पुस्तक टिप्पणी:रेलगाड़ी का भूत – वेद प्रकाश काम्बोज

पुस्तक टिप्पणी: रेलगाड़ी का भूत - वेद प्रकाश काम्बोज
संस्करण विवरण:

फॉर्मेट: हार्डकवर | पृष्ठ संख्या: 160 | प्रकाशक: शिलालेख पब्लिशर्स

पुस्तक लिंक: अमेज़न

कहानी

1942 में राजापुर में वह दर्दनाक दुर्घटना हुई थी। एक ट्रेन सेकड़ों यात्रियों समेत स्टेशन से निकली और काल के गाल में समा गयी।

अब 1987 में वही रेल राजापुर की समृद्धि का राज थी। उसी रेल के नाम पर एक मंदिर बन गया था जिस पर लोगों की असीम श्रृद्धा थी। राजापुर में ही रेलगाड़ी का वह भूत भी देखा जाता था जो कि यदा कदा अपनी उस अधूरी यात्रा पर रात को निकला करता था।

पर राजपाल को भूत प्रेत पर विश्वास नहीं था। वह एक खोजी पत्रकार था और उसके एडिटर देशराज ने उसे रेलगाड़ी के इस भूत के विषय में जानकारी हासिल करने के लिए कहा था।

आखिर क्या थी इस रेलगाड़ी के भूत की कहानी?

क्या राजपाल इसका पता लगा पाया?

टिप्पणी

‘रेलगाड़ी का भूत’ लेखक वेद प्रकाश काम्बोज की लिखी रहस्यकथा है। जैसा कि शीर्षक से जाहिर है इसमें एक रेलगाड़ी है और उसका भूत भी है। लोगों को इस भूत पर विश्वास है और वो उस रेलगाड़ी को पूजते भी हैं। श्रध्दा किसी तर्क की मोहताज नहीं होती है। व्यक्ति जिस चीज को समझ नहीं पाता उसे पूजने लगता है और देखा देखी एक चलन सा चल पड़ता है। फिर कई लोग इसका दोहन भी करने लगते हैं। यही चीज राजापुर में घटित हो रही होती है।

ऐसे में एक पत्रकार राजपाल इस रेल गाड़ी के भूत की असलियत पता लगाने आता है और उसके बाद जो कुछ होता है वही उपन्यास बनता है।

उपन्यास के घटनाक्रम में दो महत्वपूर्ण कालखंड हैं। पहला 1942 जिसमें वह ट्रेन दुर्घटना हुई थी। और दूसरा 1987 जब राजपाल राजापुर में आकर रेलगाड़ी के भूत का पता लगाने आता है।

कहानी में कई रहस्य मौजूद हैं। यह रहस्य रेलगाड़ी के भूत को लेकर तो हैं ही साथ ही उस बदनसीब रेलयात्रा को लेकर भी हैं जिसने कई सैकड़ों यात्रियों की जान ले थी और उनका कोई सुराग नहीं मिल पाया था। जब एक रहस्य उजागर होता है तो दूसरे का पता इस तरह से लगता है कि आप आगे पढ़ते चले जाते हैं। लेखक ने इस तरह से कथानक बुना है कि आपको कथानक बाँधे रखता है। अगर आप अपराध कथाएँ पढ़ने के शौकीन हैं तो कुछ चीजों का आप अंदाजा, जैसे जैसे क्लू मिलते जाते हैं, लगा लेते हैं लेकिन फिर भी लेखक ने ऐसी चीजें बचाई रहती हैं जिससे कि कथानक में पाठक की रुचि बनी रहे।

1942 के काल खंड में घटित हुई घटना से एक क्रांतिकारी संगठन का सम्बन्ध भी है। इस कारण क्रांतिकारियों और उनके जज्बे की झलक भी कथानक में मौजूद है जो कि मुझे पसंद आया। देश को आजाद कराने के लिए न जाने ऐसे कितने क्रांतिकारियों ने अपनी जान की बाजी लगाई जो बाद में भुला दिए गए। उनके योगदान का महत्व भी यह दर्शाता है।

कथानक पुरानी फिल्मों की याद भी दिलाता है और उनमें इस्तेमाल होने वाले फॉर्मूला भी इसमें प्रयोग हुए हैं। फिर वो शहरी बाबू, गाँव की युवती और उनके बीच पनपता प्यार हो या एक धूर्त खलनायक हो जो नफरत के काबिल है। पढ़ते हुए आपके मन में उन कलाकारों की तस्वीर उभरने लगती है जो कि यदि इस कथानक पर फिल्में बनती तो इन किरदारों को निभा सकते थे।

पात्रों की बात की जाए तो उपन्यास का मुख्य पात्र राजपाल है। वह  ‘बदलता समय’ नामक अखबार में कार्य करने वाला खोजी पत्रकार है जो कि अपनी पत्रकारिता के लिए प्रसिद्ध है। जब कहानी शुरू होती है तो पाठकों को पता लगता है कि उसके परिवार का इस भूत बनी रेलगाड़ी से गहरा सम्बंध है। ऐसे में यह गुत्थी राजपाल के लिए खाली एक काम ही नहीं रह जाता बल्कि अपने परिवार के इतिहास को जानने का मिशन भी बन जाता है।

राजपाल के अतिरिक्त उर्मिला, उर्मिला के पिता शिवेन वैद्य, एडिटर देशराज भी मौजूद हैं। वह तीनों किरदार समय समय पर राजपाल की मदद करते हैं।

खलनायक के तौर पर नरेश सक्सेना है। यह एक क्रूर व्यक्ति है जो अपने स्वार्थ के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। उसका साथी शामलाल है जो कि उसके साइड किक की भूमिका में रहता है।

कथानक की कमी की बात करूँ तो कहानी का शीर्षक रेलगाड़ी का भूत है। ऐसे में कुछ अधिक भूतहा दृश्य दर्शाकर कहानी में रोमांच बढ़ाया जा सकता था। अभी राजपाल एक ही बार के अनुभव में मामले को ताड़ जाता है। अगर थोड़ा भूतहा दृश्य अधिक होते और राजपाल को इस रहस्य को पता लगाने के लिए थोड़ा अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ती तो कथानक अधिक रोमांचक हो जाता।

इसके अतिरिक्त कुछ किरदारों को थोड़ा और विकसित करते तो बेहतर होता। मसलन उर्मिला और राजपाल के बीच की नज़दीकियों और प्रेम को बढ़ता हुए दर्शाने के लिए कुछ अतिरिक दृश्यों का प्रयोग किया जा सकता था। उपन्यास में नरेश के किरदार को तो विकसित किया गया है लेकिन शामलाल के किरदार को उतनी तरजीह नहीं दी है। थोड़ा उसकी बैक स्टोरी भी दी जा सकती थी।

अंत में यही कहूँगा कि रेलगाड़ी का भूत एक पठनीय उपन्यास है। उपन्यास आपको बाँधकर रखने में सफल होता है। अगर आप एक मनोरंजक उपन्यास पढ़ना चाहते हैं जो पुरानी फिल्मों की याद दिलाए तो आप इसे पढ़कर निराश नहीं होंगे। एक बार पढ़कर देख सकते हैं।

पुस्तक लिंक: अमेज़न


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Author

  • विकास नैनवाल

    विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

4 Comments on “पुस्तक टिप्पणी:रेलगाड़ी का भूत – वेद प्रकाश काम्बोज”

  1. बहुत बढ़िया
    मुझे ये उपन्यास बहुत पसंद है
    Vpk ka sbse best

  2. वेदप्रकाश काम्बोज जी का यह काफी चर्चित उपन्यास रहा है। इस उपन्यास को पढने की इच्छा है।
    अच्छी समीक्षा के लिए धन्यवाद।

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