उपन्यास ८ अक्टूबर से ११ अक्टूबर के बीच पढ़ा गया
रेटिंग : ४/५
रेटिंग : ४/५
संस्करण विवरण :
फॉर्मेट : पेपरबैक
प्रकाशक : राधा कृष्ण पेपरबैक्स
पृष्ठ संख्या : १३१
पहला वाक्य :
बड़ा सुन्दर सवेरा था।
बनिया बहू महाश्वेता देवी का उपन्यास है जो मूलतः बंगाली भाषा में लिखा गया था और जिसका हिंदी में अनुवाद डॉ महेश्वर जी ने किया है। उपन्यास की कहानी सोलहवीं शताब्दी के कवि मुकुंडराम चक्रवर्ती की पुस्तक चंडी मंगल की एक रचना पर आधारित है।
महाश्वेता जी ने इस उपन्यास को यह सोचकर लिखा है कि इस कविता की रचना मुकुंद राम जी ने अपने ग्राम में हुई एक घटना के आधार पर की थी।
दाममनिया एक छोटा सा गाँव है जहाँ सभी जाती के लोग मिल जुल कर रहते हैं। लेकिन कुछ समय से गाँव में मौजूद गनपति बनिए की बहु आहना सबकी चिंता का विषय बनी हुई है। गनपति बनिए की पहली बहु ने आहना पे अत्याचार करने की सारी सीमायें पार कर दी हैं। उसके रुदन से दामनियाँ गाँव की रात तार तार हो जाती है।
गनपति बनिया घर पर नहीं है इसलिए कोई उन दोनों के बीच में बोलना नहीं चाहता है। ब्राह्मण समाज बनिए समाज के कुछ करने का इन्तेजार कर रहा है और बनिया समाज गनपति के घर आने का।
लेकिन शुरू से ऐसा नहीं था। कभी कनिका और आहना बहनो की तरह रहती थीं। लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ जो कनका आहना की खून की प्यासी हो गयी?क्यों वो उसके पार इतने अत्याचार करने लगी। इन सारे सवालों के जवाब तो आपको उपन्यास पढ़ने के पश्चात ही पता चलेगा।
उपन्यास मुझे काफी पसंद आया। उपन्यास की कहानी बहुविवाह और उसका समाज के ऊपर असर को दर्शाता है। इसके इलावा कैसे अंधविश्वास आदमी की सोचने समझने की शक्ति को हर लेता है उसका चित्रण उपन्यास बखूबी किया गया है। उपन्यास में दर्शायी गयी बातें आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी की उस वक़्त थी। काला जादू, टोना टोटका के चक्कर में आजकल भी कई लोग बेवकूफ बनते हैं और बनाते हैं। चुड़ैल होने के आरोप में कई औरतों को प्रताड़ित किया जाता है। ऐसे कई किस्से हम अपने आस पास आज भी इस इकीसवीं शताब्दी में देखते हैं।
उपन्यास मुझे काफी पसंद आया। उपनयास मार्मिक है और आहना की कहानी दिल को झंझोड़ देती हैं। कनका एक तेज तरार औरत थी और आहना को काफी चाहती थी। लेकिन अंधविश्वास के कारण उसमे जो परिवर्तन आता है और जो वो हरकत करती है वो अंधविश्वास कैसे लोगों की सोचने समझने की शक्ति को हर लेता है उसको चरित्राथ करता है।उपन्यास पठनीय है और उपन्यास के पात्र जीवंत हैं।
आजकल भी दामनिया जैसे गाँव और आहना जैसी स्त्रियाँ हमारे गाँव में बस्ती हैं इसमें कोई दो राय नहीं है।मुझे लगता है उपन्यास आप सभी को पढ़ना चाहिए।
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किताबें पढ़ना और औरों को प्रेरित करना भी कला है । बहुत अच्छी जानकारी ।
जी, मैम। कहानियाँ हमेशा से पसंद रही हैं। यही कोशिश रहती है कि जो चीज मुझे पसंद आई है वह दूसरों तक भी पहुँचे।