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यू ब्लडी शिट पंजाबी – लोकेश गुलयानी |
प्रश्न: लोकेश जी नमस्कार। सबसे पहले तो आपको आपके कहानी नये संग्रह के लिए हार्दिक बधाई। अपने नव प्रकाशित कहानी संग्रह ‘यू ब्लडी शिट, पंजाबी’ के विषय में कुछ बताएं?
उत्तर: विकास जी नमस्कार और आपका बेहद आभार कि आपने मुझसे मेरी नई किताब ‘यू ब्लडी शिट पंजाबी’ के बारे में बात करने का प्रस्ताव सामने रखा। इन कहानियों को लिखने के पीछे मेरी अपनी भी कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। कुछ कहानियाँ यूँ ही बैठे-ठाले गोद में आ गिरी, जैसे ख़ुद ही ख़ुद की सिफ़ारिश करवाना चाह रही हो। कुछ ने मुझे रातों को जगाये रखा, दिनों तक उलझाये रखा। जब-जब कोई कहानी मुक़म्मल होती, तो मेरी जान में जान आती।
हम कहानियाँ क्यों पढ़ते हैं? ये सवाल इतना ज़रुरी नहीं है पर कहानियाँ जन्म कैसे लेती है? ये मसला ज़्यादा महत्वपूर्ण है। जो जज़्बात, मुख़्तलिफ़ वक़्त में मैंने ठहराव के साथ महसूस किया, उसी का रंग देती हुई कहानियाँ लिखने की मेरी कोशिश रही है। ये दस कमसिन, बेशर्म और सयानी कहानियाँ, जो किसी दूसरी कहानी का उधार या सूद नहीं रखती और जो मन में आता है कहती जाती है, आप चाहे जो महसूस करें। जब-जब क़िताब की जिल्द खुलेगी, ये बुक्का फाड़ कर चिल्लायेंगी ‘यू ब्लडी शिट पंजाबी’। आप पढ़ेंगे तो उन्हें हैरत से अपनी ही ओर तकता पायेंगे। आशा है पाठकों को ये कहानियाँ पसंद आयेंगी।
प्रश्न: ‘यू ब्लडी शिट पंजाबी’ रोचक नाम है। जहाँ यह आपका ध्यान आकर्षित करता है वही आपको उस व्यक्ति के विषय में भी सोचने पर विवश करता है जो यह कथन कह रहा है। इस शीर्षक तक आप कैसे पहुँचे?
उत्तर: शीर्षक तक पहुँचना आसान नहीं था। न जाने कितनी बार इस शीर्षक को मैंने नकार दिया था पर कुछ था जो लौट-लौट कर आता था और ‘यू ब्लडी शिट पंजाबी’ चिल्लाता था। शीर्षक में जोख़िम था पर ये कहानी और किरदारों की माँग थी कि छुपा कर कुछ न रखा जाये, सब खुल्ला खाता है। ये शीर्षक इस किताब की शीर्षक कहानी (टाइटल स्टोरी ) से ही लिया गया है। किताब पढ़ते-पढ़ते ये कहीं बीच में आती है पर पढ़ने वाले के दिमाग़ में सनसनी पहली कहानी से ही शुरू जाती है कि टाइटल स्टोरी में ऐसा क्या है जो ऐसा शीर्षक और ऐसी कहानी गढ़ी गई। वैसे आपने बिलकुल सही अंदाज़ा लगाया है ‘कोई ऐसा सही में किसी को कह रहा है, सिर्फ़ कह ही नहीं रहा उस पर चिल्ला-चिल्ला कर उसके वजूद को झकझोर रहा है।’
प्रश्न: कहानी के शीर्षक में ऐसे शब्द भी है जो कि आम तौर पर अंग्रेजी जुबान में बुरा माना जाता है। ऐसे में यह शब्द किताब के शीर्षक के रूप में लिया गया है। इसे आप किस तरह देखते हैं और क्या इस संग्रह की कहानियाँ एक विशेष पाठकवर्ग के लिए ही हैं?
उत्तर: मैं इसे अपवाद के रूप में ही देखता हूँ पर साथ ही स्पष्ट भी करना चाहूँगा कि ये सिर्फ़ ध्यान आकृष्ट करने का या सनसनी पैदा करने का अथवा विचित्र करने की खाज या हिंदी/अंग्रेजी की खींचतान से भी अधिक, किताब के साथ न्याय करने का मसला था। एक वक़्त ऐसा भी आया था कि मैं शीर्षक बदल चुका था पर उसके बाद मेरे मन की उहापोह ने मुझे चैन से बैठने न दिया और इसे वापस बदलवा कर ही दम लिया। इस संग्रह की कहानियाँ सबके लिए है।
प्रश्न: प्रस्तुत किताब से पहले भी आपका एक कहानी संग्रह ‘वो कहानी यही है’ आया था। इन दोनों के शीर्षक से तो यह दोनों कहानी संग्रह जुदा मिजाज के लगते हैं। आप बताइए इस संग्रह की कहानियाँ या वो कहानी यही है से जुदा हैं? अगर हाँ, तो यह किताब किस तरह अलग है?
उत्तर: दोनों में मूल अंतर ये है कि ‘वो कहानी यही है’ को अगर आप पढ़ेंगे तो कुछ एहसास लेकर उठेंगे जिस पर दो या तीन रंगों की परत होगी। पर जब आप ‘यू ब्लडी शिट पंजाबी’ पढ़ कर उठेंगे तो हो सकता है आप उठते-उठते लड़खड़ा जाएँ और किताब को पलट कर हैरत से देखें कि ये मैंने क्या पढ़ा। किन दो कहानियों को एक जैसा कहा जाये? या पूरी किताब जिस एक रंग में रंगी है वो रंग लाल था या नीला या पीला, या जो कहानीयों की खुशबू है वो कुछ ऐसी है, ये बताने में पाठक को कठिनाई पेश आ सकती है।
प्रश्न: यू ब्लडी शिट पंजाबी की कौन सी कहानी आपको सबसे ज्यादा पसंद है। उसके विषय में कुछ बताएं मसलन कहानी का ख्याल किस तरह आया या कहानी से जुड़ा कोई वाक्या?
उत्तर: हा हा हा! आपने कुछ ऐसा पूछ लिया है कि मुझे ख़ुद किताब को साथ लेकर बैठना पड़ेगा। देखिये वैसे तो हर किताब ने मुझे कोई न कोई ख्याल दिया है पर इस कथा संग्रह की एक कहानी ‘कोशी’ है जो कुछ फ़िल्मी ज़रूर लग सकती है पर जिस तरह वो कहानी बन पड़ी है तो वो मैं कहीं से भी दुबारा पढ़ सकता हूँ, कोशी और गौतम बाबू की आपसी केमिस्ट्री मुझे मेरी ज़िन्दगी से बहुत मेल खाती लगती है। पढ़ते-पढ़ते कई बार लगता है जैसे कोई ऐसे किरदार पढ़ रहा हूँ जिन्हें रोज़ जीता हूँ।
प्रश्न: कहानी संग्रह में मौजूद कहानियो के किरदारों में से आपका सबसे प्रिय किरदार कौन है और क्यों?
उत्तर: चुनाव मुश्किल है पर आपसे अनुमति लेकर मैं दो किरदारों पर टिक पाता हूँ;
१) ‘यू ब्लडी शिट पंजाबी’ से कॉलिन सर, बहुत स्ट्रांग करैक्टर हैं। कहानी के हीरो राहुल के अपोजिट है पर अपनी छाप गहरी छोड़ता है। आप इस किरदार से बच नहीं सकते और इसे हल्के में लेने की ग़लती भी नहीं कर सकते।
२) गूँगी कहानी से नेगी, नया-नया नौकरी पर लगा फारेस्ट गार्ड जो हरा-भरा पहाड़ी जीवन छोड़ राजस्थान के थार मरुस्थल में जंगली जीवन की तलाश में आया है और टकरा जाता है अपनी किस्मत से जो उसे कुछ देने पर आमादा है पर भारी क़ीमत लेकर।
प्रश्न: कहते हैं हर कहानी के पकने का अपना वक्त होता है। कई बार कहानी जहन में तो रहती है लेकिन उसे कागज पर उतारने में आपको काफी मेहनत लगती है। कई बार कोई ख्याल आपके मन में आता है और आप लिखते चले जाते हैं और कहानी बन जाती है। अगर आपको इस संग्रह में मौजूद कहानियों में से चुनना पड़े और वह कौन सी कहानी होगी जो आपके पास आसानी से आ गयी और वह कौन सी कहानी है जिसे लिखने के लिए आपको काफी जद्दोजहद करनी पड़ी और यह जद्दोजहद कैसी थी?
उत्तर: रिजु की दुल्ली कहानी आसानी से अपने अंजाम तक पहुँची थी और गूँगी को उसके अंजाम तक पहुँचने में काफ़ी जद्दोजहद हुई। कभी-कभी ऐसा होता है कि हम विचारों के स्वाभाविक प्रवाह के साथ थोड़ी ज़्यादती बरत जाते हैं और इंतज़ार नहीं करते। कुछ-कुछ ईमानदारी से कहूँ तो गूँगी इसी जद्दोजहद का शिकार हुई और मैं भी पर अंत भला तो सब भला।
प्रश्न: अभी आप अन्य किन प्रोजेक्ट्स पर कार्य कर रहे हैं। क्या आप पाठकों को उनके विषय में कुछ बताना चाहेंगे?
उत्तर: अच्छा सवाल है, देखिये काम तो मैं पिछले साल के अंत से एक उपन्यास और एक और लघु कथा संग्रह पर कर रहा था। पर मेरी एक बुरी आदत है कि अगर मेरी कोई किताब पब्लिशिंग के लिए प्रतीक्षारत है तो मेरे बाक़ी लिखने के काम या तो बहुत धीमे चलते हैं या चलते ही नहीं है। पिछले साल अक्टूबर-नवंबर से एक उपन्यास लिखना आरम्भ किया था जिसकी कहानी राजस्थान के शेखावाटी अंचल की प्रेमकथा का बखान करती है, उसके क्लाइमेक्स तक आ चुका हूँ। और लघु कथा संग्रह की बात करूँ तो उसे भी लगभग आधा लिख कर छोड़ा हुआ है। इस साल के अंत तक दोनों को लिख देने का मानस बना रखा है। चूँकि अब ‘यू ब्लडी शिट पंजाबी’ भी छपकर आ चुकी है तो मेरा दिमाग़ अब नया लिखने को मुक्त है। अब इस दिशा में अपेक्षित गति से काम होने की सम्भावना है।
प्रश्न: लोकेश जी अब बातचीत को विराम देने का वक्त आ गया है। हम लोग पिछले छः महीने से कोरोना से जूझ रहे हैं। आप इस समय को कैसे देखते हैं? साहित्य इस समय में क्या भूमिका अदा कर सकता है? क्या आप कुछ संदेश पाठकों को देना चाहेंगे?
उत्तर: शताब्दियों में एक ऐसा समय आया है जब सब थम गया। यूँ तो इंसान में हिम्मत थी नहीं कि वो जीवन और व्यावसायिक चक्र को कभी रोक पाता। जब ये समय आ ही गया था तो ये समय था आत्मचिंतन का, आवश्यक को अपनाने का अतिरिक्त को हटाने का, जीवन के प्रति संवेदनशील और शांत हो जाने का, थोड़ा उन्माद कम करने का और चेतना विकसित करने का। इसकी चिंता ही लगी रही लोगों और सरकारों को के कोरोना कब खत्म होगा? चिंता करने की बजाय आवश्यक स्थायी सुधार, यदि तंत्र और व्यक्तिगत जीवन में उठा लिए गये होते तो ज़्यादा अच्छा रहता। मेरे हिसाब से कोई 5 से 10% लोगों को छोड़ दें तो बाक़ी जनसंख्या इस समय का सदुपयोग नहीं कर पाई।
साहित्य तो सदैव अपनी भूमिका अनवरत निभाता आया है और आगे भी निभायेगा ही। जिसे जैसा मौक़ा मिल रहा है वो उसे वैसे ही अपनाने की कोशिश कर रहा है, लेखक अब सिर्फ़ क़िताब लिखनी है उस से परे सोचने लगा है और अपने काम का विस्तार वृहद प्लेटफार्म पर आने के लिए कर रहा है जैसे ओटीटी, ऑडियोबुक, वेब, इत्यादी पाठक भी थोड़ा चूज़ी हो गये हैं। पर इसमें किसी का दोष भी नहीं है क्योंकि ये असाधारण समय है जिससे हम निकल रहे हैं और हम इसके लिए मानसिक रूप से परिपक़्व नहीं थे।
मेरा तो यही सन्देश है कि अपने मन में कोई तारीख का मुग़ालता न पालें कि फलाँ तारीख़ को सब ठीक हो जायेगा और जीवन पहले की तरह स्वछंद और उन्मुक्त जायेगा। बल्कि अपने आपको ऐसा तैयार करें कि अब ऐसे ही जीना है और अगर हम किसी तरह ‘ओल्ड नार्मल’ की ओर लौट सके तो ये प्रकृति का मानव को सबसे बेशक़ीमती उपहार होगा, जो वो अपने दयालु स्वभाव और निस्वार्थ भाव से सदैव देती आई है।
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तो यह थी लेखक लोकेश गुलयानी से उनके नवप्रकाशित कहानी संग्रह ‘यू ब्लडी शिट पंजाबी’ के ऊपर ‘एक बुक जर्नल’ की बातचीत। उम्मीद है यह बातचीत आपको पसंद आई होगी। आपके विचारों की हमें प्रतीक्षा रहेगी।
अगर आप किताबा मँगवाना चाहें तो इसे निम्न लिंक से मँगवा सकते हैं:
यू ब्लडी शिट पंजाबी
© विकास नैनवाल ‘अंजान’
बहुत बढ़िया इंटरव्यू
जी, आभार।