साक्षात्कार: पराग डिमरी

परिचय:

पराग डिमरी जी

पराग डिमरी जी मूलतः कोटद्वार उत्तराखंड के रहने वाले हैं। फिलहाल गाजियाबाद में मौजूद एक कम्पनी में कार्यरत हैं। 

हँसमुख स्वभाव के पराग जी मित्रों के बीच जितना अपनी हाजिरजवाबी के लिए जाने जाते हैं उतना ही अपनी बात कहने की गति के लिए जाने जाते हैं। क्योंकि मैं उन्हें व्यक्तिगत तौर पर जानता हूँ तो मैंने कई बार अनुभव किया है कि पराग जी अपनी चुटीली टिप्पणी करके निकल जाते हैं और सुनने वाले को अहसास बाद में होता है कि क्या कह दिया गया है।
संगीत और साहित्य से पराग जी को विशेष अनुराग है। 
वर्ष दो हजार अट्ठारह में पराग जी ने  दुनिया से निराला हूँ, जादूगर मतवाला हूँ नाम से बोलीवुड के जाने माने संगीतकार ओ पी नैय्यर जी की जीवनी लिखी थी। 
आप पराग जी से निम्न लिंक्स के माध्यम से सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं:
ईमेल: parag_dimri@yahoo.com
‘एक बुक जर्नल’ की साक्षात्कार श्रृंखला में आज मैं आपके समक्ष पराग डिमरी जी से हुई बातचीत प्रस्तुत कर रहा हूँ। पराग जी से मेरी पहली मुलाकात एस एम पी मीट (जिसमें श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के फैन्स आपस में मिलते हैं और कुछ दिनों तक यारबाशी करते हैं) के दौरान हुई थी। उसी वक्त उनके अपराध साहित्य से लगाव के अलावा उनकी संगीत के प्रति रूचि का पता चला था। इसके बाद कई बार उनके सदके संगीत से जुड़े कई प्रोग्राम्स में मुझे शामिल होने का मौक़ा मिला। इसलिए उनके द्वारा मशहूर संगीतकार ओ पी नैय्यर जी की जीवनी दुनिया से निराला हूँ, जादूगर मतवाला हूँ के लिखे जाने की खबर का सुनना कम से कम मेरे लिए तो आश्चर्यजनक नहीं था। 
इस साक्षात्कार में मैंने उनकी किताब, किताब को लिखने के दौरान हुए अनुभव और उनके आने वाले प्रोजेक्ट्स के विषय में बातचीत की है। उम्मीद है यह बातचीत आपको पसंद आएगी। 

प्रश्न: सर अपने विषय में पाठकों को कुछ बताएं। आप मूलतः किधर से आते हैं? शिक्षा दीक्षा किधर हुई? अब फिलहाल किधर हैं?

उत्तर: उत्तराखंड राज्य के कोटद्वार नगर से हूँ, शिक्षा दीक्षा कोटद्वार में ही संपन्न हुई। वर्तमान में दिल्ली में कार्यस्थली और निवास स्थान गाजियाबाद,उ० प्र० में है।

प्रश्न: साहित्य में रूचि कैसे जागी? वह कौन सी रचनाएँ थी जिन्होंने पढ़ने के प्रति आपको आकर्षित किया?

उत्तर:साहित्य में रुचि परिवार में वरिष्ठों को देखकर उत्पन्न हुई। राजन इकबाल, सुरेंद्र मोहन पाठक, शिवानी, प्रेमचंद, गुनाहों का देवता, राग दरबारी जैसे रचनाकार और रचनाओं ने यहाँ कुछ अधिक गंभीरता से डूबने के लिए  प्रेरित किया और अभी तक ये सिलसिला बरकरार है।

प्रश्न: सर संगीत में आपकी रूचि कब जागी? किस तरह का संगीत सुनना पसंद करते हैं?

उत्तर:फिल्मी संगीत से आगाज हुआ, फिर हसन जहांगीर ,भप्पी लहरी मार्का संगीत से गुजरते हुए, अब गजलें, पुरानी हिंदी फिल्मों पर आकर स्थायित्व प्राप्त कर चुका है।
अफसोस इसी बात का रहता है कि अच्छे कर्णप्रिय संगीत से समझ, राब्ता होने में काफी समय लगा। ये सोचकर ही तसल्ली देनी पड़ती है कि देर आए, दुरूस्त आए। Better late,than never.
प्रश्न:  ‘दुनिया से निराला हूँ, जादूगर मतवाला हूँ’ लिखने का ख्याल कब बना और उसे कैसे अमलीजामा पहनना शुरू किया?

उत्तर: “दुनिया से निराला” को साकार करने में तरीबन चार साल लगे। फितूर इसलिए पैदा हुआ कि नैय्यर साहब के संगीत पर बहुत ज्यादा सुनने,पढ़ने को नहीं मिलता था, फिर भी उनका  संगीत वर्तमान में भी अनुकूल, हृदय में स्पंदनकारी था। जब इस “क्यों”  की प्राप्ति के लिए पग क्या उठाए, बढ़ता ही चला गया। जितना परिचय बढ़ा, उतनी ही दीवानगी बढ़ती चली गई। फिर इस विचार ने कि जो समझ पा रहा हूँ, उसे दुनिया तक भी पहुँचाना चाहिए। इसकी परिणति प्रकाशन की दहलीज को पार कर  ही संपन्न हो पाई।

प्रश्न: गल्प लिखने में एक आसानी तो यह होती है कि आपको अगर विचार आया तो आप उसे बस लिखना शुरू कर सकते हैं लेकिन कथेतर लिखने में विचार आने के बाद के काम ज्यादा मुश्किल भरे होते हैं। इस किताब को लिखने के लिए भी आपने रिसर्च किया होगा? यह प्रक्रिया कैसी रही?

उत्तर:शोध करना, और प्रामाणिकता के साथ करना, सबसे दुरूह कार्य था।
आप मायानगरी के निवासी नहीं हैं तो इस क्षेत्र में कुछ करने के लिए के लिए कोढ़ में खाज।
“जहाँ चाह वहाँ राह” यहाँ भी कुछ ऐसा ही चरितार्थ हुआ। नॉन  फिल्मी व्यक्ति, अनभिज्ञ को भी सूत्र, सिरे, निशान मिलते ही चले गए। पगडंडियां राहों में परिवर्तित हुई, अंधेरों में जुगनू टिमटिमाते दिखाई पड़ने लगे।
नैय्यर  साहब बहुत  सीमित दायरे में रहने वाले शख्सियत थे।
संपर्क जो जीवित भी थे, सब अस्सी से उपर की आयु में थे,स्मृतिह्मस से भी पीड़ित थे।
काफी  कुरेदना पड़ा, अंधे कुएं में विचर रहा हूँ, ये भावनाएं भी जन्मी, किंतु कुछ कार्यों की सिद्धि हमसे ही होनी सुनिश्चित थी,तो अंत भला ,तो सब भला।

प्रश्न: रिसर्च की इस प्रक्रिया ने आपको क्या सिखाया?

उत्तर:करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान । 
     रसरी आवत-जात के, सिल पर परत निशान ।।

प्रश्न: चूँकि आपने ओ पी नैय्यर जी के विषय में किताब लिखी है तो यह बात तो समझी जा सकती है कि आप उनके प्रशंसक हैं। किताब को लिखने के दौरान ऐसी कौन सी बातें थी जो आपको उनके विषय में पता चली जो कि अगर किताब अपने नहीं लिखी होती तो शायद ही आपको पता लगती?

उत्तर:ये ज्ञात हुआ कि वे  महान से भी कहीं आगे बढ़कर संगीतकार थे। तीस, चालीस प्रतिशत ही उनके संबंध में खोज हुई है।  वो “ताल के बादशाह” ही नहीं, संगीत में  मधुरता के भी श्रेष्ठतम उदाहरण थे।
उनकी शख्सियत उनका सबसे रोचक पहलू थी। परिस्थितियाँ कैसी भी रही, उन्होंने अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया।। इस दुनिया में खुद खालिस बनकर रहना संभव है, लेकिन नैय्यर साहब ने बखूबी इसे अंजाम दिया।

प्रश्न: सर जब भी कोई व्यक्ति इतनी ऊंचाई छू जाता है तो उसके जीवन में अक्सर कई उजले तो कई स्याह पहलू होते हैं। लिखते समय लेखक के लिए यह मामले उलझन भरे हो सकते हैं कि वह इन्हें कैसे दर्शाए? आप भी ऐसी उलझन से गुजरे होंगे। नैय्यर ही की व्यक्तिगत जिंदगी वैसे भी कई उलझनों से भरी थी। इन पहलुओं को दर्शाते वक्त आपने किन किन बातों का ध्यान रखा?

उत्तर:अमूमन जीवनी अभिनंदन ग्रंथ बन जाती है, किंतु यहाँ इस परिपाटी का पालन नहीं किया गया। काले  को भी उजागर करने से श्वेत धूमिल नहीं हो जाता, या छुपाने से सफेद ज्यादा चमकदार नहीं बन जाता बस इसको ही ध्यान मे रखा गया कि सीमाओं का उल्लंघन न हो। समझदार को इशारा ही काफी होता है। लेखन में छुपाव  नैतिकता, ईमानदारी से परे ले जाता है।

प्रश्न: सर आप कोटद्वार से आते हैं। क्या आप पहाड़ी संगीत सुनना भी पसंद करते हैं? अगर हाँ, तो आपके प्रिय गीत और कलाकार कौन से हैं?

उत्तर:अफसोस की बात है कि नरेंद्र सिंह नेगी और चन्द्र सिंह राही जी पर आकर ही सूची समाप्त हो जाती है। इसे थोड़ा बहुत ही सही विस्तृत जरूर करना चाहूँगा।
प्रश्न: क्या कभी पहाड़ी संगीत और पहाड़ी कलाकारों के विषय में भी कुछ लिखेंगे?
उत्तर:अभी तक पहाड़ी संस्कृति से दूर ही रहा हूँ। जल्दी कुछ करने की यहाँ भी सद्इच्छा तो है। लेकिन तस्वीर अभी धुंधली सी है, बहुत जल्दी कुछ यहाँ भी किर्यान्वन जरूर होना चाहिए।
प्रश्न: सर आजकल आप क्या लिख रहे हैं? क्या पाठकों को जल्द ही कुछ पढ़ने को मिलेगा? अगर हाँ तो क्या वो कथेतर ही होगा या गल्प होगा?
उत्तर: वर्तमान में एक उपन्यास पर कार्य जारी है पर जिस धीमी गति से कार्य चल रहा है, संशोधन किए जा रहे हैं, लगता है कि पंचवर्षीय योजना साबित  होनी चाहिए।
प्रश्न: सर ऐसे कौन से अन्य विभूतियाँ हैं जो आपको आकर्षित करती हैं और जिनके विषय में आप लिखना चाहेंगे?
उत्तर: गीतकार शैलेंद्र बहुत प्रभावित करते रहते हैं लेकिन उनके संबंध में काफी कुछ लिखा जा चुका है, फिर भी कुछ तो शेष रह ही जाता है। यह भी प्राथमिकता में सबसे ऊँची वाली पायदान पर है।
प्रश्न: क्या आप जीवनियाँ पढ़ते हैं? क्या आप अपनी पसंदीदा जीवनियों के विषय में बताना चाहेंगे?
उत्तर: हद से ज्यादा जीवनियों में रुचि है। गांधी जी, बच्चन जी,पाठकजी, लेख टंडन.ने काफी अंदर  तक प्रहार किया।
दुर्भाग्य से अधिसंख्य खुद को बावन गज का साबित करने की कवायद मात्र है। उन सभी का नाम लिखने की घृष्टता नहीं करना चाहूँगा।

प्रश्न: सर आजकल कोरोना चल रहा है। सभी घरों में बंद है। ऐसे में आप अपना समय कैसे बिता रहे हैं?

उत्तर: घर में सबसे ज्यादा समय व्यतीत हो रहा है। सारा भोजन घर में ही करना, इस प्रथा को  जाने कबसे भूल चुके थे। जीवन घर की चारदीवारी के भीतर गुजारना भी बहुत प्रेरणादायक होता है। पढ़ना, लिखना थोड़ा ज्यादा हो रहा है आशांवित हूँ कि कई रचनाओं का  जन्मकाल कोरोना काल ही साबित होगा,इसे रेखांकित कर लीजिए।

प्रश्न: आखिर में अगर कोई बात जो मुझसे पूछनी रह गयी हो और आप पाठकों को कहना चाहें तो आप कह सकते हैं।

उत्तर: खूब पढ़िए, और खरीदकर ही पढ़िए।अपनी भाषा में लिखे पर विशेष तवज्जो दीजिए । हिन्दी में लिखने वालों को हिन्दी अंकों के प्रयोग न करने पर उन्हें खूब टोकिए (इस वाक्य का सन्दर्भ समझने के लिए केवल यह जानना काफी होगा कि खाकसार ने जो प्रश्न लेखक को भेजे थे उनमें भारतीय अंकों की जगह अंग्रेजी अंकों का प्रयोग किया था।)। 

                                                                      ****
पुस्तक निम्न लिंक पर जाकर खरीदी जा सकती है:
आशा है पराग डिमरी जी के साथ की यह बातचीत आपको  पसंद आयी होगी। साक्षात्कार के प्रति आपकी राय का हमें इन्तजार रहेगा।
वेबसाइट पर मौजूद अन्य साक्षात्कार आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
© विकास नैनवाल ‘अंजान’

FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

View all posts by विकास नैनवाल 'अंजान' →

8 Comments on “साक्षात्कार: पराग डिमरी”

  1. बेहतरीन.. शैलेन्द्र पर जो किताब आ रही है वो कब तक आएगी? इंटरव्यू अच्छा रहा, और जानने की जिज्ञासा रही.. ऐसा लगा उत्तर संक्षिप्त रहे..

    1. जी आभार, उपन्यास और शैलेन्द्र जी पर लिखी किताब का मुझे भी इन्तजार है। जी उम्मीद है अगली बार बातचीत कुछ लम्बी हो सकेगी।

  2. हिंदी मे अंको के उपयोग के बारे मे कई बार सोचा पर आदत से मजबूर, हर बार अंग्रेज़ी पर ही चला जाता हूँ।

    कोशिश करूँगा यह आदत बदलने की।

    बढ़िया साक्षात्कार था👏👏

    1. जी कोशिश करने से ही होता है। साक्षात्कार आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा। आभार।

  3. बहुत अच्छा साक्षात्कार ! मेरा परम सौभाग्य है कि मैं पराग जी से निजी रूप से परिचित हूँ एवं उनका मित्र कहलाने का मुझे गौरव प्राप्त है । पराग जी खरे सोने की मानिंद खरे व्यक्ति हैं । 'दुनिया से निराला हूँ, जादूगर मतवाला हूँ' उनकी योग्यता का जीता-जागता प्रमाण है । पराग जी ठीक कहते हैं कि पुस्तक ख़रीद कर ही हुत अच्छा साक्षात्कार ! मेरा परम सौभाग्य है कि मैं पराग जी से निजी रूप से परिचित हूँ एवं उनका मित्र कहलाने का मुझे गौरव प्राप्त है । पराग जी खरे सोने की मानिंद खरे व्यक्ति हैं । 'दुनिया से निराला हूँ, जादूगर मतवाला हूँ' उनकी योग्यता का जीता-जागता प्रमाण है । पराग जी ठीक कहते हैं कि पुस्तक ख़रीद कर ही पढ़ी जानी चाहिए । मैंने भी 'दुनिया से निराला हूँ, जादूगर मतवाला हूँ' को ख़रीद कर ही पढ़ा और उसके बाद उसकी समीक्षा लिखी । जब-जब भी पराग जी मुझे फ़ोन करते हैं, ऐसा लगता है जैसे रेगिस्तान में बारिश होने लगी हो । आपका अभिनंदन विकास जी इस साक्षात्कार के लिए जो पढ़ने वालों को पराग जी के विविध-आयामी व्यक्तित्व एवं सहज-सरल स्वभाव से परिचित करवाता है ।

    1. जी, आभार सर…. पराग जी के विषय में आपने सौ फीसदी सच बात कही है। यही कारण है मैं उनका साक्षात्कार लेना चाहता था। आपकी लिखी समीक्षा मैंने भी पढ़ी है। साक्षात्कार आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा।

  4. बहुत सुन्दर 👌👌 पराग जी को हार्दिक शुभकामनाएं।

    1. हार्दिक आभार, ब्रजेश भाई….

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *