नागा साधुओं पर लिखी ‘द नागा स्टोरी’ के बाद सुमन बाजपेयी एक ऐसे अछूते विषय पर अपना नवीन उपन्यास लायी हैं जिसे लेकर कई तरह की धारणाएँ समाज में फैली हुई हैं। इन धारणाओं में कौन सी सही हैं और कौन सी गलत ये तो आप उपन्यास पढ़कर जानेंगे। फिलहाल आप एक बुक जर्नल पर पढ़ें प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित सुमन बाजपेयी के नवीन उपन्यास ‘श्मशानवासी अघोरी’ का एक अंश।

“अघोरियों को सभी चीजों में सुंदरता और चमक दिखाई देती है इसीलिए, जो हमारे अनुयायी हैं, उन्हें हमसे डर नहीं लगता। वे हमसे नफरत या घृणा नहीं करते। हम भी केवल गैर-भेदभाव के मार्ग का अनुसरण करते हैं।”
बाबा मनकानाथ के पीले दाँत उनके हँसने पर आग की रोशनी में चमके तो स्वाति ने धीरे से दीपेश के हाथ पर हाथ रख दिया। चाहे वह कितनी ही बहादुर बनने की कोशिश न करे, लेकिन अघोरी का पर्याय डर से कम नहीं होता।
“क्या यह सही है कि अघोरी कई आध्यात्मिक शक्तियों का स्वामी होता है, जिनसे वे मानसिक और शारीरिक बीमारियों को ठीक करने में सक्षम होते हैं?” दीपेश ने बात का रुख दूसरी ओर पलटते हुए कहा।
उसकी बात का जवाब दिया कुटीनाथ ने जो अपने लम्बे पैरों के अंगूठे से मिट्टी को खरोंच रहा था। “कई आध्यात्मिक शक्तियों के स्वामी तो होते ही हैं हम। साथ ही मानसिक और शारीरिक बीमारियों को ठीक करके जान भी बचाते हैं। हिंदू धर्म में अघोरी जीवन का केवल एक ही उद्देश्य होता है—मोक्ष प्राप्त करना, अर्थात संसार चक्र से मुक्ति। हम अघोरी समाज के संदर्भ में शामिल नहीं होते। हम केवल अपने अस्तित्व की परम प्रकृति में शामिल होते हैं। हमें इस बात की परवाह नहीं कि समाज हमारे बारे में क्या सोचता है। हम समाज से दूर रहते हैं, लेकिन आज समाज ने हर जगह कब्जा कर लिया है। इसके कारण हमारे पास रहने के लिए जगह की कमी हो रही है। हम किसी को नुकसान नहीं पहुँचाते, फिर भी मनुष्य का लालच हमें जीने नहीं देता। तुम तो इतने विचरण करते हो, बताओ क्या किसी अघोरी को किसी पर हमला करते सुना है? नहीं न? हम वैसे भी दूर-दराज के इलाकों में रहना पसंद करते हैं। अपने में मस्त जिंदगी जीना पसंद है हमें। बाकी रही बात श्मशान की तो वह तो हमारा निवास है ही। हम एक ऐसी जगह पर रहना चाहते हैं जो मनुष्य के लिए सबसे ज़्यादा घृणित है।”
“जो मनुष्य के लिए सबसे ज़्यादा घृणित है, वहाँ क्यों रहना पसंद करते हैं? कोई गंदी या खराब जगह पर क्यों रहना चाहेगा?” स्वाति ने हैरानी से पूछा।
“जवाब दो कुटीनाथ इनकी बात का। लगता है इसमें भी हमारे जीवन के बारे में जानने की दिलचस्पी पैदा हो गई है।” बाबा मनकानाथ ने बचे हुए पेय को एक साथ पीकर डकार लेते हुए कहा। “वैसा यह ठीक रहेगा कि तुम लोग अब लौट जाओ। हम भी मणिकर्णिका घाट जाएँगे।”
दीपेश कुछ कहता, उससे पहले ही कुटीनाथ बोलने लगा। इतना तो समझ आ गया था अब तक कि वह बहुत हड़बड़ी में रहता है हमेशा।
“जो मनुष्य के लिए सबसे ज़्यादा घृणित है, उससे हम दोस्ती कर लेते हैं, उसे अपना लेते हैं। सीधे शब्दों में समझाता हूँ। हालाँकि तुम तो इतने पढ़े-लिखे हो, फिर भी ग्रहण नहीं कर पा रहे हो हमारे जीवन के उद्देश्य को,” उसने मुँह बिचकाते हुए उपहास उड़ाने के अंदाज में कहा।
“कुटीनाथ, फालतू बातें कम करो। समय बर्बाद हो रहा है,” बाबा मनकानाथ ने उसे डाँटा। “उपहास उड़ाकर तुम अघोरी नियमों का उल्लंघन कर रहे हो।”
“क्षमा गुरूदेव। ऐसा इसलिए क्योंकि जिस पल आप किसी चीज़ को पसंद या नापसंद करते हैं, तो इसका अर्थ है आपने अस्तित्व को भी विभाजित कर दिया है। और एक बार जब आपने अस्तित्व को विभाजित कर दिया, तो आप उसे स्वीकार नहीं कर सकते। हम अघोरी ऐसी किसी भी चीज़ को अपनाते हैं जिसे मनुष्य बर्दाश्त नहीं कर पाता, क्योंकि वे जो पसंद करते हैं और जो नापसंद करते हैं, उन्हें लगता है कि हम उनसे छीन लेना चाहते हैं। जबकि मनुष्य के लिए तो सब कुछ एक जैसा है। यह ब्रह्मांड को गले लगाने का एक तरीका है। कुछ समझ आया?”
कुटीनाथ इतनी जोर से बोला कि दीपेश भी दहल गया।
यह देख एक अन्य अघोरी ने जो तब से चुप बैठा था, उससे चिल्लाते हुए कहा, “अपने गुस्से पर काबू रखना कब सीखेगा? शिव भक्ति में ज्यादा ध्यान लगाया कर। चल जा यहाँ से।”
कुटीनाथ अपने पैरों को झटकता कुटिया के पीछे चला गया।
कुछ देर मौन पसरा रहा। सन्नाटा बढ़ती ठंड के साथ और ज्यादा भयावह लग रहा था। स्वाति ने दीपेश को चलने का इशारा किया तो उसने कुछ देर और रुकने का संकेत दिया।
फिर वह अघोरी दीपेश की ओर देखता हुआ बोला, “यह जरा सिरफिरा है। इतना लम्बा है कि लगता है कि सारी अक्ल पैरों में चली गयी है। मैं तुम्हें समझाता हूँ कि हम भौतिक ज़िंदगी को छोड़ अपने शरीर को त्यागने का रास्ता क्यों चुनते हैं। अघोरियों के लिए मानव शरीर कुछ नहीं होता, सिर्फ आत्मा ही है जो सब कुछ है। मरने के बाद आत्मा शरीर को छोड़ देती है, उसके बाद शरीर मांस का एक टुकड़ा होने के अलावा और कुछ नहीं होता। इसलिए हम जानवरों की तरह मरे हुए इंसानों का मांस खाते हैं।
“औघड़ साधक की भेद बुद्धि का नाश हो जाता है। वह प्रचलित सांसारिक मान्यताओं से बंधकर नहीं रहता। हर चीज की उपेक्षा कर ऊपर उठ जाना ही अवधूत पद प्राप्त करना है। शमशान अघोरियों का परम पूज्य साधना स्थल माना जाता है। श्मशान भगवान शिव का स्वरूप ही माना जाता है। श्मशान दो शब्दों से बना है—शम+शान मतलब जहां सबकी शान बराबर हो जाती है। श्मशान एक ऐसा स्थान है जहाँ अच्छा, बुरा सब बराबर हो जाता है। चाहे राजा हो या रंक, चोर हो या भिखारी, सभी एक समान और एक ही अग्नि के बीच शरीर का आत्मा से विच्छेदन करते हैं। ये स्थान सनातन में सर्वोच्च निरपेक्ष स्थानों में गिना जाता है जहाँ ऋणात्मक और घनात्मक ऊर्जा का प्रवेश तटस्थता की तरफ बढ़ जाता है।
“हम अघोरी अमूमन आम दुनिया से कटे हुए रहते हुए अपने आप में मस्त रहते हैं। हम किसी से कुछ माँगते नहीं हैं।”
दीपेश और स्वाति ने अपनी दृष्टि बाबा मनकानाथ पर टिका दी। क्या सचमुच इनकी साधना में इतना बल है कि वह मुर्दे से भी बात कर सकते हैं। आखिर कौन-सी सिद्धियाँ प्राप्त हैं उन्हें?
पुस्तक विवरण:
सामने चिता जल रही थी और कुछ अघोरी अनुष्ठान कर रहे थे। वे दोनों वहाँ खड़े हैरानी से चिता से उठती लपटों को देख रहे थे। वे सोच रहे थे कि अघोरियों का जीवन कितना रहस्यमयी है। शरीर पर मुर्दे की भस्म लगाए, नरमुंडों की माला पहने वे अजीब तरह के तंत्र-मंत्र करने में संलग्न थे। लेकिन कोई यह नहीं जानता कि अघोरी बनने के लिए उन्हें कितनी कठिन साधना करनी पड़ती है। कोई नहीं जानता कि उनके जीवन का उद्देश्य मानवता को लाभ पहुँचाना और जनकल्याण करना है।
अघोरियों के जीवन, साधना, शक्तियों एवं मृत्यु के सच को उजागर करनेवाला रोचक शैली में लिखा उपन्यास, जो उनके अनजाने तथ्यों से परिचय करवाएगा।
नाम: श्मशानवासी अघोरी | लेखिका: सुमन बाजपेयी | प्रकाशक: प्रभात प्रकाशन | पुस्तक लिंक: अमेज़न
लेखिका परिचय

सुमन बाजपेयी पिछले तीन दशकों से ऊपर से साहित्य के क्षेत्र में सक्रिय हैं। ‘सखी’ (दैनिक जागरण की पत्रिका ), मेरी संगिनी और 4th D वुमन में वो असोशीएट एडिटर रह चुकी हैं। चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट में उन्होंने सम्पादक के रूप में कार्य किया है। सम्पादक के रूप में उन्होंने कई प्रकाशकों के साथ कार्य किया है। अब स्वतंत्र लेखन और पत्रकारिता कर रही हैं।
कहानियाँ, उपन्यास, यात्रा वृत्तान्त वह लिखती हैं। उनके बाल उपन्यास और बाल कथाएँ कई बार पुरस्कृत हुई हैं।
वह अनुवाद भी करती हैं। सुमन बाजपेयी अब तक 150 से ऊपर पुस्तकों का अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद कर चुकी हैं।
हाल ही में प्रकाशित उनके उपन्यास ‘द नागा स्टोरी ‘ और ‘श्मशानवासी अघोरी‘ पाठकों के बीच में खासे चर्चित रहे हैं।
उनके बाल उपन्यास तारा की अनोखी यात्रा, क्रिस्टल साम्राज्य, मंदिर का रहस्य बाल पाठकों द्वारा पसंद किये गए हैं।