अपने काम में हम वैसी ईमानदारी और आज़ादी से अपनी नज़र और ज़बान और कल्पना का इस्तेमाल नहीं करते जैसे आला अदब के लिए जरूरी समझी जाती है। हमारी ज़बान कोई ज्यादती नहीं करती, हमारी कल्पना के पर कटे ही रहते हैं, हमारी नज़र सतह पर ही रुकी रहती है। हम ऐसा लिखना चाहते हैं जिसे पढ़ कर हमारा कोई पड़ोसी या मेहमान या रिश्तेदार या मास्टर यह न सोचे कि यह तो हरामी निकला। हम भलेमानुस बने रहना चाहते हैं।
– कृष्ण बलदेव वैद, शाम ‘अ हर रंग में
किताब लिंक: हार्डकवर
बहुत सुन्दर।
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राष्ट्रीय बालिका दिवस की बधाई हो।
जी आभार… राष्ट्रीय बालिका दिवस की बधाई…