विक्रम ई दीवान |
विक्रम ई दीवान का पैरानोर्मल थ्रिलर वारलॉक अंग्रेजी में पाठकों के बीच काफी प्रसिद्ध हुआ है।
वारलॉक एक ऐसे तांत्रिक की कहानी है जो कि तन्त्र सिद्ध प्राप्त करने के लिए नर बलि देने से भी नहीं हिचकता है। वह अब तक कई लोगों की बलि चढ़ा चुका है। अब उसका अगला शिकार पायल चटर्जी नामक फ़िल्मी अदाकारा है। क्या पायल भी वारलॉक के कई शिकारों में से एक शिकार बन जाएगी या वो किसी तरह खुद को वारलॉक के चंगुल से बचाने में कामयाब हो जाएगी? इन्हीं प्रश्नों का उत्तर उपन्यास पढ़कर आप जान पायेंगे।
अपनी किताब के अंग्रेजी संस्करण की सफलता से प्रेरित होकर विक्रम ई दीवान वारलॉक का हिन्दी संस्करण लेकर आये हैं। वारलॉक श्रृंखला के इस प्रथम उपन्यास का अनुवाद उभरते हुए युवा लेखक चन्द्रप्रकाश पाण्डेय ने किया है। आज एक बुक जर्नल आप सभी के समक्ष वारलॉक के हिन्दी संस्करण से एक छोटा सा अंश प्रस्तुत कर रहा है। उम्मीद है यह अंश आपको पसंद आएगा।
लेखक विक्रम ई दीवान का विस्तृत परिचय आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
विक्रम ई दीवान
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महरौली का राउल एस्टेट अँधेरे में डूबा हुआ था। वह एस्टेट 4 एकड़ में फैला हुआ था, जिसका अधिकाँश हिस्सा बंजर था और ज़मीन से उभरे हुए छोटे-बड़े लाल चट्टानों से भरा हुआ था। जगह-जगह मौजूद टीलों और गड्ढों के कारण ज़मीन उबड़-खाबड़ थी। बेतरतीबी से उगी हुई जंगली झाड़ियों और पेड़ो वाला वह निर्जन तथा भयानक स्थान अपने मालिक की उपेक्षा का प्रत्यक्ष गवाह था। एक श्मशान घाट और मुसलमानों के कब्रिस्तान से सटे हुए उस एस्टेट के प्रमुख स्थानों में थे। एक फार्म हाउस जिसकी छत पर शीशे की पिरामिड था तथा ज़मीन के नीचे कुछ गुप्त तहखाने थे। इसके अलावा वहाँ एक कृत्रिम झील, एक सर्कस के अवशेष, बियावान खंडहर और जंगली झाड़ियों से भरा एक छोटा जंगल भी थे।
क्रूज रॉटवेइलर नस्ल के कुत्तों की एक टुकड़ी अपने मालिक की अनुपस्थिति में एस्टेट में नियमित रूप से गश्त लगाती थी। हिंसक नस्ल के वे वहशी कुत्ते बाघ को भी चुनौती देने में सक्षम थे और एस्टेट में दाखिल होने का दुस्साहस करने वाले किसी भी शख्स को चीर फाड़ सकते थे। लेकिन उस रात वे किसी घुसपैठिये का शिकार करने की फ़िराक में नहीं थे बल्कि अँधेरे के कारण निगाहों से ओझल थे। किसी वजह से वे डरावने अंदाज़ में रो रहे थे। उनका तीखा रुदन एस्टेट के खौफनाक वातावरण में गूँज रहा था।
‘नुजहत’ के नाम से स्व-नामित भिखारिन की वह लड़की अपने परिवार का पेट भरने के लिए भोजन की तलाश में चल पड़ी। वह दूर अँधेरे में परछाईं की भाँति खड़ी इमारत तक जल्द से जल्द से पहुँच जाना चाहती थी। वहाँ किसी के मौजूद न होने की दशा में वह खाने की चीजें चुरा सकती थी। वह इमारत भयावह थी। उसने स्वयं में कुछ ऐसे मनहूस और डरावने रहस्य छिपा रखे थे, जिन्हें अल्पविकसित और कम अक्ल वाली नुज़हत भी महसूस कर सकती थी, लेकिन इसके बावजूद भी अपनी माँ की पिटाई के डर से वह काँटों और झाड़ियों से भरी ज़मीन पर चलती रही। कूड़े-करकट, मल-मूत्र और जानवरों की लाशों के सड़ने की दुर्गंध से वह परेशान हो उठी थी । उसे ये दुर्गंध पुरानी दिल्ली स्थित आजाद मार्केट इलाके के एक अवैध बूचड़खाने की दुर्गन्ध से भी बदतर लग रही थी, जहाँ वह अपने परिवार के साथ रातें गुज़ारी थी।
किसी तरह अपनी ऊबकाई रोकते हुए वह इमारत के पास पहुँची। उसने मुख्य दरवाज़े को नज़रअंदाज़ करते हुए टूटे हुए शीशे वाली एक खिड़की ढूँढ निकाली, जो बेसमेंट के किसी कमरे में खुलती थी। वह बिना किसी हिचकिचाहट के अपने शरीर को सिकोड़ते हुए खिड़की के रास्ते अँधेरे में कूद पड़ी। परिणामस्वरूप उसका जिस्म एक सर्द और गंदे फर्श से टकराया। हालाँकि उसे कंधे और पीठ में तेज दर्द महसूस हुआ, लेकिन फिर भी वह एक बिल्ली की भाँति सधे हुए ढंग से उठ खड़ी हुई और किसी प्रतिक्रिया का इंतज़ार करने लगी। जब कोई भी प्रतिक्रिया नहीं हुई तो उसने अँधेरे कमरे का दरवाज़ा तलाशने की नीयत से बाहें फैलायीं। दीवार से टकराने से बचने के लिए वह दोनों हाथ सामने फैलाए हुए किसी अंधी लड़की की तरह आगे बढ़ने लगी।
कमरे से बाहर निकलने के बाद वह एक संकरी गैलरी में पहुँच गई और सीढ़ियों से और नीचे उतरने लगी। वह सीढ़ियाँ उसे ज़मीन के नीचे की दूसरी मंज़िल तक ले गई । एक कोने से कोई आवाज़ सुनकर वह भयभीत बिल्ली की भांति खुद में ही सिमट कर सीढ़ियों के नीचे दुबक गई और कोने की ओर झाँकने लगी। उसे गलियारे के एक कमरे के दरवाज़े के नीचे से हल्की रोशनी दिखाई पड़ी।
नुजहत इस बात से अनजान थी कि फार्म हाउस की इमारत के नीचे दो मंज़िल की गहराई तक गुप्त तहखानों का जाल फैला हुआ था, जहाँ दिन की रोशनी कभी नहीं पहुँच पाती थी। उसने पत्थर के फर्श पर लोहे की झंकार के साथ किसी का क्षणिक रुदन सुना, जो अगले ही पल चीत्कारपूर्ण दहाड़ और गालियों में तब्दील हो गया। ‘छोड़ दे मुझे। जाने क्यों नहीं देता। कीड़े पड़ेंगे तुझे माद****”एक अज्ञात लड़की की चीख हर एक-दो मिनट के अंतराल पर गूँज रही थी।
नुज़हत सावाधानीपूर्वक दरवाज़े तक पहुँची और उसने की-होल से अन्दर झाँका। टिमटिमाती मोमबत्तियों की अपर्याप्त रोशनी में उसे ब्लैक एंड वाइट तस्वीरों से भरी एक दीवार नजर आयी। सहसा, रोने का स्वर थम गया। तो क्या नुजहत की मौजूदगी भाँप ली गयी थी? वह एड़ियों को उठाये हुए अंदर टकटकी लगाये रही। वह कुछ समझ पाती कि की-होल के दूसरे छोर पर एक आँख नजर आई। नुजहत डर के मारे पीछे हटी। उसने भागने की कोशिश की लेकिन तभी दरवाज़ा खुला और किसी ने उस पर झपट्टा मारा। उसने विरोध करने की कोशिश की, लेकिन उससे अधिक उम्र की एक लड़की ने उसकी कलाई पकड़ ली और उसे खींचते हुए कमरे में लेकर चली गयी।
अंदर पहुँचकर नुज़हत ने देखा कि उस कैदी लड़की की उम्र 15-16 साल थी। उसके जिस्म पर मौजूद कपड़े तार-तार हो चुके थे। उसके बाल बिखरे हुए थे और कपड़ों से उल्टी, पेशाब तथा शौच की बदबू आ रही थी। कमरे के दमघोंटू दुर्गंध ने नुज़हत को सूखे हुए वीर्य से भरे उन कंडोम के दुर्गंध याद दिला दी, जो दूर-दराज के इलाकों में बैंक एटीएम में सड़ने के लिए छोड़ दिए जाते थे और जहाँ वह अक्सर अपने परिवार के साथ सोती थी।
“क्या तुम उसके साथ हो? नहीं..नहीं…वह तुम्हें अपने साथ क्यों रखेगा?”
“म…मैं..मैं भोजन की तलाश में आयी हूँ।”
“तुम गलत जगह पर आ गयी हो। उसके आने से पहले भाग जाओ। नहीं..नहीं..पहले मुझे इन जंजीरों से निकालो। मैं झज्जर जिले के बीर-दादरी गाँव से हूँ। उस दुष्ट ने मुझे यहाँ कैदी बना रखा है। उसके आने से पहले हमें बाहर निकलना होगा। इन जंजीरों की चाबी ढूँढो। दीवार पर टंगी औरतों, लड़कियों और बच्चों की उन काली (ब्लैक एंड व्हाइट – पोलरॉइड) तस्वीरों को देखो। वह दरिंदा बताता है कि ये उसके शिकार किये गए लोगों की उनके मरने से पहले की आखिरी तस्वीरें हैं। मैं नहीं चाहती कि इन लोगों की तरह मेरी तस्वीर भी इस दीवार पर टँगे। जिस दिन वह कैमरा लेकर आयेगा, वह दिन मेरा आखिरी दिन होगा। वह मेरे साथ घिनौनी हरकतें करता है, मेरी पिटाई करता है और मुझे भागने नहीं देता। भगवान के लिए चाबी को ढूंढो।”
नुजहत ने उस लड़की की कलाई के चारों ओर बँधे मोटे छल्लों वाली जंजीर को देखा, जिसका दूसरा सिरा एक लोहे के पलंग से जुड़ा हुआ था। बेड पर मौजूद बिना बेडशीट वाला गद्दा; वीर्य, मल-मूत्र और खून के कारण गन्दा और भूरा रंग अख्तियार कर चुका था। ये उस बंधक लड़की की लगातार पिटाई और उसके साथ हुए लगातार हिंसक बलात्कार की कहानी बयाँ कर रहा था। कमरे में चारों ओर मिनरल वाटर की खाली बोतलें और रेस्टोरेंट के बचे हुए खराब खाने के पैकेट बिखरे हुए थे, जो कमरे में भटकने वाले बदसूरत काले चूहों द्वारा कुतर डाले गए थे।
“कैसी चाबी?”
“ओफ्फो बेवकूफ़। इन जंजीरों की चाबी। तुम क्या बिलकुल ही गधी हो? जाओ, मेरे लिए उस चाबी को ढूँढो।…अच्छा ठीक है। मैं चिल्लाऊंगी नहीं। मुझे छोड़ कर मत जाओ। इस हथकड़ी की चाबी बाहर कहीं सुरक्षित जगह पर है या शायद दीवार से निकली हुई किसी कील पर टंगी हुई है। मुझे वहाँ से उसके उठाये जाने की आवाज सुनाई देती है। वह मेरे साथ गंदी हरकतें करता है, मुझे पीटता है और फिर चला जाता है।”
“मैं चाबी ढूँढने की कोशिश करती हूँ।”
“हाँ। देखो, मैं तुम्हारी बड़ी बहन की तरह हूँ।” उसने बदहवासी में अपने बालों में खुजली करते हुए कहा- “मेरी मदद करो।”
कैदी लड़की द्वारा निरंतर प्रोत्साहित किये जाने के फलस्वरूप नुजहत जैसे-तैसे चाबियों के उस गुच्छे को ढूँढने में सफल हो गई, जो कुछ ऊँचाई पर दीवार से निकली एक खूँटी से लटका हुआ था। उसने प्लास्टिक के दो खाली डिब्बे एक दूसरे के ऊपर रख दिए। दो बार फिसलने के बाद आखिरकार वह चाबी के गुच्छे तक पहुँच गयी। वह कमरे में वापस लौटी और अपने से बड़ी उस लड़की को चाबी सौंप दी। लड़की ने कहा- “मेरा नाम श्यामा है। जानती हो; वह आदमी पूरी तरह से पागल है। कहते हैं कि उसे लोगो के चेहरे पर बेबसी, दर्द और ख़ौफ़ देखकर मजा आता है। वह इन तस्वीरों को देखकर जुनूनी हो उठता है और मेरे साथ भी वही सब करता है, जो इनके साथ किया था। आओ। उसके आने से पहले से हम निकल जाएँ। मुझे रास्ता नहीं पता है, लेकिन हम दोनों मिल कर उसका पता लगा लेंगे।”
“ये बहुत बुरी जगह है।”
“मेरा हाथ पकड़ो। डरो मत।” श्यामा ने एक हाथ से नुजहत की कलाई मज़बूती से थामी, जबकि दूसरे हाथ में उसने एक माचिस की डिबिया ले ली। बाहर निकलने के बाद उसने रास्ता देखने के लिए माचिस की कई तीलियों को जलाया। हर मोड़ पर ठहर कर पदचापों का जायजा लेते हुए वे दो मंज़िल चढ़कर ज़मीन की सतह पर पहुँच गयी। उन्होंने ग्राउंड फ्लोर पर पहुँचते ही पाया कि समूचा फार्म हाउस अँधेरे में डूबा हुआ था। उसकी फर्श और दीवारें एक मक़बरे की मानिंद ठंडी थीं। चूंकि दोनों नंगे पाँव थीं, इसलिए ठंड के कारण कुछ ही क्षणों में उनके पाँव सुन्न पड़ गए। अँधेरे को दूर करके अपना डर भगाने के उद्देश्य से श्यामा ने माचिस की आख़िरी तीली भी जला डाली।
अपनी छठी इंद्रिय के चेताने पर वह पीछे घूमी। माचिस की तीली की रोशनी में उसने एक लम्बे और बलिष्ठ आदमी को अपने पीछे खड़े देखा। उसने तुरंत छोटी लड़की को अपने सुरक्षा-घेरे में ले लिया। उस आदमी ने टोपी वाला एक काला चोगा पहना था। चीनी-मिट्टी का एक सुनहरे मुखौटा उसकी आंखों, नथुनों और मुँह के लिए खुली जगह छोड़कर उसके चेहरे के सभी हिस्सों को छिपाए हुए था। उस मुखौटे से उसकी निस्तेज, आकर्षणरहित और भावहीन आँखें बाहर झाँक रही थीं। वह किसी अनुभवी कातिल अथवा सिद्ध पुरुष की भाँति निश्चल और धैर्य पूर्वक खड़ा था। उसने एक दबी हुई मुस्कान के साथ कहा, “बेहद शानदार। अब मुझे एक के बजाय दो मिल गई।” वह झुका और उसने फूँक मारकर माचिस की तीली को बुझा दिया। इसके बाद उसने नुज़हत और श्यामा की गर्दन को अपनी जीभ से चाटते हुए एक सरसराती हुई आवाज़ निकाली। उसकी ठंडी और रूखी जीभ के लिसलिसे स्पर्श ने दोनों लड़कियों के रोंगटे खड़े कर दिए। तत्पश्चात सब कुछ शांत होकर अँधेरे में गर्क हो गया।
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तो यह था विक्रम ई दीवान के उपन्यास वार लॉक का एक छोटा सा अंश। उम्मीद है यह अंश आपको पसंद आया होगा।
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© विकास नैनवाल ‘अंजान’