संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: ई-बुक | पृष्ठ संख्या: 191 | शृंखला: ऋषभ सक्सेना #1
पुस्तक लिंक: अमेज़न – किंडल | पेपरबैक
कहानी
प्रशांत सालुंके का किसी ने खून कर दिया था।
पुलिस को शक था कि यह कत्ल सौरभ ने किया था। सौरभ कभी प्रशांत का रूम पार्टनर रहा था और उससे झगड़ा करके अलग रहने चला गया था।
प्रशांत के कत्ल के एक दिन पहले भी सौरभ और प्रशांत के बीच एक बार में झगड़ा हुआ था जहाँ सौरभ ने प्रशांत को जान से मारने की धमकी दी थी।
पुलिस की माने तो सौरभ ही कातिल था और इसलिए उन्होंने उसे गिरफ्तार कर दिया था।
सौरभ का कहना था कि प्रशांत के कत्ल के वक्त वह उसके घर के नजदीक भी मौजूद नहीं था।
क्या सच में सौरभ ने प्रशांत का कत्ल किया था?
अगर सौरभ निर्दोष था तो उसका खून किसने किया था?
क्या कातिल पकड़ा गया?
आखिर कौन था ये बेगुनाह गुनाहगार?
मुख्य किरदार
निरंजन – ऋषभ का दोस्त, उम्र चालीस वर्ष और पुलिस फोटो ग्राफर
देवेश – ऋषभ और निरंजन का दोस्त और पार्टी ऑन बार का मालिक
प्रताप सालुंके – एक व्यक्ति जिसे निरंजन ने पैसे दिए थे
सौरभ – प्रताप का रूम पार्टनर
पलक – सौरभ की दोस्त जिसे ऋषभ भी चाहता था
रोशन – पार्टी ऑन बार का बाउंसर
विनीत – ऋषभ का भाई
वर्षा – विनीत की पत्नी
मोनिका – वर्षा और विनीत की बेटी
महेश जोशी – स्थानीय अखबार न्यूज वन का एडिटर और पलक का पिता
रूपाली माधवन – सनशाइन अपार्टमेंट की मालकिन
विपुल माधवन – रूपाली का स्वर्गवासी पति
रितेश प्रधान – इंस्पेक्टर जो केस देख रहा था
कमलाकांत – सन शाइन अपार्टमेंट का किरायदार
रामधन – सन शाइन अपार्टमेंट का गार्ड
निरूपम शास्त्री – सनशाइन अपार्टमेंट का एक किराएदार
मेरे विचार
‘बेगुनाह गुनाहगार ‘ अजिंक्य शर्मा द्वारा लिखित पुस्तक है। यह जनवरी 2023 में प्रकाशित हुई थी और ऋषभ सक्सेना नामक किरदार को लेकर लिखा गया उनका पहला उपन्यास है। बताते चलें कि इस किरदार को लेकर उन्होंने हाल ही में तीसरी कौन उपन्यास लिखा है।
‘बेगुनाह गुनाहगार’ की बात करूँ तो यह मूलतः एक मर्डर मिस्ट्री है। प्रताप सालुंके का जब अपने अपार्टमेंट में कत्ल हो जाता है तो उसके कत्ल के इल्जाम में सौरभ को पुलिस द्वारा पकड़ लिया जाता है। परिस्थियाँ ऐसी हो जाती हैं कि ऋषभ सक्सेना जो कि एक फ्रीलांस फोटोग्राफर है असल कातिल का पता लगाने की कोशिश में जुट जाता है। वह यह कोशिश क्यों करता है। उसकी कोशिश में क्या अड़चनें आती हैं। वह इन अड़चनों से कैसे उभरता है। असल कातिल कौन होता है और वह कैसे पकड़ा जाता है। बेगुनाह गुनाहगार कौन है और वो क्यों है? ये सब बातें ही मिलकर कथानक बनती हैं।
ब्रजेश शर्मा उर्फ अजिंक्य शर्मा ने कम ही समय में अपने पाठकों पर एक गहरी छाप छोड़ी है। वो लगातार उपन्यास लिखते तो जा ही रहे हैं लेकिन नवीन किरदारों की रचना भी करते चले जा रहे हैं। इन किरदारों की खास बात ये होती है कि अक्सर उनके नए किरदार नए शहर में बसे होते हैं। प्रस्तुत उपन्यास बेगुनाह गुनाहगार में भी उन्होंने ये ही किया है। उनके इस उपन्यास का कथानक महाराष्ट्र के पुणे में घटित होता है।
चूँकि यह मर्डर मिस्ट्री है और एक रहस्यकथा का सबसे बड़ी खूबी यही होती है कि पाठक कातिल का पता अंत तक न लगा पाए। अक्सर अन्य लेखक इसके लिए कई ऐसे किरदारों को खड़ा कर देते हैं जिन पर शक जाए और कथानक को उलझा देते हैं। यहाँ लेखक अजिंक्य शर्मा ऐसा करने से बचते हैं लेकिन फिर भी कथानक को इस तरह बुनते हैं कि अंत तक कातिल का पता लगाना मुश्किल रहता है।
उपन्यास के केंद्र में ऋषभ सक्सेना है जो कि एक 24 वर्षीय फ्रीलांस फोटोग्राफर है और अक्सर स्थानीय अखबार न्यूज वन के लिए फोटोग्राफी का काम करता है। उसका एक फोटोस्टूडियो भी है जिसे वह अपने भाई के साथ मिलकर चलाता तो है लेकिन वहाँ से उसकी खास कमाई नहीं होती है।
ऋषभ की अपनी दुनिया है जिसमें उसका एक दोस्त है निरंजन जो कि पुलिस फोटोग्राफर है और देवेश जो एक बार पार्टी ऑन का मालिक है। ऋषभ और निरंजन को उन मामलों पर विचार विमर्श करना पसंद है जो कि एक पुलिस फोटोग्राफर के रूप में निरंजन के सामने आते हैं।
ऋषभ पलक से प्यार करता है लेकिन पलक किसी और पर ही मोहित है। ऋषभ के पहले उपन्यास में लेखक ने उसके सामने उसके रकीब को बचाने की ही उलझन पेश कर दी है। यह एक छोटा सा समाज है जहाँ हर कोई हर किसी को जानता है ऐसे में उपन्यास कस्बाई वातावरण में आपको ले जाता है। अगर आप कस्बे से आते हैं वहाँ के शांत जीवन, सबकी सबसे पहचान होने की बात को इसमें महसूस कर सकते हैं।
किरदार रोचक हैं और जीवंत लगते हैं। वह आम लोगों की तरह बेवकूफियाँ भी करते हैं और उसके कारण उन परिस्थितियों में फँस जाते हैं जिनमें वो न फँसते अगर समझदारी से काम लेते। कथानक आपको बांधकर रखता है और आप बिना रुके पढ़ने के लिए बाध्य हो जाते हैं।
उपन्यास का नायक चूँकि प्रोफेसनल इंवेस्टिगेटर नहीं है और न ही उसकी बनने की कभी इच्छा रही है तो इसे उसकी इंवेस्टिगेटिव करियर के शुरुआत के रूप में देखा जा सकता है। लेखक ने उसे ऐसे औजार भी मुहैया करवाएँ हैं जो कि उसकी तहकीकात में मदद करते हैं। जैसे सही जगह दोस्त होना, सही जगह पहचान होना। ऐसे में उसके लिए ये मामले को निपटाने के लिए जिन जिन चीजों की जरूरत होती है वो उसे मिलता जाता है। फिर चूँकि अपराध जान पहचान में हुआ रहता है चीजों को सुलझाने की प्रेरणा भी रहती है। कहानी के अंत में उसके करियर में भी एक बड़ा बदलाव होने का हिंट लेखक देते हैं। ऐसे में ऋषभ के जीवन में आगे क्या होता है? क्या क्या बदलाव और उलझने आती हैं? उसके रिश्तों में क्या क्या बदलाव आते हैं? इन सबको देखना रोचक होगा।
लेखन शैली की बात की जाए तो सहज सरल आम बोल चाल की भाषा का प्रयोग लेखक ने किया है। उपन्यास मराठी भाषी बहुल पुणे में जरूर बसाया गया है लेकिन भाषा में वो बात झलकती नहीं है। अगर झलकती तो बेहतर होता। किरदारों के बीच में संवाद कथानुरूप ही हैं और बनावटी नहीं लगते हैं। ऋषभ और उसके कई संवाद रोचक हैं और आपके चेहरे पर मुस्कान ले आते हैं।
कथानक की कमी की बात करूँ तो उपन्यास में संपादन की कमी दिखती है। उदाहरण के लिए:
उपन्यास में बताया गया है कि ऋषभ 24 वर्षीय युवक है और उसका भाई उससे एक साल बढ़ है। लेकिन आगे जाकर बताया जाता है कि विनीत की पत्नी वर्षा 26 साल की है और उनकी छः साल की बेटी है।
ऋषभ एक 24 वर्षीय युवक था। (पृष्ठ 11)
विनीत उम्र में उससे साल भर ही बड़ा था इसलिए उनके बीच दोस्तों जैसा ही रिश्ता था। (पृष्ठ 22)
ऋषभ की भाभी वर्षा 26 वर्ष की थी। (पृष्ठ 41)
ऋषभ की छः वर्षीय भतीजी मोनिका स्कूल की ड्रेस पहनकर स्कूल जाने के लिए तैयार बैठी हुई थी। (पृष्ठ 41)
उपन्यास में ये भी बताया जाता है कि विनीत और वर्षा की शादी उनके माँ बाप ने कराई थी। अक्सर शादी जब ऐसे कराई जाती है तो स्त्री की उम्र महिला से कम रहती है। ऊपर मौजूद जानकारी के हिसाब से वर्षा जब उनकी बेटी पैदा हुई तो 20 की रही होगी और विनीत 19 का। अब उनकी शादी इससे एक साल पहले तो हुई ही होगी यानी शादी के वक्त विनीत 18 का रहा होगा और वर्षा 19 की। यह चीज थोड़ी अटपटी लगती है।
इसके अतिरिक्त उपन्यास में एक प्रसंग है जिसमें पलक ऋषभ से मिलने आती है। इधर बताया जाता है कि ऋषभ ने सुबह मोनिका को स्कूल छोड़ा और स्टूडियो पहुँचा और तब पलक उधर आई।
मोनिका को स्कूल छोड़ने के बाद ऋषभ स्टूडियो पहुँचा। (पृष्ठ 43)
किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी।
“ऋषभ”, पलक की आवाज सुनाई दी। (पृष्ठ 48)
इनके बीच इधर कुछ घटित होता है लेकिन आगे जाकर ऋषभ पलक को कहता है कि वह उसके घर रात को आई थी और तब वो चीज घटित हुई थी जो इधर हुआ था। यह चीज पढ़ते हुए पाठक को संशय में डालती है क्योंकि वो स्टूडियो में हो रही चीजों को घर में हुआ और सुबह हुई चीजों को रात में हुआ बता रहा होता है।
कल रात जब तुम घर आकर …. पृष्ठ 69
पृष्ठ 138 में ऋषभ निरंजन से कहता है कि उसे गार्ड ने बताया कि कमलकांत पाँच बजे नियम से कहीं जाता है लेकिन गार्ड और ऋषभ की बातचीत में ये नहीं रहता है।
ऐसे ही इक्के दुक्के जगह किरदारों के नाम भी बदल जाते हैं और कुछ जगह वर्तनियों की गलती हैं।
रूपाली ने भावहीन ढंग से उस युवक को देखा, जो उसके दरवाजे खोलने पर उसके सामने नमूदार हुआ था और उससे ऋषभ (ऋषभ नहीं सौरभ होगा) के बारे में जरूरी बात करने की इच्छा व्यक्त कर रहा था। (पृष्ठ 115)
“क्यों राहुल (राहुल नहीं सौरभ होगा) के साथ गुलछर्रे उड़ाने के लिए तो आप सबसे आगे थीं…. ” (पृष्ठ 116)
उपन्यास के अंत में जो अपराधी रहता है उसे बाहर बैठे हुए जेल में एक काम कराते हुए दर्शाया गया है। जो अपराधी रहता है वह एक आम व्यक्ति ही रहता है ऐसे में उसके जेल में काम कराने लायक पहचान होना थोड़ा सा असंभव सा लगता है। अगर लेखक इस पहचान का कोई पुख्ता कारण देते तो बेहतर होता।
इन गलतियों के अलावा उपन्यास भले ही पुणे में बसाया गया है लेकिन पुणे की झलक कम ही इधर दिखती है। लेखक ने नाम मराठी जरूर रखें हैं लेकिन इसके अतिरिक्त पुणे कम दिखता है। उम्मीद है लेखक इस शृंखला के आने वाले उपन्यासों में पुणे को भी तरजीह देंगे और किरदारों के पहनावे, खाने, बातचीत के लहजे और शहर की चुनिंदा जगहों को दर्शाएँगे ताकि केवल नाम ही प्रयोग हुआ न लगे।
अंत में यही कहूँगा कि बेगुनाह गुनाहगार एक रोचक उपन्यास है। एक रहस्यकथा के रूप में यह आपका मनोरंजन करने में सफल होता है। अगर रहस्यकथाओं के शौकीन हैं तो आपको इसे पढ़कर देखना चाहिए।
ऋषभ और उसके दोस्तों और जान पहचान वालों से मैं आगे भी मिलना चाहूँगा।
पुस्तक लिंक: अमेज़न – किंडल | पेपरबैक
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