सव्यसाची शृंखला के लेखक आकाश पाठक से एक बातचीत

सव्यसाची शृंखला के लेखक आकाश पाठक की एक बुक जर्नल से बातचीत
सव्यसाची शृंखला के लेखक आकाश पाठक से एक बातचीत


आकाश पाठक उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले से आते हैं। पेशे से कॉमिक बुक लेखक आकाश उपन्यास लेखन में भी सक्रिय हैं। फिलहाल बेंगलुरु में रहते हैं।

प्रतिलिपि से लेखन की शुरुआत करने वाले आकाश पाठक की सूरज पॉकेट बुक्स से सव्यसाची शृंखला आई है। यह मध्यकालीन युग पर आधारित एक फंतासी उपन्यासों की शृंखला है जो कि पाठकों को पसंद आ रही है। 

हाल में एक बुक जर्नल ने उनसे उनके लेखन और उनकी इस शृंखला के विषय में बातचीत की है। उम्मीद है यह बातचीत आपको पसंद आएगी। 

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प्रश्न: नमस्ते आकाश, ‘एक बुक जर्नल’ में आपका स्वागत है। सबसे पहले पाठकों को कुछ अपने विषय में बताएँ।

उत्तर: नमस्ते विकास! मूलतः मैं उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले के एक गाँव का निवासी हूँ। पाँचवी कक्षा तक मैंने वहीं पढ़ाई की है। उसके बाद मेरा परिवार गोरखपुर चला आया तो आगे की पढ़ाई भी वहीं हुई। ‘मदन मोहन मालवीय यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्नोलॉजी’ से मैंने कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग की है, और संयोगवश वो भी गोरखपुर में ही है। वर्तमान में मैं बैंगलोर में रहता हूँ।

प्रश्न: साहित्य के प्रति रुचि कब जागृत हुई?


उत्तर: बहुत ही कम उम्र में। घर में कॉमिक्स, पत्रिकाएँ और उपन्यास पढ़ने वाले बहुत लोग थे। मेरे पिताजी सुरेंद्र मोहन पाठक के बहुत बड़े प्रशंसक थे और घर में उनके कई उपन्यास पड़े रहते थे। अपनी बात कहूँ तो मैंने कक्षा 2 – 3 से ही कॉमिक्स पढ़ना शुरू कर दिया था और वहीं से साहित्य के प्रति रूचि विकसित हुई।

प्रश्न: वह कौन से लेखक थे जिन्होंने आपको शब्दों की दुनिया के प्रति आकर्षित किया? 


उत्तर: सबसे पहले यदि किसी लेखक ने मुझे इस दुनिया की ओर आकर्षित किया तो वो अनुपम सिन्हा जी थे, जिनका बनाया हुआ पात्र सुपर कमांडो ध्रुव मेरा पसंदीदा है।

उसके बाद मैंने उसी दौरान चंद्रकांता भी पढ़ी थी और देवकी नंदन खत्री जी का प्रशंसक बन गया। हालाँकि वह उपन्यास लगभग डेढ़ सौ साल पहले लिखा गया है, लेकिन आज भी उसका तिलिस्मी जादू बरकरार है।

उसके बाद सुरेंद्र मोहन पाठक जी के उपन्यास पढ़ने शुरू किये और कॉलेज तक आते आते वेद प्रकाश शर्मा जी और इब्ने सफ़ी जी के भी कई सारे उपन्यास पढ़ डाले। यदि हिंदी लोकप्रिय साहित्य की बात करूँ तो ये तीनों ही लेखक मेरे पसंदीदा रहे हैं और इन तीनों के ही उपन्यासों ने कभी न कभी मुझे लिखने के लिए भी प्रेरित किया है।

उसके बाद कॉलेज में अंग्रेजी उपन्यास और कॉमिक्स भी पढ़ने शुरू किये और फिर कई ऐसे लेखक मिले जिनकी कहानियों ने, लेखन शैली ने, विचारधारा ने मुझे और मेरे लेखन को प्रभावित किया।

वहाँ पाठक ज्यादा हैं, तो लेखक ज्यादा हैं; लेखक ज्यादा हैं तो वहाँ कहानियों और लेखन शैलियों के साथ एक्सपेरिमेंट भी बहुत होता है।

प्रश्न: लेखन का विचार कब आया? क्या आपको याद है आपकी पहली रचना कौन सी थी? 


उत्तर: लेखन का विचार भी बहुत पहले से ही था, लेकिन कभी इसको इतना सीरियस नहीं लिया क्योंकि हमारे आस पास कोई इस फील्ड में था नहीं और उस समय ये किसी दूसरी दुनिया की बात लगती थी। शुरुआत में मैं चित्र भी बनाने की कोशिश करता था और लेखन के साथ-साथ कॉमिक्स भी बनाना चाहता था, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया।

बाल पत्रिकाओं में नन्हें सम्राट मेरी पसंदीदा थी और मुझे याद है उसकी ही एक कहानी से प्रेरित होकर मैंने एक कहानी लिखनी शुरू की थी। उस समय मैं सातवीं या आठवीं में था, लेकिन वो कहानी दो पन्नों से आगे बढ़ नहीं पाई। दिमाग में ये चलता रहता था कि मैं लिख भी दूँगा तो छपेगी कहाँ, पढ़ेगा कौन?

फिर कॉलेज के फर्स्ट इयर में मैं कुछ कॉमिक्स फैन ग्रुप से जुड़ा जहाँ लोग फैन फिक्शन लिखा करते थे, फिर मैंने भी लिखना शुरू कर दिया। शुरुआत में मैंने राज कॉमिक्स के किरदारों पर कुछ कहानियाँ लिखी, कुछ एक दो लघु कथाएँ भी लिखीं और फिर कुछ समय बाद मैं प्रतिलिपि पर लिखने लगा, ओरिजिनल कहानियाँ। कॉलेज के दौरान ही मैंने वहाँ तीन चार उपन्यास लिखे थे।

प्रश्न: क्या आप रोज लिखते हैं? आपका लेखन का रूटीन क्या है?

उत्तर: जब मैंने सव्यसाची लिखनी शुरू की तब मैं एक रूटीन से लिखता था। प्रतिदिन मैं कुछ शब्दों का टारगेट बनाता था और उतना लिखने की कोशिश करता था। कभी कभार ये हो पाता था और कभी कभार नहीं। लेकिन ऐसा करने की कोशिश डेली की रहती थी। डेली लिखने से और यदि संभव हो तो एक नियत समय पर लिखने से लेखन में फ्लो बना रहता है।

अमूमन मैं दो बड़ी कहानी/उपन्यास लिखने के बीच में कुछ महीनों का गैप लेता हूँ और उस दौरान मैं लघु उपन्यास या कहानियाँ लिखता हूँ।

प्रश्न: सव्यसाची शृंखला के विषय में पाठकों को बताएँ? इस शृंखला को लिखने का विचार कब आया? क्या कोई विशेष घटना या ख्याल था जहाँ से इसने जन्म लिया?

 

उत्तर: सव्यसाची एक फंतासी शृंखला है जिसमें कई सारे किरदार हैं, उनकी जीवन यात्रा है। इसमें एक नई तरह की दुनिया है जो हमारी वास्तविक दुनिया के मध्यकालीन युग के समकक्ष है। इसको लिखने का विचार भी कॉलेज के दौरान ही आया और इसका पहला भाग भी मैंने कॉलेज के आखिरी वर्ष में ही लिखा था। कोई ऐसी विशेष घटना तो नहीं याद, बस इतना याद है कि मुझे एक फंतासी कहानी लिखनी थी जिसका कलेवर भले ही विशाल हो लेकिन जिसके किरदार हमारे जैसे ही हों। शुरुआत में मैंने इसकी परिकल्पना एक दो भागों वाली छोटी कहानी के रूप में की थी, लेकिन धीरे धीरे इसमें कई सारे किरदार जुड़ते गए और अंततः यह हजार पन्नों में फैली एक वृहद गाथा बन गयी।

कहानी के साथ साथ इसके पात्रों को मैंने कैसे गढ़ा इसके बारे में मैंने इस श्रृंखला की तीसरी किताब ‘मृत्युजीवी’ के अंत में बताया है। यहाँ उसके बारे में अधिक बताना स्पॉइलर हो जायेगा।

प्रश्न: आपके लिए पुस्तक का शीर्षक कितना महत्वपूर्ण है और आप शीर्षक कब निर्धारित करते हैं? क्या सव्यसाची शृंखला की पुस्तकों के संदर्भ में बताएँ?


उत्तर: वर्तमान परिदृश्य में यह बहुत ही जरूरी है कि शीर्षक आकर्षक हो।  आज लोगों का अटेंशन स्पैन बहुत ही कम है और पुस्तक का शीर्षक और कवर ऐसा होना चाहिए जिससे लोगों के उसके बारे में पता चले। खासकर नए लेखकों के लिए यह बहुत ही जरूरी है।

वैसे तो मैं लिखने से पहले शीर्षक फाइनल करने में विश्वास रखता हूँ, लेकिन कभी कभी ऐसा हो नहीं पाता। जैसे प्रतिलिपि पर मैंने कुछ कहानियाँ लिखी हैं, जैसे ‘लॉक्ड‘ ‘युग श्राप‘ ‘पैराडाइस : गॉड इज डेड‘, तो इन सबके नाम मैंने पहले ही फाइनल कर लिए थे और इन कहानियों के नाम भी उस कहानी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

वहीं अगर बात करें सव्यसाची की तो इसका पहला भाग लिखने के बाद भी इसका नाम फाइनल करना मुश्किल हो रहा था। बड़ी मुश्किल से मैंने सव्यसाची नाम फाइनल किया तो प्रकाशक महोदय ने कहा कि इस नाम के साथ कुछ और जोड़ना पड़ेगा जिससे लोगों को पता चले कि इस उपन्यास का विषय क्या है। फिर मैंने इसका नया नाम फाइनल किया, ‘सव्यसाची : छल और युद्ध’

इसके बाद इसी पैटर्न पर मैंने श्रृंखला के बाकी दोनों पुस्तकों का नाम भी निर्धारित किया। ‘अग्निरथी : नियम और दंड’ और ‘मृत्युजीवी : विनाश और सृजन’

अग्निरथी का नाम पुस्तक शुरू करने से पहले ही फाइनल था, लेकिन तीसरी पुस्तक के बारे में और भी ऑप्शन थे जैसे मृत्युंजय, मृत्युसिद्धि! चूंकि इन दोनों नामों पर पहले ही उपन्यास आ चुके थे मृत्युजीवी नाम चुना।

प्रश्न: सव्यसाची शृंखला में तीन उपन्यास हैं। क्या हमेशा से ही त्रेयी का विचार था? 


उत्तर: पहला उपन्यास शुरू करते समय लगा था कि कहानी दो भागों में समाप्त हो जाएगी। लेकिन पहला भाग समाप्त करते करते विश्वास हो गया कि दो भाग में इसे समेटना संभव नहीं होगा। तब जाकर त्रयी का विचार बना। फिर उसी हिसाब से मैंने कथानक को भी बाँट दिया। इस त्रयी के उपन्यासों के नाम सव्यसाची, अग्निरथी और मृत्युजीवी इस कथानक के तीन मुख्य किरदारों के उपनाम भी हैं। और प्रत्येक उपन्यास में उस किरदार के जीवन से जुड़ी हुई उस घटना को दर्शाया गया है जिसके कारण उन्हें यह उपनाम मिला।

प्रश्न: यह एक फंतासी  शृंखला है जो कि पौराणिक काल या मध्यकालीन युग को दर्शाता है। ऐसे युग को दर्शाने के लिए आपने क्या कोई रिसर्च की या फिर केवल कल्पना का सहारा किया? रिसर्च की तो वह क्या थी? 


उत्तर: यह एक पूर्णतया फंतासी कहानी है इसलिए इसमें अधिक रिसर्च की आवश्यकता नहीं पड़ी। इसमें मैंने युद्ध के दृश्यों का जीवंत वर्णन करने की कोशिश की है तो उसके लिए थोड़ी बहुत रिसर्च की थी। मसलन अस्त्रों शस्त्रों के बारे में कि किस प्रकार वृहद् युद्धों में उनका प्रयोग किया जाता है। इस कहानी के अधिकतर पात्र किसी न किसी अस्त्र शस्त्र में पारंगत है तो उनके बारे में लिखने के लिए भी थोड़ी बहुत रिसर्च की थी। इसके साथ युद्ध में घोड़े और हाथियों का कब और कैसे प्रयोग किया जाता है, ऐसी चीजों के बारे में भी थोड़ी बहुत जानकारी इकठ्ठा की थी।


प्रश्न: सव्यसाची शृंखला में में तीन उपन्यास हैं। प्रत्येक उपन्यास कौन सा किरदार ऐसा आपको सबसे ज्यादा पसंद है और कौन सा किरदार ऐसा है जिससे आप कभी भी नहीं मिलना चाहेंगे?


उत्तर: श्रृंखला का कथानक एक ही है तो तीनों भागों में किरदार वही हैं। सभी किरदार मेरे द्वारा ही गढ़े हुए हैं तो सभी मुझे पसंद है (संभवतः यह जवाब आपको हर लेखक से मिल जाता होगा) और यदि संभव हुआ तो ऐसा कोई किरदार नहीं जिससे मैं नहीं मिलना चाहूँगा।

यदि किसी एक पात्र को चुनना हुआ तो मैं इस कहानी के मुख्य पात्र कौस्तुभ को चुनूँगा। क्योंकि वह एक महत्वाकांक्षी है, और जो ठान लेता है उसे कर ही लेता है। साथ ही कहानी में कई ऐसे क्षण भी आते हैं जब वो असुरक्षा की भावना से जूझता है जो उसे हमारे जैसा मानवीय बनाता है।


प्रश्न: इस शृंखला के तीनों उपन्यास वृहद कलेवर के हैं। इन्हें लिखते वक्त क्या कभी राइटर्स ब्लॉक का सामना करना पड़ा? अगर हाँ तो उससे आप कैसे उभरे?


उत्तर: हाँ, कई बार। राइटर्स ब्लॉक से उभरने के लिए सबसे पहले ये जानना जरूरी है कि कहीं ऐसा समय के अभाव के कारण तो नहीं हो रहा। कई बार हमारे पास कई दूसरे काम पड़े रहते हैं और जब हम लिखने की कोशिश करते हैं तो हमारा ध्यान भटकता रहता है। ऐसे समय में शांत और स्थिर दिमाग सबसे ज्यादा जरूरी है।

YOU CAN ALWAYS EDIT A BAD PAGE. YOU CAN’T EDIT A BLANK PAGE. आपने ये तो सुना ही होगा और राइटर्स ब्लॉक से उभरने के लिए मैं मुख्यतः यही करता हूँ। कुछ न कुछ लिखता हूँ और धीरे धीरे चीजें अपने आप समझ में आने लगती हैं। आश्चर्य की बात ये होती है कि लिखने से पहले खुद आपको ही यह असंभव लगता है। कई बार लिखी हुई चीजें पूरी बदलनी पड़ जाती हैं, लेकिन ये तरीका हमेशा काम करता है। कई बार कथानक दिमाग में रहता है और ये नहीं समझ में आता कि इसे विस्तृत रूप कैसे दिया जाये। तब मैं पेन और पेपर का इस्तेमाल करता हूँ। इस श्रृंखला को लिखने के लिए मैंने बहुत सारे नोट्स बनाये हैं।

प्रश्न: इस शृंखला को लिखने का सबसे कठिन हिस्सा क्या था? 


उत्तर: वैसे तो इस श्रृंखला के सभी हिस्सों को लिखने के अपने चैलेंज थे, लेकिन सबसे अधिक कठिनाई भावनात्मक दृश्यों को लिखने में हुई। मैं चाहता था कि पाठक सभी पात्रों से किसी न किसी तरह का जुड़ाव महसूस करें और ऐसा करने के लिए मुझे कुछ हिस्सों को कई कई बार लिखना पड़ा।

प्रश्न: अब आप कौन सी रचनाओं पर कार्य कर रहे हैं? क्या आप पाठकों को इसके विषय में बताना चाहेंगे?


उत्तर: अभी तो मैं कई सारी रचनाओं पर काम कर रहा हूँ और इस समय यह बताना थोड़ा कठिन है कि पाठकों के सामने अगली रचना कौन सी आयेगी। हाँ, इतना कह सकता हूँ कि नवंबर तक उन्हें कुछ न कुछ जरूर मिलेगा। 

इनमें प्रतिलिपि पर लिखी हुई वो रचनाएँ हैं जिनके बारे में मैंने ऊपर बताया था, और इस समय मैं उन्हें एक नए सिरे से लिख रहा हूँ। एडिट कर रहा हूँ, ये कहना शायद पर्याप्त नहीं होगा। 

इसके अलावा मैंने थ्रिलर लघु उपन्यासों की एक श्रृंखला भी शुरू की है और उसके तीन भाग लिख चुका हूँ और पहले भाग की एडिटिंग पर कार्य कर रहा हूँ। इनमें थ्रिलर के साथ साथ थोड़ा सा फंतासी का भी पुट है। इस श्रृंखला का संभावित नाम ‘गॉड गिफ्ट‘ है।

इसके अलावा मैं एक वेबकॉमिक भी लिख रहा हूँ जिसका नाम है ‘हंटिंग शैडो।’ यह नोमाड कॉमिक्स पर उपलब्ध है और हम हर महीने इसका नया भाग प्रकाशित करते हैं। पाठकों के लिए यह हिंदी और इंग्लिश दोनों ही भाषाओं में फ्री में पढ़ने के लिए उपलब्ध है। यह एक POST APOCALYPTIC ADVENTURE कहानी है जिसमें दुनिया के कई सारे लोग अचानक से म्युटेंट बन गए हैं। एक बुक जर्नल के पाठकों से भी अनुरोध है कि वो इसे पढ़ें और अपनी राय से हमें अवगत कराएँ।

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तो यह थी आकाश पाठक के साथ हमारी एक छोटी सी बातचीत। आपको यह बातचीत कैसी लगी हमें कमेंट्स के माध्यम से जरूर बताइएगा। 

सव्यसाची शृंखला 

सव्यसाची शृंखला तीन पुस्तकों से मिलकर बनी है। यह पुस्तकें हैं :
सव्यासाची: छल और युद्ध 

वर्षों पूर्व शांति स्थापित करने के लिए जिस एकद्वीप का विभाजन हुआ था, आज वही एकद्वीप खड़ा है एक भीषण युद्ध की विभीषिका पर। दक्षिणांचल का महाराज शतबाहु जल दस्युओं की सहायता से पुनः अखंड एकद्वीप का निर्माण करना चाहता है, परंतु उसके परिणाम सबके लिए भयावह होने वाले हैं। मेघपुरम को लक्ष्य बना कर अपने ग्राम से निकला कौस्तुभ क्या मायावियों, वनवासियों और मार्ग की अन्य बाधाओं को पार कर अपने गंतव्य तक पहुँच पायेगा? 

मरुभूमि के आश्रम में शिक्षा प्राप्त कर रहा शिखी क्या अपने साथ घट रही घटनाओं और स्वयं की वास्तविकता को जान पायेगा?

 सिंधु के तट पर बसे प्रसान नगर में छद्म रूप में रह रहा युवराज यशवर्धन क्या समय से पूर्व वर्षानों के षडयंत्र को समझ पायेगा?

किस प्रकार जुड़े हैं यह सभी आने वाले युद्ध से? 

छल, क्रोध, माया, प्रेम और साहस से भरी अविस्मरणीय गाथा!

पुस्तक लिंक: अमेज़न

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अग्निरथी: नियम और दंड 

नियमों के विरुद्ध मंत्र विद्या का प्रयोग करने के कारण कौस्तुभ को मिला है दंड। 

क्या एक अंतहीन मार्ग पर खड़ा कौस्तुभ अपने जीवन को एक नई दिशा दे पायेगा? 

वर्षाणों के आक्रमण से एक बार पुनः रक्तरंजित हो चुकी है उत्तराँचल की भूमि। अपने अतीत से जूझता अरिदमन क्या इन दुर्दांत हत्यारों को रोक पायेगा? 

विशाल मरुस्थल के गर्भ से निकला एक प्राचीन रहस्य जो एकद्वीप के वर्तमान और भविष्य पर है संकट। मरुभूमि में शिक्षा प्राप्त कर रहा शिखी किस प्रकार जुड़ा है इस रहस्य से? 

छल, क्रोध, माया, प्रेम और साहस से भरी अविस्मरणीय गाथा ‘सव्यसाची : छल और युद्ध’ का दूसरा भाग !

पुस्तक लिंक: अमेज़न 

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मृत्युजीवी: विनाश और सृजन 



युद्ध के लिए आमने सामने खड़ी हैं दो सेनायें! कौस्तुभ की सहायता से उत्तराँचल की सेना प्रसान नगर के युद्ध में विजयी हो चुकी है, और अब उनका लक्ष्य है दक्षिणांचल की सेना को पराजित करना। परंतु जिस सेना में आदिपशु को नियंत्रित करने वाला शिखी है और दुर्दांत जल दस्यु हैं, क्या उनपर विजय पाना संभव है? 

क्या आत्म संदेह से ग्रसित कौस्तुभ और अपने अतीत के रहस्य में उलझे अरिदमन उत्तराँचल की सहायता कर पायेंगे? शतबाहु को प्राप्त हो चुकी है एक ऐसी शक्ति जिसने उसे बना दिया है मृत्युजीवी; अब उसे मारना संभव नहीं। वर्षों पूर्व उसने अखंड एकद्वीप का जो स्वप्न देखा था, वह अब पूर्ण होने वाला है। 

यह कथा है उस युद्ध की जिसने एकद्वीप के पुनर्स्थापना की नींव रखी। 

छल, क्रोध, माया, प्रेम और साहस से भरी अविस्मरणीय गाथा ‘सव्यसाची श्रृंखला’ का तीसरा और अंतिम भाग।

पुस्तक लिंक: अमेज़न 

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साक्षात्कार 

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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