पुस्तक अंश: पहली वैम्पायर

पुस्तक अंश: पहली वैम्पायर - विक्रम ई दीवान

‘पहली वैम्पायर’ लेखक विक्रम ई दीवान के अंग्रेजी उपन्यास द फर्स्ट वैम्पायर का हिन्दी अनुवाद है। आज एक बुक जर्नल पर पढ़िए उपन्यास पहली वैम्पायर का एक छोटा सा अंश। उपन्यास बुक कैफ़े प्रकाशन से प्री आर्डर किये जाने के लिए तैयार है।
आशा है यह अंश आपको पसंद आएगा।
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पुस्तक अंश: पहली वैम्पायर - विक्रम ई दीवान

जब एर्लेन ने आँखे खोली तो उसने खुद को निपट अकेला पाया। उसे पता नहीं था कि कितना समय बीत चुका था या वह कहाँ थी? पूर्णिमा की रात में वह सब कुछ साफ़ साफ़ देख पा रही थी – उसके चारों ओर घना जंगल था। एक बार फिर उसके पास सिर्फ आत्मविश्वास और अदम्य साहस का ही सहारा था। क्या किसी ने नींद में उसके साथ कोई ज़ोर-जबरदस्ती की थी? इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था; जिस चीज़ का सबसे ज्यादा महत्व था वह थी उसका जीवट कभी हार न मानने की ज़िद। अपने सारी जिंदिगी वह ऐसे ही विपरीत परिस्थितियों में से बाहर निकल कर आई थी, जब सबने सोचा था कि वह ख़त्म थी। 
जैसा कि उसके पिता अक्सर कहते थे; ‘मजबूत बनो’ और ‘विपरीत से भी विपरीत परिस्थिति का साहस के साथ सामना करो’ ‘सौ बार गिरो, लेकिन सौ बार जीत के निश्चय के साथ उठो।’ उस समय एर्लेन के विचार केवल यही थे कि उसके दुश्मन की यह भयंकर भूल थी कि उसने उसे जीवित छोड़ दिया था।
एर्लेन का ध्यान दूर से आने वाले रुदन ने आकर्षित किया; कौन था वहाँ – कैप्टन जॉनथॉन स्मिथ, या पिशाचिनी का कोई शिकार? हो सकता कि वहाँ जंगल में खोई हुई कोई लड़की हो? शायद वह एर्लेन को जंगल से बाहर निकलने में मदद कर पाए? वह आवाज की दिशा में गयी और उसने हिचिकियाँ भर भर कर रोती हुई एक औरत को उसकी तरफ पीठ करके एक गिरे हुए पेड़ के तने पर बैठा पाया। उस औरत के लंबे बाल खुले हुए थे और उसने चटक लाल रंग की साड़ी और सोने के कई आभूषण जैसे गले का हार, बाजूबंद और कमरबंद पहने हुए थे। शायद वह किसी ऊँची जाति के हिन्दू परिवार से थी। वह अपनी दोनों कलाइयों में लाल और हरे रंग की काँच की ढेर सारी चूड़ियाँ और पैरों में चांदी के छोटे छोटे घुंघरू वाली पाज़ेब भी पहने हुए थी। उसके पैरों के तले लाल रंग के आलते से रंगे थे और उसके पैर के नाखून लंबे, गंदे और बेढ़ब थे।
“तुम कौन हो?” तुम यहाँ क्या कर रही हो?”
कोई जवाब नहीं आया।
“तुम इस तरह रो क्यों रही हो?” क्या मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकती हूँ?”
“मैं भूखी हूँ; मैंने कई दिनों से कुछ नहीं खाया है,” रोते रोते उसने जवाब दिया।
“मेरे पास खाने के लिए अभी तो कुछ नहीं हैं, लेकिन मैं कुछ खाने के लिए ढूँढने में तुम्हारी मदद कर सकती हूँ।” 
कुछ पलो कि चुप्पी के बाद एर्लेन ने पूछा,”क्या तुम्हें यहाँ से बाहर निकलने का रास्ता पता हैं?”
“मैं बाहर का रास्ता जान कर क्या करुँगी, मुझे कौन सा कहीं जाना है? मैं तो सदा यहाँ रहती हूँ, यही तो मेरा आशियाना है,” वह गहरे अन्धकूप से निकलती हुई गूँजती सी हुई आवाज़ में बोली और झटके से एर्लेन कि तरफ मुड़ी।
एर्लेन ने उससे ज्यादा डरावना चेहरा अपने पूरे जीवन में नहीं देखा था। उस औरत का चेहरा और हाथ कोयले से भी ज्यादा काले थे, उसका माथा संकीर्ण था और बड़ी-बड़ी लाल आँखों में भेंगापन था। उसकी नाक बुरी तरह से विकृत थी और तेज़ाब से धुले गाल और फटे होठों के नीचे से झाँकते उसके मवाद से भरे पीले बेढ़ब मसूड़े और नुकीले दाँत। पिशाचिनी के शरीर से हफ्तों से सड़ते हुए एक ऐसे मुर्दा शरीर की सड़ांध उठ रही थी जिसे कब्र के कीड़ो ने आधा खा कर छोड़ दिया हो।
पिशाचिनी का रुदन एक तीख़ी हँसी में बदल गया। वह अद्भुत चपलता के साथ उठते हुए बोली,”बहुत इंतजार कराया है तूने।”
“मुझे…मुझे जाने दो!” एर्लेन के काँपते घुटने उसके शरीर का वजन उठाने से असक्षम लग रहे थे।
“और भूखी रह जाऊँ?” डरो मत; तुम्हें दर्द का एहसास ज्यादा समय तक नहीं रहेगा… तू मुझे पसंद आई है; मैं तुझे अपने जैसा बना दूँगी और फिर तू भी हमारे खूनखोरों के कबीले में शामिल हो जइयो।”
एर्लेन बिना किसी पूर्व चेतावनी के मुड़ी और वहाँ से बगूले की तरह भागी। पिशाचिनी ठहाका लगा कर हँस पड़ी – एक मानव कंकाल की हँसी – और अपने शिकार के पीछे लपकी। जैसे जैसे उनके बीच का फ़ासला घटने लगा, एर्लेन को उसके पाज़ेब के घुँघरू  की आवाज़ और ज़ोर से सुनाई देने लगी। एर्लेन अपने जीवन में कभी इससे ज्यादा तेज़ नहीं दौड़ी थी। अपनी अंधी दौड़ में वह पेड़ों की गिरी हुई शाखाओं से जा उलझी और कंटीली झाड़ियों में जा गिरी। उसका चेहरा, हाथ और कपड़े जानवरों के गोबर में लिथड़ गए जिसमे बेशुमार पत्तियाँ चिपक गईं। लेकिन इन सब से बेपरवाह, वह उठ कर फिर से उड़ी चली जा रही थी।
आख़िरकार उसके थके हुए पैरों ने जवाब दे दिया और वह धड़ाम से गिर पड़ी। उसके सामने वही पीपल का विशाल वट वृक्ष जिसका तना सिन्दूर से सना था और जो शिकारी भेड़िये की मांद थी। पिशाचिनी के शिकारों के खून से सने नग्न शरीर पेड़ की शाखाओं से उल्टे लटक रहे थे। एर्लेन ने अपनी धुंधलाई आँखों से उन लम्बे नाखूनों वाले काले पैरों को देखा जो उसके नजदीक आ रहे थे। 
उसने अपनी आँखों कसकर बंद कर ली और अपना ध्यान खुशनुमा शाम में चाय की सुगंध, अपने घर की रसोई की गर्माहट और अपनी माँ की प्यार भरी मुस्कान पर भटकाया। उसने अपने पिता के साथ घुड़सवारी – अपनी सबसे मधुर स्मृति – से भी अपना मन बहलाया। उसके लम्बे, मजबूत कद काठी और आकर्षक व्यक्तित्व वाले पिता के मजबूत हाथ की परिचित पकड़ उस छोटी लड़की को आश्वस्त करती थी; जब वह दर्पण जैसे साफ़ नीले पानी की झील के किनारे घूमते थे और उनके घोड़े आराम से घास चरते थे। उनके चारों तरफ ग्रामीण स्कॉटलैंड की मनमोहन सुन्दरता बिखरी होती थी – हरे भरे जंगल, पहाड़ियाँ, किले और पुराने चर्च। उसके पिता की गहरी और आत्मा को छूने आवाज़ उसके कानो में गूँजी,”मेरी प्यारी बेटी, हम अक्सर काल्पनिक या बेमिसाल की चाहत में सच्चाई को नज़रअंदाज़ कर देते हैं। सभी जवाब तुम्हारे दिल में हैं; बस अपनी आँखें बंद करो और अपने आप को बह जाने दो, ऐसे जैसे की एक नदी खुले दिल से सागर में बह जाती हैं। तुम्हारा दिल सवाल और जवाब दोनों जानता हैं; बस खुद को रौ में बह जाने दो और यह तुम्हें खुदबखुद मिल जाएगा। अपनी आत्मा को सही और गलत चुनने के लिए अपना मार्गदर्शक बनने दो।”
… पिशाचिनी ने वादा किया था कि दर्द लंबे समय तक नहीं रहेगा और फिर वह अपने प्यारे पिता के साथ स्वर्ग में रहेगी। वह अपनी आँखों के किनारे से उन्हें और अपनी ईरानी माँ को देख पा रही थी; वह इंतजार कर रहे थे – उसे कष्टदायी दर्द से छुटकारा दिलाने और सांसारिक अस्तित्व से परे उसके नए घर में उसका स्वागत करने के लिए।
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किताब परिचय:
1818 ईस्वी, मध्य प्रांत, हिन्दुस्तान। सूबेदार जगन्नाथ चकलाधर ईस्ट इंडिया कंपनी की चाकरी और ठगों की मुखबरी करता है। कप्तान जॉनथॉन स्मिथ हाथियों, लकड़बग्घों, साँपों और ख़ूनी ठगों से भरे जंगल पर एक छत्र राज करता है। एर्लेन ब्रिटिश-ईरानी एंथ्रोपोलॉजिस्ट (मानवविज्ञानी) है, जो सर्प-राजकुमारी के एक टैटू के रहस्य को जानने के लिए हिंदुस्तान आयी है। 
इन तीनों का सामना एक भयंकर रक्त-पिपासु वैम्पायर (पिशाचनी) से  होता है। एक मिथकों वाली प्राचीन प्राणी – जो मानव रक्त पी रही है और जिसने जंगल में उल्टी लटकी नग्न लाशों की झड़ी लगा दी है। क्या ये तिकड़ी आपसी दुश्मनी और घात-प्रतिघात से ऊपर उठकर इतिहास की पहली वैम्पायर का सामना कर पाएगी? या फिर यह त्रिमूर्ति भी गर्म और भल-भल करके बहते मानव रक्त की अतृप्त वासना वाली पिशाचनी की भेंट चढ़ जाएगी? 
क्या कोई रोक सकता है उस नृशंस वैम्पायर को जो अजर, अमर और अविनाशी होने के लिए अभिशप्त है? यह मौत पर विजय प्राप्त कर चुकी वैम्पायर की वह गुप्त कहानी है जिसे अब तक दुनिया से छुपा कर रखा गया था।

किताब प्री आर्डर के लिए तैयार है। आप इसे निम्न नम्बर पर व्हाटसएप्प करके आर्डर कर सकते हैं:

+91-9372257140

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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2 Comments on “पुस्तक अंश: पहली वैम्पायर”

  1. विकास जी, भूत प्रेत की कहानियां,बाप रे पढ़ते पढ़ते ही…

    1. जी ऐसी कहानियाँ रोमांचक होती हैं इसलिए पढ़ लेता हूँ….

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