समीक्षा: बाँकेलाल और कलियुग | राज कॉमिक्स | तरुण कुमार वाही

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: पैपरबैक | पृष्ठ संख्या: 92 | प्रकाशन: राज कॉमिक्स | लेखक: तरुण कुमार वाही | चित्रांकन: प्रेम | इंकिंग: प्रिया ‘शिखा’ | शृंखला: बाँकेलाल

समीक्षा: बाँकेलाल और कलियुग | Comic Book Review: Bankelal aur Kaliyug

कहानी 

बाँकेलाल की हरकत के चलते पंचऋषि ने उसे यह श्राप दे दिया था कि अगर वह भविष्य में जाकर मानवता की सेवा करने वाले किन्हीं पाँच लोगों के सिर के बाल नहीं लेकर आया तो  उसकी मृत्यु निश्चित थी। वहीं पाथु पत्थर देवता के अनुसार यही बाल उसे राज योग दिलाने में सहायक होने वाले थे। और इसलिए बाँकेलाल पहुँच गया था भविष्य के विशालगढ़ में जिसे अब भारतवर्ष कहा जाता था। 

बाँकेलाल का यह बाल लाना इसलिए भी आवश्यक था क्योंकि भूतकाल की धरती पर एक और भीषण खतरा मंडरा रहा था और उसके लक्ष्य की प्राप्ति से ही यह खतरा टल सकता था। 

आखिर बाँकेलाल को श्राप क्यों मिला?
क्या वह भविष्य से बाल लाने में सफल हो पाया?
भूतकाल की धरती पर कौन सा भीषण खतरा मंडरा रहा था?

वहीं भविष्य में एक अलग परेशानी बिजली बन सुपर हीरोज के ऊपर गिरने को तैयार थी । बड़मूदा नाम का राक्षस सुपर हीरोज से काफी परेशान चल रहा था। सुपर हीरोज उसके फैलाए अपराध को रोक रहे थे और इस कारण बड़मूदा जलदैत्य को नरबलि नहीं दे पा रहा था। ऐसे में उसने इन सुपर हीरोज को ठिकाने लगाने का फैसला कर लिया। बड़मूदा ने सुपरहीरोज से जूझने के लिये पाँच योद्धाओं को बुलाया था और उन्हे भारत से शुरुआत करने को कहा था। 

आखिर कौन थे बड़मूदा के ये योद्धा? क्या वह सूपर हीरोज को हरा पाए? 
और बाँकेलाल की इस भिड़ंत में क्या भूमिका रही? 

मेरे विचार

बाँकेलाल और कलियुग 92 पृष्ठों में फैला हुआ एक मल्टीस्टारर विशेषांक है। वैसे तो इस कॉमिक बुक की कहानी बाँकेलाल के कॉमिक हरी जलपरी की कहानी का आगे का भाग है लेकिन कॉमिक बुक में पिछले कॉमिक में घटित हुई कहानी संक्षिप्त रूप में इस तरह से दी गयी हैं कि कॉमिक पढ़ते हुए आपको इतना आइडिया हो जाता है कि कॉमिक पहले भाग में क्या हुआ रहा होगा। वैसे तो मैंने भी हरी जलपरी नहीं पढ़ा था और उसके बावजूद इस कॉमिक बुक की कहानी समझने में कोई दिक्कत मुझे पेश नहीं आई लेकिन फिर भी मेरी सलाह यही रहेगी कि आप इस कॉमिक का पहला भाग हरी जलपरी पहले पढ़ लें ताकि कथानक का पूरा लुत्फ ले पाएँ। 
बाँकेलाल और कलियुग के कथानक की बात करूँ तो इसका कथानक तरुण कुमार वाही द्वारा लिखा गया है और हास्य सलाहकार विवेक मोहन हैं। कॉमिक में एक साथ तीन कहानियाँ चल रही हैं। एक कहानी भूतकाल में चल रही है जहाँ भँवर नाम का राक्षस और महसागर की बेटी कारनामी के साथ मिलकर एक ऐसी योजना बना रहा है जिससे पूरा भूतकाल खतरे में आ जाता है। यह दोनों रोचक किरदार हैं और अपने मकसद की कामयाबी के लिए इनके द्वारा किये जा रहे यत्न हास्य पैदा करने के लिए लिखे तो गए हैं लेकिन अब थोड़ा बचकाने लगते हैं। हो सकता है 2005 में यह हास्य पैदा करने में सफल हुए हों।
वहीं दूसरी तरफ भविष्य में भी दो कहानियाँ एक साथ चल रही हैं। एक तरफ तो बाँकेलाल को पाँच ऐसे मानवों को ढूँढना है जो मानवता की सेवा में लगे हुए हैं।  उसकी यह तलाश नेताओ और पुलिसवालों से होकर सुपरहीरोज पर खत्म होती है। और इस दौरान काफी हास्य उत्पन्न करने वाली परिस्थितियों से वह दो चार होता है। इसके समानांतर बड़मूदा नाम के  राक्षस की कहानी भी चलती रहती है जिसने पाँच योद्धाओं को पाँच सुपर हीरोज को हराने के लिए भेजा रहता है। यह दोनों कहानियाँ कैसे आपस में मिलती हैं और सुपर विलनस और सुपर हीरो की लड़ाई के बीच में से बांकेलाल कैसे अपना मतलब हल सिद्ध करता है यह देखना रोचक रहता है। पाँच सुपरविलंस तगड़े बनाए गए हैं और उनका सुपरहीरोज के साथ होने वाली लड़ाई रोचक रहती है। बाँकेलाल एक काइयाँ मनुष्य है और उसका काइयाँपन इधर नुमाया होता है। यही कारण है जब भी उसके साथ कर बुरा हो भला होता है तो आपको वो संतुष्ट करता है। कॉमिक का अंत भी ऐसा ही होता है और बाँकेलाल की दिली इच्छा एक बार और विफल हो जाती है। 
कहानी का आर्टवर्क प्रेम द्वारा बनाया गया है और मुझे ठीक लगा है। 
कॉमिक की कमियों की बात करूँ तो इसमें हर डियालयोग के बाद ‘ही ही ही’ लिखा होना चिढ़ पैदा करता है। ऐसा लगता है जैसे सभी किरदार नशे में हो। हास्य पैदा करने के लिये डायलॉग के पीछे ही ही ही लिखने की जरूरत नहीं होती है। यह चीज इधर बचकाना लगती है। इससे बचा जा सकता था।
कॉमिक बुक एक मल्टीस्टारर विशेषांक है जिसमें दिल्ली के पारमाणु और आसाम का भेड़िया भी शामिल है। परन्तु ज्यादातर कथानक मुंबई में ही घटित होता दिखता है। इस कारण कहानी में डोगा और गमराज को ज्यादा महत्व दिया गया है। इसके बाद शक्ति को भी ठीक ठाक जगह दी गई है परन्तु परमाणु और भेड़िया को कम जगह दी गयी है। इनको भी कहानी में जगह ज्यादा दी गयी होती तो बढ़िया रहता।  बाँकेलाल को जितनी मशक्कत डोग, गमराज और शक्ति के बाल निकालने में करनी पड़ी उतनी ही इन दो हीरों के साथ करनी होती तो अच्छा रहता। कॉमिक ज्यादा रोमांचक हो जाता।
 
इसकी एक कमी इसका अंत भी कहा जा सकता है जो कि जल्दबाजी में घटित होता लगता है। भँवर का अंत थोड़ा और बेहतर और रोमांचक तरीके से हो सकता था।  
अंत में यही कहूँगा कि यह एक रोचक कॉमिक बुक है जिसे एक बार पढ़ा जा सकता है।

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर उन्हें लिखना पसंद है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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