पराग डिमरी जब गीत-संगीत पर अपनी कलम उठाते हैं तो अपना दिल खोल कर रख देते हैं।
अतीत के संगीतकारों में नौशाद, रवि, हुस्नलाल भगतराम, सलिल चौधरी, रोशन, ओपी नैयर, मदनमोहन, जयदेव, एस डी बर्मन, खैय्याम, शंकर जयकिशन, कल्याण जी आनन्द जी, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल आदि बहुत से ऐसे संगीतकार हुए हैं, जिन्होंने सुरीली स्वरलहरी से लोगों को मदहोश किया है, फिर आया भप्पी लहरी और आर. डी. बर्मन का युग – जिसने लोगों के पैरों में जैसे उछलने कूदने और नाचने के लिए स्प्रिंग से लगा दिये, लेकिन इसी दौर से कुछ आगे चलते हुए बहुत से नये संगीतकारों ने भी अपनी अलग शैली से एक नया धमाल मचाया।
ऐसे संगीतकारों में एक चर्चित नाम उभरकर आया था – नदीम श्रवण।
पराग डिमरी ने नदीम श्रवण के श्रवण पर जब कलम उठाई तो सब कुछ उसी तरह डूब कर लिखा, जैसे कभी ओपी नैयर के बारे में ‘जादूगर मतवाला हूँ‘ में लिखा था।
श्रवण राठौड़ के संगीतमय जीवन के आग़ाज़ का पराग डिमरी ने बेहद संतुलित शब्दों में जीवंत खाका खींचा है।

श्रवण के दोनों भाइयों रूप कुमार राठौड़ और विनोद राठौड़ के गायन क्षेत्र में प्रतिभा प्रकट करने के विपरीत श्रवण का संगीतकार बनने की राह पर चलना – पराग डिमरी ने बहुत ही सधे शब्दों में उकेरा है।
हरीश बोपईय्या के निवेदन पर कॉलेज के दौरान सेंट एनी कॉलेज के फंक्शन में श्रवण का जाना और वहाँ कांगो बजाते नदीम से मिलना – वो इतिहास है, जिसने संगीत के क्षेत्र को नदीम श्रवण जैसी सुरीली संगीतकार जोड़ी दी।
भोजपुरी फिल्म दंगल से नदीम श्रवण की शुरुआत और आरम्भ में ही रफी साहब और आशा भोंसले के गीतों को संगीतबद्ध करना नदीम श्रवण की आरम्भिक उपलब्धि ही थी, जिसने उनका आत्मविश्वास प्रबल किया। पराग डिमरी ने कुछ छोटी छोटी घटनाओं का अच्छा चित्रण किया है, जिसे आप पुस्तक में ही पढ़ें तो अधिक आनन्द की अनुभूति होगी।
संघर्ष और सीखने के दौर तथा पर्याप्त सफलता न मिल पाने की कठिन परिस्थितियों का जिक्र पराग डिमरी ने बहुत सहज, किन्तु प्रभावी ढंग से किया है।
‘दिल है कि मानता नहीं’ और ‘घूँघ की आड़ से दिलबर का दीदार अधूरा रहता है’, जैसे गीतों की धुन की रचना का विवरण पठनीय है।
नदीम श्रवण का टी सीरीज़ के गुलशन कुमार से जुड़ना और आशिकी फिल्म में उनके गीतों की कैसेट पर दोनों की तस्वीर का होना – कामयाबी की वो सीढ़ी थी, जिसने नदीम और श्रवण को लोकप्रियता के शिखर पर पहुँचा दिया, किन्तु इस फिल्म के रिलीज़ होने से पहले की पशोपेश को पराग डिमरी ने बहुत ही सरलता से प्रस्तुत किया है।
पुस्तक में फिज़ूल की लफ्फाजी या संगीत से परे कुछ भी नहीं है। गीत-संगीत में रुचि रखने वाले हर शख्स के लिए यह पुस्तक संग्रहणीय है।
श्रवण राठौड़ के मृदुभाषी चरित्र को पराग डिमरी ने सीमित शब्दों में परिभाषित किया है। कहीं भी अतिश्योक्ति से काम लेने के मोह से लेखक ने ख़ुद को अलग रखा है। यह किसी के चरित्र को सच्चाई और ईमानदारी से प्रस्तुत करने का अनुपम उदाहरण है।
गुलशन कुमार की हत्या के विवादास्पद प्रसंग पर भी लेखक ने संयमित और संतुलित शब्दों का प्रयोग किया है।
आखिर में संगीतकार जोड़ी के संगीत की विशेषता और उनके संगीत का विवरण देकर लेखक ने संगीत प्रेमियों की जिज्ञासु प्यास बुझाने का सम्पूर्ण प्रयास किया है।
श्रवण राठौड़ के दुनिया को अलविदा कहने का प्रसंग बहुत सहज है, लेकिन उसे लिखते हुए संगीत प्रेमी पराग डिमरी स्वयं भावुक अवश्य हो गये होंगे।
कुल मिलाकर पुस्तक एक ही सिटिंग में पढ़ने लायक है। कहीं भी बोझिलता या अनावश्यक बढ़ा चढ़ा कर पेज भरने की जरा भी चेष्टा नहीं की गयी है, जो कि अक्सर सेलिब्रिटीज़ पर लिखी पुस्तकों में पायी जाती है। बहुत से विद्वान लेखक भी सेलिब्रिटीज़ पर लिखी अपनी पुस्तकों में महिमामंडन के प्रयास में कथ्य और जानकारियों को अनावश्यक विस्तार देकर जरूरत से डेढ़ गुना पृष्ठों में भरते आये हैं जो पुस्तक को कई बार बोझिल बना देती है। परन्तु यहाँ ऐसा कुछ नहीं है।
लेखक ने पहले ओपी नैयर और अब श्रवण राठौड़ पर अपनी कलम का जादू चलाकर प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से संगीत जगत की भी अनुपम सेवा की है। उम्मीद है – लेखक का संगीत के प्रति यह लगाव हमेशा बरकरार रहेगा और उनकी कलम और भी नये आयाम प्रस्तुत करेगी।