अंधविश्वास उन्मूलन:विचार

रेटिंग :5/5

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या : 174
प्रकाशक : सार्थक(राजकमल प्रकाशन का ईमपरिंट)
संपादक: डॉ सुनील कुमार लवटे
अनुवादक : डॉ चन्दा गिरीश
सीरीज : अंधविश्वास उन्मूलन #1
पहला वाक्य:
किसी भी घटना की पृष्ठभूमि में उपस्थित कार्य-कारण को जान लेना अथवा दो भिन्न घटनाओं के बीच पूरक संबंधों को जान लेना ही ‘वैज्ञानिक दृष्टिकोण’ है।
डॉ नरेंद्र दाभोलकर ‘अन्धविश्वास उन्मूलन समिति’ के संस्थापक थे। इस समिति का काम केवल महाराष्ट्र में ही नहीं अपितु पूरे भारत वर्ष को अंधविश्वास की बेड़ियों से मुक्त कारवाना था। इस दौरान उन्होंने कई लेख और पुस्तकें लिखीं। यह पुस्तक भी उनके मूलतः मराठी में लिखे गए ग्रन्थ:’तिमिरातुनी तेजाकड़े’ के हिंदी अनुवाद का पहला भाग है। 
इस भाग में भारत में फैले प्रमुख अंधविश्वास के विषय में लेख है। इस चीज़ का भी ब्यौरा है कि क्यों वो अन्धविश्वास वैज्ञानिक दृष्टिकोण के सामने नहीं टिकते हैं और इन अन्धविश्वासों का मूल कारण क्या होता है। लेख निम्नलिखित हैं:
१. वैज्ञानिक दृष्टिकोण
२.विज्ञान की कसौटी पर फलित जयोतिष
३. वास्तु(श्रद्धा) शास्त्र : अर्थ और अनर्थ
४. स्यूडोसाइन्स अर्थात छद्मविज्ञान
५. मन की बीमारियाँ : भूतबाधा देवी सवारना
६. सम्मोहन
७. भानमती
८. बुवाबाजी(बाबागिरी)
९.अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति और हिन्दू धर्म विरोध
लेखों के शीर्षक अपने आप में स्वतः स्पष्ट कर देते हैं कि वो किस विषय में हैं। मैं इनके विषय में यहाँ लिखने की ज़रुरत महसूस नहीं कर रहा हूँ।
आज कल जब अंधविश्वास का बोल बाला है,आप आये दिन अखबारों में ऐसी खबरें देखते हैं कि फलाने बाबा ने इधर धोखा दिया, किसी का शोषण किया तो आप सोचने पे मजबूर हो जाते हैं कि सचमुच ये अंधविश्वास लोगों की सोचने समझने की शक्ति हर लेता है। ऐसा नहीं है कि ये अंधविश्वास कम पढ़े लिखे या वो लोग जो पढ़े लिखे नहीं है उनके बीच ही है। समाज का हर तपका चाहे वो अनपढ़ हो या पढ़ा लिखा,अमीर हो या गरीब  या किसी भी धर्म को मानने वाला हो, वो इसके चपेट में हैं। ऐसे में मेरे हिसाब से ये पुस्तक हर किसी को पढ़नी चाहिए विशेषतः हमारे युवाओं को तो इसे पढ़ना ही चाहिए। 
अंधविश्वासी व्यक्ति का शोषण होना निश्चित होता है और दुःख की बात ये होती है कि वो अपने शोषण को अपने पूर्व जन्मों का फल मान कर सहता रहता है।
इस पुस्तक में भाषा सरल और पठनीय है। लेखों उन अनुसंधानों का भी जिक्र है जिसमे ऐसी अंधविश्वासों की पोल खोली गयी है जो कि लेख को विश्वसनीयता प्रदान करते हैं। किताब मुझे बेहद पसंद आई और मैं तो चाहूँगा कि आप भी इस पुस्तक को एक बार अवश्य पढ़ें।
अगर आपने इस पुस्तक को पढ़ा है तो आप अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर दीजियेगा और अगर आपने इस पुस्तक को नहीं पढ़ा है तो आपको इसे ज़रूर पढ़ना चाहिए। किताब आप निम्न लिंक से मँगवा सकते हैं:

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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