पुस्तक टिप्पणी: सेवन पॉइंट सिक्स – अतुल प्रभा

पुस्तक टिप्पणी: सेवन पॉइंट सिक्स | अतुल प्रभा | योगेश मित्तल

संस्करण विवरण:

फॉर्मेट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 192 | प्रकाशक: नीमल जासूस और फ्लाईड्रीम्स पब्लिकेशंस

पुस्तक लिंक: अमेज़न

सेवन पॉइंट सिक्स - अतुल प्रभा | नीलम जासूस कार्यालय और फ्लाईड्रीम्स पब्लिकेशंस

कहानी

दिल्ली – हिंदुस्तान का दिल और अनजाने खतरों का शहर। दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा महानगरीय क्षेत्र, जहाँ हर कोना इतिहास, आस्था और अनदेखे ख़तरों से भरा है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक़ यहाँ कभी भी रिक्टर स्केल पर 8.0 का भूकंप आ सकता है। अगर ऐसा हुआ, तो दिल्ली की ज़मीन ही नहीं, सदियों पुरानी मान्यताएँ भी हिल जाएँगी।

क्या ये सिर्फ़ एक प्राकृतिक आपदा होगी, या कोई दबी हुई शक्ति इतिहास के पन्ने पलटने वाली है?

क्या हमारे मिथक दरअसल भूले-बिसरे सच हैं?

क्या हम वाक़ई इस ब्रह्मांड में अकेले हैं?

‘सेवेन पॉइंट सिक्स’… एक ऐसी कहानी जो विज्ञान, धर्म और इतिहास के बीच की धुँधली रेखाओं को मिटा देती है। तैयार हो जाइए, एक ऐसे सच से सामना करने के लिए, जो अब तक सिर्फ़ किस्सों में था। यह कहानी नहीं चेतावनी है!

टिप्पणी

हिंदी में विज्ञान तथा प्राकृतिक आपदाओं को मुख्य विषय बनाकर बहुत कम कथाएँ या उपन्यास लिखे गये हैं। या यूँ कहें – ‘नहीं’ के बराबर लिखे गये हैं।

बहुत दिमाग़ दौड़ाओ तो दिमाग़ के किसी कोने से जयन्त विष्णु नार्लीकर का नाम ध्यान आता है, जो स्वयं एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक होने के साथ-साथ विज्ञान कथा लेखक भी थे।

उर्दू में ज़नाब इज़हार असर साहब ने बहुत कुछ लिखा, जिसका अनुवाद बहुत से हिंदी प्रकाशकों ने विभिन्न छद्म नामों से प्रकाशित किया, लेकिन प्राकृतिक आपदाओं और समाज के हितों की चिंता पर हिंदी में किसी ने कलम उठाई हो, मुझे याद नहीं पड़ता।

नीलम जासूस कार्यालय और फ्लाईड्रीम्स प्रकाशन के संयुक्त प्रयास द्वारा प्रकाशित अतुल प्रभा लिखित उपन्यास ‘सेवेन पांइट सिक्स’ – प्राकृतिक आपदा भूकम्प और भूस्खलन के प्रति जागरूक करने वाला एक ऐसा उपन्यास है, जिसे कुछ नया तलाशने अथवा पढ़ने की इच्छा रखने वाले सभी पाठकों को एक बार तो अवश्य ही पढ़ना चाहिए।

कुछ वैज्ञानिक पात्रों और उपपात्रों को लेकर हल्के फुल्के रोमांस और सामाजिक कलेवर में बँधी इस कहानी में दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में भूकम्प की सम्भावनाओं से जुड़ी समस्याओं और उनके निदान को बेहतरीन तरीके से पृष्ठभूमि बनाया गया है।

भूकम्प पर केन्द्रित पृष्ठभूमि होते हुए भी लेखक अतुल प्रभा ने जनसामान्य की रुचियों का ख्याल रखते हुए तीन अलग-अलग प्रेमकथाएँ मुख्य कथानक में बड़ी खूबसूरती से पिरोई हुई हैं। एक कथा नेपथ्य में परवान चढ़ती है – संजय और मानवी की प्रेमकथा।

सुजुकी, कुबोता आदि कुछ जापानी भूगर्भ विशेषज्ञों को भी कथानक में बिलकुल सहज तरीके से जोड़ा है, जो भूकम्प की दुरूह परिस्थितियों से निपटने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों और सरकारी मशीनरी के साथ कदम से कदम मिलाकर चलते दिखाये हैं।

त्रासदि में जनसंहार देखकर आ रहे लोगों में किसका मन कुछ खाने को करेगा। दुखद और दारुण दृश्य देखने के बाद भला किसके गले के नीचे कौर उतर सकता है। लेखक का ऐसी परिस्थिति में अपने एक पात्र से एक सरल वाक्य से यह कहलवाना, ‘मैं सब समझ रहा हूँ मेघा, लेकिन आज मृत लोगों के सम्मान में व्रत रखना चाहता हूँ‘ आत्मा की गहराई में उतर जाता है।

तलाक द्वारा सम्बन्ध विच्छेद कर चुकी अपनी पत्नी नताशा की भूकम्प त्रासदी में हुई मृत्यु के बाद नील का अपनी बेटी शिवांगी की माँ‌ के लिए बेटी के साथ दो मिनट का मौन रखना मानवीय भावनाओं की बारीकियाँ प्रस्तुत करता है। लोग अलग हो जायें, दूर हो जायें, लेकिन साथ बिताये क्षणों के एहसास हमेशा दिल से जुड़े रहते हैं।

और एक नन्हीं बालिका शिवांगी द्वारा निरीह जानवरों के आवास की चिन्ता करना मन को झकझोर देता है।

आदिनाथ स्वामी और राजेन्द्र नेगी के चरित्र हमें अध्यात्म और चमत्कार से भी चकित करते हैं।

भूकम्प के समय लेखक द्वारा अपने चरित्रों के माध्यम से कूड़े के निपटान की चिन्ता करना भी प्रासंगिक है। यह समस्या आज भी विकट महानगरीय समस्या है।

आदिनाथ स्वामी का यह कहना, “फसलों को धूप चाहिए होती है। धूप में तपकर ही गेंहू की बाली सुनहरी होती है और दाना पकता है। इन्सानी सभ्यता अभी हज़ारों साल पीछे है और समय को कोई जल्दी नहीं है – अपनी रफ़्तार से तेज़ चलने की। उसकी एक अपनी ही रफ्तार है, जिससे वो चलता है और बाकी सबको उसके साथ चलना पड़ता है….!

हाँ, सही है। हम सभी को समय के साथ चलना चाहिए। जरूरी है चलना, मगर आज हम अपने ही बहुत से मित्र राष्ट्रों से बहुत पीछे हैं। क्यों पीछे हैं हम? हमें पीछे नहीं रहना चाहिए। लेखक अतुल प्रभा की यह पुस्तक ‘सेवेन पांइट सिक्स’ कुछ ऐसा ही सन्देश देती हुई है।

इंसान से लालच छूट जाये, ऐसा सम्भव नहीं है। इंसानी फ़ितरत पर भी लेखक ने एक चुभती हुई पंक्ति लिखी है – कुछ लोग आपदा से भी नाजायज पैसा कमा रहे थे।

भूकम्प से सुरक्षा के लिए क्या-क्या कदम जरूरी हैं, इस विषय में लेखक ने विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों के माध्यम से काफ़ी कुछ बताने और समझाने की चेष्टा की है और अपने मन्तव्य में उसे काफ़ी हद तक कामयाबी मिली है। जरूरत है ऐसे लेखन को प्रोत्साहित करने की। इसके लिए ऐसी पुस्तकों को दिल लगाकर पढ़ना ही हमारा आपका सर्वश्रेष्ठ कदम होगा।

पुस्तक का नाम और टाइटल कवर भी अपने आप में एक पैगाम है।

शीर्षक – सेवेन पांइट सिक्स के नीचे टैगलाइन – ‘तबाही के कगार पर राजधानी’ – अपने आप में एक चेतावनी भी है। प्रकाशन द्वय भी इस बात के लिए प्रशंसा का पात्र है कि कुछ अलग हट के – उत्तेजक और रोमांचक विषय पर ऐसी पुस्तकें प्रकाशित करने में प्रकाशन संस्था के कर्ता धर्ता एक क्षण की भी देरी नहीं करते हैं।

पुस्तक लिंक: अमेज़न


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