संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: पेपरबैक | प्रकाशक: तुलसी पेपर बुक्स | पृष्ठ संख्या: 318 | शृंखला: इन्द्रजीत
कहानी
पंगेबाज इंद्रजीत की किस्मत भी ऐसी थी कि जब वह कोई पंगा खुद नहीं लेता था तो पंगा आकर उससे खुद टकरा जाता था।
इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ था। मुम्बई में आये इंद्रजीत ऐसी परिस्थितियों में घिरता चला गया कि उसकी जान के लाले पड़ गए।
इस बार भारतीय सरकार ने उसे ऐसा काम सौंपा था जिसे उसने देश के लिए करने की ठानी तो सही लेकिन बाद में हालात के चलते यह सोचने पर मजबूर। हो गया कि वो किस पराई आग में कूद पड़ा।
ये कौन सी पराई आग थी जिसने इंद्रजीत को झुलसा दिया था?
क्या इंद्रजीत इस पराई आग से बच पाया?
अपने को बचाने के लिए उसे किन चीजों से दो चार होना पड़ा?
मुख्य किरदार
इंद्रजीत चड्ढा – एक जाना माना अपराधी जिसने माफिया की नाक में पंगा लगाना है
विनोद सांवले – एक अपराधी
वसीम काजी – ब्लू हैवन होटल, जो कि मुम्बई में माफिया का अड्डा था, का मैनेजर
अबू अल मंसूर उर्फ कर्नल – एक खूँखार आतंकवादी
एल पी श्रीनिवासन – सी बी आई के मुंबई ब्यूरो का चीफ
कैलाश नाथ – मुम्बई क्राइम ब्रांच का अफसर
असलम खान उर्फ असलम कसाई – एक हिस्ट्री शीटर
अमिताभ देशमुख – थाने का एस एच ओ
जनरल अमरकांत चौधरी – सीक्रेट एजेंसी राड (रिसर्च एण्ड एनालिसिस डिपार्ट्मन्ट) का डायरेक्टर
मेजर शाहबाज दुर्रानी – एक ईरानी व्यक्ति जिसका काम पैसों के लिए आतंक फैलाना था
महमूद अज़हर – एक पाकिस्तानी आतंकवादी जो कि फिलहाल पुणे में एक शिक्षक के रूप में कार्यरत थे। दुर्रानी का खास दोस्त।
ईमरान खान – शाहबाज का दूसरा दोस्त जो कि मूलतः पाकिस्तानी था लेकिन इंडोनेशिया का रहने वाला था। वह भी एक आतंकवादी था।
एन मेरी – एक अमेरिकी रिपोर्टर और ईमरान खान की पत्नी
सुधीर शर्मा – जनरल चौधरी का असिस्टेंट
नूरा – इमरान की बहन
गुल खान -आई एस आई का अफसर जो कि मुम्बई में पाकिस्तानी कांसुलेट में प्रेस अट्टाचे के रूप में तैनात था
गफूर – बांग्लादेश के शेख मुजीब टाउन के कब्रिस्तान का चौकीदार
नुस, रमजानी – दो गुंडे जिनका इंतजाम गफूर ने किया था
रजिया – एक युवती जो गफूर के घर में रह रही थी
सरोज सिंह – उपराष्ट्रपति
भार्गव – गृह सचिव
विलास राव पाटिल – सुरक्षा राज्य मंत्री
मनोहर चौहान – जनतांत्रिक पार्टी के पार्टी सेक्रेटरी
स्टीफन मैकेन्जी – वह आतंकवादी जिसने गरूड़वन का अपहरण किया था
मैट कैली – एफ बी आई एजेंट जो कि मेक्सिको में जहाज के हाइजैक को संभाल रहा था
मिलर, नसीम, बशीर, गुलाम कादर, जोजफ,बलाल, थॉमस, सैम – जहाज को हाईजैक करने वाले
पीटर कोरला – मेक्सिको एयरपोर्ट अफसर
फ्रेडरिक पारनेल – सीनेटर जिसका लड़का भी जहाज में था
बैले – वो व्यक्ति जो हाईजैकर्स से बात कर रहा था
जेड पीटर – वह व्यक्ति जो लिखित रिपोर्ट बना रहा था
कैप्टेन स्टेनले – हवाई जहाज का पायलट
सरदार गुरनाम सिंह झालेवाल – खालसा होटल एंड रेस्टोरेंट का मालिक इंद्र जीत का दोस्त
अब्बास अली – एक आतंकवादी जिसके नीचे सभी आतंकवादी काम कर रहे थे
हशीम – अब्बास का दायाँ हाथ
जमील अख्तर – अब्बास के दिल्ली के अड्डे में मौजूद आतंकवादी जिसने वैज्ञानिक का अपहरण किया था
रघुनन्दन शर्मा – वो वैज्ञानिक जिसका अपहरण किया गया था
टिम्सी – रघुनन्दन की बेटी
मेरे विचार
हिंदी लोकप्रिय साहित्य से जबसे मेरी वाकिफीयत हुई है तबसे
राजभारती का नाम मेरे लिए
हॉरर और
फैन्टासी का पर्याय ही रहे हैं। या तो मैंने उनके लिए तंत्र-मंत्र वाले उपन्यास पढ़ें हैं या फिर
अग्निपुत्र शृंखला के उपन्यास जिसके कथानक धरती पर घटित होते हुए भी फंतासी उपन्यास ही कहलाएंगे। ऐसे में कुछ वक्त पहले जब मुझे राजभारती के उपन्यास एक वेबसाईट पर दिखे तो उनके शीर्षक मुझे रोचक लगे। शीर्षक और कवर से यह उपन्यास
सामाजिक उपन्यास लग रहे थे। मैंने यही सोचकर इन्हें मँगवाया था पर जब मिले तो मुझे देखकर हैरानी हुई थी कि वह दोनों ही उपन्यास रोमांचकथाएँ हैं और राजभारती इन्हें
स्टंट थ्रिलर कहते हैं। अब इनमें से जो पहला उपन्यास मैंने पढ़ने को उठाया वो
‘पराई आग’ है।
पराई आग
इन्द्रजीत शृंखला का उपन्यास है। वैसे अगर आप इन्द्रजीत से वाकिफ न हों तो आपको बता दूँ कि इन्द्रजीत चड्ढा एक ऐसा अपराधी है जिसके पीछे पुलिस ही नहीं अपराधियों के गिरोह भी पड़े हुए हैं। इसका मुख्य कारण है यह कि वह ऑर्गनाइज़्ड क्राइम (संगठित अपराध) के ओहदेदारों के खिलाफ भी कदम उठाते रहता है जिसके कारण संगठित अपराध करने वाली इन संस्थाओं को नुकसान का सामना करना पड़ता है। वहीं इन्द्रजीत ने अपने जीवन में कई बार सरकार और सरकारी संस्थाओं की मदद भी की है जिसके चलते उसका मंत्रियों में भी नाम है। प्रस्तुत उपन्यास ‘पराई आग’ भी ऐसा ही उपन्यास है जिसमे इन्द्रजीत हालात के चलते भारतीय खुफिया एजेंसी राड (रिसर्च एंड अनैलिसिस डिपार्ट्मन्ट) के लिए आतंकवादी गुटों के खिलाफ काम करने लगता है।
हिंदी में एक कहावत बड़ी मशहूर है आसमान से गिरा और खजूर में अटका। यानी एक मुसीबत से निकलर दूसरी में फँस जाना। पर अगर इन्द्रजीत के प्रस्तुत कारनामें की बात करें तो वह आसमान से गिर कर खजूर में अटक तो रहा है लेकिन उससे छूटकर भी उसके गले इतनी मुसीबत पड़ रही हैं कि उसकी परिस्थिति को बताने के लिए शायद ही कोई मुहावरा हो।
‘पराई आग’ एक विस्तृत फलक पर लिखा हुआ कथानक है जिसका घटनाक्रम भारत, बांग्लादेश, अमेरिका और मेक्सिको में घटित होता है। अक्सर हिंदी अपराध कथा में लेखक एक घटना पर ही केंद्रित उपन्यास लिखते हैं और अगर उन्होंने ऐसे विस्तृत फलक पर कुछ लिखा है तो वह मेरी नज़रों में फिलहाल नहीं आया है। इसलिए राजभारती का यह उपन्यास पराई आग पढ़ना मेरे लिए हैरान करने वाला था। यह किसी अन्तराष्ट्रीय स्तर पर लिखे थ्रिलर समान प्रतीत होता है जिनका कथानक काफी फैला हुआ होता था।
उपन्यास की शुरुआत भले ही इन्द्रजीत के मुंबई आने से हुई हो जहाँ वो एक टकराव में घायल हो जाता है लेकिन फिर इसमें एक खूँखार आतंकवादी भी जुड़ जाता है। पाठक इस खूँखार आतंकवादी को मुंबई में एक ब्लास्ट करते देखते हैं और फिर इसके साथ-साथ बांग्लादेश जाते हैं और उसे एक कारनामा करते देखते हैं। वहीं दूसरी तरफ वह भारतीय खुफिया एजेंसी को इस आतंकवादी के खिलाफ जाल बुनते देखते हैं। जाल भी बुना जाता है और आंतकवादी भी पकड़ा जाता है। वहीं दूसरी तरफ इन्द्रजीत घायल होने के बाद ऐसी परिस्थिति में फँस जाता है जहां से उसका निकलना नामुमकिन लगता है। लेकिन फिर वो निकलता है और भारतीय खुफिया एजेंसी के हत्थे चढ़ जाता है। यह एजेंसी इन्द्रजीत से एक काम करवाना चाहती है और किसी तरह से राजी भी कर लेती है। इसके बाद इन्द्रजीत की कहानी आतंकवादियों से जुड़ जाती है। वह किस तरह पहले उनकी कैद में पड़ता है। वह अपनी सूझ बूझ से किस तरह खुद की और कई लोगों की जान बचाता। और फिर एक मुसीबत से होता हुआ दूसरी में और दूसरी से होता हुआ तीसरी मुसीबत में पड़ता है और किस तरह इनसे निकलता है यह देखना रोचक रहता है।
चूँकि इस उपन्यास का कथानक बहुत फैला हुआ है तो इस कारण कई किरदार आपसे यहाँ रूबरू होते हैं। इसी कारण से जरूरत भर को मौके ही दूसरे किरदारों को मिलते हैं। उपन्यास का मुख्य किरदार इन्द्रजीत है और वो मुझे रोचक लगा। वह एक ऐसा किरदार है जो अपराधी तो है लेकिन उसके अपने उसूल हैं। उन उसूलों पर वह कायम रहता है और उनके तहत ही वह काम करता है। वहीं वह अपराधी जरूर है लेकिन देश विरोधी ताकतों से नफरत भी करता है और यही कारण है कि वह आतंकवादियों को मौत के घाट उतारने से पहले पल भर का भी विचार नहीं करता है।
वैसे तो उपन्यास का नाम जब मैंने पहली बार सुना था तो वह मुझे किसी
सामाजिक उपन्यास का नाम लगा था लेकिन यहाँ यह साफ करना चाहूँगा कि इन्द्रजीत के इस कारनामें पर यह शीर्षक सटीक बैठता है। लेखक शीर्षक के साथ न्याय करते हैं।
उपन्यास में रोमांचक घटनाएँ एक के बाद एक घटित होती हैं और आपको कथानक के साथ बांधकर रखती हैं लेकिन फिर भी कुछ चीजें मुझे ऐसी लगी जो कि बेहतर हो सकती थी।
कहानी में इन्द्रजीत दो बार जहाज में कैद होता है। पहली कैद वाला हिस्सा तो रोमांचक है लेकिन दूसरे वाले हिस्से में इन्द्रजीत दिमाग का इस्तेमाल तो करता है लेकिन उस कैद में वह ज्यादातर बेबस ही लगता है। वहीं लेखक ने संयोग का इस्तेमाल कर ही दूसरे हिस्से से उसकी जान बचाई है। यह संयोग के चलते न होकर इन्द्रजीत या बाहरी अफसरों के दिमाग के कारण होता तो मुझे लगता है बेहतर होता। अभी ऐसा लगता है जैसे लेखक को लग गया था कि कथानक का यह हिस्सा लंबा चल पड़ेगा और इस कारण उन्होंने जल्दबाजी में इसको निपटा दिया क्योंकि आगे उनकी इन्द्रजीत के लिए कोई और प्लानिंग थी।
वहीं उपन्यास के आखिरी हिस्से में इन्द्रजीत एक आतंकवादी सरगना अब्बास अली से भिड़ते हुए दिखता है। यह भिड़ना आखिरी के तीस चालीस पृष्ठों में होता है। यहाँ पर कहानी किसी एक्शन फिल्म सरीखी भागती तो है लेकिन इन्द्रजीत सब पर हावी ही प्रतीत होता है। अगर इस हिस्से में इन्द्रजीत को जीत हासिल करने के लिए कुछ मुसीबतों का सामना करना पड़ता तो मुझे लगता है कथानक थोड़ा और रोमांचक हो जाता। वहीं जिस तरह से अब्बास अली और इन्द्रजीत का टकराव हुआ वह भी थोड़ा निराश करता है। लेखक की इच्छा समझ में आती है कि वह यह दर्शाना चाहते थे कि इन्द्रजीत अब्बास अली नामक शेर को मिला सवा शेर है लेकिन अगर इन्द्रजीत को यह जीत हासिल करने में थोड़ा मुश्किल होती तो कथानक मुझे ज्यादा रोमांचक लगता।
चूँकि कथानक फैला हुआ है तो कई बार चीजों को लेखक ने जल्दी से समेटा भी है। मसलन शाहबाज दुर्रानी का बांग्लादेश का मिशन और उसको कैद करने के लिय राड द्वारा किया गया कार्य काफी चलती चाल में खत्म किया लगता है। ऐसा होना लाजमी भी है क्योंकि कहानी का केंद्र इन्द्रजीत है और उसका इससे लेना देना नहीं था। फिर भी पढ़ते हुए लगता है कि यह हिस्सा अपने आप में अलग लघु-उपन्यास बनने लायक था।
उपन्यास में प्रूफ रीडिंग की भी काफी समस्याएँ हैं। कई जगह नाम उलटे पुलटे हो गए हैं। कई बार ओहदे बदल जाते हैं। जैसे कमल कपूर गृहमंत्री थे तो कभी उन्हें विदेश मंत्री बोला गया है। कई बार वाक्य भी अधूरे रहते हैं। उदाहरण के लिए
रिसर्च एण्ड ऐनालिसिस दिया है मैट राड का डायरेक्टर जनरल अमर कान्त चौधरी अपने पर्सनल ऑफिस के बाहर लाल रंग का बल्ब जला कर अपनी विशाल मेज के पीछे रिवॉल्विंग चैयर पर बैठा एक खुले हुए फ़ोल्डर पर झुका हुआ था। (पृष्ठ 30)
इन्द्रजीत ने सावधानी से पीछे झाँककर देखा, “ऐन्जेला” यानि बीच के रास्ते पर सिरे पर उसे बलाल पड़ा दिखाई दिया जो पिछले दरवाजे की निगरानी पर तैनात था। (पृष्ठ 195)
गार्ड टर्नर ट्रकों के पास पहुँचकर ढेर हो गया। उसकी हालत उन खिलाड़ियों जैसी थी जो आवेश में कोई उसकी पर्सनेलिटी में टर्नर से समानता मौजूद थी। (पृष्ठ 232)
अंत में यही कहूँगा कि राजभारती के किरदार इन्द्रजीत चड्ढा का यह कारनामा मुझे तो पसंद आया। कथानक पठनीय है और रोमांच की वह डोज आपको मुहैया करवाता है जिसकी आप थ्रिलर उपन्यासों से उम्मीद लगाते हो। इस उपन्यास को पढ़ने के बाद इन्द्रजीत शृंखला के दूसरे उपन्यास पढ़ने की ख्वाहिश मन में पैदा हो गई है। उम्मीद है जल्द ही इन्द्रजीत से दोबारा मुलाकात होगी।
क्या आपने राजभारती द्वारा लिखे गए ‘स्टंट थ्रिलर’ पढ़े हैं? अगर हाँ, तो आपको कौन से ‘स्टंट थ्रिलर’ ज्यादा पसंद आए है?
यह भी पढ़ें
Post Views: 35