संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: ई-बुक | पृष्ठ संख्या: 25 | प्रकाशक: जगरनॉट | प्लेटफॉर्म: जगरनॉट एप | शृंखला: बॉलीवुड स्टोरी बॉक्स
कहानी
वह एक लेखक था जो टीवी धारवाहिकों के लिए लिखा करता था। वह अपने घर में अकेला रहता था और एक अजीब डर से पीड़ित था। उसका सबसे बड़ा डर यह था कि वह अकेले कमरें में बंद है और बाघ आ जाये।
जब भी उसके घर में बिजली जाती उसे लगता उसे फ्लैट के बाहरी कमरे में एक बाघ है जो उसका शिकार करने के लिए तत्पर है।
उस दिन भी बिजली नहीं थी और उसे यही लग रहा था उसके फ्लैट के बाहरी कमरे में एक बाघ बैठा है।
और फिर उसके दरवाजे में दस्तक होना शुरू हुई।
आखिर इतनी रात गए उससे मिलने कौन आया था?
क्या अँधेरे में बाघ होने का उसका यह डर अतार्किक था?
मेरे विचार
‘बॉलीवुड स्टोरी बॉक्स’ लेखक रवि बुले की कहानियों की सीरीज है जो कि जगरनॉट में प्रकाशित हुई थी। यह लंबी कहानियाँ लेखक द्वारा फिल्म इंडस्ट्री के इर्द गिर्द लिखी हुई हैं। प्रस्तुत कहानी ‘बाघ, एक रात’ भी ऐसी ही एक कहानी है जिसके केंद्र में एक टीवी धारावाहिक का लेखक और उसके यहाँ आया मेहमान है।
फिल्म इंडस्ट्री एक ऐसी इंडस्ट्री रही है जिसकी चकाचौंध से प्रभावित होकर कई लोग फिल्मी सितारा बनने के लिए मुंबई आते हैं। उनकी आँखों में शोहरत और दौलत के चमचमाते हुए ख्वाब होते हैं। उनके मन में महत्वकांक्षाएँ होती हैं जिन्हें वो पूरा करने का सपना देखते हैं कई बार इसे पूरा करने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार रहते हैं।
ऐसे में कई लोग उनको मौका देने के बहाने उनका शोषण करते हैं। इन शोषित लोगों को लुभावने सपने दिखाए जाते हैं और उसकी एवज में उनके शरीर का भोग किया जाता है। कई बार लोग इस इसी चकाचौंध ले लालच में शोषित भी हो जाते हैं और बाद में शोषकों द्वारा उन्हें दूध में पड़ी मक्खी जैसा फेंक दिया जाता है। ऐसे में शोषित होने के बाद भी उनके पास कुछ नहीं बचता तो वह खुद को छला सा महसूस करते हैं। जब इस बात के लिए आवाज उठती हैं तो उन्हें यही कहा जाता है कि गलती उनकी थी और जिसने शोषण किया वो साफ तौर पर बच जाता है। लेखक ने कहानी के माध्यम से इस चीज को भी दर्शाने की कोशिश की है और ऐसे ही किसी शोषित का पक्ष रखने की कोशिश की है। यहाँ वैसे तो शोषित महिला है लेकिन आदमियों का शोषण भी इधर काफी होता है।
कहानी के केंद्र में ऐसा लेखक भी है जिसे डर है कि अँधेरे बंद कमरे में बाघ उसका इंतजार कर रहा है। यह बाघ अँधेरा होते ही उसके बंद फ्लैट के बाहरी कमरे में भी पहुँच जाता है। वो जानता है यह डर अतार्किक है लेकिन जीवन में मौजूद कई चीजें भी आतर्किक ही होती हैं। उसके इसी डर को लेकर लेखक ने कहानी में फंतासी के तत्व डाले हैं जो कि अंत को काफी खूबसूरत बनाते हैं। अंत इस तरह से किया है जो कहानी के किरदार के विषय में काफी कुछ सोचने के लिए दे जाता है।
लेखन शैली अच्छी है और आपको बाँध कर रखती है। लेखक और आंगतुक के बीच का वार्तालाप रोचक है आपको सोचने के लिए काफी कुछ दे जाता है।
कहानी मुझे पसंद आयी। आप भी एक बार पढ़कर देख सकते हैं।
कहानी का कुछ अंश जो मुझे पसंद आये:
क्या आपने महसूस किया कि अँधेरे में उठता शोर रहस्यमय होता है! वह चौंकाते हुए कोई भी रूप धर सकता है, इसीलिए वह डराता है।
डर से अगर आप डर गए तो वह पीछे लग जाता है। बाघ की तरह तब वह आपके पीछे दबे पाँव चल पड़ता है। आपका शिकार करने के लिए। यह तर्क बेकार हो जाता है कि अगर आप उसकी आँखों में आँखें डालकर देखते रहेंगे तो वह हार कर चुपचाप लौट जाएगा। मौका पाते ही वह आपके जिस्म में अपने पैने-पैने दाँत गदा देता है और खून में उतर जाता है। एक-एक बूँद में समय जाता है। फिर आप उससे कभी मुक्त नहीं हो सकते। वह पल-पल मौत की तरह सिर पर मंडराता है… वही जिन्दगी बन जाता है…! मौत से खौफजदा ज़िंदगी…!!
दुनिया के तमाम इंतजार उबाऊ, उदास और निराश करने वाले नकारात्मक लगते हैं लेकिन बिजली की प्रतीक्षा करना मुझे सकारात्मक लगता है। उसके आने के ख्याल में जैसे सदियों की जानी-पहचानी राहत और अनजानी खुशी होती है।
जिसे ज़िंदगी जीना है वह यहाँ आता ही नहीं । यहाँ वो आते हैं जिन्हें मर-मर कर जीने में मज़ा मिलता है। जिन्हें दूसरों को तिल-तिल मरते देखने में मज़ा आता है। एक किस्म का सैडिस्कटिक प्लेज़र जिसे कहते हैं। दो तरफा, उसमें यहाँ सबकी दिलचस्पी है। क्या है यहाँ…? कुछ भी तो नहीं। हर पल पागल दौड़। पता नहीं किस चीज के लिए। न सुबह का पता, न रात की खबर। आदमी खुद जी नहीं रहा। दूसरे को तड़पते-मरते देख कर साँसे ले रहा है। गजब है…।
यहाँ ज़िंदगी नहीं, नशा है… नशे में डूबने के बाद कुछ पता नहीं चलता। एहसास मर जाते हैं… और उसके बिना जीने में कोई तकलीफ नहीं होती… इसलिए यहाँ लोग जीते रहते हैं… मर-मर के जीते रहते हैं…
स्ट्रगल ऐसा ही है… लगता है कि सामने बड़ा खुला समुंदर है… यहाँ नहीं तो वहाँ… वहाँ नहीं तो कहीं और… अभी नहीं तो कभी… लंबी भटकन के बीच टभी अचानक कोई जाल गिरता है और आप फँस जाते हैं। ज्यादातर के साथ यही होता है। जो यहाँ-वहाँ फँसते-उलझते कहीं पहुँचते भी हैं तो इसलिए कि किस्मत साथ देती है।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (29-10-2022) को "अज्ञान के तम को भगाओ" (चर्चा अंक-4595) पर भी होगी।
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कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
चर्चा अंक में पोस्ट को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार।
सुन्दर समीक्षा!
लेख आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा। आभार।