साक्षात्कार: राम ‘पुजारी’

परिचय:

राम पुजारी
राम ‘पुजारी’

राम ‘पुजारी’ दिल्ली के रहने वाले हैं। वह पेशे से मैकेनिकल इंजिनियर हैं। समसामयिक विषयों को केंद्र में रखकर वह अपनी रचनाये लिखते हैं। अब तक उनकी चार किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं:

1. अधूरा इंसाफ…एक और दामिनी (पेपरबैक | किंडल)
2. लव जिहाद…एक चिड़िया (पेपरबैक | किंडल)
3. अन्नू और स्वामी विवेकानन्द (पेपरबैक)
4. देव भक्ति..आस्था का खेल (पेपरबैक | किंडल)

वह प्रतिलिपि पर भी अपनी रचनाएँ यदा कदा प्रकाशित करते रहते हैं।

उनसे आप निम्न माध्यम से जुड़ सकते हैं:
फेसबुक | इन्स्टाग्रामप्रतिलिपिई मेल: rampujari2016@gmail.com 

पेशे से इंजिनियर राम पुजारी पैशन से लेखक हैं। समाज से जुड़े समसामयिक मुद्दों को केंद्र में रखकर वह अपनी रचनाएँ लिखते हैं। एक बुक जर्नल की साक्षात्कार श्रृंखला में हमने उनसे उनके जीवन, साहित्य से जुड़ाव और उनके लेखन के विषय  में बातचीत की। उम्मीद है यह बातचीत आपको पसंद आयेगी।

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 प्रश्न: नमस्कार, राम जी। पाठकों को कुछ अपने विषय में बताएं। आप मूलतः किधर से हैं? कहाँ रह रहे हैं? शिक्षा दीक्षा कहाँ और कौन से विषय में हुई? फिलहाल किधर कार्यरत हैं?

उत्तर: नमस्कार, विकास जी । अपने बारे में…बताऊँ  (मुसकुराते हुए)! मैं बेसिकली दिल्ली से हूँ। पेशे से एक मैकनिकल इंजीनियर और पैशन से एक लेखक हूँ। दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन करने के बाद एप्लाइड साइकोलॉजी से पोस्ट ग्रेजुएशन भी किया। अभी एक कंसल्टेंसी ईकाई में कार्यरत हूँ।

प्रश्न:  आपका नाम राम ‘पुजारी’ रोचक है। क्या पुजारी आपका उपनाम है? इसके विषय में कुछ पाठकों को बताएं?

उत्तर:
राम पुजारी एक पेन नेम है। राम मेरे नाम का पहला शब्द है और पुजारी मेरे पिताजी का उपनाम है।

मेरे दादाजी और घर के बड़े उन्हें प्यार से पुजारी कहते थे। तो दोनों को मिला कर राम ‘पुजारी’ हो गया।


प्रश्न: साहित्य के प्रति आपका झुकाव कैसे हुआ? क्या यह झुकाव बचपन से ही था? अगर हाँ तो, वह कौन से लेखक या कृतियाँ थी जिन्होंने साहित्य के प्रति आपकी रूचि जागृत की?

उत्तर: साहित्य के प्रति झुकाव की बात करें तो मैं बस इतना कहना चाहूँगा हूँ कि मैं पुस्तकें-पत्रिकाएँ पढ़ता था बचपन में चंपक, नंदन, इंद्रजाल। फिर थोड़ा बड़ा होने पर सुमन-सौरभ, कादंबिनी, सर्वोत्तम आदि पत्रिकाएँ पढ़ने का मौका लगा। स्कूल की लाइब्ररी से प्रेमचंद की कहानियाँ भी पढ़ीं। और अब तो शरत चन्द्र, विमल मित्र, उषा प्रियम्वदा, राजेंद्र राव आदि बड़े लेखकों की कृतियाँ पढ़ रहा हूँ। लोकप्रिय साहित्य में भी रुचि है मेरी । इसमें आदरणीय लेखकों में जनप्रिय ओमप्रकाश शर्मा, सुरेन्द्र मोहन पाठक, वेद प्रकाश शर्मा, परशुराम शर्मा, आबिद रिजवी, फारूक अर्गली और वेद प्रकाश काम्बोज जी के भी सेलेक्टेड उपन्यास पढ़ें हैं। इसी तरह से सामाजिक में रानु, गुलशन नंदा, राजहंस, समीर, देवेंद्र पाण्डेय और सत्य व्यास के भी पढ़े।

प्रश्न: कौन सी पुस्तक या उपन्यास आपके दिल के करीब हैं जो आपको पसंद है ।

उत्तर: मारियो पूजो की द गॉडफादर, पाहुलो कोहलो की द अलकेमिस्ट और बाइ द रिवर पीएडरा आइ सैट डाउन एंड वेप्ट। धर्मवीर भारती की गुनाहों का देवता, वेद प्रकाश काम्बोज द्वारा अनूदित टैगोर जी की जीवन-स्मृति और सम्राट अशोक। इनके अलावा देवेंद्र पांडे की इश्क बकलोल और सत्य व्यास की चौरासी बेहद पसंद हैं।

प्रश्न: लेखन का ख्याल आपको कब आया? आपको अपनी रचना याद है जो कि आपने लिखी थी? कुछ उसके विषय में बताएं?

उत्तर: मैं लिखता तो था मगर प्रकाशित करवाने के ख़्याल से नहीं। स्कूल में कुछ-कुछ तुकबंदी करता था। हाँ, एक बात अभी याद आई — बताता हूँ आपको।

दरअसल आठवीं क्लास में हिन्दी की एक नई टीचर आईं। टीचर का नाम था सुश्री महेश ग्रोवर। उन्होंने एक बार सभी को एक कहानी लिख कर लाने को कहा। कैसी कहानी लिखनी है —पूछने पर उन्होंने बताया कि कैसी भी जो तुम्हें आती हो। अगले सोमवार तक कहानी लिख कर दिखानी थी।

सभी बच्चे कुछ-न-कुछ लिखकर लाए। किन्तु ग्रोवर मैडम सोमवार को नहीं आई। उनकी जगह दूसरे सेक्शन की सोशल साइंस की टीचर उनके पीरियड में आ गई। मैडम ने पूछा—आज क्या करना है, जरा अपनी किताब दिखाओ।

किसी बच्चे ने बताया कि आज कहानी चेक होनी है।

सोशल साइंस वाली टीचर ने सभी की कापी चेक की। किसी की कापी पर सुंदर तो किसी पर अति सुंदर लिखा।

जब मेरी कापी देखी तो मुझे डाँटते हुए कहा —तुमसे एक कहानी भी ठीक से नहीं लिखी जाती। लालची कुत्ता लिखने में दस पेज भर दिए। मुझे कुछ ज्यादा ही डाँटा शायद इसीलिए कि मेरी गिनती क्लास की अच्छे बच्चों में होती थी। उन्हें मुझ से ज्यादा उम्मीद होगी।

डाँट पड़ने पर मैं उदास हुआ। और शायद रोने भी लगा था।

लेकिन बाद में जब ग्रोवर मैडम आई तो उन्होंने क्लास को बताया कि राम की कल्पना शक्ति अच्छी है। और सिर्फ इसी ने अपने आप कहानी लिखी है। बाकी सभी तो सिर्फ अपनी याद से छोटी क्लास वाली कहानी लिख कर ले आएँ हैं।

मुझे उस दिन दस रुपए दिए थे मैडम ने।

वैसे, उपन्यास लेखन का ख़्याल मुझे 2012 में, दिल्ली में हुई  एक दर्दनाक घटना से आया। आपको पता ही होगा…दिल्ली में 16 दिसंबर को बस में एक लड़की के साथ क्या हुआ था। हाँ। मैं उसी अमानवीय और पाशविक घटना की बात कर रहा हूँ।

प्रश्न: आपकी कौन सी रचना सबसे पहले प्रकाशित हुई थी? इस अनुभव के विषय में पाठकों को बताएं?

उत्तर: 2016 में मेरी पहली रचना  ‘अधूरा इंसाफ …एक और दामिनी’ प्रकाशित हुई। उपन्यास को काफी अच्छा रिसपोन्स मिला। (हँसते हुए) तभी फिर दूसरा उपन्यास लिखने का हौसला हुआ।

प्रश्न:  ‘अधूरा इंसाफ …एक और दामिनी’ की कहानी कैसी जन्मी? किस चीज ने आपको इसे लिखने को प्रेरित किया?

उत्तर: अधूरा इंसाफ सिर्फ एक उपन्यास नहीं है — एक कहानी हैं — सच्ची कहानी हैं। एक दर्दभरा एहसास है। ये उस दर्द की कहानी है जो उस रात लड़की ने सहा था।

और रही बात कि कहानी कैसे जन्मी तो इस पर बस यही कहना हैं कि इस कहानी को तो सभी जानते थे। फिर भी… दरससल…हुआ यह था कि निर्भया — बस रेप कांड से मैं बहुत दुखी हो गया था। मैं कई बार जंतर-मंतर और इंडिया गेट भी गया था प्रदर्शनकारियों के साथ और कैंडल मार्च में भाग भी लिया था। वहाँ का माहौल देख कर मेरे एक दोस्त ने पूछा — क्या हुआ राम?

मैंने कहा — कुछ भी तो नहीं।

दोस्त बोला — फिर ये आँसू क्यों निकल रहें हैं तेरी आँखों से।

दरअसल मुझे तेज रोशनी से थोड़ा परेशानी होती है। इसीलिए मैं फोटोक्रोमैटिक स्पेक्स लगता हूँ। उस दिन दोपहर में ठंड बहुत ज्यादा थी। और काले चश्मे के नीचे से भी मेरे आँसू उसे दिखाई दे गए।

उस दिन मेरा दिमाग सुन्न हो गया जब मैंने सुना कि कुछ बुजुर्ग लोग निर्भया को ही दोषी ठहरा रहे हैं। मैंने उन्हें समझाना चाहा तो बातचीत बहस में बदल गई।

फिर मुझे अपने विचार रखने के लिए एक पोस्ट बनाने का ख़्याल आया। विचार मेरे दिल उमड़ते-घुमड़ते रहे। मैंने न्यूज़पेपर्स और मैगजीन पढ़ने शुरू किए और सारी स्थिति समझी। लेकिन ऑफिस के बाद समय नहीं मिल पाता था।

ऐसे ही काफी वक़्त बीत गया। एक दिन मेरा एक्सिडेंट हुआ और मैं साढ़े चार महीने बेड रेस्ट पर रहा। उसी दौरान मैंने अधूरा इंसाफ लिखना शुरू किया। वो कहते हैं न कि every cloud has a silver lining, मेरे एक्सिडेंट में और पुस्तक लेखन में वही बात थी।

प्रश्न: अब तक आपके तीन उपन्यास – अधूरा इंसाफ, लव जिहाद और देव भक्ति..आस्था का खेल आ चुके हैं। तीनों ही समसामयिक और चर्चित  मुद्दों पर केन्द्रित उपन्यास है। आप अपने उपन्यासों के विषय किस प्रकार चुनते हैं?

उत्तर: जी। विकास जी, सही कहा आपने…तीनों ही कंटेम्परेरी हैं। समाज की सबसे छोटी इकाई है व्यक्ति। फिर परिवार, कुटुम्ब, गाँव या शहर। इसी तरह से कालोनी और फिर राज्य और देश। अगर व्यक्ति प्रभावित होगा तो देश भी कहीं न कहीं प्रभावित होगा ही। और फिर हम समाज से अलग कहाँ हैं ?

जो मुद्दे समाज को प्रभावित करते हैं — चाहे अच्छे या फिर बुरे तौर पर — उसका कुछ न कुछ प्रभाव भी लेखन पर आता ही है। और फिर, जो देखा हो वही लिखा भी हो तो, कहानी में सत्यता का पुट रहता ही है — उसके लिए अलग से खोजबीन नहीं करनी  पड़ती। फिर समय के साथ भी चलना है।

आपको एक बात बताता हूँ। एक बार वरिष्ठ लेखक अमृतलाल नगर जी सदी के महानतम कथा शिल्पी श्रेध्य शरतचंद्र बाबू जी से मिले। तो शरत बाबू ने कहा — केवल इस बात का ध्यान रखना कि जो कुछ भी लिखो,वह अधिकतर तुम्हारे अपने ही अनुभवों के आधार पर हो।

इतने बड़े लेखक ने ये ऐसे ही तो नहीं कहा होगा।

ऑफिस में कई सहकर्मी हैं और कुछ दोस्त हैं जिनसे बातचीत होती रहती है। कभी मुद्दे की तो कभी बे-सिर पैर की।

लेकिन जब ब्रेन स्ट्रोमिंग होती है तो कुछ न कुछ निकल के आता ही है।

अब तो कुछ लोग व्हाट्सएप पर भी मुद्दे सुझाते रहते हैं। कोई अपनी प्रेमकहानी बताता है तो कोई आपबीती। ऐसे ही कुछ न कुछ चलता रहता है बस।

प्रश्न:  देव भक्ति आस्था का खेल उपन्यास का जब आवरण चित्र रिलीज़ हुआ था तो कई लोगों ने उसके आवरण चित्र पर आपत्ति भी जताई थी। आप इस चीज को कैसे देखते हैं? आपको एक लेखक के तौर पर कैसा लगा?  क्या इसका आपके लेखन पर असर हुआ है?

उत्तर: हाँ, हुआ था कुछ। देव-भक्ति के कवर पर और लव जिहाद के कवर पर भी। देखिए हर व्यक्ति स्वतंत्र है अपनी राय प्रकट करने के लिए। किसी की भावना को ठेस पहुँचाना उद्देश्य नहीं होना चाहिए। लेकिन अगर सिंबोलीकली हम कुछ दिखाना चाहते हैं तो उस पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए, ऐसा मेरा मानना है। फिर मेरे तीनों उपन्यासों के कवर पर किसी भी व्यक्ति विशेष का कोई चित्र नहीं है। जो भी कुछ दर्शाया गया है वह प्रतीकों  के जरिए ही दर्शाया गया है।

(सोचते हुए) लेखक के तौर पर कैसा लगा से ज्यादा इंपोर्टेंट है, प्रकाशक को कैसा लगा। इस पर एक कहावत याद आती है — बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा।

एक बात कहना चाहूँगा कि लेखन पर कुछ खास असर होता है या नहीं होता ये बाद की बात है , किन्तु सेल पर असर जरूर होता है । आप भी मानेंगे ही कि किताब से प्रथम परिचय उसके टाइटल कवर से ही होता है, क्यूँ।

प्रश्न: सही कहा आपने। अच्छा, आपकी एक किताब अनु और स्वामी विवेकानन्द भी है। यह अपने विषय वस्तु के चलते मुझे रोचक लगती है। कुछ इसके विषय में बताएं कि इसका ख्याल कैसे आया?

उत्तर: विकास जी, सबसे पहले तो आपको ये बता दूँ कि इसमें अन्नु किसी और का नहीं बल्कि मेरी भतीजी का नाम है । दूसरे ये कि पुस्तक एक सत्य घटना पर आधारित है ।  एक शाम मेरी 11 वर्षीय भतीजी मेरे स्टडी रूम में आई और इधर उधर कि बात करने लगी, कभी स्कूल की तो कभी कार्टून कैरेक्टरस की…जैसे कि बच्चे करते ही हैं । फिर अन्नु ने बुक शेल्फ पर लगी हुई स्वामी जी की फोटो को देख कर पूछ — ये कौन हैं ।

मुझे बड़ा अचरज हुआ कि एलियन की बातें करने वाली को स्वामी जी का पता नहीं । फिर सोचा कि ऐसे और भी बच्चे होंगे । मैंने अपनी भतीजी को स्वामी जी के बारे में बताना शुरू किया । बच्ची के मन कुछ प्रश्न थे, कुछ जिज्ञासा उठी । जिन्हें मैंने आसान भाषा में समझाया । बाद में यही सारा घटनाक्रम एक पुस्तक की शक्ल में सामने आया ।

बच्चे ही हमारा (हमारे देश का ) भविष्य हैं । और भविष्य को अपना इतिहास मालूम होना ही चाहिए ।

बस यही मेरे ख्याल हैं और यही इस पुस्तक की कहानी है ।  

प्रश्न: आजकल बाल पाठकों के ज्यादा रोचक सामग्री लिखी नहीं जा रही है। इस कारण बाल पाठको के हिन्दी में ज्यादा कुछ पढ़ने नहीं होता है। फिर जो लोग सामग्री छाप भी रहे हैं वो बाल पाठको को आकर्षित नहीं कर पा रहे हैं। हाल ही मैं कई प्रसिद्ध बाल पत्रिकाओं का बंद होना यह दर्शाता है। आप इसे कैसे देखते हैं? अनु और स्वामी विवेकानन्द से जो आपने शुरुआत की है उसे क्या आप आगे बढ़ाएंगे?

उत्तर: नंदन का प्रकाशन बंद होने की खबर दुखद है । इसी तरह से कुछ साल पहले चंदामामा का भी प्रकाशन बंद हो गया था । देखा जाए तो प्रकाशन संस्थानों के बंद होने का कारण हैं समयाभाव । लाइफ में सब कुछ सुपर फास्ट हो गया है । एक तो पढ़ाई का प्रेशर ।  फिर थोड़ा ब्रेक के लिए बच्चे इंटरनेट, केबल टीवी और मोबाइल गेम । इन सबके चलते बच्चों  को टाइम नहीं मिलता कि कोई पत्रिका या कॉमिक पढ़ें । फिर विदेशी कार्टून पात्रों की वजह से हम अपनी पहचान भी बदलने लगी । इसीलिए जब मैंने घर में अपनी भतीजी को देखा तो लगा कि कुछ इस दिशा में भी करना चाहिए ।  शुरुआत हो गई है । अब देखें कहाँ तक पहुँचते हैं । 

प्रश्न: राम पुजारी जी आप इस वक्त किन किन रचनाओं पर कार्य कर रहे हैं? भविष्य में पाठक आपके माध्यम से क्या क्या पढ़ने की उम्मीद लगा सकते हैं?

उत्तर: दो रचनाओं पर काम चल रहा है । जिसमें से एक का संबंध 05 अगस्त से है । और, दूसरी एक प्रेम कहानी है । इसका अलावा एक सीक्रेट टॉपिक पर भी काम चल रहा है जिसकी चर्चा अभी करना ठीक नहीं होगा 

प्रश्न:  आजकल काफी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स आ चुके हैं जिन्होंने लेखन और उस लेखन को एक विस्तृत पाठक वर्ग तक पहुँचाना काफी आसान कर दिया है। आप इन प्लेटफॉर्म्स को कैसे देखते हैं?

उत्तर: आपका इशारा शायद फ़ेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब से है । इस बारे में मेरा नज़रिया सकारात्मक है । लेखन का पाठकों तक पहुँचना जरूरी है । इससे आप एक बड़े वर्ग से जुड़ पाते हैं । आज का दौर मोबाइल और इंटरनेट का है । जो भी कुछ हो, बस एक क्लिक की दूरी पर होना चाहिए । तभी इस भागती-दौड़ती ज़िंदगी में पाठक कुछ पढ़ पाएगा ।

किंडल एक शक्तिशाली जरिया है पुस्तकें पढ़ने का । यही पढ़ने की आदत को लोगों में ज़िंदा रख पाएगा—ऐसा लगता है ।

प्रश्न:  पिछले छः महीनों से हम एक महामारी से जूझ रहे हैं। आप इस समय को कैसे देखते हैं? आप पर इसका कैसा असर पड़ा है? आपके लेखन में इस समय के कारण क्या कुछ प्रभाव आया है?

उत्तर: ये महामारी संक्रामक है । बहुत जल्दी एक बड़े क्षेत्र को प्रभावित कर सकता है । बहुत सी थिओरिज सामने आ रहीं हैं । पर एक बात है तो तय है कि इस से इंसानियत शर्मशार हुई है । चाहे ये मानव निर्मित वायरस हो या फिर प्राकृतिक — इसने व्यवस्था और प्रशासन की पोल खोल कर रख दी है । समय निश्चित तौर पर अच्छा नहीं है । सब कुछ ठप है । दिहाड़ी मजदूर और  ग़रीब का बुरा हाल है । ऊपर से सरकार के अंदर और बाहर दोनों ही जगह ऐसे तत्व मौजूद हैं जो इस संकट की घड़ी में साथ देने की बजाए किसी और ही सोच में लगे हुए हैं ।

लेखन पर तो नहीं पर प्रकाशन पर निश्चित तौर पर फर्क पड़ा है । लेखन के लिए तो बल्कि काफी समय मिल गया है — मैंने अन्नु सीरीज की अगली पुस्तक — अन्नु और श्रीरामकृष्ण— पूरी करके के निखिल प्रकाशन को दी है ।

और दूसरे लेखकों ने …संतोष और देवेन ने तो काफी कुछ लिख दिया ।

प्रश्न:  राम पुजारी जी बातें तो बहुत सी हैं लेकिन अब बातचीत को विराम देने का वक्त आ गया है। अंत में ऐसा कुछ जो मुझसे रह गया हो और पाठकों तक आप पहुंचाना चाहते हों? आप उन्हें क्या संदेश देना चाहेंगे?

उत्तर: पाठक के लिए बस इतना ही कहना चाहूँगा कि खुश रहें, स्वस्थ रहें और पढ़ते रहें। और सबसे जरूरी बात रिवियू जरूर दीजिये। आपके एक-एक रिवियू से हौसला बढ़ता है और काफी कुछ सीखने को भी मिलता है। बुक-पायरेसी के दौर में इसका समर्थन न करें।

राम ‘पुजारी’ की अब तक प्रकाशित पुस्तकें

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तो यह थी राम पुजारी से एक बुक जर्नल की बातचीत। उनसे हमारी यह बातचीत आपको कैसी लगी हमें यह बताना नहीं भूलियेगा।.साक्षात्कार के विषय में आपकी टिप्पणियों की हमें प्रतीक्षा रहेगी।

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साक्षात्कार

© विकास नैनवाल ‘अंजान’


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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20 Comments on “साक्षात्कार: राम ‘पुजारी’”

  1. राम पुजारी जी के उपन्यास समाज में व्याप्त विसंगतियों पर गहरी चोट करते हैं।
    अच्छा साक्षात्कार, धन्यवाद।

    1. जी साक्षात्कार आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा। आभार।

  2. अच्छा रहा साक्षात्कार।

    1. साक्षात्कार आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा। आभार।

  3. बहुत ही अच्छा साक्षात्कार । राम पुजारी जी का लेखन हमेशा से ही सबसे अनूठा रहा है।

    1. साक्षात्कार आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा।

    1. Rampujari ji is a great writer who always shows his interest to clarify the social issues through his writing skill.. Great keep it up I wish for his good future.. Thanks Mirza

  4. बहुत ही अच्छा और बहुत ही सरल साक्षात्कार।।।

    1. साक्षात्कार आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा। आभार।

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