गजानन रैना साहित्यानुरागी हैं। साहित्य के विभिन्न पहलुओं पर अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लिखते रहते हैं। उन्होंने लेखक रवि बुले के उपन्यास ‘दलाल की बीवी’ पर एक टिप्पणी लिखी है। आप भी पढ़िए।
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दलाल के हाथ बँधे थे। रस्सी का दूसरा सिरा सिपाही की कमरपेटी में बँधा था। उस के साथ ,पीछे और आगे एक एक सिपाही चल रहे थे । उनके आगे बस्ती के नंग धड़ंग बच्चे नाचते-कूदते चल रहे थे। जब यह जुलूस मंडी के बीच पहुंचा तो आगे चल रहे बच्चों में किसी एक लड़के ने नारा बुलंद किया, ” खून हुआ है । दलाल ने खून किया है ।”
यह घटना लोकल थी लेकिन इसकी वजहें ग्लोबल थीं।
अनुच्छेद का अंतिम वाक्य उपन्यास को खोलने वाली चाभी है। यह फिल्म पत्रकार रवि बुले का पहला उपन्यास है। यह उपन्यास कम एक दु:स्वप्न अधिक है । इससे गुजरते हुये पाठक अनुभव करता है कि यह समय श्रापग्रस्त है और नर्क सामने उतर चुका है।
एक श्रापग्रस्त समय ही जन्म दे सकता है ऐसे किरदारों को! अपनी देह को गोश्त की दुकान बना कर, बोटी बोटी बेचतीं धंधे वालियाँ! लार टपकाते , खाये-अघाये अमीरजादे! भूखे भेड़ियों से घूमते शोहदे!
यहाँ की दुनिया निराली है, भाई। सम्हल कर चलना ! कदम कदम पर चौंका देने वाली चीजें हैं। यहाँ मछलियाँ हैं जो हालात को हैरत से देखती हैं और उनकी फटी-फटी आँखें देर तक पाठक को हांट करती हैं।
यहाँ इन्सानों के पागलपन से फिक्रजदा बिल्लियाँ आपस में जो बातें करती हैं, वो सुनने से ताल्लुक रखती हैं ।
अद्भुत है कि यहाँ खलनायक समय है। इस उपन्यास की कथा केवल मुंबई या फिर भारत की नहीं है। यह कथा वैश्विक है, यह बोस्टन से बिलासपुर तक,कहीं की भी हो सकती है ।
यह उपन्यास समाज की निर्मम सच्चाइयों और इंसान की कमीनगियों का एक कोलाज है, जो पैसे, वासना, बलात्कार और हत्या के रंगों से बना है। इस दुनिया में देह और रोटी के सिवाय सबकुछ बेमानी है, अप्रासंगिक है।
यहाँ वैश्विक मंदी एक शिकारी की भूमिका में है और शिकार हैं, नौकरी की फिक्र में बहुमंजिली इमारत से छलांग लगा देने वाली एयर होस्टेस और उसके परेशान ब्वॉयफ्रेंड जैसे लोग।
यहाँ एक बात काबिले जिक्र है, हिन्दी में ऐसी रचनायें दुर्लभ हैं, जिनमें परिदृश्य और घटनाओं की ऐसी महीन डिटेलिंग हो । रवि ने अपने मुंबई के अनुभवों का पूरा लाभ उठाते हुए देह व्यापार के छोटे-छोटे विवरणों को
ऐसी कुशलता से जोड़ा है कि पाठकों को घटनायें सामने घटती प्रतीत होती हैं ।
लेखक ने रोमांच और विस्मय की एक ऐसी दुनिया रची है
जो अँधेरी होते हुये भी पाठक को ऐसे आकर्षित करती है कि न चाहते भी वह प्रवेश कर जाता है । रवि ने नया मुहावरा दिया है, नये मेटाफर, नयी शैली और निराली प्रस्तुति।
‘दलाल की बीवी’ की अँधेरी लेकिन सम्मोहक दुनिया में आपका स्वागत है ।
पुस्तक विवरण:
नाम: दलाल की बीवी | लेखक: रवि बुले | प्रकाशक: हार्पर हिंदी | पुस्तक लिंक: अमेज़न
टिप्पणीकार परिचय:
गजानन रैना |
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