साक्षात्कार: ‘दृष्टि भ्रम’ के लेखक आशुतोष सिंह राजपूत से बातचीत

आशुतोष सिंह राजपूत छत्तीसगढ़ के निवासी हैं। लेखन कार्य में पिछले पाँच सालों से सक्रिय हैं। कॉमिक बुक, उपन्यास, शॉर्ट फिल्म्स इत्यादि के लिए लेखन कर चुके हैं। हाल ही में उनका कहानी संग्रह ‘दृष्टि भ्रम’ फिक्शन पब्लिकेशन द्वारा  प्रकाशित किया गया है। इस उपलक्ष में ‘एक बुक जर्नल’ ने उनसे उनके लेखन और उनके संग्रह के ऊपर बात चीत की थी। आप भी पढ़िए।

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नमस्कार  आशुतोष एक बुक जर्नल में आपका स्वागत है। सर्वप्रथम तो आपको आपकी नवीन पुस्तक के लिए हार्दिक बधाई। 

शुक्रिया विकास।

प्र: पुस्तक के विषय में जानने के लिए मैं उत्सुक हूँ पर सर्वप्रथम आप पाठकों को अपने विषय में बताएँ। 

उ: मेरा नाम आशुतोष सिंह राजपूत है। मैं एक मध्यम वर्गीय परिवार से हूँ। मेरा निवास कोरबा, छत्तीसगढ़ है।

मैं पिछले 5 सालों से कहानियां लिख रहा हूँ। वैसे तो डिग्री सिविल इंजीनियर की है लेकिन पढ़ाई के दौरान भी कभी उस क्षेत्र में मन ना लगा पाया लेकिन जब से लेखन का कार्य शुरू किया हर मोड़ पर कुछ न कुछ सीखता गया और मुझमें सुधार होता गया।

कॉमिक बुक और उपन्यास के अलावा मैं 4 शार्ट फिल्म्स भी लिख चुका हूँ साथ ही कुछ छत्तीसगढ़ी फिल्मों की स्क्रिप्ट भी लिखी है जिनकी शूटिंग हो रही है या तो होने वाली है।

प्र: साहित्य या कहानियों से आपका नाता कैसे जुड़ा? वह कौन से रचनाकार थे जिन्होंने कहानियों के प्रति आपको आकर्षित किया?

उ:  कहानियाँ पढ़नी मैंने कॉमिक्स के रूप में बचपन से ही शुरू कर दी थी। जैसे ही कक्षा में शब्दों को पढ़ना शुरू किया वैसे ही। कॉमिक्स की पढ़ाई ने मेरी कक्षा में पढ़ाई की रफ्तार तेज़ कर दी।

पहली कॉमिक बुक मेरी नागराज की थी और कुछ कथाएँ।

अनुपम सिन्हा’ सर, जो राज कॉमिक्स के प्रख्यात कहानीकार व चित्रकार हैं, की कहानियों ने मुझे सबसे ज्यादा आकर्षित किया फिर उपन्यास जगत की ‘प्रीति शिनॉय‘ जी ने आकर्षित किया।

प्र: लेखन का ख्याल कब आपके मन में आया? क्या आपको याद है आपने कब पहली बार लिखने के विषय में सोचा था?

उ:  मैं इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था और तीसरे साल में था जब मैंने फेसबुक पर कहानियाँ पब्लिश करनी शुरू की। उसके बाद अंतिम वर्ष में एक कहानी का आईडिया आने के बाद उपन्यास लिखने की शुरुवात की।

प्र: वह कौन से लेखक हैं जिन्होंने आपके लेखन को प्रभावित किया है? 

उ: प्रीति शेनॉय की उपन्यास जो मैंने सबसे पहले पढ़ी, ‘ज़िंदगी वही जो आप बनाए‘ ने ही मेरे लेखन को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है।

प्र: आपका पिछला उपन्यास अमावस एक पारलौकिक हॉरर (सुपरनैचुरल हॉरर ) था। दृष्टि भ्रम का आवरण चित्र देखने से भी यह एक हॉरर प्रतीत होता है? क्या ऐसा है? दृष्टि भ्रम के विषय में जरा पाठकों को बताएँ?

उ: दृष्टि भ्रम, अमावस से अलग है। अमावस एक एरोटिक हॉरर था जो एक खास वर्ग के पाठकों (एडल्ट्स) के लिए था।

इसके विपरीत दृष्टि भ्रम सारे उम्र के पाठकों के लिए है। जिन्हें सस्पेंस, ट्विस्ट-टर्न पसंद है उन्हें ये बहुत बढ़िया लगेगी।

दृष्टि भ्रम 4 दीर्घ कहानियों का संग्रह है जो आपको किरदारों से जुड़ने का भरपूर मौका देगी और जैसे ही आप उनकी दुनिया का हिस्सा बन जाएँगे वैसे ही आपको भ्रम और सच्चाई के बीच का फर्क पता चलता है और सच आपकी सोच से कही अलग होगा।

साक्षात्कार: 'दृष्टि भ्रम' के लेखक से 'आशुतोष सिंह राजपूत' एक बुक जर्नल की बातचीत
दृष्टि भ्रम, स्रोत: फेसबुक

प्र: दृष्टि भ्रम को लिखने का ख्याल आपके मन में कब उपजा? आपको वह बिन्दु याद है जब आपके मन में इस उपन्यास को लिखने का ख्याल आया?

उ: समय या तिथि तो याद नहीं लेकिन इसका विचार एक प्रेम कहानी के आईडिया से उपजा। जब यूँ ही मेरे दिमाग ने कहानी को नई दिशा दी और सोचा कि क्या हो अगर ऐसा ना हो तो और सच कुछ और ही निकले।

अब वो प्रेम कहानी क्या है यह आपको जानने के लिए किताब पढ़नी पड़ेगी।

 

प्र: इस संग्रह में आपका पसंदीदा किरदार कौन है और वह कौन सा किरदार है जिसे लिखने में काफी सबसे अधिक परेशानी हुई?

उ: सबसे अंतिम कहानी ‘कैपग्रास’ को लिखना सबसे कठिन रहा क्योंकि इसका लिखने का तरीका अलग है। यह दो किरदारों का खुद के साथ बीत रही घटनाओं का वृत्तांत है जो वे खुद सुनाते है और एक दूसरे को पूरा करते है।

मेरी पसंदीदा किरदार पहली कहानी-गुनाहगार कौन की ‘मेघा’ है उसकी समझदारी और संयम तारीफ़ के काबिल है। इसी के बल पर वह अपनी मंज़िल पाती है।

प्र: संग्रह में मौजूद कहानियों का एक ऐसा किरदार जिससे आप दोस्ती करना चाहेंगे और क्यों? साथ ही उपन्यास का एक ऐसा किरदार जिससे आप जितना दूर हो सके उतना दूर जाना चाहेंगे?

उ: तीसरी कहानी ‘गोल्डन पार्क’ का मुख्य किरदार ‘गौरव’ है जिससे मैं दोस्ती करना चाहता हूँ क्योंकि जिस परिस्थिति से वह गुज़रता है उसे एक दोस्त की सख्त ज़रुरत है जो उसे समझ सके। और वह किरदार मेरे दिल के बहुत करीब भी है।

और कहानी 2- द लास्ट डिनर का एक किरदार है जिससे मैं जितना हो सके उतना दूर रहना चाहूँगा। नाम नहीं बता सकता। रहस्य खुल जायेगा।

 

प्र: किसी रचना का शीर्षक आपके लिए कितना मायने रखता है? आपके शीर्षक रखने की प्रक्रिया क्या है? क्या आप पहले शीर्षक निर्धारित कर लेते हैं या यह बाद में निर्धारित होता है? दृष्टि भ्रम के मामले में शीर्षक की क्या प्रक्रिया रही?

उ: दृष्टि भ्रम सिर्फ कहानियाँ नहीं जीवन की वास्तविकता की तस्वीर है। हम अपने जीवन में कई बार अपनी दृष्टि के भ्रम में पड़ कर धोखा खा जाते हैं और जब सच निकल कर सामने आता है तो वह हमारी सोच के विपरीत होता है।

जहाँ तक शीर्षक की बात है वह हर बार अलग होती है कभी कहानी लिखने के पहले तो कभी लिखने के बाद और कभी तो कहानी लिखने के दौरान ही शीर्षक सूझ जाता है।

दृष्टि भ्रम शीर्षक मैंने पूरी कहानियाँ लिख लेने के बाद रखा।

प्र: आपने उपन्यास लिखे हैं और कहानियाँ भी। इन दोनों  अलग अलग विधाओं की अपनी खूबी-खामी होती है। आपको इनकी क्या-क्या खूबी लगती हैं और क्या क्या खामी लगती है? आपको क्या लिखना पसंद है? एक उपन्यास या कहानी?

उ: दृष्टि भ्रम मेरा पहला कहानी संग्रह है। इससे पहले मैंने दो उपन्यास लिखे है और आगे भी जो लिख रहा हूँ वह उपन्यास ही होगा इसलिए मेरी पसंदीदा तो उपन्यास ही है।

कहानी संग्रह की खूबी ये है कि इसमें आप कम समय में ज्यादा कहानी देकर मनोरंजन कर सकते है और साथ ही खुद के दिमाग की खुजली भी मिटा सकते है लेकिन यही इसकी खामी भी है कि इसमें वह गहराई नहीं दी जा सकती है जो उपन्यास में दी जा सकती है और ना ही ज्यादा विस्तार दिया जा सकता है। जबकि उपन्यास में हर पहलू और किरदार पर लिखने के लिए भरपूर समय होता है।

पर जैसा कि हम दुनिया भर के आईडिया का उपन्यास नहीं बना सकते इसलिए उनकी कहानी संग्रह बना कर उन्हें भी पाठकों के सामने ला सकते है और दिमाग से एक बिंदु हटा सकते हैं।

 

प्र: आप मुख्यतः कॉमिक बुक लिखते हैं। उपन्यास/कहानी लेखन और कॉमिक बुक लेखन में आप क्या फर्क पाते हैं? एक लेखक के तौर पर आपको कौन सा लेखन पसंद है?

उ: कॉमिक्स और उपन्यास दोनों में आधारभूत अन्तर है। उपन्यास में सारी भावनाएँ और दृश्य पूरी तरह से वर्णित करनी होती है वहीं कॉमिक्स में थोड़ी ही डिटेलिंग देनी होती है बाकी चित्रकार पर निर्भर होता है। लेकिन उपन्यास में सारा भार लेखक पर होता है।

कॉमिक्स मेरा पहला प्यार रहा है इसलिए कॉमिक्स लेखन हमेशा उपन्यास लेखन के मुकाबले 20 ही रहा है।

साक्षात्कार: 'दृष्टि भ्रम' के लेखक से 'आशुतोष सिंह राजपूत' एक बुक जर्नल की बातचीत
आशुतोष राजपूत की कुछ रचनाएँ स्रोत: फेसबुक

प्र: आपके आने वाले प्रोजेक्ट्स कौन से हैं? क्या पाठकों को आप उनके विषय में बताना चाहेंगे?

उ: अभी मैं मेरी पहली उपन्यास 143 का हिंदी रूपांतरण पर काम कर रहा हूँ इंग्लिश वर्शन के मुकाबले उसमें कुछ सुधार भी होंगे। उसके बाद फिर अमावस के दूसरे भाग पर काम शुरू होगा।

प्र: आखिर में अगर कोई बात रह गयी हो या आप पाठकों को कुछ संदेश देना चाहें तो वह क्या संदेश क्या होगा?

उ: सबसे ज़रूरी बात पाठकों से कहना चाहूँगा कि लेखन क्षेत्र बहुत ही संघर्षपूर्ण हो चुका है। इसलिए पाठकों से अनुरोध है कि वे उपन्यास को पढ़ने के बाद अपने फीडबैक ज़रूर दें ये लेखकों को आगे लिखने के लिए उत्साह देते हैं।

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तो यह थी आशुतोष सिंह राजपूत के साथ हमारी बातचीत। आपको यह बातचीत कैसी लगी? हमें जरूर बताइएगा।

किताब के विषय में:

आँखें जो देखती हैं उसे ही सच मान लेती हैं। लेकिन झूठ की तो खासियत ही है सच को छिपा कर भ्रम पैदा करना फिर इंसानी भावना और समझ के साथ खिलवाड़ करना।

झूठ कभी-कभी कई परतों में सच को छिपा लेता है। ऐसे में जब सच सामने आता है तो दिमाग सामने सच को देखते हुए भी उसे मानने से इंकार कर देता है।

यह किताब झूठ की असली ताकत दिखाती है कि यह कितनी चालाकी से हमारी दृष्टि के सामने भ्रम पैदा करता है कि देखने वाले का दिमाग फैसला नहीं कर पाता कि सामने सच है या झूठ।

प्यार, विश्वासघात, पागलपन, नशा, हिम्मत, डर, साजिश और संघर्ष की भावनाओं को समेटे हुए छोटी कहानियों का यह संग्रह आपकी हर अटकलों पर पानी फेरने के लिए तैयार है।

दृष्टि भ्रम आप निम्न तरीके से ऑर्डर  कर सकते हैं:

ऑर्डर करने के लिए आप 8962550814 पर गूगल पे/फोन पे/पे टीएम के माध्यम से अपने ऑर्डर दे सकते हैं। व्हाट्सप्प से संपर्क करना चाहें तो 9039862806 पर संपर्क स्थापित कर सकते हैं।

नोट: साक्षात्कार शृंखला के तहत हमारी कोशिश रचनाकारों और उनके विचारों को  पाठकों तक पहुँचाना  है। अगर आप भी लेखक हैं और इस शृंखला में भाग लेना चाहते हैं तो contactekbookjournal@gmail.com पर हमसे संपर्क कर सकते हैं। 


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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