्लियर प्लांट में हुए हमले के अगले दिन ही भारतीय परमाणु कार्यक्रम से जुड़े दो वैज्ञानिको की एक दुर्घटना में मौत हो गयी थी।
पुलिस कमीश्नर और जासूस बलराम दोनों को ही इस मामले में षड्यंत्र की बू आ रही थी।
यही कारण था कि कमिश्नर ने बलराम को इस मामले को सुलझाने के लिए बुलाया था।
मेरे विचार
‘ब्लैक’ जासूस बलराम की पहली कॉमिक बुक है जो कि फेनिल कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित की गई है। जासूस बलराम मुंबई में रहने वाला डिटेक्टिव है जो कि कई उलझे हुए मामले सुलझाकर अपना नाम चुका है। उसके ही एक मामले की तीन भागों में प्रकाशित कॉमिक बुक शृंखला का ‘ब्लैक’ पहला भाग है।
कॉमिक बुक के कथानक की बात करूँ तो इसकी शुरुआत ब्लैक टीम द्वारा एक कार्य को अंजाम देने से होती है। ब्लैक एक पाँच सदस्यों, जिनके नाम बुद्धिबल, लॉकवीन, ऑलवीन, सी पी यू और क्रिटा हैं, की टीम है जो कि पैसों के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाते हैं। इनकी इस हरकत का ऐसा नतीजा निकलता कि पुलिस कमिश्नर जासूस बलराम को इस मामले में जुड़ने को कहते हैं। इसके बाद इस मामले को सुलझाने के लिए बलराम क्या करता है इसका ही कुछ भाग प्रस्तुत कॉमिक बुक में दर्शाया गया है।
‘ब्लैक’ त्रेयी का पहला भाग है तो एक भूमिका की तरह ही यह कार्य करता है। कहानी इसमें ज्यादा खुलती तो नहीं है लेकिन कई सवाल पाठकों के लिए यह कॉमिक छोड़ जाता है। मसलन ब्लैक टीम कहती है उन्होंने भारत सरकार से कुछ मांग की थी जिसे सरकार ने ठुकरा दिया था। यह टीम कैसे बनी और इसके भारत सरकार से क्या संबंध है? वहीं बलराम का एक साथी भी जेल में दर्शाया गया है। बलराम का वह साथी उधर किस मामले के चलते पहुँचा? वहीं बलराम भी पुलिस की मदद करने की इच्छा नहीं रखता है। क्या बलराम के साथी का जेल में होना ही इसका कारण है या कोई अन्य कारण इसके पीछे हैं? ब्लैक टीम ने दुश्मनों के साथ जो दूसरी डील की है वह क्या होने वाली है? ऐसे काफी सवाल कॉमिक में मौजूद हैं जो कि पाठक द्वारा शृंखला का अगला भाग उठाए जाने की प्रक्रिया के लिए उत्प्रेरक (कैटलिस्ट) का कार्य करते हैं।
कथानक की कमी की बात करूँ तो मुझे लगता है कि चूँकि यह पहला कॉमिक बुक है तो इसमें बलराम का थोड़ा सा बैकग्राउन्ड होना चाहिए था। या फिर ऐसे मामलों का जिक्र होना चाहिए था जिससे अंदाजा लग सके कि बलराम को ही क्यों कमिश्नर ने इस काम के लिए चुना था। अभी ऐसा कुछ न होने के चलते कमिश्नर द्वारा बलराम को सी बी आई के ऊपर दी गई वरीयता का कोई कारण नहीं दिखता है। पाठक को यह बात मान लेनी पड़ती है कि वह जरूर कोई फन्ने खाँ होगा जिसे सरकारी एजेंसी से ऊपर रखा जा रहा है।
दूसरी बात मुझे यह लगी कि पाठक बलराम की तहकीकत से वही चीज जानता है जो कि उसे कथानक में पहले पता चल जाती है। यानि बलराम के माध्यम से कोई भी तगड़ी नई जानकारी इस भाग में नहीं मिलती है। मुझे लगता है अगर कोई एक ऐसी जानकारी पाठक को बलराम की तहकीकात से मिलती दिखलाई जाती जो बलराम के आने से पहले उसे पता नहीं थी तो बेहतर होता।
वहीं कथानक के शुरुअत्व में बताया गया था कि मामले की तहकीकात सी बी आई कर रही है। लेकिन अभी कथानक में यह एजेंसी नदारद है। अगर बलराम का एजेंसी के किसी अफसर से टकराव दिखलाया जाता तो बेहतर होता।
कॉमिक के आर्टवर्क की बात करूँ तो गौरव श्रीवास्तव का चित्रांकन बढ़िया है और कथानक के साथ न्याय करता है। हाँ, किरदारों के विशेषकर बलराम, सलीम और कमिश्नर के चेहरे थोड़ा और बेहतर हो सकते थे।
अंत में यही कहूँगा कि ‘ब्लैक’ आगे आने वाले कथानक की भूमिका बांधने में सफल होता है और आगे कि कहानी के प्रति उत्सुकता जगाने का कार्य करता है। इस तरह से तीन भागों वाली शृंखला के पहले कॉमिक के रूप में यह अपना कार्य बाखूबी कर रहा है। कॉमिक बुक एक बार पढ़ा जा सकता है।