‘तरकीब’ लेखक आलोक सिंह खालौरी का नव प्रकाशित उपन्यास है। तरकीब कहानी है एक बदला लेने की तमन्नाई युवती, एक साधारण केस के कारण जीवन में असाधारण बदलाव से जूझते वकील और एक बाहुबली नेता की जिन्हे किस्मत ने एक साथ लाकर खड़ा कर दिया था। उनके इस नव प्रकाशित पर एक बुक जर्नल ने लेखक से उपन्यास और उससे जुड़े कई पहलुओं पर बातचीत की है। उम्मीद है यह बातचीत आपको पसंद आएगी।
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प्रश्न: नमस्कार सर, आपको अपने नवीनतम उपन्यास तरकीब के लिए हार्दिक बधाई। पाठकों को इस उपन्यास के विषय में बताएँ?
उत्तर: नमस्कार विकास जी शुक्रिया आपका।
‘तरकीब’ एक थ्रिलर उपन्यास है जिसमे समसामयिक राजनीतिक दाँव पेंच तो है ही साथ ही जाँच एजेंसियों की कुशलता और विवशता दोनों है और हाँ साथ मे एक छोटी से प्रेम कहानी भी है । इससे अधिक बताना अभी उचित नही होगा।
प्रश्न: इससे पहले आपका उपन्यास वो प्रकाशित हुआ था जो कि एक पारलौकिक थ्रिलर था। वहीं अधूरा ख्वाब और मटरू का लोकतंत्र आपके लघु-उपन्यास हैं। यह सब अलग अलग विधा के रहे हैं। ऐसे में अपराध कथा में जाने का मन कैसे बना? यह उपन्यास लिखना दूसरे उपन्यासों से अलग कैसे है?
उत्तर: जी मेरा प्रथम उपन्यास ‘राजमुनि’ था , राजमुनि , ‘वो‘ और ‘अधूरा ख्वाब‘ तीनो पारलौकिक विधा के उपन्यास है एक ‘मटरू का लोकतंत्र‘ अवश्य व्यंगकथा है । पारलौकिक विधा में लिखने में खुद को काफी सहज पाया और लिखने में आनंद भी आया।
लगातार तीन उपन्यास पारलौकिक विधा में लिखने के बाद एकरसता से बचने के लिए एक क्राइम थ्रिलर लिखने का विचार किया जिसका परिणाम ‘तरकीब’ के रूप में सामने है।
जब आप कोई कहानी लिखते है तो आप भी कहानी के एक पात्र के समान ही हो जाते है और कहानी के साथ-साथ आप भी बहने लगते है इसलिए मुझे तो पारलौकिक और क्राइम थ्रिलर के लिखने में कोई अंतर नही लगा सिवा इसके कि पारलौकिक कथा लेखन के विपरीत क्राइम थ्रिलर आप रात को एकांत में भी आराम से लिख सकते है।
प्रश्न: क्या आप अपराध साहित्य पढ़ते हैं? आपके पसंदीदा उपन्यास कौन से हैं?
उत्तर: जी पढ़ने का शौक बचपन से है। ऐतिहासिक, सामाजिक, आध्यात्मिक हर प्रकार का साहित्य पढ़ा है, अपराध साहित्य भी काफी पढ़ा है। वेदप्रकाश शर्मा जी और सुरेंद्र मोहन पाठक जी के तो तकरीबन सारे उपन्यास पढ़े है , इसके अतिरिक्त वेद प्रकाश काम्बोज जी के भी काफी उपन्यास पढ़े है , मेरे पसंदीदा जासूसी उपन्यास है , तीन दिन, धोखाधड़ी, विश्वास की हत्या , बहु मांगे इंसाफ , रेलगाड़ी का भूत और भी बहुत सारे है।
प्रश्न: तरकीब पर वापिस आते हैं। अक्सर जब लेखक अपना पहला उपन्यास लिखते हैं तो वह एक ही किरदार को लेकर लिखना पसंद करते हैं। तरकीब के विवरण से यह कई किरदारों की कहानी लगती है। क्या इस उपन्यास में भी कोई नायक है? इतने किरदारों को संभालना कैसा था?
उत्तर: नहीं, कहानी तो ये केवल नायिका और खलनायक की ही है पर जब कहानी चल पड़ी तो पात्र जुड़ते चले गए और कई स्थानों पर नायक नायिका से अधिक महत्वपूर्ण भी हो गए। अब नायक को अजेय और सर्वगुण सम्पन्न दिखाता और असंभव काम भी ट्रेंड लोगो से ना करा कर एक जिद के तहत नायक से ही कराता तो कहानी की स्वाभाविकता पर असर पड़ता इसलिए टीम वर्क ही रखना सही समझा।
अब कहानी में नायक तो है पर सुपरमैन ना होकर जमीन से जुड़ा हुआ है। बाकी रही किरदारों की भीड़ को संभालने की बात तो किरदारों को मैंने नही संभाला बल्कि किरदारों ने ही कहानी को संभाला है।
प्रश्न: उपन्यास का वह कौन सा किरदार है जो आपको लिखते हुए काफी मज़ा आया? उपन्यास का वह कौन सा किरदार था जिसको लिखने में आपको दिक्कत आई? यह दिक्कत क्या थी?
उत्तर: मुझे नायिका पूजा का किरदार लिखने में मजा आया इसके अतिरिक्त किशोर और जुगल का किरदार लिखने में मजा आया ।
रणविजय का किरदार लिखने में थोड़ी दिक्कत आई जिसका कारण उसका सनकी और कुंठित मनोवृत्ति का होना था। जैसा व्यवहार वो अन्य लोगो से- खासकर महिलाओं से- करता था उसका विवरण लिखना आसान नही था, मुझे खुद की भी सहभागिता लगने लगी थी उसके कृत्यों में।
प्रश्न: अक्सर अपराध उपन्यासों को लिखने के लिए काफी रिसर्च भी करना पड़ता है। क्या आपने भी रिसर्च किया था? उस प्रक्रिया से पाठकों को अवगत करवाएंगे?
उत्तर: नहीं, रिसर्च जैसा तो कुछ नही किया। रिसर्च के नाम पर पिछले पैंतीस सालों के सतत अध्यन ही काफी था , थोड़ा बहुत गूगल जरूर किया पर रिसर्च जैसा कुछ नहीं किया।
प्रश्न: उपन्यास के शीर्षक का आपके लिए कितना महत्व है? तरकीब के विषय में बताएँ? क्या यह उपन्यास का मूल शीर्षक था या फिर शीर्षक में कुछ बदलाव हुआ था?
उत्तर: मेरे हिसाब से किताब का शीर्षक काफी महत्व रखता है। प्रस्तुत किताब का शीर्षक प्रारंभ से तरकीब ही था। इस समय इस विषय मे अधिक बताना उचित ना होगा बस इतना जान लीजिए कि तरकीब निकले बिना कहानी का अंत होना मुश्किल था।
प्रश्न: उपन्यास लिखते हुए आपको सबसे ज्यादा परेशानी किस चीज या प्रसंग में आई? क्या कोई ऐसा विशेष प्रसंग था?
उत्तर: रणविजय और आहना वाले प्रसंग को लिखने में थोड़ी दिक्कत हुईं और लिखना इसलिए पड़ा क्योंकि उसके चरित्र के डार्क शेड को उभारने के लिए ये चित्रण आवश्यक था। इसके अतिरिक्त एक प्रमुख पात्र को मरता दिखाना भी थोड़ा दुख दे गया।
प्रश्न: अक्सर अपराध उपन्यासकार सीरीज में उपन्यास लिखना पसंद करते हैं। क्या तरकीब एक एकल उपन्यास है या इसके किरदारों को लेकर आपने कोई सीरीज लिखने की सोची है?
उत्तर: हालाँकि ‘ तरकीब ‘ सम्पूर्ण उपन्यास है पर इसके किरदारों के आगे किसी कथानक में आना तो पाठकों की प्रतिक्रिया और माँग पर ही निर्भर करता है । इसीलिए दो महत्वहीन से सवाल अनुत्तरित छोड़ दिये है कहानी में ।
प्रश्न: आपके आने वाले प्रोजेक्ट्स क्या हैं? क्या पाठकों को आप इनके विषय में कुछ बताना चाहेंगे?
उत्तर: आगामी उपन्यास ‘डेड एन्ड’ भी एक क्राइम थ्रिलर ही है जो एक अति महत्वाकांक्षी युवक के उत्थान और पतन की कहानी है । ‘डेड एन्ड’ पूरा हो चुका है और प्रकाशन की प्रक्रिया में है , इसके उपरांत एक हॉरर उपन्यास आएगा।
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तो यह थी लेखक आलोक सिंह खालौरी से हमारी एक छोटी सी बातचीत। उम्मीद है यह बातचीत आपको पसंद आएगी। उपन्यास तरकीब अमेज़न पर मौजूद है और निम्न लिंक पर जाकर उसे खरीदा जा सकता है:
लेखक परिचय
पेशे से वकील आलोक सिंह खालौरी मूलतः बुलंदशहर के ग्राम खालौर के निवासी हैं। अब तक उनके दो उपन्यास और दो लघु-उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं।
विस्तृत परिचय निम्न लिंक पर:
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (03-11-2021) को चर्चा मंच "रूप चौदस-एक दीपक जल रहा" (चर्चा अंक-4236) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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दीपावली से जुड़े पंच पर्वों कीहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
चर्चा अंक में मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार…
बहुत बढ़िया सर जी जल्दी ही पढ़कर राय देंगे
जी आभार… आपकी राय का इंतजार रहेगा…
साक्षात्कार बहुत अच्छा लगा विकास जी। आशा है, तरकीब एक पठनीय उपन्यास सिद्ध होगा तथा पाठकों की प्रशंसा अर्जित करेगा। आलोक जी को शुभकामनाएं।
जी लेखक के पहले उपन्यास पाठकों को पसंद आए हैं तो मुझे उम्मीद है यह भी रोचक उपन्यास रहेगा। साक्षात्कार आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा। हार्दिक आभार।
उपन्यास के प्रकाशन की बधाई! एक सफल लेखन केलिए साधुवाद!
जी आभार…