नये प्रयोग करने से हिचकिचाते हैं कहानीकार- सुमन बाजपेयी

ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ द्वारा लिया गया लेखिका सुमन बाजपेयी का साक्षात्कार

सुमन बाजपेयी का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। आपने चिल्ड्रन्स बुक ट्रस्ट में कार्य करते हुए बाल साहित्य को बहुत नजदीक से देखा और समझा है। कहानी, नाटक, उपन्यास, बाल कहानी, एकांकी, आत्मकथा, चित्रकथा के साथ-साथ अकथा-साहित्य की भी आपने पुस्तकें सम्पादित व अनूदित की हैं। इसके अतिरिक्त आप कई पत्र-पत्रिकाओं से भी बतौर सम्पादक जुड़ी रही हैं। अभी तक आप 160 से अधिक पुस्तकों का अनुवाद भी कर चुकी हैं। अंग्रेजी व हिंदी दोनों भाषाओं में लेखन करती हैं। इन सभी कार्य को करते हुए आप एक कुशल वक्ता, सम्पादक, अनुवादक, कहानीकार सहित कुशल बाल साहित्य सर्जक भी हैं। आपने अनेक पुस्तकें लिखी है। जिनमें से मुख्य रूप से निम्न हैं— उपन्यास ‘द नागा स्टोरी‘, ‘श्मशानवासी अघोरी‘, ‘खाली कलश’, ‘ठोस धरती का विश्वास’, ‘अग्निदान’, ‘एक सपने के सच होना’, ‘पीले झूमर’, ‘फोटोफ्रेम में कैद हँसी’, ‘हमारी-तुम्हारी लव स्टोरीज-40 प्रेम कहानियाँ’, ‘मौसम प्यार के’, ‘तुम और मैं (नया वाला इश्क)’, ‘कैनवास के रंग‘, ‘अपने बच्चे को विजेता बनाएँ’, ‘सफल अभिभावक कैसे बनें’, ‘मलाला हूँ मैं’, ‘इंडियन बिजनेस वूमेन’, ‘इंदिरा प्रियदर्शिनी’, ‘नागालैंड की लोककथाएँ’, ‘असम की लोककथाएँ’, ‘पिंजरा’, ‘सीक्रेट कोड और अन्य कहानियाँ’, ‘गार्डन ऑफ बुक्स व अन्य कहानियाँ’, ‘मंदिर का रहस्य’, ‘चुलबुली कहानियाँ’, ‘हमारा पोल्टू’, ‘तारा की अनोखी यात्रा’, ‘क्रांति का बिगुल’, ‘क्रिस्टल साम्राज्य‘, ‘सुनो हमारी कहानी‘, ‘कुछ सुलझा कुछ अनसुलझा‘।

 आप साहित्य के क्षेत्र में एक सफल साहित्य सर्जक और अनुवादक रही हैं। इस साक्षात्कार में हम आपसे आपकी खूबियों के साथ-साथ साहित्य के क्षेत्र में आपकी सफलता का राज जानना चाहेंगे। आपने इतने कम समय में इतनी ऊँचाइयाँ किस प्रकार छुई हैं, इस साक्षात्कार में जानने की कोशिश करेंगे।

– ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

(ऊपर मौजूद पुस्तकों के नाम पर क्लिक करके इन पुस्तकों को क्रय किया जा सकता है।)


आपने चिल्ड्रन्स बुक ट्रस्ट में काम करते हुए कई ऊँचाइयों को छुआ है। सबसे पहले यह बताएँ आपको चिल्ड्रन्स बुक ट्रस्ट में काम करते हुए साहित्य की दशा और दिशा को समझने के साथ अनुवाद की दिशा में इतनी ऊँचाई छूने के लिए क्या-कुछ करना पड़ा?

चिल्ड्रन्स बुक ट्रस्ट के अलावा मैंने जागरण सखी, मेरी संगिनी और फोर्थ डी वूमेन में भी काम किया। चिल्ड्रन्स बुक ट्रस्ट से जुड़ने से मुझे बाल साहित्य के विविध आयामों को जानने का मौका मिला। बच्चों को किस तरह की पुस्तकें पढ़नी अच्छी लगती हैं, या किस तरह का साहित्य उनके अनुकूल है, यह बाल साहित्य को समझने का पहला कदम होता है। फिर बच्चों की आयु के अनुसार भाषा व शब्दों का प्रयोग, उनकी मानसिकता व सोच का ख्याल रखते हुए लेखन व सम्पादन करना। बाल साहित्य लेखन सबसे दुरूह कार्य है, क्योंकि वयस्कों के लिए लिखते समय आप अपनी लेखनी को काफी हद तक छूट दे सकते हैं, भाषा को भी लचीला रख सकते हैं, लेकिन बच्चों के लेखन में हर शब्द के बारे में विचार करना आवश्यक होता है। आपका पाठक वर्ग कौन है, शहर का बच्चा है या गाँव का या सामान्य पाठक। उसके अनुसार रचनाएँ लिखना आवश्यक होता है। उनको हमें संदेश देने के बहाने ज्ञान नहीं देना है, जिसे वे पाठ्यपुस्तकों से हासिल कर सकते हैं। बल्कि कहानी व उपन्यासों के माध्यम से मनोरंजन पक्ष को प्रबल रखने की ओर ध्यान देना चाहिए। वर्तमान में बाल साहित्यकारों में इस चीज का अभाव देखा जाता है और कहानियों में एक अच्छा बच्चा और एक बुरा बच्चा ही अंततः देखने को मिलता है। जहाँ तक अनुवाद की बात है तो मूल लेखन की अपेक्षा यह ज्यादा कठिन होता है, क्योंकि इसमें लेखक के भावों तथा वह क्या सम्प्रेषित करना चाहता है, इसे समझना अनिवार्य होता है। साथ ही जिस भाषा से अनुवाद कर रहे हैं, उसका ज्ञान होना भी जरूरी है।

आपने अनेक पुस्तकों का अनुवाद किया है। इसमें से सबसे यादगार पुस्तक कौन सी है? जिसे आप समझती हैं कि वह आपके जीवन का सबसे बेहतरीन अनुवादित पुस्तक है।

वीएस नायपॉल द्वारा लिखी ‘द मिडिल पैसेज‘ का अनुवाद मेरे लिए एक चुनौती पूर्ण अनुवाद था क्योंकि उसकी भाषा क्षेत्रीय है और जो वह कहना चाहते हैं, उसे समझना आसान नहीं था। लेकिन अनुवाद पसंद किया गया।

वी इस नायपॉल डी मिडल पैसेज: एक कैरिबियाई यात्रा | अनुवाद: सुमन बाजपेयी

इसके अलावा बहुत सारी किताबें हैं जो मुझे पसंद है जैसे अजय पांडे की ‘यू आर द बेस्ट वाइफ’ का हिंदी अनुवाद ‘प्यार के अधूरे पल‘। या धोनी की पुस्तक महेंद्र सिंह धोनी: एक अबूझ पहेली। शेक्सपीयर की पुस्तक जो बच्चों के लिए तैयार की गई थीं। पुस्तकें असंख्य हैं।

एक अनुवादक को अनुवाद करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? इसी के साथ यह भी बताएँ कि भावानुवाद और अनुवाद में क्या अंतर है? इसका हम किस तरह ध्यान रख सकते हैं?

अनुवाद एक ऐसी सशक्त कड़ी है जो दो भाषाओं के बीच ही नहीं, बल्कि दो संस्कृतियों के बीच एक पुल की तरह काम करता है। अनुवाद करना आसान काम नहीं है। बल्कि मौलिक लेखन से अधिक दुरूह और चुनौती पूर्ण कार्य है, क्योंकि इसमें किसी अन्य लेखक की शैली, किसी अन्य देश की संस्कृति, भाषा और तौर-तरीकों को जिस भाषा में अनुवाद किया जा रहा है, उसमें इस तरह ढालना होता है कि मूल तत्व भी नष्ट न हो और जो बात कहनी है, वह भी स्पष्ट रूप से कही जा सके। सीधे-सीधे शब्दों में कहें तो अनुवाद करते हुए रचना की आत्मा नहीं मरनी चाहिए और वह मात्र अनुवाद न लगकर एक नई रचना भी लगनी चाहिए। 

बच्चों के साहित्य का अनुवाद अपने आप में एक बहुत ही विशेष और अलग क्षेत्र है। आम धारणा यह है कि वयस्कों की तुलना में बच्चों की पुस्तकों का अनुवाद करना आसान कार्य है, क्योंकि उनमें सरल शब्द व वाक्य होते हैं। बातें घुमा-फिराकर या दार्शनिक अंदाज में नहीं कही जाती हैं। जबकि वयस्कों की किताबों का अनुवाद करने की अपेक्षा बच्चों के लिए अनुवाद करना ज्यादा कठिन है। वयस्क साहित्य में आप शब्दों के साथ खेल सकते हैं, भावों की अभिव्यक्ति में उतार-चढ़ाव कर सकते हैं, पर बच्चों के साहित्य में ऐसा करना सम्भव नहीं है। बच्चों के लिए किए गए जा रहे अनुवाद में अनुवादक को बहुत अधिक स्वच्छंद होने की भूल नहीं करनी चाहिए, बल्कि उसमें हर बात स्पष्ट और सटीक या कहें बिलकुल मुद्दे पर होनी चाहिए।

अनुवाद स्तरीय हो और स्रोत भाषा की लय और ताल दोनों को सही ढंग से व्यक्त करते हुए रचना की आत्मा को बरकरार रखे, तो सही मायने में अनुवाद सफल कहलाता है। सही शब्द, सही जगह पर प्रयोग किया जाना चाहिए।

चिल्ड्रन्स बुक ट्रस्ट में काम करना एक श्रमसाध्य और साहित्य को दशा-दिशा देने वाला कार्य है। इस कार्य को करते समय आपको किन-किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा? कृपया विस्तार से बताएं।

मैंने चूँकि पत्रिकाओं में भी काम किया है तो यही कहूँगी कि रचनात्मक क्षेत्र से जुड़ा हर कार्य जिसमें हमारा दायित्व पाठकों का बेहतरीन सामग्री पचाना होता है, एक श्रमसाध्य कार्य होता है। चिल्ड्रन्स बुक ट्रस्ट में काम करते हुए मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला और बाल साहित्य के विभिन्न पक्षों को जाना-समझा। पुस्तकों का चयन व सम्पादन करते हुए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, इसके बारे में उचित मार्गदर्शन मिला। बाल पुस्तकों की छपाई कैसी हो, चित्र कैसे हों और पुस्तकों का आकार क्या रखना चाहिए, आदि बातें तो प्रकाशन से जुड़ी होती हैं, सबके बारे में जाना। चुनौतियों का सामना तो नहीं करना पड़ा, क्योंकि सीखने की लगन थी और वहाँ का माहौल ऐसा था कि स्वतंत्र ढंग से काम करने की छूट थी। 

आपसे एक व्यक्तिगत या इसे कह सकते हैं निजी जीवन से जुड़ा प्रश्न पूछना चाहेंगे। क्या आप बताना चाहेंगी कि चिल्ड्रन्स बुक ट्रस्ट में काम करते हुए आपका साहित्यिक और पारिवारिक जीवन किस तरह प्रभावित हुआ? यानी इससे पारिवारिक जीवन और साहित्य जीवन में कोई लाभ मिला है या हानि हुई?

पारिवारिक जीवन को लाभ मिला कि नहीं, ऐसा तो मैं कुछ सोच नहीं पा रही। साहित्यिक जीवन में बढ़ोतरी अवश्य हुई, क्योंकि मेरी लेखन क्षमता बढ़ी और सोच में विस्तार हुआ। बच्चों के दृष्टिकोण को बेहतर ढंग से जानने और प्रचुर मात्रा में पुस्तकें पढ़ने का अवसर मिला। हानि की बात करें तो वहाँ काम करते हुए किसी अन्य जगह लिखने की हमें अनुमति नहीं थी तो दूसरी जगह न छपने या लिख पाने की कमी खली अवश्य।

तारा की अनोखी यात्रा’ बाल उपन्यास काफी पसंद किया जा रहा है, जो हाल में ही साहित्य अकादमी के बाल पुरस्कार की नॉमीनेशन लिस्ट में भी था। इस उपन्यास का कथानक आपने कहाँ से लिया है और उसे लिखने की प्रेरणा आपको कहाँ से मिली है?

तारा की अनोखी यात्रा
तारा की अनोखी यात्रा

‘तारा की अनोखी यात्रा’ बाल उपन्यास इस समय काफी पसंद किया जा रहा है। उससे पहले ‘मंदिर का रहस्य’ भी चर्चित रहा। ‘तारा की अनोखी यात्रा’ एक फैंटेसी उपन्यास है। मैं जादू की दुनिया से जुड़ा एक उपन्यास लिखने की सोच रही थी और धीरे-धीरे मैंने एक जादुई दुनिया रची जिसकी यात्रा पर तारा निकलती है। उसके बाद चरित्र जुड़ते गए और उपन्यास में नई घटनाओं के साथ कथानक भी दिलचस्प होता गया। इसे लिखने की इच्छा मन में इसलिए जाग्रत हुई क्योंकि मैं चाहती थी कि बच्चों को कुछ ऐसा पढ़ने को मिले जिससे उनका मनोरंजन हो और बिना संदेश दिए भी उन्हें कुछ सीखने का मौका मिले। मैं अपनी रचनाओं में उपदेश देने से बचती हूँ और एक स्वस्थ मनोरंजन व रुचिकर कहानी व उपन्यास लिखने की कोशिश करती हूँ।

एक उपन्यास लिखते समय एक नये लेखक को किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए? हरेक भाग के आरम्भ और अंत में क्या-क्या होना चाहिए और नवीन भाग किस तरह शुरू होना चाहिए? इस पर भी प्रकाश डालिएगा।

उपन्यास एक वृहद रचना होती है। इसमें कहानियाँ कड़ियों से जुड़ती हैं और उनमें तारतम्य होना आवश्यक होता है। पहले कहानी का प्लॉट निर्धारित करें, यानी एक रूपरेखा बनाएँ। लेकिन आप जब लिखना शुरू करते हैं तो कथानक में बहुत बार बदलाव आता है। नये चरित्रों को समावेश करने की आवश्यकता महसूस होती है। उपन्यास का विषय क्या है, उसके अनुसार शैली, शब्द व भाषा का चयन करना होता है। परिवेश का सृजन करना होता है और कहानी के अनुरूप घटनाओं को डालना होता है। जब भी एक अध्याय का अंत करें तो उसमें कौतूहल के तत्व अवश्य डालें ताकि अगले अध्याय को पढ़ने की रुचि बनी रहे। नये अध्याय की शुरूआत में भी उत्सुकता के अंश होने चाहिए। एक बार लिखने के बाद पुनः पढ़ने पर भी कई बदलाव करने पड़ते हैं।  

आपको इस वर्ष का हिंदी अकादमी का बाल साहित्यकार सम्मान मिला है। इस चयन पर आप अपने आप को कैसे महसूस करती हैं?
बहुत अच्छा। महसूस हुआ कि लेखन को सार्थकता मिल गयी है। साथ ही और लिखने की प्रेरणा भी मिलती है उस तरह।

आजकल सोशल मीडिया पर तरह-तरह की रचनाएँ प्रकाशित होती रहती है। क्या इन पोस्टों को पढ़कर रचना से प्रेरणा लेनी चाहिए अथवा अच्छी रचना पढ़ने के लिए क्या करना चाहिए? इस पर आपकी प्रतिक्रिया जानना चाहेंगे।

आप क्या पढ़ रहे हैं, इससे पहले यह विचार करें कि क्यों पढ़ रहे हैं। सोशल मीडिया आजकल केवल प्रचार का माध्यम रह गया है और जिसका जो मन आता है, पोस्ट कर देता है। आपने क्या ग्रहण करना है, तय आपको ही करना है। रही बात प्रेरणा की तो वह तो कभी-कभी एक वाक्य से भी मिल जाती है।

अधिकांश कहानीकार आजकल जिस तरह की कहानी लिख रहे हैं उसे पर आप क्या कहना चाहेंगे? भारतीय साहित्य और विदेशी साहित्य में इन कहानियों में मुख्य अंतर क्या है?

मैं व्हाट्सअप पर कई समूहों से जुड़ी हूँ और कहानी लिखना भी सिखाती हूँ। मैंने देखा है कि आज भी कहानीकार पुरानी लीक पर कहानी लिख रहे हैं। कहानी में बुराई पर अच्छाई की जीत, दुष्ट को सबक, किसी की मदद करना या गाँव में गरीबी, रोता हुआ बच्चा आदि ऐसे कथानक ही मिलते हैं। बेचारगी सर्वोपरि रहती है। खुश रहना क्या गलत है जो हमेशा बच्चे को परेशान ही दिखाया जाए? नये प्रयोग करने से डरते हैं कहानीकार। यहाँ तक कि बच्चों को सच से रूबरू कराने से भी परहेज करते हैं। वास्तविकता की बजाय काल्पनिक कहानियाँ रचते हैं। कहानी लिखते समय व्याकरण, वर्तनी की त्रुटियों के साथ-साथ वाक्य विन्यास व शब्दों के चयन पर भी ध्यान देना चाहिए। विदेशी साहित्य में नयापन है और समाज की वास्तविक स्थिति को वहाँ सुंदर भाषा शैली के साथ रखा जाता है। वे बच्चों से जुड़ी समस्याओं को खुलकर कहानियों में बुनते हैं। भारतीय कहानीकारों को भी बदलाव को अपनाते हुए बच्चों के लिए उनके जीवन से जुड़े सच को कहानियों में दिखाना चाहिए। बहुत से प्रश्नों के उत्तर बच्चों को सहज ही कहानी के माध्यम से मिल जाते हैं।


लेखिका सुमन बाजपेयी की पुस्तकें अमेज़न में उपलब्ध है। निम्न लिंक पर क्लिक करके इन्हें क्रय किया जा सकता है:

सुमन बाजपेयी – अमेज़न

साक्षात्कारकर्ता परिचय

ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'
ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी का श्री हरिकृष्ण देवसरे बाल साहित्य पुरस्कार प्राप्त बाल साहित्यकार ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ का जन्म 26 जनवरी 1965 को भानपुरा तत्कालीन जिला मंदसौर मध्य प्रदेश में हुआ।

आपकी 145 बाल कहानियाँ 8 भाषाओं में 1160 अंकों में प्रकाशित हो चुकी है। इसके अलावा आपने इंद्रधनुष नामक बालकहानी के सात संग्रह का सम्पादन किया है। 21 बालमन की श्रेष्ठ कहानियाँ मध्य प्रदेश जिसका प्रकाशन डायमंड पैकेट बुक्स ने किया था, इसका संपादन दायित्व आपके द्वारा निर्वाहन किया गया है।

कई संस्था द्वारा सम्मानित क्षत्रिय जी की आठ मराठी भाषा में अनुवादित बाल कहानी की पुस्तक सहित 30 से अधिक पुस्तके प्रकाशित हो चुकी है।

चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट द्वारा आपके उपन्यास को द्वितीय पुरस्कार प्राप्त हुआ है। एक पुस्तक प्रकाशन विभाग, भारत सरकार द्वारा प्रकाशित हो चुकी है।

अमेज़न पर मौजूद पुस्तकें: अमेज़न – ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

ईमेल: opkkshatriya@gmail.com


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Author

  • एक बुक जर्नल साहित्य को समर्पित एक वेब पत्रिका है जिसका मकसद साहित्य की सभी विधाओं की रचनाओं का बिना किसी भेद भाव के प्रोत्साहन करना है। यह प्रोत्साहन उनके ऊपर पाठकीय टिप्पणी, उनकी जानकारी इत्यादि साझा कर किया जाता है। आप भी अपने लेख हमें भेज कर इसमें सहयोग दे सकते हैं।

2 Comments on “नये प्रयोग करने से हिचकिचाते हैं कहानीकार- सुमन बाजपेयी”


  1. ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ द्वारा लिया गया सुमन वाजपेयी जी का साक्षात्कार एक ‘गंभीर, संवेदनशील और साहित्यिक दृष्टि से समृद्ध संवाद’ है, जिसमें लेखिका की रचनात्मकता, संघर्ष, और विचारधारा को अत्यंत सहजता से उजागर किया गया है। यह साक्षात्कार केवल प्रश्नोत्तर नहीं, बल्कि एक ‘साहित्यिक आत्मा से दूसरी आत्मा का संवाद’ है।

    सुमन वाजपेयी जी ने जिस आत्मीयता और स्पष्टता से अपने लेखन की प्रेरणा, स्त्री विमर्श, बाल साहित्य, और सामाजिक सरोकारों पर विचार साझा किए, वह पाठकों को न केवल प्रेरित करता है, बल्कि उन्हें साहित्य के प्रति एक नई दृष्टि भी प्रदान करता है। ओमप्रकाश जी ने जिस ‘गहराई, विनम्रता और शोधपूर्ण शैली’ से प्रश्नों को रखा, वह साक्षात्कार को एक ‘साहित्यिक संवाद का उत्कृष्ट उदाहरण’ बना देता है।

    यह साक्षात्कार उन सभी के लिए उपयोगी है जो लेखन को केवल अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि ‘समाज परिवर्तन का माध्यम’ मानते हैं। सुमन जी की सादगी, स्पष्टता और साहित्यिक प्रतिबद्धता इस संवाद में पूरी तरह झलकती है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यह साक्षात्कार ‘हिंदी साहित्य के समकालीन विमर्श में एक मूल्यवान योगदान’ है।

    1. जी सही कहा आपने। वेबसाइट पर आने के लिए आभार।

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