अजीब बात है, बचपन के ख़्वाब कभी धुँधलाते नहीं। मुरझाते नहीं। सफ़र की हर मंज़िल पार करते हम बार-बार उस झुरमुट से होकर जाते हैं जहाँ से हमे पहली आवाज़ पड़ी थी। पहली पुकार सुनी थी।
कृष्णा सोबती, जैनी मेहरबान सिंह
किताब लिंक: पेपरबैक | हार्डबेक
© विकास नैनवाल ‘अंजान’
सार्थक और सुन्दर सन्देश।
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गणतन्त्र दिवस की पूर्वसंध्या पर हार्दिक शुभकामनाएँ।
जी आभार…