संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 114 | प्रकाशक: फ्लाईड्रीम्स पब्लिकेशंस
पुस्तक लिंक: अमेज़न
कहानी
नेहा, राहुल, कबीर और आयशा रोज शाम को पार्क आते थे। उनके माता पिता को तो लगता था कि वो उधर जाकर खेल रहे होंगे लेकिन सभी अपने अपने फोनों में व्यस्त रहते थे।
पर फिर उनकी जिंदगी में बदलाव आया।
वो अब पार्क जाते तो थे लेकिन फोन पर खेलने नहीं बल्कि कहानियाँ सुनने।
आखिर ये बदलाव उनकी जिंदगी में कैसे आए?
उन्हें कहानियाँ कौन सुना रहा था?
इन कहानियों का उन पर क्या प्रभाव पड़ा?
टिप्पणी
ग्राहम बेल ने जब फोन का आविष्कार किया था तो उन्होंने सपने में नहीं सोचा होगा कि एक दूसरे से संपर्क साधने के लिए बनाया गया उपकरण लोगों की ज़िंदगी का इतना महत्वपूर्ण हिस्सा बन जाएगा।
आज अगर कोई हमसे कहे कि फोन के बिना अपने जीवन की कल्पना करें तो ऐसा करना लगभग असम्भव होगा। आज बच्चे हों या बड़े सभी फोन के साथ ही रहना पसंद करते हैं। मनुष्य का सिर सामने की बजाये नीचे फोन की स्क्रीन की तरफ को ज्यादा मुड़ा रहता है। अगर वो फोन की स्क्रीन की तरफ नहीं देख रहा होता तो इसकी सम्भावना अधिक है कि दूसरे स्क्रीन जैसे लैपटॉप, टीवी या टैबलेट ने उसका ध्यान अपनी ओर खींचा रहता है।
फोन और दूसरे स्क्रीनों में डूबे रहने की इसी आदत को केंद्र में रखकर आलोक कुमार की किताब ‘आओ बच्चों तुम्हें सुनाएँ’ लिखी गयी है।
यह मुख्य रूप से चार बच्चों नेहा, राहुल, कबीर और आयशा और उनके परिवार की कहानी की कहानी है। नेहा, राहुल, कबीर और आयशा आज कल के आम बच्चे हैं जो कि फोन में डूबे रहते हैं। उनके माता पिता भी आज कल के आम माता-पिता है जो खुद फोन पर डूबे होने के बावजूद कभी-कभी बच्चों को फोन से दूर रहने का ज्ञान देते रहते हैं और कभी-कभी खुद उनको फोन पर लगा देते हैं।
इसके अतिरिक्त एक शख्स भी कहानी में मौजूद है। यह शख्स ही है जो बच्चों को सही राह दिखाता है। यह शख्स कौन है यह अंत तक साफ तौर पर बताया नहीं जाता है। बस लेखक ऐसे इशारे छोड़ देते हैं जिससे आप इसका अंदाजा लगा सकते हैं।
किताब छोटे-छोटे अध्यायों में विभाजित है। जहाँ एक तरफ पुस्तक में इन बच्चों और उनके परिवार के जीवन को दर्शाया गया है वहीं बीच-बीच में कुछ शिक्षापद्र कहानियाँ भी आती हैं जो बच्चों को सुनाई जा रही होती हैं।
आजकल परिवार में मोबाइल या दूसरी स्क्रीनों का क्या महत्व हो गया है और किस तरह ये हमारे रिश्तों पर भी प्रभाव डालने लगा है ये हमें बच्चों के जीवन को देखकर पता चलता है।
वहीं अध्यायों के बीच में मौजूद कहानियों के माध्यम से लेखक पाठक को जीवन से जुड़ी कई सीख दे जाते हैं। कहानियाँ हमारे जीवन में बहुत जरूरी होती हैं। ये कहानियाँ ही होती हैं जो याद रह जाती हैं।
अक्सर देखा गया है कि हम लोग बचपन में की गयी पढ़ाई भूल जाते हैं लेकिन कहानियाँ हमारे मानस पटल पर अमिट छाप छोड़ देती हैं। यही कारण है कि ये शिक्षा और ज्ञान को आगे बढ़ाने का इतना सशक्त माध्यम हैं। पर अफसोस की बात ये है कि आज के समय में हम ये काम नहीं कर रहे हैं।
हम अपने और अपनी स्क्रीनों में इतना खो गए हैं कि न बड़ों के पास बच्चों को कहानियाँ सुनाने का समय है और न बच्चों के पास ही कहानियाँ सुनने का समय है। एक तरह से एकाकी जीवन दोनों ही जी रहे हैं जिससे रिश्तों में वो गर्माहट खत्म होती जा रही है जो पहले कभी हुआ करती थी।
यह किताब इस चीज को दर्शाते हुए कहानियों की महत्ता पर भी किताब बात करती है।
पुस्तक में प्रयोग की गयी आम बोल चाल की भाषा पुस्तक को पठनीय बनाती है और इसका विषय इसे बच्चों के साथ-साथ उनके अभिभावकों के पढ़ने योग्य भी बनाता है।
किताब में बीच बीच में चित्र मौजूद हैं जो कि पढ़ने के अनुभव को बेहतर बनाते हैं।
हाँ, किताब में चार बच्चे आयशा, नेहा, राहुल, कबीर हैं जिनमें से तीन के पारिवारिक जीवन को दर्शाया गया है। आयशा का उसके माता पिता से कैसा रिश्ता था ये इतना नहीं दिखता है। एक दो अध्याय में लेखक इसे भी दर्शाते तो बेहतर होता।
वहीं अजनबी का किरदार यथार्थ के निकट होता तो अच्छा होता। लेखक ने इधर फंतासी का प्रयोग किया है जिससे अलग तरह का संदेश जा सकता है। यहाँ ये ध्यान रखने की जरूरत है कि बदलाव मनुष्य को ही करना होगा। और इस दिशा में कार्य करने के लिए प्रेरित करने का काम ये पुस्तक बाखूबी करती है।
अंत में यही कहूँगा कि ‘आओ बच्चों तुम्हें सुनाएँ’ वैसे कहने को तो बच्चों के लिए लिखी गयी किताब है लेकिन ये वयस्कों को भी आइना दिखाने का कार्य करती है। ऐसे में ये जरूरी हो जाता है कि बच्चों के साथ उनके अभिभावक या परिवार में मौजूद अन्य बड़े लोग भी इसे पढ़ें ताकि उन्हें भी अहसास हो कि उनका मोबाइल (स्क्रीन) प्रेम किस तरह से उनके और बच्चों के रिश्ते के बीच आ रहा है।
एक रोचक पुस्तक जो पढ़ी जानी चाहिए।
पुस्तक लिंक: अमेज़न
किताब तो दिलचस्प लग रही है ।
पढ़ती हूँ जल्द ही इसे।
पढ़कर अपनी राय भी दीजिएगा। आपकी राय की प्रतीक्षा रहेगी।